शुक्रवार, 15 नवंबर 2019



राजनीति में सब कुछ चलता है
November 15, 2019 • सुनील जैन राना
जी हाँ , राजनीति में सब कुछ चलता है। कम से कम भारतीय राजनीति में तो चल ही रहा है। सबकुछ से तातपर्य सत्ता पाने को अपने सिद्धांतो को गिरवी रख देना या भूल जाना। यूँ तो सरकार गिरने - गिराने का खेल कांग्रेस दशकों से खेलती आयी है। अब कांग्रेस सिमट गई है और बीजेपी सत्ता में है तो कई राज्यों में बीजेपी ने भी यह खेल खेला। कश्मीर और हरियाणा में बीजेपी ने अपनी विरोधी पार्टियों से गठबंधन कर सरकार बनाई।
अभी हाल ही में महाराष्ट्र की राजनीति में भी कुछ ऐसा ही तूफ़ान आया हुआ है। वहां भी सत्ता प्राप्ति को संग्राम चल रहा है। इस संग्राम में बीजेपी -शिवसेना का चुनाव पूर्व का गठबंधन सीएम की कुर्सी के लिए टूट गया। जिसपर सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी ने अपना बहुमत पूर्ण न देखकर सरकार बनाने का दावा छोड़ दिया। सत्ता पाने को और पुत्र मोह में डूबी शिवसेना ने अपने धुरंधर विरोधियों के साथ सरकार बनाने की कवायद तेज़ कर दी है। उध्दव ठाकरे अपनी विरोधी पार्टियों के प्रमुखों को लुभाने में लग गए हैं। जिसमें कांग्रेस और एनसीपी प्रमुख हैं।
इसी को कहते हैं की सत्ता पाने को राजनीति में सबकुछ चलता है। शिवसेना के प्रमुख बालाजी ठाकरे जिन्होनें कांग्रेस के विरुध्द चुनाव लड़े और कहा की कांग्रेस के आगे तो हिजड़े झुकते हैं आज उन्ही के पुत्र , पुत्रमोह में झुके जा रहे हैं। बालाजी ठाकरे की शिवसेना जो हिंदुत्व के मुद्दे पर कायम रही आज उससे विमुख हो रही है। वहीं दूसरी ओर अभी कांग्रेस का रुख़ साफ़ नहीं हो रहा है क्योंकि कांग्रेस का कुछ मुस्लिम वोट बैंक शिवसेना के साथ जाने को तैयार नहीं हो रहा है।
बालाजी ठाकरे की शिवसेना की शिवसेना जिसने बाबरी मस्जिद तोड़ने पर ख़ुशी जताई थी आज मंदिर बनाने वालो का साथ छोड़कर राम विरोधियों के साथ सरकार बनाने जा रही है। इसे कहते हैं सत्ता की भूख। उध्दव ठाकरे महाराष्ट्र जैसे विशाल राज्य को राजनीति  से अनजान -नासमझ पुत्र के हाथों में देकर कठपुतली की तरह चलना चाह रहे हैं जिसमे राजनीति के धुरंधर कांग्रेस और एनसीपी भी बराबर के हकदार होंगे। पता नहीं अब यह बेमेल गठबंधन बनेगा भी या नहीं ,बनेगा तो चलेगा भी या नहीं। सबसे बड़ी बात तो जनता की है जो गर्व से कहती है अपने को की हम किसके पक्ष में हैं या किसके विरोधी हैं वे सब अपने को असहाय सा महसूस कर रहे हैं। लोकतंत्र को कहते हैं डेमोक्रेसी -डेमोक्रेसी में हो रही जनता की ऐसी की तैसी।

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