शुक्रवार, 26 अगस्त 2022

कान्वेंट शब्द से तातपर्य

*कान्वेंट शब्द पर गर्व न करें... सच समझें 🤔कॉन्वेंट का मतलब क्या है? ‘काँन्वेंट’ ! सब से पहले तो यह जानना आवश्यक है कि, ये शब्द आखिर आया कहाँ से है, तो आइये प्रकाश डालते हैं। 👇👇👇 ब्रिटेन में एक कानून था, *" लिव इन रिलेशनशिप "* बिना किसी वैवाहिक संबंध के एक लड़का और एक लड़की का साथ में रहना, तो इस प्रक्रिया के अनुसार संतान भी पैदा हो जाती थी तो उन संतानों को किसी चर्च में छोड़ दिया जाता था। अब ब्रिटेन की सरकार के सामने यह गम्भीर समस्या हुई कि इन बच्चों का क्या किया जाए तब वहाँ की सरकार ने काँन्वेंट खोले *अर्थात् जो बच्चे अनाथ होने के साथ-साथ नाजायज भी हैं , उनके लिए ये काँन्वेंट बने।* उन अनाथ और नाजायज बच्चों को, रिश्तों का एहसास कराने के लिए ,उन्होंने अनाथालयो में एक फादर, एक मदर, एक सिस्टर ,की नियुक्ति कर दी । क्योंकि ना तो उन बच्चों का कोई जायज बाप है ना ही माँ है। तो काँन्वेन्ट बना नाजायज बच्चों के लिए जायज। इंग्लैंड में पहला काँन्वेंट स्कूल सन् 1609 के आसपास एक चर्च में खोला गया था, जिसके ऐतिहासिक तथ्य भी मौजूद हैं, और *भारत में पहला काँन्वेंट स्कूल ,कलकत्ता में, सन् 1842 में खोला गया था। परंतु तब हम गुलाम थे ,और आज तो लाखों की संख्या में काँन्वेंट स्कूल चल रहे हैं,क्यों कि ,अब हम मानसिक गुलाम हो चुके हैं।🤔 जब कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया, उस समय इसे ‘फ्री स्कूल’ कहा जाता था, *इसी कानून के तहत भारत में* कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने की यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं। *मैकाले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है। उसमें वो लिखता है कि 🤔 “इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे,लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे। इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा। इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा। इनको अपनी परम्पराओं के बारे में भी कुछ पता नहीं होगा। *इनको अपने मुहावरे ही नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे,इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से,अंग्रेजियत कभी नहीं जाएगी।”* उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई, इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है। और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रुवाब पड़ेगा। *अरे ! हम तो खुद में हीन हो गए हैं। जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म हो, दूसरों पर क्या असर पड़ेगा ?* *लोगों का तर्क है कि “अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है”।* *दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में ही बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है?* शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईसा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे। *ईसा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी।* अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी। समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। भारत देश में अब भारतीयों की मूर्खता देखिए… जिनके जायज माँ बाप भाई बहन सब हैं, वो काँन्वेन्ट में जाते है तो क्या हुआ एक बाप घर पर है और दूसरा काँन्वेन्ट में जिसे फादर कहते हैं। आज जिसे देखो काँन्वेंट खोल रहा है जैसे- *"बजरंग बली काँन्वेन्ट स्कूल", माँ भगवती काँन्वेन्ट स्कूल"।* अब इन मूर्खो को कौन समझाए कि, भईया माँ भगवती या बजरंग बली का काँन्वेन्ट से क्या लेना देना? दुर्भाग्य की बात यह है कि, जिन चीजों का हमने त्याग किया अंग्रेजो ने वो सभी चीज़ों को पोषित और संचित किया फिर भी हम सबने उनकी त्यागी हुई गुलाम सोच को आत्मसात कर गर्वित होने का दुस्साहस किया। *आइए आगे से जब भी हमसे कोई आश्रय कॉन्वैंट स्कूल की बात कहेगा या करेगा तो उसे उपरोक्त तथ्यों से परिचित अवश्य कराएंगे।* साभार वॉट्सएप ग्रुप से , सधन्यवाद!

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सोना