बुधवार, 20 जुलाई 2022

मोदी विरोध क्यो?

*मोदी के अन्धविरोध की भी कोई सीमा नही है -* *वैक्सीन मुफ्त चाहिये पर टेक्स ना बढे- *रेलवे में हर सुविधा बढे पर किराया ना बढे - *सेना सन्नद्ध व हथियार बद्ध हो पर पेट्रोल की कीमत ना बढे- *किसानों की आय दुगनी हो पर कृषि सुधार कानून नहीं चाहिये - *टेक्स एकीकृत हो पर जीएसटी गलत है जो कल के 31% से आज 5 से 28% ही है - *नोटबन्दी गलत है चाहे चिदम्बरम द्वारा बेची गयी मशीन से पाकिस्तान सेम नम्बर के नकलीनोट छापकर भारत में आतंकवादियों को देकर फैला रहा हो - *काम सारे आउट सोर्सिंग से हो या ठेके पर - पर नौकरी में भर्तियां बढे - *लाभार्थी वर्ग में उनकी ही संख्या ज्यादा है पर आरोप यह कि मोदी उनका विरोधी है - *मोदी आतंकी हमले रोके पर पलटवार व कानून सख्त किये बगैर - वर्ना हम आधी रात को कोर्ट खुलवाकर आतंकी की फांसी रुकवायेंगे- *केन्द्र सरकार के 50 साल पुराने नियमों को नहीं मानेंगे पर राज्यों के साथ मोदी भेदभाव करते हैं - *पप्पू को बदनाम किया मोदी ने - तो पोने पिच्छतीस, जवाब का सवाल व यह चील यहां उपर क्यों उड रही है, संसद में आंख मारना, मोदी के गले पडने का बचपना, राफेल सोदे पर चार चार आंकडे व बेवजह चौकीदार चोर का नारा यह मोदी ने लगवाया था पप्पू से -? *आदमी अपने कर्मों से बदनाम होता है - व पप्पू कहलाता है - *तुम असभ्य गाली दो या सुनियोजित दंगे करवाओ! वह चुप रहकर कानूनी कार्यवाही भी करे तो वह चुप क्यों रहता है - *और बोले तो कहो बोलता है, चुप ही नहीं होता- विपक्ष व अन्धविरोधियों की यह सब विरोधाभासी, रोज की दिन चर्या है - *और अब ताजा मामला लेलो - खाद्यपदार्थ पर जीएस टी -? कल तक कहते थे माल व खुदरा में व्यवसायिक कम्पनियों के आने से छोटा व्यापारी बर्बाद हो रहा है -रोजगार समाप्त व गरीबी बड रही है - ग्लोबल युग व कानूनन वह बिना बडी कमी के किसी को व्यापार करने से रोक तो नहीं सकता - यही कांग्रेस थी जो विरोध के बाद भी भारत को WTO से जोडकर की मानी - पर आप लोकल दुकान-दार से सामान खरीदें वह सेहत हेतू भी ठीक है व आपका सामाजिक व्यवहार भी उस पडोसी दुकानदार से है, वह आपका अपना है सुख दुख का साथी है वही उधार भी दे देता है - वह पनपे तो ठीक ही है ना - तो सरकार ने पैक्ड सामान पर जीएसटी लगा दिया पर खुले सामान पर नहीं लगाया,जो सामान कम्पनी का नहीं है वह व्यापारी खुद पिसवाता बिनवाता है - इससे आप की जेब पर वजन भी नहीं बढेगा एव वह व्यापारी भी पनपेगा- जो पैक्ड सामान आप आन लाइन मंगवाते हो वह आप घर पर क्यों तैय्यार नहीं करते - उससे हर तरह का लाभ है या नहीं -? तो आप में यह आदत पनपे विदेशी देशी कम्पनी का पैक्ड पुराना सामान आपको मंहगा पडने से आप ना खरीदें यह उसकी मन्शा है - तो गलत क्या है - और यह तो शुरूआत है अगर आपका समर्थन मिला तो यह गति बढेगी हर वस्तु स्थानीय हो कम्पनी की पैक्ड नहीं इससे सबको लाभ होगा - वर्ना अंकल चिप्स की 5/- की आलू चिप्स टशन व फैशन मे आप 20/- में जब खरीदते हो - पास के हलवाई से 300-400 रुपये कि की शुद्ध रबड़ी के बजाय नकली दूध से बनी पैक्ड रबडी 650/-किलो में लेते हो वह तो ठीक है ना -? सरकार का इरादा इसमें वस्तु मंहगा करना नहीं है? -आपको स्थानीय खाद्यपदार्थ की तरफ मोडना है - जैसे अग्निपथ रोजगार का विकल्प नहीं है देश की आन्तरिक व बाहरी सुरक्षा का मजबूत उपाय है - पर सत्ता के भूखों की सारंगी आप बजाओगे तो 800 साल की मुगलों की गुलामी जिस कमजोरी से आयी वो तथा जिस व्यापारिक रणनीति से अंग्रेज 200 साल राज कर गये - वह कमियां दूर ना हुयी तो - क्या वापस "भारतीय नूर दो दीनार" के इतिहास में लौटने या नील की खेती की अनिवार्यता भुगतने की मानसिकता बना ली है - छोटी चीजों से ही बडे परिवर्तन की शुरूआत होती है - जब आप इन छोटे परिवर्तनों पर ही अपनी सुविधा छोडने पर हिचकते हो -तो बडे परिवर्तन जैसी रोज मांग करते हो? इजराइल जैसी व्यवस्था लाने- चीन व म्यांमार जैसे कदम उठाने को क्या खाक तैय्यार होंगें - सोचना जरूर.... •सिर्फ ब्रांडेड आटे पर टैक्स लगा है... •नहीं देना है टैक्स तो अपने यहां के "लोकल चक्की वाले" के यहां से आटा लो, सेहत भी बनी रहेगी... •सरकार चाहती है कि दूध,दही,मख्खन ,घी ,आटा,बेसन , सूजी आदि ब्रांड में मत खरीदो... •लोकल लोगों से लो, आज से 10 -15 साल पहले भी तो जैसे इन चीजों का कोई ब्रांड नहीं था... •आलस और कामचोरी पर GST लग रहा है- •घी , दही , मक्खन , छाछ तो घर पर भी बन सकती है... आटा, बेसन व कुछ अन्य तो चक्की पर भी पीसा या पिसवाया ज़ा सकता है.. साभार.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

सोना