शनिवार, 13 अप्रैल 2024

पिताजी का चश्मा

*घर की नई नवेली इकलौती बहू एक प्राइवेट बैंक में बड़े ओहदे पर थी ।* *उसकी सास तकरीबन एक साल पहले ही गुज़र चुकी थी । घर में बुज़ुर्ग ससुर औऱ उसके पति के अलावे कोई न था। पति का अपना निजी कारोबार था। जिसमे वो प्रायः व्यस्त ही रहते थे* *पिछले कुछ दिनों से बहू के साथ एक विचित्र बात होती है। बहू जब जल्दी जल्दी घर का सारा काम निपटा कर अपने ऑफिस के लिए निकलती, ठीक उसी वक़्त ससुर उसे आवाज़ देते औऱ कहते बहू , मेरा चश्मा साफ कर मुझें देती जा। लगातार ऑफिस के लिए निकलते समय बहू के साथ यही होता रहा। काम के दबाव औऱ देर होने के कारण क़भी कभी बहू मन ही मन झल्ला जाती, लेकिन फ़िर भी अपने ससुर के सामने कुछ बोल नहीं पाती ।* *जब बहू अपने ससुर के इस आदत से पूरी तरह ऊब और पक गई तो उसने पूरे माजरे को अपने पति के साथ साझा किया। पति को भी अपने पिता के इस व्यवहार पर बड़ा ताज्जुब हुआi लेकिन उसने अपने पिता से कुछ नहीं कहा। पति ने अपनी पत्नी को सलाह दी कि तुम सुबह उठते के साथ ही पिताजी का चश्मा साफ करके उनके कमरे में रख दिया करो, फिर ये झमेला ही समाप्त हो जाएगा ।* *अगले दिन बहू ने ऐसा ही किया औऱ अपने ससुर के चश्मे को सुबह ही अच्छी तरह साफ करके उनके कमरे में रख आई। लेकिन फ़िर भी उस दिन वही घटना पुनः हुई औऱ ऑफिस के लिए निकलने से ठीक पहले ससुर ने अपनी बहू को बुलाकर उसे उनका चश्मा साफ़ करने के लिए कहा। बहू गुस्से में लाल हो गई l लेकिन उसके पास कोई चारा नहीं था। बहू के लाख उपायों के बावजूद ससुर ने उसे सुबह ऑफिस जाते समय आवाज़ देना नहीं छोड़ा ।* *धीरे धीरे समय बीतता चला गया औऱ ऐसे ही कुछ वर्ष निकल गए। अब बहू पहले से कुछ बदल चुकी थी। धीरे धीरे उसने अपने ससुर की बातों को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया और फ़िर ऐसा भी वक़्त चला आया, जब बहू अपने ससुर को बिलकुल अनसुना करने लगी । ससुर के कुछ बोलने पर वह कोई प्रतिक्रिया नहीं देती औऱ बिलकुल ख़ामोशी से अपने काम में मस्त रहती। गुज़रते वक़्त के साथ ही एक दिन बेचारे बुज़ुर्ग ससुर जी भी गुज़र गए।* *समय का पहिया कहाँ रुकने वाला था, वो लगातार घूमता रहा, घूमता रहा। उस दिन छुट्टी का दिन था। अचानक बहू के मन में घर की साफ़ सफाई का ख़याल आया। वो अपने घर की सफ़ाई में जुट गई। तभी सफाई के दौरान उसे अपने मृत ससुर की डायरी हाथ लग गई। बहू ने जब अपने ससुर की डायरी को पलटना शुरू किया तो उसके एक पन्ने पर लिखा था- "दिनांक 26.10.2019.... * आज के इस भागदौड़ औऱ बेहद तनाव व संघर्ष भरी ज़िंदगी में, घर से निकलते समय, बच्चे अक्सर बड़ों का आशीर्वाद लेना भूल जाते हैं, जबकि बुजुर्गों का यही आशीर्वाद मुश्किल समय में उनके लिए सुरक्षा और ढाल का काम करता है। बस इसीलिए, जब तुम चश्मा साफ कर मुझे देने के लिए झुकती थी तो मैं मन ही मन, अपना हाथ तुम्हारे सिर पर रख देता था i क्योंकि मरने से पहले तुम्हारी सास ने मुझें कहा था कि- " बहु को सदा अपनी बेटी की तरह प्यार से रखना औऱ उसे ये कभी भी मत महसूस होने देना कि वो अपने ससुराल में है औऱ हम उसके माँ बाप नहीं हैं। उसकी छोटी मोटी गलतियों को उसकी नादानी समझकर माफ़ कर देना। वैसे मेरा आशीष सदा तुम्हारे साथ है बेटा! " डायरी पढ़कर बहू फूटफूटकर रोने लगी। आज उसके ससुर को गुजरे करीब 4 साल से ज़्यादा समय बीत चुका हैं लेकिन फ़िर भी वो रोज़ घर से बाहर निकलते समय अपने ससुर का चश्मा साफ़ कर, उनके टेबल पर सलीके से रख दिया करती है, उनके अदृश्य हाथ से मिलने वाले आशीष की लालसा और उम्मीद में।* *प्रायः हम जीवन में हमारे रिश्तों का महत्व महसूस नहीं करते हैं, चाहे वो किसी से भी हो, कैसे भी हो और कभी कभी तो जब तक हम उन रिश्तों के भाव और मंतव्य को महसूस करके जान व समझ पाते हैं i तब तक वह रिश्ते हमसे बहुत दूर जा चुके होते हैं।* 😓 इसलिए *रिश्तों के भाव और महत्व को समझें और उनको सहेज कर रखे।* ये आपकी और हमारी सभी की अमूल्य अनमोल विरासत और पूंजी है 🙏🌹🙏

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