बुधवार, 26 दिसंबर 2018



दलित - अब नहीं भेदभाव 
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जातिवाद को ढाल बनाकर देश के नेताओं ने देश में विकास की रफ़्तार को लील लिया है। कभी दलित ,
कभी अल्पसंख्यक ,कभी जाट ,कभी मराठा आदि को लुभावने लालच देकर अपना वोट बैंक बनाने की 
कोशिश में ये नेता लोग भूल गए हैं की सबसे पहले देश सर्वोपरि होता है। इन नेताओं को पता है की सरकारी नौकरियाँ तो है नहीं लेकिन फिर भी आरक्षण के नाम पर युवा वर्ग को बरगलाते रहते हैं। 

इन सबमें खासकर दलित शब्द को खूब भुनाया गया। दलित और अल्पसंख्यक के नाम पर नेता करोड़पति हो गए लेकिन ये दोनों समुदाय आज भी विकास की लहर में पिछड़े हुए हैं। इनके नेताओ ने इनके नाम पर वोट तो बहुत लिए लेकिन इनके विकास के लिए कुछ नहीं किया सिवाय अपनी जेबें भरने के। 

आज एक समाचार छपा की बाबा गोरखनाथ मंदिर के पुजारी दलित हैं। इसमें आश्चर्य की बात कुछ नेताओ के लिए हो सकती है लेकिन आम जनता के लिए नहीं। क्योकि ऐसा तो बहुत जगह है लेकिन दलित नेता हमेशा दलित के उत्पीड़न की चर्चा करते हैं। दलित और अन्य समाज के भाई चारे की चर्चा नहीं करते। विडंबना की बात यह भी है की दलित नेता कुछ ही सालों में अमीर हो जाते हैं और आरक्षण से आगे बढ़े दलित को अपना घर ,समाज याद नहीं रहता। होना तो यह चाहिए की एक परिवार को आरक्षण का लाभ मिलने पर आगे की उनत्ति उसकी योग्यता पर निर्भर होनी चाहिए और अन्य परिवार के जरूरतमंद को नई नौकरी मिलनी चाहिए। वैसे तो आरक्षण आर्थिक आधार पर ही होना न्यायसंगत है। जिससे हर गरीब को आगे बढ़ने का मौका मिल सके। 

हो सकता है की कुछ जगहों पर कथित दबंग अपनी दबंगई दिखाने को दलितों पर अत्याचार या छुआछूत करते हों लेकिन हकीकत कुछ और ही है। आज दलित बेरोजगार नहीं है ,कुछ न कुछ कार्य या नौकरी कर रहा है। अनेक होटलों में ,ब्याह -शादी में दलित आदि वेटर का कार्य करते हैं। कथित बड़े लोगो या दबंगो की शादी आदि में जो अपने गांव -देहात में छुआ छूत से ग्रस्त रहते हैं ब्याह -शादी में इनके हाथों से डट कर भोजन करते हैं। ऐसी अन्य अनेक बाते हैं जो दिखाती हैं की आज दलित सबके 
साथ मिलजुलकर कार्य कर रहा है। व्यापार में ,कारखाने में ,बैंक में अन्य सरकारी -गैर सरकारी संस्थानों में आज दलित सबके साथ मिलजुलकर सभी प्रकार का कार्य करता नज़र आता है। 
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अपना मल तो सब अपने हाथ से ही धोते हैं 
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कटु सत्य  है की हम जिस इंसान को जिस कार्य के लिए अछूत समझते हैं हम सभी प्रातः सबसे पहले 
अपना वही कार्य अपने हाथ से करते हैं। फिर हम नहा धोकर शुद्ध हो जाते हैं लेकिन वही कार्य करने वाला समाज में अछूत कहलाता है -क्यों ?

यदि नहाने धोने से शरीर शुद्ध हो जाता है तो सबका हो जाना चाहिये। इसमें भेदभाव की क्या बात है ?
हम किसी जगह किसी पंक्ति में खड़े हो हमे पता नहीं होता हमारे आगे -पीछे वाला कौन है ?बस में ,रेल में ,हवाईजहाज में हमारे बराबर की सीट पर कौन जात है हमें पता नहीं होता। फिर क्यों पता चले ही हम असहाय से क्यों हो जाते हैं। अब हमे इस मानसिकता को बदलना ही होगा। हमारे नेताओं को भी जात पात से परे देश की उन्नति के लिए सोचना चाहिए।                      http://suniljainrana.blogspot.com/



शुक्रवार, 21 दिसंबर 2018


सरकारी गोदामों में सड़ रहा अनाज -क्यों ?
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एक समाचार से पता चला की  Fci के भंडारण में पिछले चार सालो में 33700 टन खाद्यान बर्बाद हो गया।

कितने दुर्भाग्य की बात है एक तरफ हमारे देश में करोड़ो लोग भूखे रह जाते हैं वहीं दूसरी तरफ हज़ारो टन

अनाज उचित भंडारण की कमी के कारण बारिश में भीग कर बर्बाद हो जाता है।

ऐसा पिछले चार सालों से नहीं बल्कि कई दशकों से हो रहा है। गोदामों की कमी के कारण अनाज को बाहर

खुले में रख दिया जाता है। बरसात के दिनों में अनाज पर तिरपाल आदि से ढक दिया जाता है। फिर भी

लापरवाही के कारण बहुत सा अनाज पूरी तरह ना ढकने के कारण भीग जाता है और खराब हो जाता है।

अनाज भीग जाता है या भिगोया जाता है ?
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सरकारी गोदामों में अनाज का भीगना कोई साधारण बात नहीं है। लाखों रूपये प्रति माह वेतन लेने वाले अधिकारी अनाज भीगने पर जिम्मेदार क्यों नहीं होते ?क्यों हज़ारो रूपये की तिरपाल की लापरवाही के कारण
करोड़ो रूपये का अनाज भीगने दिया जाता है। जबकि यह प्रत्येक साल की प्रकिर्या है।

पिछले वर्ष मैंने एक वीडियो जो फ़ेसबुक पर आया था उसे ब्लॉग पर पोस्ट किया था। वीडियो में किसी गोदाम में अनाज को पानी के पाईप से कर्मचारी द्वारा भिगोया जा रहा था। ऐसा तो जानबूझकर ही किया जा रहा होगा ?
ऐसे में खले में भरी बारिश से अनाज भीगने पर तो अधिकारी पर कहने को बहुत कुछ होता है।

शराब माफ़िया को बेचा जाता है भीगा अनाज़ ?
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सूत्र बताते हैं की अनाज़ को भीगने देने के पीछे भ्र्ष्टाचार का बहुत बड़ा हाथ होता है। अनाज़ भीग जाने पर वह बिकने योग्य तो रहता नहीं। कागजो में उससे बीमारी फैलने -उसमे जानवर पैदा होने को दर्शाया जाता है। मज़े की बात यह भी सुनने को मिलती है की अब उस अनाज़ की उठवाई के भारी बिल बनाये जाते हैं। जबकि यह
सब सुनियोजित हो रहा है और भीगा अनाज़ शराब माफ़िया को बेचा जाता है जिससे बीयर आदि बनाई जाती है।

जबाबदेही क्यों नहीं ?
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इस सब मामले में जब तक संबंधित अधिकारियों की जबाबदेही तय नहीं होगी तब तक ऐसा ही चलता रहेगा।
बताया जाता है की घटतौली और घटिया क्वालिटी का अनाज़ सबकी जांच से बचने के लिए भी अनाज़ को भीगने दिया जाता है। भारत जैसे देश में जहां आज भी करोड़ो गरीब भूखे पेट सोते हो ऐसे में करोड़ो रूपये के अनाज़ की ऐसी बर्बादी दुर्भाग्यपूर्ण ही है। वे कैसे इंसान हैं जो गरीब के पेट पर लात मारकर अपने पेट भरने में लगे रहते हैं। उनपर ऊपर वाले की लाठी पता नहीं कब पड़ेगी ?                          http://suniljainrana.blogspot.com/




शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018



चुनावों से पूर्व मुफ्त की बंदरबाट पर रोक लगे  

चुनावों से पूर्व राजनीतिक दल चुनाव में जीतने के लिए जनता को मुफ्त में कुछ भी देने या बैंको से लिया कर्जा माफ़ करने की घोषणाएं करने लगते है। देश की सभी पार्टियां इस कार्य में पीछे नहीं हैं। 

अभी हाल ही में हुए पांच राज्यों के चुनावों में भी यही हाल रहा। तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने जा रही है। अब इन्हे अपने किये वायदों को पूरा करना पड़ेगा। खासकर किसानों के कर्ज माफ़ी की घोषणा के कारण ही कांग्रेस को चुनाव में जीत मिली है। अब सरकार बनने के दस दिन के अंदर उन्हें किसानों का कर्ज माफ़ करना होगा। हो सकता है कांग्रेस अपना किया वायदा निभाये। लेकिन ऐसे वायदे राज्य की अन्य जनता के लिए धोखा ही हैं। किसी भी राज्य को चलाने के लिए धन की जरूरत होती है। यदि धन सरप्लस होता तो राज कर रही पहली सरकार ही कर्जा माफ़ कर देती। 

इस तरह फ्री में बाटने की प्रवृति से राज्य की अन्य योजनाओं पर असर पड़ता है। एक राज्य के पास जितना धन या राजस्व होता है उसी में जनता की भलाई के कार्य करने होते हैं। ऐसे में उसमे से अधिकांश धन किसी की भलाई में खर्च कर देने से विकास कार्य रुकेंगे ही। 

चुनावो से पूर्व मुफ्त में बाटने की प्रवृति पर पाबंदी लगनी चाहिए। कोई भी राजनीतिक दल यदि कुछ भी मुफ्त में बाटने की घोषणा करता है तो वह उसे अपनी पार्टी के फण्ड से बांटना चाहिए। 

शनिवार, 1 दिसंबर 2018





श्री दया सिंधु जीव रक्षा केंद्र , सहारनपुर
 सुनील जैन राना  (संयोजक )

https://www.facebook.com/jeevrakshakendra

भोजन पर सर्वे

WHO खाने पर एक सर्वे हुआ, सर्वे पूरी दुनिया के खाने पर किया गया जिसका उद्देश्य ये जानना था की पूरी दुनिया में सबसे अच्छा खाना क्या है उसके ...