शनिवार, 24 अक्तूबर 2020

म्यूचलफंड -सही नहीं है यार

म्यूचलफंड - सही नहीं है यार October 24, 2020 • सुनील जैन राना • जनहित सरकारी या गैर सरकारी स्तर पर पिछले कुछ सालो से म्यूचलफंड सही है यार का विज्ञापन कर आम से लेकर ख़ास आदमी को यह बताया जा रहा है की म्यूचलफंड में निवेश करना हितकारी है। साथ ही धीरे से यह भी बता दिया जाता है की सोच समझकर निवेश करें। विज्ञापनों में बड़े -बड़े धुरंधर खिलाडी जिन्हे विज्ञापन के करोड़ो रूपये मिले होंगे हो सकता है की उनमे से कुछ को म्यूचलफंड की जानकारी ही न हो। म्यूचलफंड में निवेश पर कोई गारंटीड लाभ मिलेगा ऐसा नहीं है। गारंटीड लाभ या ब्याज तो सिर्फ बैंक /डाकघर की एफडी पर ही मिलता है या कोई सरकारी पत्र जैसे किसान विकास पत्र आदि पर। पिछले तीन सालो में यदि किसी ने भी म्यूचलफंड में निवेश किया होगा तो इस साल मार्च -अप्रैल २०२० में अधिकांश फण्ड २० से ४० प्रतिशत तक दाम कम हो गये थे। अप्रैल के बाद बाजार फिर से सम्भला तो कुछ फण्ड फिर से सम्भले ,कुछ फण्ड आज भी तीन सालो में लगाई रकम पूरी नहीं कर पा रहे हैं। कोरोना के कारण सम्पूर्ण विश्व मंदी की चपेट में है। चीन से युद्ध जैसे हालत हैं ,यदि युद्ध हुआ तो हो सकता है की थर्ड वर्ल्डवार ही न हो जाए। ऐसे में सुरक्षित निवेश ही ठीक है। कुछ भी अनिष्ट होते ही शेयर बाजार धड़ाम हो जाता है। शेयर बाजार के गिरते ही म्यूचलफंड धड़ाम हो जाते हैं ,ऐसे में मयूचलफंड में निवेश करना जोखिम भरा ही है। पिछली सरकारों के समय से आज तक बैंको के एनपीए पर लगाम नहीं लग पाई है। कॉर्पोरेट्स +नेतागण +बैंक अधिकारीयों की मिलीभगत से जनता की भलाई का धन लूटा जा रहा है. हालांकि मोदी सरकार में ऐसे लाखो फर्जी कंपनियां बंद कर दी गई हैं फिर भी आज तक कुछ बैंको में एनपीए होना बंद नहीं हो पाया है। लोन देने के नियम सख्त बना दिए गए हैं लेकिन अभी भी और ज्यादा सख्ती की जरूरत है। म्यूचलफंड तभी सही हो सकता है जब कम्पनी निवेशित धनराशि पर निश्चित मात्रा में ब्याज एवं धनराशि कम न होने की गारंटी दे। अन्यथा तो म्यूचलफंड -सही नहीं है यार। * सुनील जैन राना *

उत्तम विचार

ज्ञानी -अज्ञानी

सोमवार, 19 अक्तूबर 2020

यह कैसी कोरोना सुरक्षा ?

यह कैसी कोरोना सुरक्षा ? October 19, 2020 • सुनील जैन राना • जनहित देश भर में पिछले छह माह से अधिक समय से कोरोना की रोकथाम को सरकारी -गैर सरकारी स्तर पर सुरक्षा उपाय किये जा रहे हैं। लेकिन कुछ राज्यों में अब लापरवाही के संकेत मिलने लगे हैं। उत्तराखंड राज्य में एन्ट्री से पहले पुलिस नाके बनाकर वाहनों की चैकिंग की जा रही है। ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मी वाहन की नंबर प्लेट देखते है ,यदि वाहन उत्तराखंड का है तो जाने देते हैं ,यदि वाहन अन्य राज्य का है तो उसे पुलिस थाने में ई पास आदि बनवाने को भेज देते हैं। वहां कई खिड़कियों पर लाइने लगी होती हैं ,नंबर आने पर पता चलता है की पहले उक्त खिड़की पर ई पास बनवाओ ,फिर दोबारा लाईन में लगकर रजिस्टर में चढ़वाओ ,तब रसीद लेकर गेट पर दिखाकर निकल जाओ।ई पास बनाने को २० रूपये लिए जा रहे हैं जिन्हे कम्प्यूटर और मोबाईल पर बनाया जा रहा है। इस सब कोरोना सुरक्षा के कार्य में न कहीं सेनेटाइजर दिखा न ही कहीं ताप मापक यंत्र दिखाई दिया। बाहर से आने वाले वाहनों एवं यात्रियों के नाम पते दर्ज कर खानापूर्ति हो रही है जबकि वापसी का कोई रिकॉर्ड रखा नहीं जा रहा है। गंभीर बात यह है की यदि गाड़ी /वाहन उत्तराखंड की है तो उसकी कोई जांच नहीं की जा रही है। भले ही वह वाहन कोरोना प्रभावित राज्य या जगह से आया हो। कार्यरत पुलिस कर्मियों से यह सब पूछने पर जबाब मिला की हम तो सरकारी आदेशों की पूर्ति कर रहे हैं। यह कैसी कोरोना सुरक्षा हो रही है ?यह तो ऐसा ही हो रहा है जैसे कहीं -कहीं बाढ़ से राहत को नदी किनारे डंडा लेकर पुलिस कर्मी बैठा दिए जाते हैं। * सुनील जैन राना *

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2020

डाकघर -डाकबाबू -सर्वर डाउन

डाकबाबू - डाकघर - सर्वर डाउन October 15, 2020 • सुनील जैन राना • जनहित मोदीजी देश को डिजिटल बनाना चाह रहे और हमारे डाकबाबू और डाकघर का अधिकांश समय सर्वर ही डाउन रहता है। कुछ बहुत बड़े शहरों का तो पता नहीं लेकिन छोटे शहर -कस्बों -गाँवों के डाकघरों एवं डाक बाबुओ की कार्यप्रणाली देखकर उपभोक्ता का ही सर्वर डाउन हो जाता है। पैसे जमा कराओ ,निकालो ,पासबुक में एंट्री कराओ ,रजिस्टरी कराओ ,लेकिन कब कराओ जब नेट चलेगा ,अभी तो सर्वर डाउन है ?ऐसा जबाब अधिकांश उपभोक्ता को मिलता होगा। मैं अपने साप्ताहिक समाचार पत्र पॉलिटिकल पेट्रोल का डाक पंजीयन रिनीवल कराने नगर के बड़े पोस्टऑफिस प्रवर डाक घर में गया। बताया गया की सितंबर के बाद ५० रूपये की फ़ीस लगेगी अतः डाक काउंटर से ५० रूपये के लेट फ़ीस टिकट ले आओ। मैं गया लाईन लगी हुई थी दो लड़कियां चाय की चुस्कियां ले रही थी और अधिकांश उपभोक्ता को बाद में आना अभी सर्वर डाउन है कहकर टरका रही थी। मेरा नंबर आया मैंने लेटफीस हेतु ५० रूपये के टिकट आदि देने को कहा तो जबाब मिला क्या दें ?फिर आपस में खुसर फुसर कर बोली अभी कम्प्यूटर खराब है तब ठीक होगा तब प्रिंट निकलेगा। फिर मैं अपने घर के पास के डाकघर गया उनसे ५० रूपये के लेटफीस हेतु टिकट आदि देने को कहा तो उन्हें भी यह समझ नहीं आया की क्या देना है ?ऐसे समझदार हैं हमारे डाकबाबू ? अब बात करें डाक वितरण की तो यह हाल है की मेरा अपना समाचार पत्र मेरे पते पर दो साल में १०४ अंको में से मात्र १० अंक भी नहीं पहुंचे। दो साल से लिखित में की गई कई शिकायतों का कोई जबाब नहीं मिला।मेरे पास प्रतिदिन अनेक पत्र -पत्रिकाएं आती थी अब सिर्फ रजिस्टर्ड डाक आती है अन्य कुछ नहीं। ऐसी शिकायत अनेक लोगो की हैं। डाकिये से पूंछो तो वह दांत निकालकर कह देता है जितनी डाक मिलती है बाट देता हूँ।किसी की कोई जबाबदेही नहीं। मोदीजी के डिजिटल इंडिया में यह हाल है डाकखानों का। * सुनील जैन राना *

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020

बिना साबुन हाथ धोयें -स्वस्थ रहें

बिना साबुन हाथ धोयें -स्वस्थ रहें https://suniljainrana.blogspot.com/ October 6, 2020 • सुनील जैन राना • जनहित जी हाँ ,बहुत उपयोगी और लाभकारी है बिना साबुन के हाथ धोने की क्रिया करना। सम्पूर्ण शरीर के जोड़ो की अकड़न -जकड़न दूर हो जाती है ऐसा करने से। हमारे शरीर की अधिकांश ग्रंथियां हमारे हाथों की हथेलियों से ताल्लुक रखती हैं। यदि हम प्रतिदिन प्रातः और जब भी समय मिले पांच मिनट हथेलियों की कसरत में लगा दें तो अनेक प्रकार के जोड़ो से संबंधित रोगो से छुटकारा मिल सकता है। मैं खुद ऐसा करता हूँ जिससे मेरे घुटनो के दर्द में आराम है। कैसे करें ? जिस प्रकार हम शौच के बाद साबुन से हाथ धोते हैं ठीक उसी प्रकार प्रातः बिना साबुन लगाये हाथ धोने की क्रिया करें अर्थात दोनों हाथो को आपस में सीधे -उल्टे ,आगे पीछे ,ऊपर नीचे ,उँगलियों में उँगलियाँ डालकर खूब रगड़ें। हथेलियों के पर्वतों को आपस में ठोकें ,तालियां बजायें ,यानि की हथेलियों के प्रत्येक भाग को आपस में रगड़ें। ऐसा करने से आपको अपने शरीर के जोड़ो में आराम मह्सूस होगा। दरअसल हमारी हथेलियों में अधिकांश शरीर की ग्रंथियां होती हैं ,ऐसे में उन्हें आपस में रगड़ने से कमजोर सुस्त नसें चलायमान हो जाती हैं। इसी प्रकार हमारी उँगलियों के पोरो से शरीर के अधिकांश अंग जुड़े होते हैं। इन पोरो को अलग -अलग दबाने से संबंधित अंग के रोग में आराम मिलता है। यदि किसी पोरे को दबाने से दर्द होता है तो इसका मतलब उससे संबंधित अंग में व्याधि है। पोरो को दबाना एक्यूप्रेशर की तरह काम करता है। हम काफी समय खाली बैठे रहते हैं ,हमे खाली समय का सदुपयोग करना चाहिये। ऐसी बहुत सी कसरतें हैं जो हम खाली बैठे बैठे कर सकते हैं। अनुलोम -विलोम ,कपालभाति आदि से लेकर बिना साबुन हाथ धोने की क्रिया आदि से हम बिना खर्च अनेकों व्याधियों से मुक्ति पा सकते हैं। इसमें कोई हानि भी नहीं है। * सुनील जैन राना *

कांग्रेस का हिंदुत्व विरोध

हिंदुत्व का विरोध क्यों करती है कांग्रेस? हिंदुस्तान में रहकर हिंदुओ का विरोध क्यों कर रही है कांग्रेस? राहुल गांधी कहते हैं मैं किसी हिंदु...