रविवार, 4 जून 2023

कुसंस्कार- सुसंस्कार

संस्कारविहीन बच्चें, गर्त की ओर मेरा मानना है की संस्कार एक पूर्ण शब्द नहीं है। कैसे संस्कार, सुसंस्कार या कुसंस्कार? यानि की अच्छे संस्कार या बुरे संस्कार। आज की पीढ़ी बुरे संस्कारो की वजह से गर्त की ओर जा रही है। प्रायः संस्कार तो बचपन से ही माँ- बाप से मिलते हैं। माता-पिता के संस्कारों का प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। पुराने जमाने मे संस्कारो की पाठशालाएं चलती थी। मैं भी लगभग 50 वर्ष पहले जब लगभग 10 साल का था तो पाठशाला जाता था। उस समय से आज तक पाठशाला में प्राप्त की धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा ने गलत मार्ग पर बढ़ने नहीं दिया। आज के दौर में भी पाठशालाएं चलती हैं। खासकर जैन समाज मे पाठशाला एवं संस्कार शिविरों का बहुत प्रचलन है। शायद यही कारण है की आधा करोड़ से कम आबादी वाला जैन समाज सभी क्षेत्र में अग्रणी समाज है। संस्कारो की कमी आज के बच्चों में बहुत दिखाई दे रही है। खानपान, पहनावा, आधुनिकता की दौड़ में युवा पीढ़ी गलत दिशा की ओर बढ़ रही है। बेमेल दोस्ती, लिव इन रिलेशनशिप के परिणाम कत्लेआम तक पहुँच रहे हैं। इन सब रिश्तों में लड़कियों के माँ- बाप की अनदेखी या उनकी संस्कारविहीनता उनकी बेटियों की जिंदगी लील रही है। जिन घरों के बड़ो में अच्छे संस्कार होते हैं उन घरों के बच्चें भी सुसंस्कारी होते है। देश मे यारी- दोस्ती फिर हत्या के कई कांड हो चुके हैं। यह सब घरवालों की लापरवाही का नतीज़ा है। समय रहते शुरू से ही बच्चों को अच्छे संस्कार सिखाने चाहिये। बच्चों को बचपन मे ही संस्कार शिविरों में भेजना चाहिये। ताकि बच्चें बड़े होकर अपना अच्छा- बुरा खुद सोच सके और सही निर्णय ले सकें। सुनील जैन राना

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