शुक्रवार, 10 जनवरी 2020


मल्टीप्लेक्स में खानपान महंगा क्यों ?
January 10, 2020 • सुनील जैन राना • जनहित
पहले सस्ते सिनेमाघर होते थे ,आज भी हैं कहीं - कहीं। लेकिन आज भौतिक युग की चकाचौंध में सिनेमाघर की जगह मल्टीप्लेक्स ने ले ली है। जिसमें बहुत बड़ा स्क्रीन ,बेहतर कुर्सियां एवं फर्श पर कालीन आदि बिछे होते हैं। सुख सुविधा के हिसाब से ही इसका टिकट महंगा होता है। ठीक ही है ,जैसे धर्मशाला और होटल के किराये में कई गुना अंतर आता है उसी प्रकार सिनेमाघर और मल्टीप्लेक्स के टिकटों में भी भारी अंतर है।
मल्टीप्लेक्स में महंगे टिकट की बात तो ठीक है लेकिन जरूरत से ज्यादा महंगे खानपान की बात समझ में नहीं आती। जो पॉपकॉर्न ,कोल्डड्रिंक ,स्नेक्स बाजार में ५० से १०० रूपये में मिलती है वही मल्टीप्लेक्स में २५० से ५०० रूपये की मिलती है। यानि के बाजार भाव से दोगने नहीं बल्कि कई गुने ज्यादा भाव पर खाद्य पदार्थ मिलते हैं। बाहर से खाद्य पदार्थ ले जाने नहीं देते। किसी भी वस्तु के दाम उस पर प्रिंट एमआरपी से ज्यादा लेना गैर क़ानूनी होता है। ऐसे में यह कानून मल्टीप्लेक्स पर लागू नहीं होता क्या? भारत में शायद ऐसा भी कोई कानून नहीं है जिसमे मल्टीप्लेक्स या सिनेमाघरों में बाहर के खाद्य पदार्थ ले जाने पर पाबंदी हो। फिर इन्हे इतनी आज़ादी या लूट की छूट कौन देता है?
जनहित में हमारा खाद्य मंत्री और खाद्य विभाग से अनुरोध है की मल्टीप्लेक्स की ऐसी मनमानी पर रोक लगाई जाए। खाद्य पदार्थो के रेट तय किये जाये। मनमाने रेट बसूलने की आज़ादी पर रोक लगाई जाए। * सुनील जैन राना *

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