रविवार, 29 जनवरी 2023

दस लाख करोड़ बट्टे खाते में

दस लाख करोड़ बट्टे खाते में गत वर्ष राज्य सभा में एक प्रश्न के उत्तर में वित्त राज्य मंत्री भागवत किशन कराड ने बताया कि 2020-21 के दौरान 157096 करोड़ की बट्टे खाते में डाली गई जबकि 2019-20 में 202781 करोड़ की राशि बट्टे खाते में डाली गई थी। पिछले 5 वर्षों में 991640 करोड़ की राशि बट्टे खाते में डाली जा चुकी है। मोदी सरकार में लोन सम्बन्धी नियम बहुत कठोर करने के बाद भी यह हाल है। इसमें अधिकांश बट्टे खाते का धन उद्योग जगत के नाम है। देश मे कॉरपोरेट और बैंकिंग लोन दिग्गज की मिलीभगत साफ दिखाई देती है। लेकिन इतना होने पर भी मुश्किल से दो-चार कॉर्पोरेटर और बैंक अधिकारी पर शिकंजा कसा गया है। भले ही उन्हें जेल की सज़ा हो गईं हो लेकिन देश का धन वापस आना कठिन ही नहीं नामुमकिन सा हो रहा है। एक तरफ छोटे व्यापारी, किसान को बैंक से लोन लेने में पसीने आ जाते हैं दूसरी तरफ बड़े दिग्गजों को नियम कानून ताक पर रखकर उनके ठिकाने पर जाकर बैंक अधिकारी करोड़ो-अरबो का लोन बिना समुचित सुरक्षा के मंजूर कर आते हैं। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। जनता की भलाई का पैसा बड़े- बड़े उद्योगपति डकार रहे हैं। हाल ही में चंदा कोचर, वेनिगोपाल धूत जैसे बड़े दिग्गगज भले ही जेल की सज़ा काट रहे हो लेकिन धन की बसूली हो तब बात है। ऐसे अनेकों दिग्गज बैंक अधिकारियों से मिलीभगत कर करोड़ो में लोन लेकर एक कम्पनी से दूसरी में ट्रांसफर करते फिर उसमें उस धन से कई गुना धन फिर से लोन ले लेते। ऐसा फर्जीवाड़ा दशकों से चल रहा है। नेताओ की भूमिका भी इसमें कम नहीं है। बड़े - बड़े नेतालोग बैंक अधिकारियों से मिल उद्योगपतियों को लोन दिलाने में सहायक रहे हैं। लालू यादव ने तो खुद ही जानवरों का चारा घोटाला कर करोड़ो रूपये डकार लिये थे। सालों जेल में रहकर घर पर नेतागिरी कर रहे हैं। क्यों नहीं उनकी सम्पत्ति आदि से धन बसूल किया गया? इन्हें शर्म भी नहीं आती।जेल से आकर अपने को हीरो जैसा दिखाते हैं। घर पर दुरुस्त रहते हैं , जेल जाते ही बीमारी का बहाना कर अस्पताल में आराम करते हैं। दुर्भाग्य की बात यह भी है की स्वच्छ मोदी सरकार जिस पर 8 साल में भी भ्र्ष्टाचार का कोई आरोप नहीं है, जिसके आने के बाद से लाखों फर्जी कम्पनियों को बन्द कर कार्यवाही की गई है, लोन सम्बन्धी नियम- कानूनों को कठोर के दिया गया है फिर भी बैंकों का एनपीए कम नहीं हो रहा है। इस हिसाब से अभी भी कानूनों में लचरता है जिसका फायदा लोन उपभोक्ता उठा रहे हैं। नियम-कानून बहुत कठोर बनें, लोन लेने वाले और देने वाले कि समुचित जवाबदेही होनी चाहिये। डिफाल्टर होने पर दोनों को जेल में तो डालना ही चाहिये बल्कि उनकी सम्पत्ति आदि जप्त करनी चाहिये। सुनील जैन राना

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