शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

खाद्य पदार्थो में मिलावट

दूध, मावा, घी,मसाले आदि अनेको खाद्य पदार्थों में मिलावट की जा रही है। ज्यों ज्यों आबादी बढ़ रही है त्यों त्यों प्रत्येक खाद्य पदार्थ की खपत भी बढ़ रही है। ब्याह शादी एवं त्योहारों के सीजन में इन सभी वस्तुओं की खपत और ज्यादा बढ़ जाती है। उसकी पूर्ति नकली खाद्य पदार्थों से की जाती है।दो दशक से दूध की खपत बहुत बढ़ गई है। सीज़न में दूध की आपूर्ति पूरी करने के लिए सिंथेटिक दूध बनाया जाता है। पहले यह कम पैमाने पर बनता था आज इसका कारोबार बहुत बढ़ गया है। इसका एक मुख्य कारण हमारे टीवी चैनल भी हैं। ये चैनल अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिये ये सिंथेटिक दूध की धर पकड़ ही नही दिखाते बल्कि सिंथेटिक दूध कैसे बनता है, इसमें किस किस चीज का प्रयोग होता है। इसको बनाने की विधि क्या है, आदि सभी बाते विस्तार से कई कई बार दिखाते हैं। ऐसा करने से देश के कुछ बेरोजगार इसी कार्य मे लग जाते हैं और खूब धन कमाते हैं। इसी तरह अन्य वस्तुओं को भी मिलावट द्वारा कैसे बनाया जाता है सब कुछ अच्छे से दिखाते हैं। खाद्य विभाग कहाँ तक चैकिंग करेगा? चैकिंग तो बस नामी गिरामी कम्पनी की हो जाती है। हर गली चौराहे पर खाद्य पदार्थो की दुकानें होती हैं।सबकी चैकिंग करना भी आसान नही है। नकली दूध,मावा,घी के अलावा मिलावटी मसालों की भरमार रहती है। एगमार्क मसाले भी शतप्रतिशत शुध्द हो कोई गारंटी नहीं, क्योंकि एगमार्क मसाले बनाने वाली सभी कम्पनियो की जांच नही होती। बस एक दो प्रमुख कम्पनियों की जांच कर इतिश्री कर ली जाती है। सभी जगह के स्थानीय प्रशासन को चाहिये की उनके नगर में मिलावट न हो, जो भी मिलावट करने वाला मिले उस पर कठोर कार्यवाही करनी चाहिये। * सुनील जैन राना *

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सोमवार, 20 दिसंबर 2021

शनिवार, 18 दिसंबर 2021

शिक्षक भर्ती

देश के कई राज्यो में शिक्षक भर्ती बड़े पैमाने पर हुई है एवं कई जगह अभी कुछ बाकी हैं। वर्षो पहले अनेको जगह शिक्षा मित्र बनाये गए थे। अब उनकी मांग है की उन्हें अस्थाई की जगह स्थाई नॉकरी दी जाये। समय समय पर ये अस्थाई शिक्षा मित्र आंदोलन भी करते रहते हैं की उनको स्थाई किया जाये। दरअसल नियुक्तियो करना न करना तो राज्य सरकारों के हाथ मे होता है। लेकिन नियुक्ति योग्यतानुसार हो यह बहुत अहम बात होती है। अनेको जगह सरकारी स्कूलों में पढ़ाई कराने वाले शिक्षक-शिक्षिकाएं ऐसे होते हैं की उन्हें खुद से ही पढ़ना लिखना नही आता। ऐसे में बच्चों को क्या पढ़ा पायेंगे। सामान्य ज्ञान में जीरो होते हैं। उनसे देश-प्रदेश के मंत्रियों के नाम पूछो तो बता नहीं पायँगे। राष्ट्रगान एवं राष्ट्रगीत नही आता होगा। जबकि उन्हें पचास हज़ार से ज्यादा मासिक मिल रहा होता है। प्राइवेट छोटे स्कूलों में शिक्षक को मात्र पांच से दस हज़ार मिलते है फिर भी वे बहुत योग्यता से बच्चों को पढ़ाते हैं। जैसे बच्चे देश का भविष्य होते हैं ऐसे ही शिक्षक बच्चों का भविष्य होते हैं। ऐसे में शुरू से ही बच्चों की गलत पढ़ाई उनके भविष्य को खराब कर सकती है। शिक्षक योग्यतानुसार ही होना चाहिये। शिक्षक भर्तियों में जल्दबाजी नहीं बल्कि बहुत सूझ बूझ की आवश्यकता होती है। जैसे शिल्पकार पत्थर को तराश कर शिल्प बना देता है,कुम्हार माटी से बर्तन आदि बना देता है ठीक उसी प्रकार शिक्षक भी बच्चों के भविष्य को सुंदर बना देते है। इसके लिये यह जरूरी है की शिक्षक योग्यतापूर्ण होना चाहिये। सुनील जैन राना

कैसे बनेगा स्मार्ट सिटी?

स्मार्ट सिटी-डगर बहुत कठिन सहारनपुर को स्मार्ट सिटी बनाने के बहुत प्रयास किये जा रहे हैं,लेकिन प्रयास विफल से हो रहे हैं। गतवर्ष की अपेक्षा रैंकिंग में 49 से 65वे स्थान पर पहुंच गया है सहारनपुर नगर। सहारनपुर को स्मार्ट सिटी बनाने के कार्यो में सड़के ,सीवर एवं डिवाइडर बनते दिखाई दे रहे हैं। इसमें भी धीमी स्पीड से जनता बहुत परेशान हैं। सफाई व्यवस्था पहले से ठीक है। गली मोहल्लों में पहले कूड़े के ढेर लगते थे अब कम लगते हैं लेकिन कुछ जगह स्तिथि अभी भी गम्भीर है। अतिक्रमण ने नगर को जकड़ रखा है। सड़को पर वाहनों की तादाद बढ़ती जा रही है। बाज़ारो में सड़क गलियारे सी बन गई है। दुकानों के आगे दोनों ओर वाहन और फिर उसके आगे फड़ी वालो के पलंग लगने से सड़क आधी घिर जाती है। इसमें दुकानदार और पुलिस दोनों जिम्मेदार हैं। नगर की अनेको सड़को पर डिवाइडर बन गए हैं। कुछ सड़के कम चौड़ी होने से डिवाइडर भी परेशानी का सबब बन गये हैं। दोनों तरफ दुकानदारों का अतिक्रमण से एक वाहन का रास्ता रह जाता है। ऐसे में यदि आगे कोई हाथ ठेला आदि चल रहा हो तो उसके पीछे सभी धीमे हो जाते हैं। कुछ सड़को पर अतिक्रमण इतना ज्यादा है की एक तरफ का रास्ता ही ब्लॉक सा हो जाता है। कुतुब शेर से लकड़ी बाजार ,कम्बोह के पुल तक की एक साइड अतिक्रमण से भरपूर रहती है। ऐसी अनेक बाते हैं जो नगर को स्मार्ट सिटी बनाने में अवरोध पैदा कर रही हैं। सुनील जैन राना

सोमवार, 13 दिसंबर 2021

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2021

पोस्टमार्टम, सावधानी से या चतुराई से

पोस्टमार्टम, सावधानी से या चतुराई से पोस्टमार्टम एक ऐसी प्रकिया है जो लगती है साधारण लेकिन होती है बहुत संवेदनशील। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट पर बहुत सी बातें निर्भर होती हैं। जहां एक ओर लावारिस शवो के पोस्टमार्टम में ज्यादा ध्यान न रखा जाता होगा वहीं दूसरी ऒर कुछ तकनीकी शवो के पोस्टमार्टम में बहुत सावधानी रखी जाती होगी। शव को ओपन करने वाले कर्मचारी की समझ और बहादुरी को तो नमन ही करना चाहिए क्योंकि यह कोई आसान कार्य नही है। कई बार शव बहुत क्षत विक्षत या गली सड़ी अवस्था में आ जाता है ऐसे में कर्मचारी से लेकर डॉक्टर आदि सभी का कार्य बहुत कठिन होता होगा। पोस्टमार्टम को हम तीन भागों में बाँट सकते हैं। जैसे लापरवाही से, सावधानी से, चतुराई से किया गया। लापरवाही से पोस्टमार्टम किये जाने के समाचार हम पढ़ते ही रहते हैं।अभी हाल ही में दो बच्चे अलग अलग सड़क दुर्घटना में मरे, उनका पोस्टमार्टम किया गया और बाद में उनके अभिभावकों को बॉडी देते समय बदली गई। सावधानी से पोस्टमार्टम किया ही जाना चाहिए। अब पोस्टमार्टम चतुराई से किये जाने की बात करें तो उसमें रिपोर्ट निष्पक्ष न होकर चतुराई से बनाई जाती होगी। ऐसे समाचार भी पढ़ने को मिल ही जाते हैं। कुछ भी हो यह सब जानते हैं की पोस्टमार्टम एक जटिल प्रकिर्या है।इसे बहुत सावधानी से मृतक के हित की रक्षा करते हुए किया जाना चाहिए।। सुनील जैन राना

सोमवार, 6 दिसंबर 2021

रविवार, 5 दिसंबर 2021

प्रायोजित किसान आंदोलन

प्रायोजित किसान आंदोलन दुर्भाग्यपूर्ण देश मे चल रहा किसान आंदोलन वास्तव में कथित किसानों और विपक्ष द्वारा प्रायोजित किसान आंदोलन लगता है। देश का अधिकांश किसान इस आंदोलन से दूर रहकर खेती में मशगूल रहा। इस वर्ष रिकार्ड तोड़ उपज हुई। जो यह दर्शाता है की इस आंदोलन में अधिकांश फर्जी किसान शामिल रहे। मोदी सरकाए द्वारा बनाये कृषि कानून अंततः वापस ले लिये गए फिर भी आंदोलन खत्म न करना कथित किसानों की गलत मंशा को दर्शाता है जो देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करना चाहते हैं। बताया जा रहा है कि इस आंदोलन में 700 किसान मर गए। बहुत चिंताजनक बात है यह कि इतना बड़ा आंकड़ा जिसका पता सरकार को एवम जनता को नही चला। इतने किसान कैसे मरे इसका जबाब टिकैत को देना पड़ेगा। धरना स्थल पर सभी सुविधाएं मौजूद थी। बढ़िया खाना, शानदार टैंट, गर्मी में एसी एवम सर्दी में हीटर लगे थे। फिर भी यदि किसान मरा है तो उसके जिम्मेदार आन्दोलनजीवी ही कहे जाएंगे। किसान आंदोलन के बीच मे यह खबर जरूर आई थी की किसी किसान ने बलात्कार किया एवं कुछ किसानों ने किसी किसान के हाथ पैर काटकर उसे मार डाला। इसकी वीडियो भी वायरल हुई है। कुल मिलाकर ऐसा लगता है जैसे यह किसान आंदोलन टिकैत द्वारा अपने को चमकाने एवं विपक्ष द्वारा प्रेरित होने ,मोदी विरोध करने एवं भारतीय अर्थव्यवस्था को बाधित करने के उद्देश्य से किया जा रहा है। सुनील जैन राना

रविवार, 28 नवंबर 2021

बैंकिंग भ्र्ष्टाचार लील रहा अर्थव्यवस्था

बैंकिंग भ्र्ष्टाचार लील रहा अर्थव्यवस्था भारत मे यदि बैंकिंग भ्र्ष्टाचार न होता तो आज भारत की अर्थव्यवस्था ऊंचाइयों पर होती।कांग्रेस की मनमोहन सरकार की दूसरी पारी में नेताओ,कॉरपोरेट एवम बैंक अधिकारियों की मिलीभगत ने मोदी सरकार के आने तक बैंको के लगभग 9 लाख करोड़ रुपये एनपीए यानी बट्टे खाते कर दिए गए थे।जिसके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था छिन्न भिन्न हो गई थी।पीएम मनमोहन जी बोले थे पैसे पेड़ पर नही उगते, भले ही उनके वित्तमंत्री ने गमलों में उगा दिये थे। पिछली सरकार में नेताओ एवम कुछ कॉपोरेट्स ने बैंकों के साथ मिलीभगत कर हज़ारो फ़र्ज़ी कम्पनियां खोलकर लाखो करोड़ लोन लेकर डकार गए। विजय मालया, नीरव मोदी जैसे तो छोटे खिलाड़ी हैं। बड़े लोन तो अनिल अंबानी,भूषण स्टील,एयर इंडिया,एयरटेल,वोडाफोन, आइडिया आदि जैसी अनेक कम्पनियों ने बैंकों का ऋण चुकता नही किया। अब मोदी सरकार ने बैंकों के ऋण सम्बन्धी कठोर नियम बना दिये हैं।हज़ारो फ़र्ज़ी कम्पनियों बन्द कर उनसे उगाही की जा रही है। पहले किसी की कोई जबाबदेही नहीं थी अब नियमों से ऋण दिया जा रहा है।हालांकि अभी भी पूर्ण रूप से भृष्टाचार पर रोक नही लग पाई है लेकिन जबाबदेही होने से भ्र्ष्टाचार में बहुत कमी आई है। सुनील जैन राना

शनिवार, 20 नवंबर 2021

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कृषि किसान बिल वापस

कृषि कानून वापस,बड़े किसान खुश कैसी विडंबना है हमारे देश की किसानों के हित मे बनाया गया कानून कुछ सरकार विरोधी ताकतों द्वारा आंदोलन कर वापस करवा दिया गया है। यह जीत सभी किसानों की जीत नही है।सरकार विरोधी कथित किसान आंदोलन करते रहे एवं सच्चे किसान खेतो में कार्य करते रहे। ज्ञात रहे इस वर्ष देश मे खाद्यान्न उत्पादन अपने रिकॉर्ड स्तर पर हुआ है। किसानों का खाद्यान्न उचित मूल्य पर बिका है, फिर भी यह आंदोलन कैसा? दरअसल देश मे अपनी राजनीति चमकाने को सत्ताविहीन नेतागण कुछ ऐसें मुद्दे ढूंढते रहते हैं जिससे देश का माहौल खराब हो। इस कृषि कानून में एक भी ऐसा कारण नही था जो किसान हित मे न हो। इस बिल से परेशानी सिर्फ बड़े किसानों,जमाखोरों,बिचौलियों को थी की अब उनकी दादागिरी चल नही पायेगी।। देश का 80% छोटा किसान अब इनके चंगुल से निकल जायेगा। दरअसल बड़ा किसान तो सभी प्रकार की सरकारी सुविधाएं ले लेता है लेकिन छोटे सभी किसानों को सभी सरकारी सुविधाएं नहीँ मिल पाती है। सरकार को किसान सम्बन्धी कानूनों में छोटे किसानों के लिये विशेष प्रावधान करना चाहिए। किसान बिल का विरोध करने वाले कथित किसान,विपक्ष एवं देश विरोधी खालिस्तानी ताकतें आदि जनता में खाई पैदा करने की कोशिशें कर रहे थे। लेकिन यह सब ये नहीँ बता पाये की इस बिल में खामी क्या है? मोदीजी ने देश की एकता को खंडित करने वालो को बिल वापस लेकर उनके मंसूबो पर पानी फेर दिया है। साथ ही आने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर एक तीर से कई निशाने लगा दिये हैं। * सुनील जैन राना *

रविवार, 14 नवंबर 2021

ऑनलाइन पढ़ाई, काम न आई

ऑनलाइन पढ़ाई,काम न आई कोरोना काल ने भारत समेत अनेको देशों की अर्थव्यवस्था समेत अन्य जरूरी व्यवस्थाएं भी कोरोना की भेंट चढ़ जाने से सभी को बहुत हानि हुई है।इसी से सम्बन्घित हानि बच्चों के भविष्य से जुड़ी हुई है।लगभग डेढ़ साल हो गया बच्चों के स्कूल बंद हुए। पहले साल तो शिक्षा का वातावरण हो न बन सका। इस साल कोरोना का प्रकोप कम होने से बच्चों को पढ़ाई के लिये जागरूक किया जा रहा है।कुछ जगह स्कूल भी खुलने लगे हैं। कुछ स्कूलों में दो शिफ्टों में पढ़ाई हो रही है कुछ में एक ही शिफ्ट चल रही है।लगता है जल्दी ही सभी स्कूल खुलने लगेंगे। अभी तक घर पर ही ऑनलाइन पढ़ाई कराई जा रही थी।इसके नतीजे कुछ अच्छे कुछ बुरे दिखाई दिये गए। इस बात को हम दो वर्गों में बाट सकते है। एक सम्पन्न वर्ग, एक मध्यम वर्ग यानी बड़े स्कूल एवं छोटे स्कूल।बड़े स्कूलों के सम्पन्न बच्चों को घर पर भी सभी सुविधायें मिली लेकिन छोटे स्कूलों के मध्यम वर्ग के बच्चों एवं स्कूलों को ऑनलाइन पढ़ाई के लिये न तो पर्याप्त नेट मिला, न ही स्कूलों में ऐसे शिक्षक मिले न ही ऐसे बच्चों को घर में पर्याप्त मोबाईल, टैब आदि उपलब्ध हो पाए। यह स्तिथी तो शहरों नगरों की रही गांवो में रहने वाले बच्चों एवं शिक्षकों को तो अनेको समस्याओं से जूझना पड़ा । मध्यम वर्ग जो कोरोना काल मे मुश्किल से गुजारा कर रहा था उस पर ऑनलाइन पढ़ाई का अतिरिक्त बोझ पड़ गया। भारत जैसे देश मे अभी डिजिटल क्रांति की शुरुवात ही है। अभी इस कार्य मे बहुत सी सुविधाओं का अभाव है। सबसे ज्यादा परेशानी उन अभिवावकों को हुई है जिनके बच्चे अभी प्ले या नर्सरी में एडमिट होने थे,ऐसे बच्चों को अभी स्कूल के मैनर्स नही आ पाए हैं। जिन बच्चों के हाथ मे हम कभी मोबाईल देना ही नही चाहते थे आज छोटे छोटे बच्चे मोबाईल का इस्तेमाल कर रहे हैं।अभी से छोटे बच्चों की आंखों पर चश्मा चढ़ने लगा है। कुल मिलाकर ऐसा ही लग रहा है की ऑनलाइन पढ़ाई से फायदा कम नुकसान ज्यादा दिखाई दे रहा है।

शनिवार, 6 नवंबर 2021

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पराली जलाओ नहीं उपयोग में लाओ

किसान के खेतो में जलाई जा रही पराली जी का जंजाल बन गई है। हरियाणा -पंजाब के खेतो में जलाई जा रही पराली से देश की राजधानी सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही है। दिल्ली और आसपास के इलाको में प्रदूषण का स्तर अधिकतम सीमा को भी पार कर गया है। सड़को पर सर्दी में पड़ने वाली धुंध से भी ज्यादा धुँआ -कोहरा सा छाया है। आम आदमी भी इस प्रदूषण से बहुत चिंतित है। बच्चे -जवान -बूढ़े सभी इस धुँए की चपेट में बीमार हो रहे हैं। दरअसल वैसे तो पराली बिक जाती है लेकिन आधुनिकता की दौड़ में अब फसलों की कटाई मशीनों से होने लगी है। हाथ से कटाई में तो फसल पूरी जड़ से काटी जाती थी लेकिन मशीन से फसल की कटाई थोड़े ऊपर से होती है। हार्वेस्टर मशीन से कटाई करने पर फसल का कुछ भाग ऊपर रह जाता है। ऐसे में किसान उसे हाथ से न हटाकर अपने खेतो में आग लगा देते हैं जिसके कारण दूर दूर तक धुँआ फैल रहा है। किसान यह भी नहीं सोच रहे की खेत में पराली जलाने से धरती में लाभकारी कीट -केंचुए आदि भी जल कर मर रहे हैं। जिससे धरती में उपजाऊ पन कम हो रहा है और पाप के भागीदार भी बन रहे हैं। हालांकि आज भी अधिकांश पराली काम में आ रही है या बिक रही है फिर भी यदि किसान और राज्य सरकार मिलकर तकनीकी आधार से कार्य करें तो दोनों को पराली से मुनाफा भी हो सकता है और प्रदूषण से मुक्ति भी मिल सकती है। पराली के टाईट बंडल बनाने के उपक्रम लगे जैसे रुई के बंडल बनते हैं। ऐसा होने से पराली कम जगह घेरेगी और बड़े प्लांटों में जलाने के काम आयेगी। कुछ जगह पराली से डिस्पोजल बर्तन बनने शुरू हो गए हैं जो प्लास्टिक का विकल्प बन सकते हैं। इसलिये पराली जलाओ नहीं उपयोग में लाओ। कहने का तातपर्य यह है की यदि किसान और राज्य सरकार मिलकर पराली के विभिन्न आयामों पर शोध करें तो अच्छे परिणाम सामने आ सकते हैं। हो सकता है की आज दुःख देने वाली पराली कल खुशियां लेकर आये। * सुनील जैन राना *

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2021

डूबती कांग्रेस - भागते सिपहसालार

भारत की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अब धीरे -धीरे धरातल की ओर जा रही है। इंदिरा गाँधी के समय यह नैरा बुंलद हुआ था की *इंदिरा इज इंडिया* आज कांग्रेस का यह नारा बुलंद है की *गाँधी परिवार इज कांग्रेस * कभी जनता गर्व से कहती थी की हमने कांग्रेस को वोट दिया है आज बिलकुल इसके विपरीत है। ऐसा नहीं है की आज कांग्रेस में होनहारो की कमी है लेकिन गाँधी परिवार ने शायद कांग्रेस को अपनी बपौती समझ लिया है ,जिसके कारण आज कांग्रेस टूट के कगार पर है। जितने पुराने कांग्रेस नेतागण हैं आज भले ही कांग्रेस को छोड़ न पा रहे हो लेकिन मन से कांग्रेस से दूर होते जा रहे हैं। कांग्रेस के दिग्गज नेताओ की अनदेखी ही नहीं बल्कि बेजत्ती तक कर दी जाती है। आज कांग्रेस अध्यक्ष विहीन है क्योंकि गाँधी परिवार से बाहर का कोई अध्यक्ष बन नहीं सकता और माँ -बेटे दोनों कई बार बदल -बदल कर अध्यक्ष बन चुके हैं। अब स्तिथी ऐसी है की उन्हें भी इस बार खुद को अध्यक्ष घोषित करते हुए शर्म आ रही होगी इसलिये पूर्ण अध्यक्ष के नाम में देरी हो रही है। सोनिया गाँधी ने सुप्रीमो कमान थाम रही है और राहुल गाँधी जनता के सामने हर बार फेल साबित हुए हैं। उनके नेत्तृव में लगभग ३० चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। अगले साल उत्तर प्रदेश में चुनाव है तो चुनाव प्रचार से राहुल गाँधी ने खुद को प्रचार से दूर रख अपनी बहन प्रियंका बाड्रा गाँधी को प्रचार में उतारा है। लेकिन अब तो ऐसे लगता है की जैसे पहले अन्य छोटी -बड़ी पार्टियां कांग्रेस का सहारा लेकर पनपती थी अब कांग्रेस उन छोटी -बड़ी पार्टियों का सहारा लेकर खुद को जीवित रखना पड़ रहा है। गाँधी परिवार की नीतियों के कारण ही आज कांग्रेस धरातल में जा रही है। कांग्रेस मुक्त भारत बीजेपी के कारण नहीं बल्कि गाँधी परिवार की नीतियों के कारण हो रहा है। राहुल गाँधी और अब प्रियंका गाँधी जनप्रचार में कुछ रचनात्मक बातें नहीं करते बस बीजेपी की आलोचना में लगे रहते हैं। जबकि जनता इनसे आलोचना सुन -सुनकर ऊब गया है ,जनता अब रचनात्मक कार्य चाहती है। जब कुछ बात समझ में नहीं आती तो चुनावो में जीतने के बाद कुछ मुफ्त में देने ,कुछ बिल माफ़ करने ,कुछ कर्ज माफ़ करने जैसे वायदे कर दिए जाते हैं। चुनावों से पूर्व जनता को लालच देने को जीतने पर मुफ्त में की जाने वाली घोषणाओं से सभी पार्टियां अछूती नहीं हैं। जबकि चुनावों से पूर्व मुफ्त की घोषणा करने पर पाबंदी लगनी चाहिये। चुनाव आयोग और सुप्रीमकोर्ट को इस पर पाबंदी लगानी चाहिये। जनता की भलाई का धन किसी वर्ग विशेष को लालच देने के कार्यों में लगाया जाना हितकर नहीं है। कांग्रेस पुनः शक्तिशाली बन सकती है इसके लिए गाँधी परिवार को अध्यक्ष पद से कुर्बानी देनी होगी। कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर के अनेको नेता हैं उनके हाथ में कांग्रेस की बागडोर देनी होगी तभी कांग्रेस पतन के द्वार से निकल सकेगी। * सुनील जैन राना *

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शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2021

शराब की बिक्री कार्ड से हो

शराब की बिक्री कार्ड से हो , यह बात छोटी सी है लेकिन इसके परिणाम बहुत बड़े निकलेंगे। मोदी सरकार में जब सब कार्यो को डिजीटल या आधार कार्ड से किया जा रहा है तो शराब की बिक्री के लिए भी आधार कार्ड अनिवार्य कर देना चाहिए। जब बिजली ,पानी ,राशन ,गैस ,बैंक आदि में सब जगह आधार कार्ड अनिवार्य कर दिया गया है तो शराब की बिक्री को आधार से जोड़ने पर अनेको फायदे मिलेंगे। जिस प्रकार आधार से राशन को जोड़ते ही लाखों फर्जी राशन कार्ड खत्म किये गए ,आधार से गैस को जोड़ते ही लाखों फर्जी गैस कैन्कशन खत्म हो गए ,लाखों फर्जी मदरसे जो सरकार से इमदाद लेते थे वे बंद हो गए। लाखों फर्जी एनजीओ जिनके पास विदेशो से पैसा आता था वो बंद हो गए ठीक उसी प्रकार शराब को आधार से जोड़ते ही यह पता चल जायेगा की गरीबी की रेखा वाले लोग जिन्हे राशन एवं सब्सिडी आदि मिल रही है जिनके जनधन खाते में धन आ रहा है वे उसका उपयोग यदि शराब खरीदने में करते हैं तो उनकी सभी प्रकार की सरकारी सहायता बंद कर दी जायेगी। ऐसा करने से एक तो यह पता चल जाएगा की जो लोग किसी भी प्रकार की सब्सिडी या सरकारी सहायता लेकर उसका उपयोग शराब खरीदने में कर रहे हैं और फिर भी गरीबी का रोना रो रहे हैं उनकी सभी प्रकार की सुहलियते बंद कर दी जाए। लोक डाउन में शराब के ठेके खुलते ही लम्बी -लम्बी लाइने लग रही थी। जिनमें अधिकांश मध्यम वर्ग एवं गरीब वर्ग दिखाई दे रहा था। एक तरफ ऐसे लोग राशन के लिए भी लाइनों में लगे दिखाई देते थे दूसरी तरफ शराब के ठेको की लाइनों में दिखाई दे रहे थे। ऐसे लोग जिनके पास खाने को पैसे नहीं हैं तो शराब खरीदने के पैसे कहां से आ जाते होंगे। दरअसल गरीबी की पहचान नए तरिके से होनी चाहिए। बाज़ारो में बेहताशा भीड़ है ,सब काम में लगे हैं ,दूकान के लिए नौकर नहीं मिल रहे है ,कोई खाली दिखाई नहीं दे रहा है। पेट्रोल और डीजल के बेहताशा दाम बढ़ने के बावजूद दो पहियाँ और चार पहियाँ वाहनों की बिक्री पहले से ज्यादा है। रेस्टोरेंट और ढाबों पर भारी भीड़ रहती है। फिर ऐसे कौन लोग हैं जिन्हे भर पेट खाना नहीं मिल पाता है ,ऐसे लोगो की पहचान कर उनके लिए भरपूर मदद होनी चाहिए। शराब की बिक्री आधार से कर देने पर सरकार को राजस्व में भी भारी बढ़ोतरी मिलेगी। किस वर्ग के लोग शराब का ज्यादा सेवन करते हैं यह भी पता चल पायेगा। अवैध शराब की बिक्री पर अंकुश लगेगा। कुल मिलाकर शराब की बिक्री को आधार से जोड़ने पर देश की जनता की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति का पता चल सकेगा जो राष्ट्र नीति में सहायक हो सकता है। * सुनील जैन राना *

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गुरुवार, 14 अक्तूबर 2021

मनोरंजन बैंक के नोट

मनोरंजन बैंक के नोट छापने की परमिशन किसे मिलती है? कैसे मिलती है? क्यों मिलती है? मनोरंजन बैंक के नोट हूबहू असली नोट की तरह ही दिखाई देते हैं। इनका पेपर पतला होता है और इन पर मनोरंजन बैंक लिखा होता है। मनोरंजन बैंक के नोट छपने की क्या जरूरत पड़ती है? किसके मनोरंजन के लिए मनोंरजन बैंक नाम देकर नोट छापे जाते हैं? क्या कोई भी मनोरंजन बैंक के नाम से नोट छाप सकता है? दरअसल यह बहुत पेचीदा सवाल है की असली नोटो की हूबहू शक्ल जैसे नकली नोट छापना क्या देशहित में है? यदि सरकारी परमिशन द्वारा ऐसे नोट छापे जाते हैं तो क्या उस प्रेस की निगरानी होती है? क्या यह सम्भव नहीं है की हूबहू नकली नोटों की आड़ में हूबहू असली जैसे नकली नोट छापे जा सकें? गावँ -देहात ही नहीं बल्कि शहरों के अनेक बुजुर्ग लोग भी कभी -कभी मनोरंजन बैंक के नोट को असली समझ धोखा खा जाते हैं। आम प्रचलन में इतने डिजाईन एवं कलर के नोट आ गये हैं जो गाँव -देहात तक बहुत दिनों के बाद बहुत कम मात्रा में पहुंचते हैं। ऐसे में मनोरंजन बैंक के नोटो के द्वारा धोखाधड़ी भी की जा सकती है या कहीं -कहीं होती भी होगी। सरकार को मनोरंजन बैंक के असली नोटो जैसे नकली नोट बनाने की परमिशन देनी नहीं चाहिये। इन नोटो से फायदा कुछ नहीं नुक्सान बहुत भयंकर वाला हो सकता है। साथ ही सरकार/रिजर्व बैंक को चाहिये की अब जब सभी नये नोट आ गये हैं तो पुराने नोट प्रचलन से बाहर कर देने चाहिये। आम आदमी /व्यापारी कई -कई मेल के नोटो से बहुत दुखी है। बैंक वाले भी परेशान हैं की जब एक सौ के नोट की गड्डी में सौ के नये व् पुराने नोट मिक्स होते हैं तो उन्हें गिनने में बहुत समय लगता है। ऐसे में किसी का ज्यादा कैश मिक्स नोटो का हो तो समझिये कितना समय लगता होगा। अंत में इतना ही कहना चाहते हैं की मनोरंजन नोट कसी भी दृस्टि से देशहित में नहीं हैं। *सुनील जैन राना *

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रविवार, 10 अक्तूबर 2021

डाक विभाग की घोर लापरवाही

डाक विभाग की घोर लापरवाही सहारनपुर, कैसी विडंबना है की देश के प्रधानमंत्री डाक विभाग को डिजिटल बना कर अनेको सेवाएं ऑनलाइन उपलब्ध कराना चाह रहे हैं लेकिन स्थानीय डाकघरों का हाल यह है की जरा सी रजिस्ट्री कराने जाओ तो कह देते हैं की अभी सर्वर डाउन है बाद में आना।यह हाल लगभग सभी छोटे डाकघरों का है। सर्वर डाउन के बाद डाक वितरण की बात करें तो पिछले कई सालों से ऐसा लगता है जैसे डाक विभाग द्वारा साधारण डाक का वितरण बन्द ही कर दिया हो और सिर्फ रजिस्टर्ड डाक का वितरण कर इति श्री कर ली जाती हो। हालांकि अब पहले की तरह चिट्ठी लिखने का कार्य बहुत कम हो गया है लेकिन ऐसा नही है कि बिल्कुल खत्म हो गया हो।चिट्ठी के अलावा अनेक पत्र ,पत्रिकाएं, चेकबुक आदि अनेक जरूरी प्रपत्र आते थे लेकिन अब आने बन्द हो गए हैं।साधारण डाक न मिलने से बहुत से लोगो को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।कई बार चेकबुक बड़े डाकघर जाने पर बोरो में से ढूढ़ने पर मिल गई।ऐसे में बोरो में भरी बाकी डाक का क्या होता होगा डाकघर वाले ही जानते होंगे। हमारा समाचार पत्र प्रत्येक सोमवार को नेट पर एवम डाक में पोस्ट कर दिया जाता है।डाकघर के समीप ही हमारा कार्यालय है।लेकिन दस में से एक या दो समाचार पत्र प्राप्त होते होंगे।इसके अलावा अनेक अन्य समाचार पत्र ,पत्रिकाएं अन्य पत्र नियमित आते थे अब नही आ रहे हैं।ऐसे में कैसे आगे बढ़ेगा भारत , कैसे डिजिटल हो सकेंगे डाकघर।ऐसा लगभग सभी शहरों के मुख्य डाकघर को छोड़कर बाकी डाकघरों का हाल है। हम पिछले लगभग दो सालों से साधारण डाक वितरण में खामी की शिकायत बड़े डाकघर, प्रवर डाकघर,पी एम जी बरेली,लखनऊ को रजिस्टर्ड शिकायत कर चुके हैं लेकिन कोई फायदा नही हुआ। पोस्टमैन से पूछने पर वह कहता है की मुझे जितनी डाक मिल रही है उतनी बाट रहा हूँ।ऐसे में डाक कहां गायब हो रही है यह जांच का विषय है,जनहित में इसकी जांच होनी चाहिये।

कांग्रेस का हिंदुत्व विरोध

हिंदुत्व का विरोध क्यों करती है कांग्रेस? हिंदुस्तान में रहकर हिंदुओ का विरोध क्यों कर रही है कांग्रेस? राहुल गांधी कहते हैं मैं किसी हिंदु...