रविवार, 17 जुलाई 2022

दवा कम्पनियां और डॉक्टर

दवाई कम्पनियां और डॉक्टर कोविड महामारी के दौरान भारत ने न सिर्फ अपने देश के नागरिकों को टीका उपलब्ध कराया बल्कि विश्व के अनेको देशों को भी कोविड का टीका भेजने में मदद की। यह सब मोदीजी की सक्षमता के कारण सम्भव हो पाया है। भारत से लगभग 150 देशों को दवाइयां निर्यात होती हैं लेकिन कई ब्रांडेड विदेशी कम्पनियों की महंगी दवाइयां आयात भी होती हैं। सरकार अनेको आम आदमी के काम आने वाली दवाइयां कम कीमत पर उपलब्ध करवा रही रही है, लेकिन फिर भी अनेको दवाइयां-इंजेक्शन आदि बहुत महंगे दाम पर मिल रहे हैं। कुछ का तो हाल ऐसा है कि प्रिंट रेट इतना ज्यादा है की जिसे पता है वह मोलभाव कर दाम कम करवा लेता है।कुछ दवाओं पर दाम दुगने से लेकर पांच गुने तक प्रिंट हैं। यानी दुकानदार को दिए गए रेट पर से ज्यादा कई गुने रेट प्रिंट होते हैं। अनेको दवाइयां-इंजेक्शन-प्रोटीन पाउडर आदि पर मूल कीमत से 5 से 10 गुने तक रेट प्रिंट किये जा रहे हैं। दवा कम्पनियां ब्रांडेड दवाई के अनुरूप दवाई बनाकर देशभर में डॉक्टरों को महंगे उपहार एवं विदेशों के टूर उपलब्ध कराकर उन दवाईयों पर मनमाने रेट डालकर खुद के भी वारे न्यारे कर रही हैं और डॉक्टरों की भी मौज आ रही है। अभी हाल ही में माइक्रो लैब दवा कम्पनी ने अपनी एक दवाई जिसका नाम डोलो है को बेचने के लिये लगभग 1000 करोड़ के उपहार देश भर के डॉक्टरों को दिए। तब डॉक्टरों ने कोविड के समय डोलो लिखनी शुरू कर दी। जो कार्य सस्ती दवाई पैरासिटामोल एवम क्रोसिन करती है वही कार्य डोलो करती है। यह तो एक छोटा उदाहरण है। हद तो यह है कि अनेकों डॉक्टर अपने अनुसार छोटी दवा कम्पनियों से दवाई बनवाकर महंगा प्रिंट डलवा लेते है। उनके पर्चे पर लिखी दवाई उन्ही के यहां मिलेगी अन्य जगह नहीं मिलेगी। हालांकि पांचों उंगलिया एक सी नही होती फिर भी ज्यादातर उंगलिया असमान ही होती हैं। मानवता के देवता ही मानवता के दुश्मन बने हुए हैं। सरकार को यह अध्यादेश लाना चाहिये की प्रत्येक डॉक्टर दवाई की जगह साल्ट लिखे ताकि उपभोक्ता उस साल्ट की दवाई कहीं से भी ले सके। साथ ही डॉक्टरों की अपनी दवाई की दुकानें नहीं होनी चाहिये। दवाई ऐसी लिखी जानी चाहिए जो सब जगह मिल जाये। सरकार जेनरिक दवाइयों को प्रोत्साहित करना चाह रही है लेकिन दवा कम्पनियां और डॉक्टर्स इसे कामयाब नहीं होने दे रहे हैं। बीमारी किसी के हाथ की बात नहीं है। अमीर - गरीब सभी बीमार होते ही हैं। ऐसे में अमीर आदमी तो कहीं भी उपचार करा लेता है लेकिन गरीब आदमी बिना उपचार ही मृत्यु को प्राप्त ही जाता है। सुनील जैन राना

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