रविवार, 8 अक्तूबर 2023

जैन धर्म पर आपदा

जैन तीर्थो पर हो रहे हमले जैन समाज जो सदैव अहिंसा, जीवदया, परोपकारी कार्यों में अग्रणी रहता है। 50 लाख से भी कम आज़ादी होने के बावजूद देश के राजस्व का लगभग एक चौथाई टैक्स के रूप में अर्पित करता है। देश मे सर्वाधिक चैरिटेबल संस्थाएं एवं गौशालाएं जैन समाज के द्वारा चलाई जाती हैं। देश मे भाईचारे की मिसाल है जैन समाज। मुगलों के समय गुरुगोविंद जी के दोनों लड़कों के अंतिम संस्कार को दो गज जगह 78 हज़ार सोने की मोहरें देकर टोडरमल जैन ने खरीदी। महाराणा प्रताप द्वारा मुगलों से युद्ध करते-करते धन खत्म हो जाने पर उनके मित्र भामाशाह जैन ने अपनी सम्पदा देकर महाराणा प्रताप की मदद की। आज़ादी के समय अनेक जैन विभूतियों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। ऐसे जैन समाज पर आज विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ रहा है। बहुत रोषपूर्ण, दुर्भाग्यपूर्ण शब्दो मे यह कहना पड़ रहा है की आज जैन पर कुठाराघात हो रहा है। जैन समाज को राजनैतिक और धार्मिक क्षेत्र में हाशिये पर ले जाने का कार्य हो रहा है। जिस पर सरकार व अन्य समाज चुप है। जैन तीर्थो पर हमले हो रहे हैं, जैन तीर्थ कब्जाएँ जा रहे हैं, जैन तीर्थो की उपेक्षा हो रही है। ऐसा लगता है जैसे यह सब सुनियोजित तरीके से किया जा रहा हो। शाश्वत तीर्थ श्री सम्मेद शिखर जी को अभ्यारण बनाने की घोषणा करना। अब इस पवित्र पहाड़ पर रोपवे बनाने की योजना बनाना। श्री गिरनारजी तीर्थ पर से जैनियों को पूजा पाठ के अधिकार से वंचित कर वहां तीर्थंकर नेमीनाथ का अस्तित्व मिटाने का प्रयास करना। इंदौर में गोम्मटगिरी पर कब्जे की कोशिश करना। यही नहीं पालीताणा, उदयगिरि, केसरियाजी, पावागढ़, रणकपुर आदि प्राचीन तीर्थो पर कब्ज़े के प्रयास हो रहे हैं। उज्जैन स्थित 500 वर्ष प्राचीन पार्श्वनाथ मन्दिर जी को हटाने की कोशिश हो रही है। यह सब होना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। जैन श्रमण संस्कृति का उल्लेख नेट पर सर्च करें तो पता चले की कितनी सम्पन्न और प्राचीन संस्कृति है जैन धर्म की। वर्तमान में जैन समाज के जो तीर्थ चले गये उनकी मांग नहीं करता लेकिन अभी जो तीर्थ, मन्दिर आदि बचे हैं उनकी सुरक्षा की मांग केंद्र सरकार से करते हैं। ऐसा तो नहीं हो सकता की केंद्र सरकार इन सब बातों से अवगत न हो। क्योंकि इन्ही बातों के विरोध में जैन समाज दो बार सड़को पर आकर विरोध प्रकट कर चुका है। लेकिन इस बार एक नहीं कई तीर्थो पर हमले से जैन समाज क्षुब्ध है। पानी सर से ऊपर उतर रहा है। यदि सरकार नहीं चेती तो अहिंसा का द्योतक जैन समाज एक बार पुनः अपने तीर्थों को बचाने के लिये कुछ भी करने को तैयार हो जायेगा। सुनील जैन राना

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