बुधवार, 22 जनवरी 2020


दान बिना निर्धन दुखी -तृष्णा वश धनवान
January 22, 2020 • सुनील जैन राना • धर्म
धन कमाने के बाद दान देने की प्रवृति इंसान का स्वाभाविक गुण है। यूँ तो किसी भी देश की अधिकांश जनता कमाने और खाने तक ही सीमित रहती है। कुछ जनता ऐसी होती है जिसे रोजाना भरपेट भोजन भी नसीब नहीं होता जबकि कुछ लोग खाने कमाने की बातो से ऊपर होते हैं यानि उनके पास इतना धन होता है की उसे खर्च कैसे करें यह भी समस्या ही होती है।
बेहताशा गरीबी और बेहताशा अमीरी का बढ़ता ग्राफ दुनिया भर के अनेक देशों में अपने पाँव पसार रहा है। भारत में जहां एक ओर एक चौथाई जनता को रोज भरपेट भोजन न मिलता हो वहीं दूसरी ओर देश के ६३ अमीरों के पास देश के बजट से भी कई गुना ज्यादा सम्पत्ति है। देश के ९० करोड़ लोग जो मध्यम वर्ग से होते हैं बस किसी तरह अपना गुजारा करने लायक कमा लेते हैं ऐसा है भारत देश।
अब बात अमीर लोगो की करें तो धन कमाकर भगवान का शुक्रिया करने की भावना के चलते मंदिरो में जाकर दान देना अमीरों का स्वाभाविक सा गुण हो जाता है। अपने इष्ट के चरणों में धन -सोना -गहने -सम्पत्ति आदि का अर्पण करने में उसे अपार सुख मिलता है।
दान के भी कई प्रकार होते हैं जिनमे चार प्रकार के दान प्रसिद्द हैं। आहार दान ,औषधि दान ,ज्ञान दान और अभय दान।लेकिन आज के भौतिक युग में मंदिरजी में धन दान या सोना दान की अधिक महिमा दिखाई दे रही है। जो वास्तव में चार प्रकार के दान श्रेष्ठ होते थे उनकी तरफ ध्यान कम दिया जा रहा है। 
काश दानियों को यह समझ में आये की गरीबों के लिए भोजन -दवाई -शिक्षा उपलब्ध करने से उत्तम कोई दान नहीं होता। अभय दान यानि किसी का जीवन बचाना भी उत्तम दान होता है। आज तो मंदिरो में भगवान के लिए चढ़ावा चढ़ाया जा रहा है जैसे की भगवान को जरूरत हो। भगवान और मंदिरो को सोने से सजाया जा रहा है।करोड़ो -अरबों की लागत से नए -नए मंदिर बन रहे हैं। जबकि कुछ प्रसिद्द मंदिरो को छोड़कर पुराने मंदिरो की देखभाल भी ठीक से नहीं हो रही है।
समाचारों से पता चला की कुछ समय पहले तिरुपति जी के मंदिर के पुजारी की तीन बेटियों की शादी में उसने १२५ किलो सोना अपने दामादों को दिया। देशभर में ऐसे कुछ बड़े प्रसिद्द मंदिरो के पास अकूत धन है। क्या ही अच्छा हो की वह धन गरीबों के काम आये? चढ़ावे के धन से स्कूल -अस्पताल खुलवायें जाए। हालांकि कुछ मंदिर ट्रस्ट ऐसे सामाजिक कार्य करते हैं। बिना शुल्क भोजन भंडारा तो अनेक मंदिरो की भोजनशाला में चलाया जाता है।
धनवानों को दान देने की प्रवृति में थोड़ा बदलाव करना चाहिए। कुछ धन देश में भूखे पेट सोने वालो के भोजन पर खर्च करना चाहिए। ऐसे कुछ राज्य जहां गरीबी अधिक है वहां गरीब को रोटी मिले ऐसी व्यवस्था करवानी चाहिए। शायद भगवान भी यही चाहते हैं।  * सुनील जैन राना *

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