शनिवार, 15 अप्रैल 2023

भारतीय राजनीति

राजनीति में चाटुकारिता की पराकाष्ठा भारतीय राजनीति में परिवारवाद, सामंतवाद और चाटुकारिता कूट-कूट कर भरी पड़ी है। राजनीति में अधिकांश दलों में परिवारवाद चल रहा है। यदि किसी नेता ने किसी नाम से पार्टी बनाई तो वह पार्टी उनके परिवार की बपौती हो गई। कांग्रेस से लेकर देश के अनेको राज्यों के क्षेत्रीय दल इस बात का उदाहरण हैं। आज़ादी से पहले देश छोटे- छोटे टुकड़ों में बटा हुआ था। जिसके रहनुमा छोटे- बड़े सामंतवादी विचारधारा के लोग थे। आज़ादी के बाद सरदार पटेल ने उन सबको एक सूत्र में पिरोकर लोकतंत्र कायम किया। उन लोगो की तो अपनी मिल्कियत थी वे उस पर राज करते थे लेकिन आज की राजनीति में नेता लोग जनता की मिल्कियत पर राज करते हैं। नेता लोग अपने को आम आदमी से भिन्न मानने लगे हैं और चाहते हैं की उनसे आम आदमी वाला व्यवहार न होकर VIP व्यवहार हो। कानून में भी उनके लिये आम आदमी से ज्यादा छूट प्राप्त हो। चाटुकारिता की पराकाष्ठा कुछ दलों में हद से ज्यादा बढ़ गई है। दलों के कार्यकर्ता अपने नेता को रिझाने के लिये निम्न कोटि के बयान दे देते हैं और निम्न कोटि के कार्य करने से भी नहीं हिचकते। परिवारवाद ओर चाटुकारिता की पराकाष्ठा कांग्रेस पार्टी में चरम पर है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में गांधी परिवार ही सर्वोपरि है। कांग्रेस पार्टी में एक से एक दिग्गज नेताओं के बावजूद किसी की मजाल नहीं जो गांधी परिवार के खिलाफ या उनसे पूछे बिना कोई निर्णय नहीं ले सकता। यही नहीं अभी तो कांग्रेस के एक नेताजी ने राहुल गांधी के मुक़दमे के बारे में बयान दिया की गांधी परिवार के लिये अगल कानून की मांग कर दी। यही है चाटुकारिता की पराकाष्ठा। इसी वजह से आज कांग्रेस धरातल पर है। गांधी परिवार कांग्रेस की बागडोर छोड़ना नहीं चाहता और कांग्रेसी भी गांधी परिवार के मायाजाल से छूटना नहीं चाहते। राजनीतिक दलों में परिवारवाद तो खत्म नहीं हो सकता लेकिन सामंतवाद की मानसिकता खत्म होनी चाहिये। साथ ही अपने को कानून से ऊपर समझना या अपने लिये अलग कानून की मांग करना भारतीय लोकतंत्र की अवहेलना करना ही है। अपने आप को जनता से ऊपर समझने की मानसिकता जनता के साथ ग़द्दारी जैसी बात है। कानून की दृष्टि में सभी समान नागरिक है। सुनील जैन राना

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सोना