रविवार, 3 जुलाई 2022

जुगाड़ - सुविधाशुल्क

जुगाड़, सुविधाशुल्क- भृष्टाचार नहीं? भारतीय किसी भी कार्य मे पीछे नहीं रहते। दो शस्त्र ऐसे हैं जिनके द्वारा सभी कार्य पूर्ण हो जाते हैं। इन शस्त्रों का नाम है जुगाड़ एवं सुविधाशुल्क। कार्य सरकारी हो या गैरसरकारी, इन दोनों हथियारों से सभी कार्य सध जाते हैं। बस बात यह है की किसी के पास जुगाड़ होता है और किसी के पास नहीं भी होता है तो वह सुविधाशुल्क से कार्य करा लेता है। सुविधाशुल्क की अपनी महिमा है जिसके द्वारा कार्य घर बैठे ही हो जाता है। जुगाड़ से कार्य कराने में थोड़ा दिमाग लगाना पड़ता है और थोड़ी भागदौड़ करनी पड़ती है। जुगाड़ भी दो प्रकार के होते है एक तो मैकेनिकल और दूसरा फर्जीकल। मैकेनिकल जुगाड़ में यदि कोई वाहन, मशीन आदि न चल रही हो तो जुगाड़ से चला दी जाती है। फर्जीकल जुगाड़ सरकारी जैसे कार्यो में काम आते हैं। जिसके द्वारा किसकी पहुँच कहाँ तक है उसी अनुसार कार्य सध जाता है। अब बात करें सुविधाशुल्क की तो इससे तातपर्य कुछ शुल्क देकर सुविधा लेना है।इसका प्रयोग आम आदमी से ज्यादा व्यापारी वर्ग करता है। अनेक सरकारी कार्य सुविधाशुल्क नामक द्रव्य से हो जाते हैं। सुविधाशुल्क का पैमाना सम्बन्धित विभाग के नियम-कानूनों पर आधारित होता है। जितने कठोर कानून उतना ज्यादा सुविधाशुल्क। सरकार द्वारा कुछ विभागों के इतने कठोर कानून बना दिये हैं जिसकी पूर्ति सम्भव नही हो पाती। तब वह सुविधाशुल्क से पूरी की जाती है। लाइसेंस विभाग यानि विभिन्न तरह के लाइसेंस का रिनिवल। इसमें ऐसा होता है की लाइसेंस की सरकारी फीस से ज्यादा सुविधाशुल्क दिया जाता है। आरटीओ विभाग ऐसा विभाग है जिससे सभी का पाला पड़ता है। अक्सर आरटीओ विभाग के बाहर बहुत से लोग मिल जाएंगे जो आपका कार्य घर बैठे ही करवा देते है सुविधाशुल्क शुल्क लेकर।वरना लम्बी-लम्बी लाइने, कई खिड़कियां। आरटीओ का एक विभाग सड़को पर चालान काटता है। जिसका कार्य राजस्व एवं अपनी जेब की बढ़ोतरी करना होता है। खानपान विभाग और दवा-दारू विभाग के तो मज़े ही हैं। सख्त कानून और दुकाने ही दुकानें। होली - दीवाली पर मज़े ही मज़े। बहुत लंबी लिस्ट है इन विभागों की जहां बिना किसी परेशानी के कार्य सध जाते हैं। दरअसल सच यह है की कानून जितने ज्यादा कठोर होंगे सुविधाशुल्क भी उतना ही ज्यादा चलेगा। अब सुविधाशुल्क को भृष्टाचार माना जाये क्या? यह तो दो पक्षों के बीच का लेनदेन हुआ। जिसमें देने वाला भी खुश और लेने वाला भी खुश। इसके द्वारा किसी भी प्रकार की राष्ट्रीय क्षति नहीं होती जबकि भृष्टाचार जनता की भलाई के धन का दुरुपयोग होना कहलाता है। मोदीजी-योगीजी के समय से ऊपरी स्तर के भृष्टाचार में बहुत कमीं आई है लेकिन निचले स्तर का सुविधाशुल्क बहुत बढ़ गया है। कानून सरल होने चाहिये। जितने कठोर कानून होंगे उतना ज्यादा भृष्टाचार बढ़ेगा। कठोर कानूनों में सुविधाशुल्क भृष्टाचार में बदल जाता है। सुनील जैन राना

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

सोना