सोमवार, 30 दिसंबर 2019
शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019
मोदीजी काश कुछ ऐसा भी करो ?
December 27, 2019 • सुनील जैन राना • जनहित
मोदीजी देश के लिए बहुत कुछ कर रहे हैं लेकिन हमारा मोदीजी से अनुरोध है की मोदीजी काश कुछ ऐसा भी करो जैसा अब तक किसी प्रधानमंत्री ने नहीं किया है।
१ - जब एक आम नागरिक चुनावों में एक ही जगह से वोट डाल सकता है तो नेता भी एक ही सीट से खड़ा हो एक से अधिक सीट से नहीं। यदि नेता दो सीट से खड़ा होता है और दोनों से जीत जाता है तो एक सीट छोड़नी होती है। उस पर फिर से चुनाव कराया जाता है। यह तो जनता के साथ अन्याय है। या फिर नेता जो सीट छोड़े उसपर द्वितीय रहे उम्मीदवार को सीट मिले।
२- जब एक आम नागरिक जेल में बंद होने पर वोट नहीं डाल सकता तो फिर नेता को यह छूट क्यों मिलती है की वह जेल में बंद होने के बावजूद टिकट लेकर खड़ा हो सकता है। इस पर पाबंदी लगनी ही चाहिए।
३ - जब एक आम नागरिक को बैंक की मामूली नौकरी के लिए भी पढ़ा -लिखा होना जरूरी होता है तो चुनाव में लड़ने के लिए नेता को भी मिनीमम पढ़ाई जरूरी होनी चाहिए साथ ही किसी भी मंत्रालय का मंत्री तभी बने जब उसमें उसकी योग्यता हो। एक अंगूठा छाप को वित्त मंत्री या शिक्षा मंत्री या अन्य कोई भी मंत्रालय देना देश के साथ अन्याय ही होता है।
४ - जब एक आम नागरिक को जेल जाने के बाद सरकारी नौकरी नहीं मिलती तो नेता को यह छूट क्यों दी जाती है की वह चाहे हत्या -बलात्कार -लूट का दोषी हो फिर भी चुनाव लड़ सकता है। इस पर पाबंदी लगनी चाहिए।
५ - एक आम नागरिक को सीनियर सिटिज़न हो जाने पर किसी भी प्रकार की सरकारी सुविधा नहीं जबकि सरकारी कर्मचारी को पेंशन एवं सभासद -विधायक -सांसद को अनेकों पेंशन ,यह तो अन्याय है।
६ - एक आम नागरिक को जो गरीब है उसके लिए सरकारी जनता थाली बहुत कम धनराशि में सर्वसुलभ होनी चाहिए। भूखे -गरीब के लिए निःशुल्क न सही पर मात्र १० -२० रूपये में भरपेट भोजन मिलना ही चाहिए। गरीब -भिखारी भी इतना तो कमा ही लेता है। विधायकों और सांसदों की सस्ती थाली -भोजन बंद होना चाहिए। क्योकि वे सक्षम होते हैं ,उन्हें सस्ते भोजन की जरूरत नहीं होती।
नोट - मेरा यह अनुरोध स्वीकार करें ,नहीं तो इस पर विचार अवश्य करें। धन्यवाद। * सुनील जैन राना *
१ - जब एक आम नागरिक चुनावों में एक ही जगह से वोट डाल सकता है तो नेता भी एक ही सीट से खड़ा हो एक से अधिक सीट से नहीं। यदि नेता दो सीट से खड़ा होता है और दोनों से जीत जाता है तो एक सीट छोड़नी होती है। उस पर फिर से चुनाव कराया जाता है। यह तो जनता के साथ अन्याय है। या फिर नेता जो सीट छोड़े उसपर द्वितीय रहे उम्मीदवार को सीट मिले।
२- जब एक आम नागरिक जेल में बंद होने पर वोट नहीं डाल सकता तो फिर नेता को यह छूट क्यों मिलती है की वह जेल में बंद होने के बावजूद टिकट लेकर खड़ा हो सकता है। इस पर पाबंदी लगनी ही चाहिए।
३ - जब एक आम नागरिक को बैंक की मामूली नौकरी के लिए भी पढ़ा -लिखा होना जरूरी होता है तो चुनाव में लड़ने के लिए नेता को भी मिनीमम पढ़ाई जरूरी होनी चाहिए साथ ही किसी भी मंत्रालय का मंत्री तभी बने जब उसमें उसकी योग्यता हो। एक अंगूठा छाप को वित्त मंत्री या शिक्षा मंत्री या अन्य कोई भी मंत्रालय देना देश के साथ अन्याय ही होता है।
४ - जब एक आम नागरिक को जेल जाने के बाद सरकारी नौकरी नहीं मिलती तो नेता को यह छूट क्यों दी जाती है की वह चाहे हत्या -बलात्कार -लूट का दोषी हो फिर भी चुनाव लड़ सकता है। इस पर पाबंदी लगनी चाहिए।
५ - एक आम नागरिक को सीनियर सिटिज़न हो जाने पर किसी भी प्रकार की सरकारी सुविधा नहीं जबकि सरकारी कर्मचारी को पेंशन एवं सभासद -विधायक -सांसद को अनेकों पेंशन ,यह तो अन्याय है।
६ - एक आम नागरिक को जो गरीब है उसके लिए सरकारी जनता थाली बहुत कम धनराशि में सर्वसुलभ होनी चाहिए। भूखे -गरीब के लिए निःशुल्क न सही पर मात्र १० -२० रूपये में भरपेट भोजन मिलना ही चाहिए। गरीब -भिखारी भी इतना तो कमा ही लेता है। विधायकों और सांसदों की सस्ती थाली -भोजन बंद होना चाहिए। क्योकि वे सक्षम होते हैं ,उन्हें सस्ते भोजन की जरूरत नहीं होती।
नोट - मेरा यह अनुरोध स्वीकार करें ,नहीं तो इस पर विचार अवश्य करें। धन्यवाद। * सुनील जैन राना *
गुरुवार, 26 दिसंबर 2019
भ्र्ष्टाचार ही भ्र्ष्टाचार ,कैसे पूरी होंगी योजनाएं ?
December 26, 2019 • सुनील जैन राना • राजनीति
जहां डाल -डाल पर सोने की चिड़ियां करती हैं बसेरा ,वो भारत देश है मेरा -वो भारत देश है मेरा।
जहां हर योजना में भ्र्ष्टाचार का है बसेरा ,ऐसा भारत देश है मेरा -ऐसा भारत देश है मेरा।
किसी ने कहा है की पार्थ खड़ा है देश की आन -बान शान बचने को लेकिन सिर्फ पार्थ क्या करे जब सामने फौज खड़ी हो भ्र्ष्टाचारियों और देश विरोधियों की ? कांग्रेस सरकार का पतन महान भ्र्ष्टाचार के चलते हुआ था। अधिकांश योजनाओ में भ्र्ष्टाचार व्याप्त होने के कारण देश की जनता ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया था। मोदीजी पर भरपूर विशवास जताते हुए उन्हें पूर्ण बहुमत से जिताया और पीएम बनाया। बीजेपी के दूसरे कार्यकाल में भी बेदाग़ मोदीजी को जनता ने पूर्ण बहुमत से जिताकर फिर से पीएम बनाया। मोदीजी भी पूरी शिद्द्त से देश के विकास में लगे हैं। देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मोदीजी के कार्यो को सराहा जा रहा है। बस विडंबना यही है की विपक्ष को ही मोदीजी के हर कार्य में बुराई दिखाई देती है और विपक्ष मोदीजी के प्रत्येक कार्य -योजना का विरोध करने से नहीं चूक रहा है। यहां तक की जो कार्य खुद कांग्रेस के समय में किये जाने थे अब उन्हें मोदीजी पूरा करना चाह रहे हैं तो भी भरपूर विरोध किया जा रहा है।
मोदीजी का पिछले कार्यकाल अनेक योजनाओं से भरा लेकिन बेदाग़ कार्यकाल रहा है। मोदीजी के किसी भी मंत्रालय पर भ्र्ष्टाचार के आरोप नहीं हैं। मोदीजी की पूरी टीम देश की उन्नत्ति को समर्पित है और सभी मायनों में बेहतर है। समस्या सिर्फ यही है की मोदी राज में ऊपरी स्तर पर तो भ्र्ष्टाचार खत्म हुआ है लेकिन राज्यों के स्तर पर आज भी भ्र्ष्टाचार में कोई कमी आती दिखाई नहीं दे रही है। यहां तक की बीजेपी शासित राज्यों में भी भ्र्ष्टाचार पर अंकुश नहीं लग पाया है। मोदीजी ने भले ही नोटबंदी कर काले धन से छुटकारा पाना चाहा हो लेकिन यह सत्य है की बैंको की मिलीभगत से सभी के नोट बदले गए थे। मोदीजी ने भले ही लाखों फर्जी कम्पनियों को बंद कर दिया हो लेकिन इन फर्जी कम्पनियों ने बैंको की मिलीभगत से 8 -9 लाख करोड़ का लिया लोन वापस न करा सके। जिसके कारण ही आज देश में मंदी का वातावरण है। आज भी किसी भी विभाग में चले जाऒ ,जल्दी से तो बिना सुलिहत कोई कार्य -उलझन दूर नहीं होती। मनरेगा ,आवास योजना ,बीपीएल कार्ड योजना ,राशन कार्ड ,फर्जी एनजीओ ,फर्जी पेंशन ,फर्जी गरीब ,फर्जी वज़ीफ़ा ,बेनामी सम्पत्ति आदि अनेक योजनाओं में भरपूर प्रयासों के बाद आज भी पूर्ण रूप से भ्र्ष्टाचार खत्म हो गया हो ऐसा नहीं है।
कोई योजना विरोध करने लायक हो तो विरोध करना लाजमी हो जाता है लेकिन सिर्फ विरोध करने धारणा बनाकर विरोध करना कहां तक उचित है ? ऐसा करना देशहित में तो सर्वथा नहीं है। * सुनील जैन राना *
जहां हर योजना में भ्र्ष्टाचार का है बसेरा ,ऐसा भारत देश है मेरा -ऐसा भारत देश है मेरा।
किसी ने कहा है की पार्थ खड़ा है देश की आन -बान शान बचने को लेकिन सिर्फ पार्थ क्या करे जब सामने फौज खड़ी हो भ्र्ष्टाचारियों और देश विरोधियों की ? कांग्रेस सरकार का पतन महान भ्र्ष्टाचार के चलते हुआ था। अधिकांश योजनाओ में भ्र्ष्टाचार व्याप्त होने के कारण देश की जनता ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया था। मोदीजी पर भरपूर विशवास जताते हुए उन्हें पूर्ण बहुमत से जिताया और पीएम बनाया। बीजेपी के दूसरे कार्यकाल में भी बेदाग़ मोदीजी को जनता ने पूर्ण बहुमत से जिताकर फिर से पीएम बनाया। मोदीजी भी पूरी शिद्द्त से देश के विकास में लगे हैं। देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मोदीजी के कार्यो को सराहा जा रहा है। बस विडंबना यही है की विपक्ष को ही मोदीजी के हर कार्य में बुराई दिखाई देती है और विपक्ष मोदीजी के प्रत्येक कार्य -योजना का विरोध करने से नहीं चूक रहा है। यहां तक की जो कार्य खुद कांग्रेस के समय में किये जाने थे अब उन्हें मोदीजी पूरा करना चाह रहे हैं तो भी भरपूर विरोध किया जा रहा है।
मोदीजी का पिछले कार्यकाल अनेक योजनाओं से भरा लेकिन बेदाग़ कार्यकाल रहा है। मोदीजी के किसी भी मंत्रालय पर भ्र्ष्टाचार के आरोप नहीं हैं। मोदीजी की पूरी टीम देश की उन्नत्ति को समर्पित है और सभी मायनों में बेहतर है। समस्या सिर्फ यही है की मोदी राज में ऊपरी स्तर पर तो भ्र्ष्टाचार खत्म हुआ है लेकिन राज्यों के स्तर पर आज भी भ्र्ष्टाचार में कोई कमी आती दिखाई नहीं दे रही है। यहां तक की बीजेपी शासित राज्यों में भी भ्र्ष्टाचार पर अंकुश नहीं लग पाया है। मोदीजी ने भले ही नोटबंदी कर काले धन से छुटकारा पाना चाहा हो लेकिन यह सत्य है की बैंको की मिलीभगत से सभी के नोट बदले गए थे। मोदीजी ने भले ही लाखों फर्जी कम्पनियों को बंद कर दिया हो लेकिन इन फर्जी कम्पनियों ने बैंको की मिलीभगत से 8 -9 लाख करोड़ का लिया लोन वापस न करा सके। जिसके कारण ही आज देश में मंदी का वातावरण है। आज भी किसी भी विभाग में चले जाऒ ,जल्दी से तो बिना सुलिहत कोई कार्य -उलझन दूर नहीं होती। मनरेगा ,आवास योजना ,बीपीएल कार्ड योजना ,राशन कार्ड ,फर्जी एनजीओ ,फर्जी पेंशन ,फर्जी गरीब ,फर्जी वज़ीफ़ा ,बेनामी सम्पत्ति आदि अनेक योजनाओं में भरपूर प्रयासों के बाद आज भी पूर्ण रूप से भ्र्ष्टाचार खत्म हो गया हो ऐसा नहीं है।
कोई योजना विरोध करने लायक हो तो विरोध करना लाजमी हो जाता है लेकिन सिर्फ विरोध करने धारणा बनाकर विरोध करना कहां तक उचित है ? ऐसा करना देशहित में तो सर्वथा नहीं है। * सुनील जैन राना *
बुधवार, 25 दिसंबर 2019
मनरेगा और मिड दे मील में भ्र्ष्टाचार व्याप्त
December 25, 2019 • सुनील जैन राना • जनहित
भारत सरकार की दो प्रमुख योजना मनरेगा और मिड दे मील सदैव भी भ्र्ष्टाचार के कारण चर्चा में रही हैं। मनरेगा में भ्र्ष्टाचारके मामले अक्सर ही संज्ञान में आते रहते हैं। कागजों पर अधिक कार्य और अधिक मजदूरी का भुगतान और हकीकत में इसके विपरीत पाया जाना भ्र्ष्टाचार को ही दर्शाता है।
इसी तरह मिड दे मील योजना में भी भ्र्स्टाचार व्याप्त है। स्कूलों में बच्चों की ज्यादा उपस्तिथी दिखाकर ज्यादा भोजन के बिल बना देना और बच्चो के लिए बनाया गया भोजन गुणवत्ता के विपरीत होना अक्सर ही देखने -सुनने में आता रहता है। भोजन की गुणवत्ता तो दूर की बात बल्कि भोजन में कंकर -पत्थर ,कीड़े आदि का निकलना भी रोज समाचार पत्रों में छपता ही रहता है।
सरकार को इन दोनों परियोजनाओं का स्वरूप बदलना चाहिए। मनरेगा का नगद भूटान बंद कर आधारकार्ड से खाते में होना चाहिए एवं मिड दे मील का राशन बच्चो की उपस्तिथी के अनुसार उनके अभिभावकों तक पहुंचाना चाहिए। बेरोजगारों के लिए मनरेगा और अशिक्षित बच्चो की पढ़ाई को मिड दे मील अच्छी योजनाएं तो जरूर हैं लेकिन समाज में बैठे भ्र्स्ताचारियों पर नकेल कसनी भी बहुत जरूरी है तभी इन योजनाओं का लाभ वंचितों तक पहुंचेगा। * सुनील जैन राना *
इसी तरह मिड दे मील योजना में भी भ्र्स्टाचार व्याप्त है। स्कूलों में बच्चों की ज्यादा उपस्तिथी दिखाकर ज्यादा भोजन के बिल बना देना और बच्चो के लिए बनाया गया भोजन गुणवत्ता के विपरीत होना अक्सर ही देखने -सुनने में आता रहता है। भोजन की गुणवत्ता तो दूर की बात बल्कि भोजन में कंकर -पत्थर ,कीड़े आदि का निकलना भी रोज समाचार पत्रों में छपता ही रहता है।
सरकार को इन दोनों परियोजनाओं का स्वरूप बदलना चाहिए। मनरेगा का नगद भूटान बंद कर आधारकार्ड से खाते में होना चाहिए एवं मिड दे मील का राशन बच्चो की उपस्तिथी के अनुसार उनके अभिभावकों तक पहुंचाना चाहिए। बेरोजगारों के लिए मनरेगा और अशिक्षित बच्चो की पढ़ाई को मिड दे मील अच्छी योजनाएं तो जरूर हैं लेकिन समाज में बैठे भ्र्स्ताचारियों पर नकेल कसनी भी बहुत जरूरी है तभी इन योजनाओं का लाभ वंचितों तक पहुंचेगा। * सुनील जैन राना *
भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी
December 25, 2019 • सुनील जैन राना • राजनीति
आज भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ९६ वीं जयंती ( २५ दिसंबर १९२४ - १६ अगस्त २०१५ ) पर राष्ट्रवाद के प्रणेता , सुशासन के संवाहक ,भारतीय राजनीति के पुरोधा को शत -शत नमन।
श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी भारतीय राजनीति का ऐसा नाम जिस पर हम सभी भारतीयों को गर्व होता है। अटल जी की कविताएँ ,अटल जी के वक्तव्य भविष्य में हमारे लिए प्रेरणा बने रहेंगे।
आज अटल जी की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी के द्वारा लखनऊ के लोक भवन प्रांगण में २५ फीट ऊँची कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया गया। इसके आलावा अटल भूजल योजना का श्री गणेश भी किया गया।
श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी सदियों तक हम सबके दिलों पर राज करेंगे। भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष अटल जी के बताये मार्गो पर हम सभी चलें ऐसी कामना करते हैं।
श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी भारतीय राजनीति का ऐसा नाम जिस पर हम सभी भारतीयों को गर्व होता है। अटल जी की कविताएँ ,अटल जी के वक्तव्य भविष्य में हमारे लिए प्रेरणा बने रहेंगे।
आज अटल जी की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी के द्वारा लखनऊ के लोक भवन प्रांगण में २५ फीट ऊँची कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया गया। इसके आलावा अटल भूजल योजना का श्री गणेश भी किया गया।
श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी सदियों तक हम सबके दिलों पर राज करेंगे। भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष अटल जी के बताये मार्गो पर हम सभी चलें ऐसी कामना करते हैं।
सोमवार, 23 दिसंबर 2019
रविवार, 22 दिसंबर 2019
सड़के-डिवाईडर-मेनहोल-गलियां -अतिक्रमण -उल्टा पुल्टा ?
December 22, 2019 • सुनील जैन राना • लापरवाही
उत्तर प्रदेश के महानगर सहारनपुर -२४७००१ में रहते हैं हम अतः उसी की बात कर रहे हैं। महानगर में चारों तरफ हाईवे की सड़को की हालत सुधरी है लेकिन नगर के अंदर की अनेक सड़कों का हाल बहुत बुरा है। हम अपने एरिये की बात करें तो पिलखन तलें से लेकर कंबोहान का पुल ,बंजारों का पुल से लेकर रेंच के पुल तक का हाल इतना बुरा है की हर कोई इन पर चलते हुए नगरनिगम को कोसता हो होगा। खासकर कंबोहान के पुल की संकीर्ण टूटी फूटी सड़क से सभी परेशान हैं। महा नगर के विकास को ३६८ करोड़ रूपये मार्च २०१९ में मिले ऐसा समाचारों में लिखा था। पता नहीं ऐसी अनेक सड़को की तरफ क्यों ध्यान नहीं जाता जो की मुख्य मार्ग हैं। कम से कम गड्ढो को भरवा कर मरम्मत ही करवा देते।
बन रहे हैं डिवाईडर। नगर भर की सड़को पर डिवाईडर बना दिए गए हैं। जिससे पहले से ज्यादा परेशानी होने लगी है। सड़को के दोनों तरफ के अतिक्रमण हटाते नहीं। ऐसे में सड़कपर झोटा ठेला ,तांगा ,ट्रॉली चल रही है तो पीछे का यातायात भी स्लो होकर जाम लगने लगता है। अतिक्रमण हटाओ अभियान चलता है लेकिन अगले दिन से फिर वही अतिक्रमण हो जाता है। जबकि प्रशाशन की एक विंग इसी कार्य को होनी चाहिए जिसका कार्य नगरभर में एनाउंस मेन्ट करते घूमते रहना चाहिए। तभी लोगो को एहसास होगा और डर लगेगा। प्रशासन चाहे तो सब सम्भव है।
अब बात करें मेनहोल की। सड़के बहुतायत में बन रहीं हैं लेकिन सीवर लाइन के मेनहोल के ढककन ठीक तरह से एंगल लगाकर नहीं रखे जा रहे हैं। सड़क चाहें सीसी की बने या टाइलों की मेनहोल के ढककन सीमेंट से दबा दिए जा रहे हैं। ऐसे में जब भी सड़क या गली के सीवर की सफाई करनी हो तो ढककन हटाने को सड़क तोड़ दी जा रही है। लगता है सड़क बनाते समय मेनहोल के ढककन एंगल पर न रखना सुनियोजित तरीका है। जिससे एक ही कार्य को कई बार करने का धन मिले ?
अब बात करते हैं गलियों की सड़कें बनाने में गली की चौड़ाई पहले से कम की जा रही है और नाली ज्यादा चौड़ी की जा रही है। ऐसा पता नहीं क्यों हो रहा है ?शायद नपाई मय नाली के होती होगी इसलिए मसाले की बचत को सड़क की चौड़ाई कम कर देते होंगे। लेकिन ऐसा करने से अनेक गलियों में परेशानी होने लगी है।
ऐसे अनेक कार्यो में उल्टा पुल्टा क्यों हो रहा है पता नहीं ?सहारनपुर को स्मार्ट सिटी बनाना है तो सबसे पहले सभी जगहों से अतिक्रमण हटवाना ही होगा। नगर की अधिकांश दुर्व्यवस्था अतिक्रमण के कारण ही है। अतिक्रमण हटाने को प्रशासन सभी बाज़ारो के प्रतिनिधी मंडलो को साथ लेकर पहले चेतावनी दे फिर अतिक्रमण हटाने का कार्य करें। स्थानीय पुलिस चौकी की गस्त भी इस कार्य में सहायक हो सकती है। * सुनील जैन राना *
बन रहे हैं डिवाईडर। नगर भर की सड़को पर डिवाईडर बना दिए गए हैं। जिससे पहले से ज्यादा परेशानी होने लगी है। सड़को के दोनों तरफ के अतिक्रमण हटाते नहीं। ऐसे में सड़कपर झोटा ठेला ,तांगा ,ट्रॉली चल रही है तो पीछे का यातायात भी स्लो होकर जाम लगने लगता है। अतिक्रमण हटाओ अभियान चलता है लेकिन अगले दिन से फिर वही अतिक्रमण हो जाता है। जबकि प्रशाशन की एक विंग इसी कार्य को होनी चाहिए जिसका कार्य नगरभर में एनाउंस मेन्ट करते घूमते रहना चाहिए। तभी लोगो को एहसास होगा और डर लगेगा। प्रशासन चाहे तो सब सम्भव है।
अब बात करें मेनहोल की। सड़के बहुतायत में बन रहीं हैं लेकिन सीवर लाइन के मेनहोल के ढककन ठीक तरह से एंगल लगाकर नहीं रखे जा रहे हैं। सड़क चाहें सीसी की बने या टाइलों की मेनहोल के ढककन सीमेंट से दबा दिए जा रहे हैं। ऐसे में जब भी सड़क या गली के सीवर की सफाई करनी हो तो ढककन हटाने को सड़क तोड़ दी जा रही है। लगता है सड़क बनाते समय मेनहोल के ढककन एंगल पर न रखना सुनियोजित तरीका है। जिससे एक ही कार्य को कई बार करने का धन मिले ?
अब बात करते हैं गलियों की सड़कें बनाने में गली की चौड़ाई पहले से कम की जा रही है और नाली ज्यादा चौड़ी की जा रही है। ऐसा पता नहीं क्यों हो रहा है ?शायद नपाई मय नाली के होती होगी इसलिए मसाले की बचत को सड़क की चौड़ाई कम कर देते होंगे। लेकिन ऐसा करने से अनेक गलियों में परेशानी होने लगी है।
ऐसे अनेक कार्यो में उल्टा पुल्टा क्यों हो रहा है पता नहीं ?सहारनपुर को स्मार्ट सिटी बनाना है तो सबसे पहले सभी जगहों से अतिक्रमण हटवाना ही होगा। नगर की अधिकांश दुर्व्यवस्था अतिक्रमण के कारण ही है। अतिक्रमण हटाने को प्रशासन सभी बाज़ारो के प्रतिनिधी मंडलो को साथ लेकर पहले चेतावनी दे फिर अतिक्रमण हटाने का कार्य करें। स्थानीय पुलिस चौकी की गस्त भी इस कार्य में सहायक हो सकती है। * सुनील जैन राना *
गुरुवार, 19 दिसंबर 2019
यह विरोध नहीं बदले की भावना है ?
December 19, 2019 • सुनील जैन राना • राजनीति
नागरिकता संशोधन बिल का जिस तरह सुनियोजित तरीके से विरोध हो रहा है उससे सभी को ऐसा लग रहा है की यह विरोध नहीं बदला है। मोदी सरकार में लगातार कई कानूनों का सफलता से पास हो जाना विरोधी दलों को रास नहीं आ रहा था। हताश होकर इस बिल के बाद बिल का विरोध कम बल्कि मोदी सरकार को अस्थिर करने को देश भर में अनर्गल बयानों से हंगामा किया जा रहा है। सड़को पर धरने -आंदोलनकारियों से जब धरने की वजह पूछो तो उनमे से अधिकांश नहीं बता पाते की क्यों धरना दे रहे हैं। जिससे साफ़ पता चलता है की ये किराये के टट्टू हैं ,ये खुद नहीं आये बल्कि लाया गया है।
सभी दलों के बुद्धिजीवी जानते हैं की इस बिल से किसी को कोई परेशानी नहीं होगी। लेकिन बदले की भावना से वे जानबूझकर बिल को देशहित में न बताकर भोलीभाली जनता को बरगला रहे हैं। शिक्षा संस्थानों में इस बिल का विरोध होने की वजह सिर्फ इतनी ही समझ में आती है की जरूर देश के कुछ संस्थानों में कुछ ऐसे बाहरी या विदेशी छात्र गैरकानूनी तरीके से रह रहे होंगे जो अब इस बिल के आने से पकड़े जायेंगे। अन्यथा इस बिल से किसी भी भारतीय के अधिकारों का हनन नहीं हो रहा है।
देश की जनता देख रही है विरोध के ऐसे घिनौने तरीके को जिसमे देश की सम्पत्ति को नुक्सान पहुंचाया जा रहा है। इन कृत्यों से विरोधी दलों की साख कम ही होगी , लोगो का विश्वास कम ही होगा। ऐसा विरोध देशहित में नहीं है। *सुनील जैन राना *
सभी दलों के बुद्धिजीवी जानते हैं की इस बिल से किसी को कोई परेशानी नहीं होगी। लेकिन बदले की भावना से वे जानबूझकर बिल को देशहित में न बताकर भोलीभाली जनता को बरगला रहे हैं। शिक्षा संस्थानों में इस बिल का विरोध होने की वजह सिर्फ इतनी ही समझ में आती है की जरूर देश के कुछ संस्थानों में कुछ ऐसे बाहरी या विदेशी छात्र गैरकानूनी तरीके से रह रहे होंगे जो अब इस बिल के आने से पकड़े जायेंगे। अन्यथा इस बिल से किसी भी भारतीय के अधिकारों का हनन नहीं हो रहा है।
देश की जनता देख रही है विरोध के ऐसे घिनौने तरीके को जिसमे देश की सम्पत्ति को नुक्सान पहुंचाया जा रहा है। इन कृत्यों से विरोधी दलों की साख कम ही होगी , लोगो का विश्वास कम ही होगा। ऐसा विरोध देशहित में नहीं है। *सुनील जैन राना *
मंगलवार, 17 दिसंबर 2019
किसी का अहित नहीं तो आगजनी क्यों ?
December 17, 2019 • सुनील जैन राना • राजनीति
नागरिक संशोधन बिल में जब किसी का अहित नहीं तो फिर आगजनी क्यों ? इस बिल की खिलाफत करने वाले लोगो द्वारा देश के कई राज्यों में तोड़फोड़ और आगजनी करने पर सुप्रीम कोर्ट ने भी नाराजगी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस बिल के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई को मना करते हुए कहा की पहले छात्र हिंसा और उपद्रव रोकें। देश की सार्वजनिक सम्पत्ति का नुकसान करने की इजाजत किसी को भी नहीं दी जा सकती।
वास्तव में नागरिकता संशोधन बिल में किसी भी भारतीय के अधिकारों का हनन नहीं होता है। इसका विरोध सिर्फ कुछ विरोधी दलों की हताशा ही है। देशहित में लगातार कई ऐसे विधेयक पास हो जाना जिन्हे कांग्रेस समेत अन्य कई दलों ने अपने वोटबैंक के चक्कर में दशकों से लटका रखा था मोदी सरकार में उन सब पर आम सहमति से पास होने की मोहर का लग जाना इन कुछ विरोधी दलों को रास नहीं आ रहा है। कांग्रेस की सुप्रीमो सोनिया गांधी के धरने के बाद देश भर में हिंसा का वातावरण हो गया यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। किसी के अहित न करने वाले बिल के खिलाफ भड़काने वाले बयान देना देशहित में नहीं है।
पाकिस्तान की भाषा बोलने वाले कुछ दलों के कुछ नेता देश में शांति के वातावरण को अशांत करने में लगे हैं। वे ऐसे बाहरी लोगो के पक्ष में बोल रहे हैं जिन्हे उनके देश ही अपने यहां रखना नहीं चाहते ,ऐसे में भारत उन्हें शरण क्यों दे ?यह बिल खासकर पड़ोसी देशों के उन लोगो के लिए है जनका वहां उत्पीड़न हो रहा है और वे भारत आना चाह रहे हैं। इसमें हर्ज क्या है ?इसमें विरोधियो द्वारा यह दलील देना की इनमे मुस्लिमों को शामिल क्यों नहीं किया तो उन्हें यह बात समझनी चाहिए की ये तीनो मुस्लिम देश हैं जिसके कारण वहां के मुसलमानों के उत्पीड़न की कोई बात ही नहीं है। इन देशों में गैर मुस्लिमों की लगातार घटती संख्या और उनके उत्पीड़न के कारण ऐसा बिल लाया गया है।
सच बात तो यह है की इस बिल से किसी भी भारतीय को कोई परेशानी नहीं है ,परेशानी तो विरोधी दलों द्वारा बनाई गई है। जनता द्वारा सत्ता से बाहर हुए ऐसे नेता देश के विकास और शांति में बाधा डालकर तनाव पैदाकर लोगो को वोटो की राजनीति में बांटना चाह रहे हैं जो देशहित में नहीं है। * सुनील जैन राना *
वास्तव में नागरिकता संशोधन बिल में किसी भी भारतीय के अधिकारों का हनन नहीं होता है। इसका विरोध सिर्फ कुछ विरोधी दलों की हताशा ही है। देशहित में लगातार कई ऐसे विधेयक पास हो जाना जिन्हे कांग्रेस समेत अन्य कई दलों ने अपने वोटबैंक के चक्कर में दशकों से लटका रखा था मोदी सरकार में उन सब पर आम सहमति से पास होने की मोहर का लग जाना इन कुछ विरोधी दलों को रास नहीं आ रहा है। कांग्रेस की सुप्रीमो सोनिया गांधी के धरने के बाद देश भर में हिंसा का वातावरण हो गया यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। किसी के अहित न करने वाले बिल के खिलाफ भड़काने वाले बयान देना देशहित में नहीं है।
पाकिस्तान की भाषा बोलने वाले कुछ दलों के कुछ नेता देश में शांति के वातावरण को अशांत करने में लगे हैं। वे ऐसे बाहरी लोगो के पक्ष में बोल रहे हैं जिन्हे उनके देश ही अपने यहां रखना नहीं चाहते ,ऐसे में भारत उन्हें शरण क्यों दे ?यह बिल खासकर पड़ोसी देशों के उन लोगो के लिए है जनका वहां उत्पीड़न हो रहा है और वे भारत आना चाह रहे हैं। इसमें हर्ज क्या है ?इसमें विरोधियो द्वारा यह दलील देना की इनमे मुस्लिमों को शामिल क्यों नहीं किया तो उन्हें यह बात समझनी चाहिए की ये तीनो मुस्लिम देश हैं जिसके कारण वहां के मुसलमानों के उत्पीड़न की कोई बात ही नहीं है। इन देशों में गैर मुस्लिमों की लगातार घटती संख्या और उनके उत्पीड़न के कारण ऐसा बिल लाया गया है।
सच बात तो यह है की इस बिल से किसी भी भारतीय को कोई परेशानी नहीं है ,परेशानी तो विरोधी दलों द्वारा बनाई गई है। जनता द्वारा सत्ता से बाहर हुए ऐसे नेता देश के विकास और शांति में बाधा डालकर तनाव पैदाकर लोगो को वोटो की राजनीति में बांटना चाह रहे हैं जो देशहित में नहीं है। * सुनील जैन राना *
देर से मिला न्याय , अन्याय समान
December 17, 2019 • सुनील जैन राना • जनहित
कभी -कभी देर से मिला न्याय अन्याय समान ही हो जाता है। यही हो रहा है उनाव की दुष्कर्म पीड़िता के साथ। अक्सर ही ऐसा होता है की बलात्कार की पीड़िता जल्दी से तो केस ही लिखा नहीं जाता ,लिखा भी जाता है तो भ्र्ष्टाचार के चलते जहां एक ओर पीडिता और उसके घर वाले पुलिस -कचहरी के धक्के खाते हैं वहीं दूसरी और बलात्कारी मज़े से घूमता - फिरता है। ऐसे में यदि बलात्कारी धनवान या राजनीतिक रसूख वाला है तो उसका तो कुछ बाल बांका नहीं होता ,पीड़िता और उसके घरवालों का जीते जी मरना हो ही जाता है।
ऐसा ही हो रहा है उनाव पीड़िता के साथ। निर्भया कांड की बरसी पर उनाव की बेटी को करीब ढाई साल बाद इन्साफ तो मिला लेकिन उसके दोषी को कठोर सज़ा मिलने से पहले ही उनाव की पीड़ित बेटी ने एसपी के दफ्तर में खुद को आग लगा ली। सोचो जरा कितना भयाभय मामला यह है की जिसमे बलात्कार की पीड़िता ने पहले तो दरिंदगी झेली फिर पुलिस के संरक्षण में उसके पिता की हत्या कर दी गई। इसके बाद भी पीड़िता एवं उसके परिवार को सड़क हादसे में मार देने की कोशिश की गई। उसके बाद भी आज तक मुक़दमे की तारीखे झेलती पीड़िता ने खुद को जला कर मार डालना ही उचित समझा। कैसी न्याय प्रणाली है यह ?अब भले ही बलात्कारी को उम्रकैद हो या फांसी ,पीड़िता की जिंदगी तो जीते जी खत्म हो ही गई।
ऐसा ही हो रहा है उनाव पीड़िता के साथ। निर्भया कांड की बरसी पर उनाव की बेटी को करीब ढाई साल बाद इन्साफ तो मिला लेकिन उसके दोषी को कठोर सज़ा मिलने से पहले ही उनाव की पीड़ित बेटी ने एसपी के दफ्तर में खुद को आग लगा ली। सोचो जरा कितना भयाभय मामला यह है की जिसमे बलात्कार की पीड़िता ने पहले तो दरिंदगी झेली फिर पुलिस के संरक्षण में उसके पिता की हत्या कर दी गई। इसके बाद भी पीड़िता एवं उसके परिवार को सड़क हादसे में मार देने की कोशिश की गई। उसके बाद भी आज तक मुक़दमे की तारीखे झेलती पीड़िता ने खुद को जला कर मार डालना ही उचित समझा। कैसी न्याय प्रणाली है यह ?अब भले ही बलात्कारी को उम्रकैद हो या फांसी ,पीड़िता की जिंदगी तो जीते जी खत्म हो ही गई।
सोमवार, 16 दिसंबर 2019
नसबंदी कुत्तो की नहीं बल्कि ? https://www.facebook.com/jeevrakshakendr
December 16, 2019 • सुनील जैन राना • जनहित
किसी भी नगर -शहर -कस्बे -गांव के गली -मोहल्ले में खूंखार कुत्तो के आतंक से सभी परेशान हैं। कुत्तो की बढ़ती संख्या पर लगाम लगाना कठिन हो रहा है। कहीं -कहीं तो अब कुत्ते आदमखोर तक हो रहे हैं। अनेको जगह कुत्तो के आतंक से आम आदमी भयभीत हो गया है। इंसानो को कुत्ते के काटने की संख्या बढ़ती जा रही है।
सहारनपुर की ही बात करें तो इंसानो को कुत्ते के काटने की तादाद बहुत बढ़ गई है। सरकारी अस्पताल में निशुल्क इंजेक्शन लगाने की सुविधा भी उपलब्ध है फिर भी वह नाकाफ़ी है। नगर निगम द्वारा गतवर्ष कुत्तो की नसबंदी का अभियान चलाकर सैंकड़ो कुत्तो की नसबंदी कर लाखों रूपये खर्च करने के बाद भी समस्या ज्यों की त्यों है।
नसबंदी में कुछ कुत्तो के तो अंग ही काट दिए गए। जीवदया के कार्यो में नगर की अग्रणी संस्था श्री दया सिंधु जीव रक्षा केंद्र ,चिलकाना रोड ,सहारनपुर का संयोजक होने के नाते मैं यह कहना चाहता हूँ की ऐसा होना बहुत दुर्भाग्य पूर्ण है। इसका पता हमें तब चला जब हम जनवरी माह में पशु पक्षी कल्याण पखवाड़े के दौरान खाताखेड़ी क्षेत्र में कुत्तो को दूध पिलाने ,ब्रेड खिलाने और घायल कुत्तो का उपचार करने के चल शिविर में कुत्तो को दूध पिला रहे थे। स्थानीय लोगो से पूछने पर पता चला की कुछ दिन पहले नगर निगम द्वारा कुत्तो की नसबंदी की गई थी।
इस संबंध में मैंने एक पत्र नगरनिगम और समाचार पत्रों को लिखा जिसमें कुत्तो की नसबंदी के बारे में सुझाव दिया था की भविष्य में कुत्तो की नसबंदी के बजाय कुतियो की नसबंदी की जाए। इससे दो फायदे होंगे प्रथम तो यह की नगर में कुत्तो की संख्या के मुकाबले कुतियो -फीमेल डॉग की संख्या एक चौथाई है। ऐसे में कम कार्य में एवं कम खर्च में अधिक लाभ प्राप्त हो सकेगा। द्वितीय बात यह भी है की यदि छोटी उम्र में ही कुतिया की पहचान कर नसबंदी की प्रकिर्या अपनाई जाए तो आने वाले समय में कुत्तो की बढ़ती संख्या पर भी लगाम लग जायेगी। मेरा सभी जगह के प्रशाशन से अनुरोध है की मेरे इस सुझाव पर विचार करें ,ठीक लगे तो इसे अमलीजामा पहनाने की कोशिश करें। जनहित के लिए उपयोगी। *सुनील जैन राना
सहारनपुर की ही बात करें तो इंसानो को कुत्ते के काटने की तादाद बहुत बढ़ गई है। सरकारी अस्पताल में निशुल्क इंजेक्शन लगाने की सुविधा भी उपलब्ध है फिर भी वह नाकाफ़ी है। नगर निगम द्वारा गतवर्ष कुत्तो की नसबंदी का अभियान चलाकर सैंकड़ो कुत्तो की नसबंदी कर लाखों रूपये खर्च करने के बाद भी समस्या ज्यों की त्यों है।
नसबंदी में कुछ कुत्तो के तो अंग ही काट दिए गए। जीवदया के कार्यो में नगर की अग्रणी संस्था श्री दया सिंधु जीव रक्षा केंद्र ,चिलकाना रोड ,सहारनपुर का संयोजक होने के नाते मैं यह कहना चाहता हूँ की ऐसा होना बहुत दुर्भाग्य पूर्ण है। इसका पता हमें तब चला जब हम जनवरी माह में पशु पक्षी कल्याण पखवाड़े के दौरान खाताखेड़ी क्षेत्र में कुत्तो को दूध पिलाने ,ब्रेड खिलाने और घायल कुत्तो का उपचार करने के चल शिविर में कुत्तो को दूध पिला रहे थे। स्थानीय लोगो से पूछने पर पता चला की कुछ दिन पहले नगर निगम द्वारा कुत्तो की नसबंदी की गई थी।
इस संबंध में मैंने एक पत्र नगरनिगम और समाचार पत्रों को लिखा जिसमें कुत्तो की नसबंदी के बारे में सुझाव दिया था की भविष्य में कुत्तो की नसबंदी के बजाय कुतियो की नसबंदी की जाए। इससे दो फायदे होंगे प्रथम तो यह की नगर में कुत्तो की संख्या के मुकाबले कुतियो -फीमेल डॉग की संख्या एक चौथाई है। ऐसे में कम कार्य में एवं कम खर्च में अधिक लाभ प्राप्त हो सकेगा। द्वितीय बात यह भी है की यदि छोटी उम्र में ही कुतिया की पहचान कर नसबंदी की प्रकिर्या अपनाई जाए तो आने वाले समय में कुत्तो की बढ़ती संख्या पर भी लगाम लग जायेगी। मेरा सभी जगह के प्रशाशन से अनुरोध है की मेरे इस सुझाव पर विचार करें ,ठीक लगे तो इसे अमलीजामा पहनाने की कोशिश करें। जनहित के लिए उपयोगी। *सुनील जैन राना
शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019
मंदी के बावजूद परोपकार
December 13, 2019 • सुनील जैन राना • परोपकार
देश की आर्थिक व्यवस्था भले ही पूर्ण ऊंचाई पर न हो लेकिन आज भी अनेको कम्पनियाँ अच्छा मुनाफा भी कमा रही हैं और मुनाफ़े का कुछ हिस्सा परोपकार में भी खर्च कर रही हैं। देश में सूचीबद्ध कंपनियों ने सी एस आर यानि कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व में परोपकार और जनहित कार्यो में अपने मुनाफ़े में से लगभग दो प्रतिशत धन खर्च कर रही हैं।
सरकार द्वारा २०१५ के वित्त वर्ष से सूचीबद्ध कंपनियों को नियत धनराशि देशहित ,परोपकार और कल्याणकारी कार्यो में खर्च करना अनिवार्य कर दिया था। तब से अब तक प्रत्येक वित्त वर्ष में इस धनराशि में लगातार इजाफा हो रहा है। वित्त वर्ष २०१९ में इस मद में कंपनियों द्वारा लगभग ११८६७ करोड़ रूपये खर्च किये गए जो अभी तक एक वित्त वर्ष में खर्च किये जाने की सर्वाधिक धनराशि है।
सी एस आर के मद से किया जाने वाला खर्च शिक्षा ,स्वास्थ ,महिलाओं ,बुजुर्गो, दिव्यांगों के अलावा गरीबी ,भुखमरी ,कुपोषण आदि से निजात पाने जैसे कार्यो में किया जाता है। इसके अतिरिक्त स्वच्छ भारत ,स्वच्छ जल जैसी योजनाओ में भी भागेदारी की जा सकती है।
बहुत अच्छा और प्रेरक कार्य है यह। हमारे देश की संस्कृति भी ऐसी ही रही है। धनवानों ने सदैव निर्धनों की सहायता की है। पुराने समय से ही धर्मशालाएं बनवाना ,चैरिटेबल अस्पताल -भोजनालय आदि खुलवाना ,गोशालाएं बनवाना आदि अनेक परोपकार के कार्य किये जाते रहे हैं। सरकार सबके लिए सब कुछ नहीं कर सकती। हम सभी को गरीबों -अनाथो के सहयोग के लिए आगे आना चाहिए। याद रखिये मारने वाले से बचाने वाला अच्छा होता है और दानवीर सबसे सर्वश्रेष्ठ होता है। *सुनील जैन राना *
गुरुवार, 12 दिसंबर 2019
नागरिकता संशोधन बिल -विरोध क्यों? http://suniljainrana.blogspot.com/
December 12, 2019 • सुनील जैन राना • राजनीति
नागरिकता संशोधन बिल दोनों सदनों में पास हो गया है। लेकिन हमेशा की तरह हर कार्य-नीति का विरोध करना ,उसमे बाधा डालना अधिकांश विपक्ष का काम हो गया है। समझ में नहीं आता की इस बिल से किस भारतीय को परेशानी हो सकती है ,अर्थात किसी को नहीं। यह बिल किसी भी तरह भारत में रहने वाले प्रत्येक भारतीय के हितों की रक्षा करता है सिर्फ उनको छोड़कर जो भारत में घुसपैठिये की तरह आये हैं।
इस बिल के द्वारा जहां एक ओर देश को विदेशी असामाजिक तत्वों से बचाने की कोशिश है वहीं दूसरी ओर भारत के पड़ोसी तीन मुस्लिम देश जहां गैर मुस्लिम के साथ अन्याय हो रहा हो-हुआ हो,उत्पीड़न से बचने को वे भारत में शरण लेना चाहते हो तो उन्हें शरण दी जा सकेगी। हंगामा इस बात पर किया जा रहा है की इसमें मुस्लिमों को क्यों नहीं शामिल किया गया ?इसमें सोचने की बात यह है की तीन मुस्लिम इस्लामिक देश ही यदि अपने मुस्लिम समाज का हित नहीं कर सकते तो भारत से अपेक्षाएं क्यों ?
भारत देश की बढ़ती जनसंख्या की जरूरत ही सरकार पूरी नहीं कर पाती ऐसे में बाहरी लोग जिन्हे उनकी सरकार ही नहीं रख रही भारत सरकार क्यों रखे ? बंगलादेश से आये रोहिंग्या ऐसे मुसलमान जिन्हे उनका देश ही बाहर निकाल रहा और कोई भी अन्य मुस्लिम देश उन्हें अपने यहां पनाह देने को तैयार नहीं ऐसे में भारत ने क्या ठेका ले रखा है ऐसे लोगो का ?
दरअसल यह सब हंगामा वोटो की राजनीति के तहत करवाया जा रहा है। दुर्भाग्य की बात है की जो दल विरोध में लगे हैं उन्हें मुसलमानों की चिंता नहीं है बल्कि उनके वोटो की चिंता है। पाकिस्तान के इमरान खान भी इस बिल का विरोध कर रहे हैं। अब कोई उनसे पूछे उन्हें क्या परेशानी है ?मुस्लिम रोहिंग्यों को उन्होंने भी अपने यहां जगह देने से मना कर दिया है। इमरान खान कभी चीन में उत्पीड़ित मुसलमानों के लिए क्यों नहीं बोलते ?कश्मीर के मुसलमानों की चिंता करते हैं ,यह सब दिखावा है।
वास्तव में नागरिक संशोधन बिल भारत देश की सुरक्षा से जुड़ा ऐसा बिल है जिसे बहुत पहले ही आ जाना चाहिए था। इस बिल से किसी भी भारतीय के हितों में सेंध नहीं लग रही बल्कि सुरक्षा मिल रही है। साथ ही तीन पड़ोसी मुस्लिम देश में गैर मुस्लिमों के साथ हो रहे अत्याचार -उत्पीड़न से पीड़ित जन यदि भारत आना चाहें तो आ सकते हैं। इसमें किसी भी भारतीय को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। * सुनील जैन राना *
इस बिल के द्वारा जहां एक ओर देश को विदेशी असामाजिक तत्वों से बचाने की कोशिश है वहीं दूसरी ओर भारत के पड़ोसी तीन मुस्लिम देश जहां गैर मुस्लिम के साथ अन्याय हो रहा हो-हुआ हो,उत्पीड़न से बचने को वे भारत में शरण लेना चाहते हो तो उन्हें शरण दी जा सकेगी। हंगामा इस बात पर किया जा रहा है की इसमें मुस्लिमों को क्यों नहीं शामिल किया गया ?इसमें सोचने की बात यह है की तीन मुस्लिम इस्लामिक देश ही यदि अपने मुस्लिम समाज का हित नहीं कर सकते तो भारत से अपेक्षाएं क्यों ?
भारत देश की बढ़ती जनसंख्या की जरूरत ही सरकार पूरी नहीं कर पाती ऐसे में बाहरी लोग जिन्हे उनकी सरकार ही नहीं रख रही भारत सरकार क्यों रखे ? बंगलादेश से आये रोहिंग्या ऐसे मुसलमान जिन्हे उनका देश ही बाहर निकाल रहा और कोई भी अन्य मुस्लिम देश उन्हें अपने यहां पनाह देने को तैयार नहीं ऐसे में भारत ने क्या ठेका ले रखा है ऐसे लोगो का ?
दरअसल यह सब हंगामा वोटो की राजनीति के तहत करवाया जा रहा है। दुर्भाग्य की बात है की जो दल विरोध में लगे हैं उन्हें मुसलमानों की चिंता नहीं है बल्कि उनके वोटो की चिंता है। पाकिस्तान के इमरान खान भी इस बिल का विरोध कर रहे हैं। अब कोई उनसे पूछे उन्हें क्या परेशानी है ?मुस्लिम रोहिंग्यों को उन्होंने भी अपने यहां जगह देने से मना कर दिया है। इमरान खान कभी चीन में उत्पीड़ित मुसलमानों के लिए क्यों नहीं बोलते ?कश्मीर के मुसलमानों की चिंता करते हैं ,यह सब दिखावा है।
वास्तव में नागरिक संशोधन बिल भारत देश की सुरक्षा से जुड़ा ऐसा बिल है जिसे बहुत पहले ही आ जाना चाहिए था। इस बिल से किसी भी भारतीय के हितों में सेंध नहीं लग रही बल्कि सुरक्षा मिल रही है। साथ ही तीन पड़ोसी मुस्लिम देश में गैर मुस्लिमों के साथ हो रहे अत्याचार -उत्पीड़न से पीड़ित जन यदि भारत आना चाहें तो आ सकते हैं। इसमें किसी भी भारतीय को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। * सुनील जैन राना *
बुधवार, 11 दिसंबर 2019
प्याज के आँसू http://suniljainrana.blogspot.com/
December 11, 2019 • सुनील जैन राना
प्याज के आँसू रो रही जनता और सरकार ,हल्ला बोल रहा विपक्ष। प्याज के बढ़ते दामों से सभी परेशान हैं। सोशल मिडिया पर तो प्याज छाया हुआ है। आज प्याज फलों और सब्जियों में विशिष्ट स्थान पा गया है। सोशल मिडिया पर अनेको वीडियो प्याज को लेकर बनाये गए हैं जिन्हे जनता भी बहुत पसंद कर रही है। किसी वीडियो में प्याज को बैंक लॉकर में रखते दिखाया जा रहा है तो किसी वीडियो में प्याजकी चोरी -लूट दिखाई जा रही है। कार्टूनिस्टों ने भी मौके का फायदा उठाकर प्याज पर अनेको कार्टून बना दिए हैं। घरों में शुभ अवसरो पर फल -मिठाई की जगह प्याज लाते लेजाते दिखाया जा रहा है। कहने का तातपर्य यह है की आज प्याज विशिष्ट बन गया है।
कई बार प्याज के कारण सरकारें बनती -बिगड़ती देखी हैं। आज कांग्रेस समेत कई विरोधी दल प्याज के बढ़ते दामों पर हल्ला मचा रहे हैं। जबकि सोशल मिडिया पर ही कांग्रेस की सरकार के समय १०० रूपये किलो तक महंगे हो गए प्याज पर कांग्रेस के कपिल सिब्बल एक पत्रकार को जबाब में बता रहे हैं की प्याज के दाम बढ़ गए हैं तो इसमें सरकार का क्या दोष ,सरकार थोड़े ही प्याज बेच रही है। प्याज महंगा है तो प्याज बेचने वाले दुकानदारों से पूछो। आज वही सिब्बल जी महंगे प्याज पर नाराज हैं।
प्याज की कीमतें इतनी बेहताशा बढ़ने के भी कई कारण बताएं जा रहे हैं। सोशल मिडिया पर एक वीडियो में महाराष्ट्र के पास सैंकड़ो ट्रक प्याज से भरे खड़े हैं जिन्हे बिना वजह रोक रखा है ऐसा दिखाया गया। लगता है की प्याज की इतनी किल्ल्त नहीं है जितनी बना दी गई। इसमें बिचौलियों का भी बहुत बड़ा हाथ हो सकता है। अब नई प्याज आणि शुरू हो गई है। विदेशो से आयात किया प्याज भी बाजार पहुंचने लगा है। जिससे लगता है की जल्दी ही प्याज फिर से २५ -३० रूपये किलो बिकने लगेगा। *सुनील जैन राना *
कई बार प्याज के कारण सरकारें बनती -बिगड़ती देखी हैं। आज कांग्रेस समेत कई विरोधी दल प्याज के बढ़ते दामों पर हल्ला मचा रहे हैं। जबकि सोशल मिडिया पर ही कांग्रेस की सरकार के समय १०० रूपये किलो तक महंगे हो गए प्याज पर कांग्रेस के कपिल सिब्बल एक पत्रकार को जबाब में बता रहे हैं की प्याज के दाम बढ़ गए हैं तो इसमें सरकार का क्या दोष ,सरकार थोड़े ही प्याज बेच रही है। प्याज महंगा है तो प्याज बेचने वाले दुकानदारों से पूछो। आज वही सिब्बल जी महंगे प्याज पर नाराज हैं।
प्याज की कीमतें इतनी बेहताशा बढ़ने के भी कई कारण बताएं जा रहे हैं। सोशल मिडिया पर एक वीडियो में महाराष्ट्र के पास सैंकड़ो ट्रक प्याज से भरे खड़े हैं जिन्हे बिना वजह रोक रखा है ऐसा दिखाया गया। लगता है की प्याज की इतनी किल्ल्त नहीं है जितनी बना दी गई। इसमें बिचौलियों का भी बहुत बड़ा हाथ हो सकता है। अब नई प्याज आणि शुरू हो गई है। विदेशो से आयात किया प्याज भी बाजार पहुंचने लगा है। जिससे लगता है की जल्दी ही प्याज फिर से २५ -३० रूपये किलो बिकने लगेगा। *सुनील जैन राना *
सोमवार, 9 दिसंबर 2019
रविवार, 8 दिसंबर 2019
ऐतिहासिक जैसलमेर की यात्रा
पिछले पांच दिन भारत की शान राजस्थान के जैसलमेर की यात्रा पूर्ण की। यूँ तो राजस्थान के सभी बड़े नगर ऐतिहासिक और भव्य हैं लेकिन इनमें भी जैसलमेर अपने आप में अनुपम है। राजस्थान के सभी किलो और महलों में मंदिरो की बहुतायत है लेकिन अनेक जगहों पर जैन मंदिरो की भव्यता -दिव्यता अनुपम है।
जैसलमेर में पटवों की हवेलियां ऐतिहासिक हैं। ये पटवे जैन समुदाय के थे और व्यापारी थे। इनकी हवेलियां किसी राजमहल से कम नहीं हैं। पत्थर पर बारीक़ नक्काशी देखते ही बनती है। इसके अतिरिक्त किले के अंदर का महल और जैन मंदिर अद्भुत है। जैन मंदिर की भव्यता और दिव्यता देखते ही बनती है। भारतवर्ष में माउंटआबू में दिलवाड़ा जैन मंदिर अपनी पत्थर की नकाशी के लिए दुनिया भर में प्रसिद्द हैं। रणकपुर के जैन मंदिर भी अपने आप में अनुपम हैं। इसी तरह जैसलमेर के किले में जैन मंदिर अद्भुत हैं। मंदिर में ६६६ प्रतिमाएं जिनका आज भी रोजाना पूजा -प्रक्षाल होती है अनुपम हैं। पत्थर के खम्बे -दीवारों पर हुई नक्काशी देखने योग्य है।
इसके अतिरिक्त जैसलमेर के अन्य दार्शनिक स्थल बेहतरीन हैं। लुद्र्वा में स्थित जैन मंदिर अनुपम है। रेगिस्तान में ऊंट पर सवारी या जीप में सवारी का अपना ही आनंद है। जैसलमेर से १५० किलोमीटर दूर बाड़मेर में कनोट माता का मंदिर जहां पाकिस्तान द्वारा अनेको बम गिराए गए थे फिर भी मंदिर का कुछ नहीं बिगड़ा दर्शनीय है। जैसलमेर से १७ किलोमीटर पर बना वार मैमोरियल सेना के साहस की कथा बयान करता है।
एक बार जरूर जैसलमेर की यात्रा करनी चाहिए।
पिछले पांच दिन भारत की शान राजस्थान के जैसलमेर की यात्रा पूर्ण की। यूँ तो राजस्थान के सभी बड़े नगर ऐतिहासिक और भव्य हैं लेकिन इनमें भी जैसलमेर अपने आप में अनुपम है। राजस्थान के सभी किलो और महलों में मंदिरो की बहुतायत है लेकिन अनेक जगहों पर जैन मंदिरो की भव्यता -दिव्यता अनुपम है।
जैसलमेर में पटवों की हवेलियां ऐतिहासिक हैं। ये पटवे जैन समुदाय के थे और व्यापारी थे। इनकी हवेलियां किसी राजमहल से कम नहीं हैं। पत्थर पर बारीक़ नक्काशी देखते ही बनती है। इसके अतिरिक्त किले के अंदर का महल और जैन मंदिर अद्भुत है। जैन मंदिर की भव्यता और दिव्यता देखते ही बनती है। भारतवर्ष में माउंटआबू में दिलवाड़ा जैन मंदिर अपनी पत्थर की नकाशी के लिए दुनिया भर में प्रसिद्द हैं। रणकपुर के जैन मंदिर भी अपने आप में अनुपम हैं। इसी तरह जैसलमेर के किले में जैन मंदिर अद्भुत हैं। मंदिर में ६६६ प्रतिमाएं जिनका आज भी रोजाना पूजा -प्रक्षाल होती है अनुपम हैं। पत्थर के खम्बे -दीवारों पर हुई नक्काशी देखने योग्य है।
इसके अतिरिक्त जैसलमेर के अन्य दार्शनिक स्थल बेहतरीन हैं। लुद्र्वा में स्थित जैन मंदिर अनुपम है। रेगिस्तान में ऊंट पर सवारी या जीप में सवारी का अपना ही आनंद है। जैसलमेर से १५० किलोमीटर दूर बाड़मेर में कनोट माता का मंदिर जहां पाकिस्तान द्वारा अनेको बम गिराए गए थे फिर भी मंदिर का कुछ नहीं बिगड़ा दर्शनीय है। जैसलमेर से १७ किलोमीटर पर बना वार मैमोरियल सेना के साहस की कथा बयान करता है।
एक बार जरूर जैसलमेर की यात्रा करनी चाहिए।
सोमवार, 2 दिसंबर 2019
रविवार, 1 दिसंबर 2019
प्याज की बढ़ती कीमतें, फायदा किसे?
December 1, 2019 • सुनील जैन राना
प्याज की बढ़ती कीमतें -फायदा किसे ?
• सुनील जैन राना
देश के कई राज्यों में प्याज की बढ़ती कीमतों से आम जनता परेशान है। सरकार भी प्याज की कीमतों में कमी कराने को जागरूक है और अनेको उपायों में लगी है। सरकार द्वारा जहां एक ओर प्याज के निर्यात पर पाबंदी लगा दी है वहीं दूसरी ओर प्याज का आयात करने को उचित कदम उठाये जा रहे हैं।
प्याज के मामले में चिंताजनक बात यह की ऐसा क्या हो जाता है कुछ ही महीनों में की जिस प्याज का कोई खरीदार नहीं होता अचानक उसके बेहताशा भाव क्यों बढ़ जाते हैं ? इन बढ़े भावो का फायदा किसे मिलता है ?क्यों किसान हर बार अपने को ठगा सा महसूस करता है ?
इन सब बातो का एक ही उत्तर नज़र में आता है वह है बिचौलिया। हर बार बिचौलिए ही सस्ते में वस्तु खरीदकर थोड़े दिन बाद उसकी किल्ल्त पैदाकर मनमाने दामों पर बेचते हैं। आज तक देश के सभी राज्यों में विभिन्न सरकारे इन बिचौलियों पर अंकुश लगाने में कामयाब नहीं हो पाई हैं। किसान को तो सदैव अपनी फसल का न्यूनतम दाम ही मिलता रहा है। हालांकि अब कुछ किसान भी धनवान हो गए हैं और बाजार की स्थिति के अनुसार वस्तु को सस्ते दामों पर न बेचकर दाम बढ़ने पर ही बेचते हैं। लेकिन ऐसे किसानो की संख्या बहुत कम है। पिछले सालों में दालों के दामों में भी ऐसे ही बेहताशा बढ़ोतरी हुई थी जिस पर सरकार को खासी मस्सकत करनी पड़ी थी।
देश के किसानो को खुशहाल बनाने के लिये बिचौलियों पर अंकुश लगाना बहुत जरूरी है। इसके लिए सरकार और किसानों को साझा कार्यक्रम बनाना होगा तभी खाद्य पदार्थो की कीमतें एकरूप रह सकेंगी। *सुनील जैन राना *
प्याज के मामले में चिंताजनक बात यह की ऐसा क्या हो जाता है कुछ ही महीनों में की जिस प्याज का कोई खरीदार नहीं होता अचानक उसके बेहताशा भाव क्यों बढ़ जाते हैं ? इन बढ़े भावो का फायदा किसे मिलता है ?क्यों किसान हर बार अपने को ठगा सा महसूस करता है ?
इन सब बातो का एक ही उत्तर नज़र में आता है वह है बिचौलिया। हर बार बिचौलिए ही सस्ते में वस्तु खरीदकर थोड़े दिन बाद उसकी किल्ल्त पैदाकर मनमाने दामों पर बेचते हैं। आज तक देश के सभी राज्यों में विभिन्न सरकारे इन बिचौलियों पर अंकुश लगाने में कामयाब नहीं हो पाई हैं। किसान को तो सदैव अपनी फसल का न्यूनतम दाम ही मिलता रहा है। हालांकि अब कुछ किसान भी धनवान हो गए हैं और बाजार की स्थिति के अनुसार वस्तु को सस्ते दामों पर न बेचकर दाम बढ़ने पर ही बेचते हैं। लेकिन ऐसे किसानो की संख्या बहुत कम है। पिछले सालों में दालों के दामों में भी ऐसे ही बेहताशा बढ़ोतरी हुई थी जिस पर सरकार को खासी मस्सकत करनी पड़ी थी।
देश के किसानो को खुशहाल बनाने के लिये बिचौलियों पर अंकुश लगाना बहुत जरूरी है। इसके लिए सरकार और किसानों को साझा कार्यक्रम बनाना होगा तभी खाद्य पदार्थो की कीमतें एकरूप रह सकेंगी। *सुनील जैन राना *
शनिवार, 30 नवंबर 2019
बलात्कारी का अंग भंग करना ही चाहिए
November 30, 2019 • सुनील जैन राना • जनहित
हैदराबाद में एक युवती से सामूहिक दुष्कर्म के बाद हत्या और फिर शव को जला देने की घटना ने एक बार फिर से देश की जनता को आक्रोशित कर दिया है। हैदराबाद समेत देश के अनेक राज्यों -नगरों -शहरों में इस घटना को लेकर आंदोलन किये जा रहे हैं। एक डॉक्टर युवती जिसकी स्कूटी पैंचर हो जाने पर स्थानीय लोगो से सहायता मांगने पर सहायता के बदले सामूहिक दुष्कर्म -हत्या जैसा घिनौना अपराध देखने को मिला है। सिर्फ यही नहीं बल्कि बाद में शव को जला देना जैसी घटना तो दिल को झंझोड़ देने वाली है।
बलात्कारी हत्यारे पकड़े गए हैं। अब कार्यवाही होगी ,मुकदमा चलेगा हो सकता है अधिकतम फांसी की सज़ा हो जाए। लेकिन क्या फिर से बलात्कार रुक जायेंगे। इस घटना में पकड़े गए चार आरोपी दो मज़हब के हैं। इससे देश में एक मज़हब के प्रति होने वाला बबाल जो भयानक हिंसा का रूप ले सकता था वह नहीं होना चाहिए।
बात कुछ अटपटी सी है। मैंने बलात्कार पर पिछले सालो में अनेको बार लिखा है। देश में प्रतिदिन कहीं न कहीं रोजाना लगभग ८० -९० बलात्कार हो रहे हैं, यह सरकारी आंकड़े हैं। हो सकता है की यह संख्या और भी ज्यादा हो क्योकि अनेको पीड़ितों के तो मुकदमें दर्ज ही नहीं हो पाते हैं। कुछ पीड़ितों के घर वाले ही मुकदमा दर्ज नहीं करवाते क्योंकि मुकदमें के बाद न्याय प्रकिर्या में होने वाली पूछताछ जो कभी -कभी बेशर्मी की हदें पार कर देती है उससे बचने के लिए इस जघन्य अपराध पर भी खून का घूंठ पीकर चुप रहते हैं।
दरअसल बलात्कार सदैव दूषित मानसिकता से ग्रस्त कामविकारी पुरुष द्वारा किया जाता है। ऐसे लोग हमारे समाज के अंग होते हैं। ऐसे लोग किसी भी मज़हब के हो सकते हैं। हो सकता है की ऐसे घिनौने पुरुष किसी धार्मिक स्थल के ही कर्ता धर्ता हों जिन्हे हम आदरणीय मानते हैं।
आज के आधुनिक युग में हमारा सामजिक परिवेश काफी बदल गया गया। अश्लील फिल्मे ,मोबाईल ,और आधुनिक पहनावा आदि सभी बातें मन में काम विकार उतपन्न करती हैं। अक्सर लड़कियों के पहनावे पर पक्ष -विपक्ष में बातें हो जाती हैं। लेकिन इस बात को कोई इंकार नहीं कर सकता की सलवाल कुर्ते जैसे सादगी से भरे पहनावेँ की अपेक्षा आधुनक छोटे कपड़े ,टाईट कपड़े ,नये महंगे फ़टे कपड़े पहनने वाली लड़कियों पर सभी की नज़र जाती है। अश्लील जुमलों का शिकार भी ऐसी ही लड़कियां ज्यादा होती हैं। लेकिन सत्य यह भी है की बलात्कारी मानसिकता वाले कपड़ो से दूर बस मौके की तलाश में रहते हैं.जैसा की इस घटना में भी हुआ।
बलात्कारी के संबंध में हमारा यह कहना है की भले ही बलात्कार की सज़ा पहले से ज्यादा कठोर बना दी गई है फिर भी बलात्कारी का सर्व प्रथम अंग भंग कर देना चाहिए। मुकदमा तो चलता रहेगा लेकिन बाकि सज़ा मिलने तक उसे पीड़िता की भांति घिनौना एहसास जिंदगी भर तो रहेगा। खुद की दृष्टि में और समाज की दृस्टि में अंग भंग का दंश उसे झेलना तो पड़ेगा। देखने में आता है की बलात्कारी जेल में मौज मस्ती से रहता है सालों तक मुकदमा चलता है। आप खुद ही अंदाजा लगा ले की देश में जहां लगभग तीस हज़ार बलात्कार प्रति वर्ष हो रहे हो उनमें से कितनो को फांसी हुई। शर्मनाक है ऐसा होना। * सुनील जैन राना *
बलात्कारी हत्यारे पकड़े गए हैं। अब कार्यवाही होगी ,मुकदमा चलेगा हो सकता है अधिकतम फांसी की सज़ा हो जाए। लेकिन क्या फिर से बलात्कार रुक जायेंगे। इस घटना में पकड़े गए चार आरोपी दो मज़हब के हैं। इससे देश में एक मज़हब के प्रति होने वाला बबाल जो भयानक हिंसा का रूप ले सकता था वह नहीं होना चाहिए।
बात कुछ अटपटी सी है। मैंने बलात्कार पर पिछले सालो में अनेको बार लिखा है। देश में प्रतिदिन कहीं न कहीं रोजाना लगभग ८० -९० बलात्कार हो रहे हैं, यह सरकारी आंकड़े हैं। हो सकता है की यह संख्या और भी ज्यादा हो क्योकि अनेको पीड़ितों के तो मुकदमें दर्ज ही नहीं हो पाते हैं। कुछ पीड़ितों के घर वाले ही मुकदमा दर्ज नहीं करवाते क्योंकि मुकदमें के बाद न्याय प्रकिर्या में होने वाली पूछताछ जो कभी -कभी बेशर्मी की हदें पार कर देती है उससे बचने के लिए इस जघन्य अपराध पर भी खून का घूंठ पीकर चुप रहते हैं।
दरअसल बलात्कार सदैव दूषित मानसिकता से ग्रस्त कामविकारी पुरुष द्वारा किया जाता है। ऐसे लोग हमारे समाज के अंग होते हैं। ऐसे लोग किसी भी मज़हब के हो सकते हैं। हो सकता है की ऐसे घिनौने पुरुष किसी धार्मिक स्थल के ही कर्ता धर्ता हों जिन्हे हम आदरणीय मानते हैं।
आज के आधुनिक युग में हमारा सामजिक परिवेश काफी बदल गया गया। अश्लील फिल्मे ,मोबाईल ,और आधुनिक पहनावा आदि सभी बातें मन में काम विकार उतपन्न करती हैं। अक्सर लड़कियों के पहनावे पर पक्ष -विपक्ष में बातें हो जाती हैं। लेकिन इस बात को कोई इंकार नहीं कर सकता की सलवाल कुर्ते जैसे सादगी से भरे पहनावेँ की अपेक्षा आधुनक छोटे कपड़े ,टाईट कपड़े ,नये महंगे फ़टे कपड़े पहनने वाली लड़कियों पर सभी की नज़र जाती है। अश्लील जुमलों का शिकार भी ऐसी ही लड़कियां ज्यादा होती हैं। लेकिन सत्य यह भी है की बलात्कारी मानसिकता वाले कपड़ो से दूर बस मौके की तलाश में रहते हैं.जैसा की इस घटना में भी हुआ।
बलात्कारी के संबंध में हमारा यह कहना है की भले ही बलात्कार की सज़ा पहले से ज्यादा कठोर बना दी गई है फिर भी बलात्कारी का सर्व प्रथम अंग भंग कर देना चाहिए। मुकदमा तो चलता रहेगा लेकिन बाकि सज़ा मिलने तक उसे पीड़िता की भांति घिनौना एहसास जिंदगी भर तो रहेगा। खुद की दृष्टि में और समाज की दृस्टि में अंग भंग का दंश उसे झेलना तो पड़ेगा। देखने में आता है की बलात्कारी जेल में मौज मस्ती से रहता है सालों तक मुकदमा चलता है। आप खुद ही अंदाजा लगा ले की देश में जहां लगभग तीस हज़ार बलात्कार प्रति वर्ष हो रहे हो उनमें से कितनो को फांसी हुई। शर्मनाक है ऐसा होना। * सुनील जैन राना *
शुक्रवार, 29 नवंबर 2019
एनपीए और सब्सिडी देश के लिए घातक
November 29, 2019 • सुनील जैन राना • जनहित
बैंक अधिकारियों ,कॉरपोरेट्स एवं नेताओ की मिलीभगत से बांटा गया लोन एनपीए हो ही जाता है। पिछले दशक में यूपीए 2 में इस प्रकार के लोन बहुतायत में दिए गए। लाखों करोड़ की धनराशि के लोन आपसी मिलीभगत से बिना सुरक्षा गारंटी के दे दिए गए। मोदी सरकार में ऐसे लोन लेने वाली लगभग दो लाख फर्जी कंपनियों को बंद कर दिया। लेकिन मोदी सरकार के पिछले पांच सालों के कार्यकाल में भी बैंको का एनपीए कम होने के बजाय बढ़ा ही है। हालांकि बताया जाता है की लगभग ९ लाख करोड़ के एनपीए में से लगभग एक लाख करोड़ का एनपीए बसूला गया लेकिन अभी भी अधिकांश बैंको के एनपीए में कमी आती दिखाई नहीं दे रही है।
मोदी सरकार द्वारा जनता की सुविधा को दी जा रही सब्सिडी और लघु उद्योगों के लिए बैंको से सस्ती दरों पर दिलवाया जाने वाला लोन अब अर्थव्यवस्था पर भरी पड़ रहा है। मुद्रा योजना के तहत दिए जाने वाले लोन में लगभग ३.२१ लाख करोड़ का एनपीए हो गया है। जिस पर रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एस के जैन ने चिंता जताई है और बैंको को बैड लोन के बारे में आगाह करते हुए चेतावनी भी दी है। मुद्रा योजना में दिया जाने वाले लोन में बाद लोन की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है ,पिछले साल के मुकाबले बाद लोड की धनराशि दुगनी हो गई बताई जा रही है। लोन लेने वाले खातों में लगभग साढ़े तीन लाख खाते डिफ़ॉल्ट हो चुके हैं। ऐसे में जनहित में जारी की गई योजनाएं अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ती दिखाई दे रही हैं।
देश के सरकारी उपक्रम बेचे जा रहे हैं और गरीब जनता के हितार्थ सब्सिडियां बाटी जा रही हैं। हालांकि घाटे में चल रहे उपक्रम जो लगातार देश को फायदा पहुंचाने की बजाय नुक्सान पहुंचा रहे हैं उन्हें बेच देना या बंद कर देने में ही भलाई है। हाल ही में एयर इंडिया इसका ताज़ा उदाहरण है। देश के विकास को धन चाहिए होता है लेकिन एनपीए और सब्सिडी के कारण धन की कमी हो रही है। ऐसे में आम जनता की जरूरत बिजली -पानी -सड़क -शिक्षा और रोजगार सभी प्रभावित होंगे। किसानों का लोन माफ़ करने की परम्परा तो कांग्रेस के समय से ही हो गई थी। अब ऐसी मांग अन्य ग्रामीण जनता भी करने लगी है। लोन माफ़ करने -करवाने की प्रवृति देश के लिए घातक सिद्ध हो रही है। छोटे किसानों को लोन आसानी से मिलता नहीं बड़े किसान जो जमींदार जैसे होते हैं उनकी पैठ होती है। ऐसे बड़े किसान सरकार की सब्सिडी वाली योजनाओ का लाभ उठाते हैं और लोन भी माफ़ करवा लेते हैं। सरकार को इन सब बातों पर विचार करना चाहिए। कोई भी योजना आर्थिक रूप से गरीब और छोटे किसानो के हित को ध्यान में रखकर हो बनानी चाहिए। * सुनील जैन राना *
मोदी सरकार द्वारा जनता की सुविधा को दी जा रही सब्सिडी और लघु उद्योगों के लिए बैंको से सस्ती दरों पर दिलवाया जाने वाला लोन अब अर्थव्यवस्था पर भरी पड़ रहा है। मुद्रा योजना के तहत दिए जाने वाले लोन में लगभग ३.२१ लाख करोड़ का एनपीए हो गया है। जिस पर रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एस के जैन ने चिंता जताई है और बैंको को बैड लोन के बारे में आगाह करते हुए चेतावनी भी दी है। मुद्रा योजना में दिया जाने वाले लोन में बाद लोन की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है ,पिछले साल के मुकाबले बाद लोड की धनराशि दुगनी हो गई बताई जा रही है। लोन लेने वाले खातों में लगभग साढ़े तीन लाख खाते डिफ़ॉल्ट हो चुके हैं। ऐसे में जनहित में जारी की गई योजनाएं अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ती दिखाई दे रही हैं।
देश के सरकारी उपक्रम बेचे जा रहे हैं और गरीब जनता के हितार्थ सब्सिडियां बाटी जा रही हैं। हालांकि घाटे में चल रहे उपक्रम जो लगातार देश को फायदा पहुंचाने की बजाय नुक्सान पहुंचा रहे हैं उन्हें बेच देना या बंद कर देने में ही भलाई है। हाल ही में एयर इंडिया इसका ताज़ा उदाहरण है। देश के विकास को धन चाहिए होता है लेकिन एनपीए और सब्सिडी के कारण धन की कमी हो रही है। ऐसे में आम जनता की जरूरत बिजली -पानी -सड़क -शिक्षा और रोजगार सभी प्रभावित होंगे। किसानों का लोन माफ़ करने की परम्परा तो कांग्रेस के समय से ही हो गई थी। अब ऐसी मांग अन्य ग्रामीण जनता भी करने लगी है। लोन माफ़ करने -करवाने की प्रवृति देश के लिए घातक सिद्ध हो रही है। छोटे किसानों को लोन आसानी से मिलता नहीं बड़े किसान जो जमींदार जैसे होते हैं उनकी पैठ होती है। ऐसे बड़े किसान सरकार की सब्सिडी वाली योजनाओ का लाभ उठाते हैं और लोन भी माफ़ करवा लेते हैं। सरकार को इन सब बातों पर विचार करना चाहिए। कोई भी योजना आर्थिक रूप से गरीब और छोटे किसानो के हित को ध्यान में रखकर हो बनानी चाहिए। * सुनील जैन राना *
गुरुवार, 28 नवंबर 2019
बम फोड़कर मार डालो ?
November 28, 2019 • सुनील जैन राना
कभी -कभी कोई समस्या इतनी दुष्वार हो जाती है जिससे निपटने में सरकारी और गैरसरकारी सभी अमले फेल हो जाते हैं। ऐसी ही एक समस्या प्रदूषण की गहरा रही है। दिल्ली एनसीआर समेत अनेक राज्यों में प्रदूषण का विकराल रूप जनता के स्वास्थ से खिलवाड़ कर रहा है और सब मूक दर्शक बने से देख रहे हैं कर कुछ भी नहीं पा रहे हैं।
इसी प्रदूषण के विकराल रूप से चिंतित माननीय सुप्रीम कोर्ट भी आहत है। कई बार राज्य सरकारों और केंद्र सरकारों को इससे निपटने की चेतावनी देने के बाद भी सुधार न होने पर आहत होकर ऐसा कह बैठे की लोगो को गैस चैंबर में मारने की बजाय एक बार में ही बम फोड़कर मार डालो ?प्रदूषण पर जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिक दीपक गुप्ता की पीठ प्रदूषण मामले की जांच कर रही है।
न्यायालयों में बैठे जज भी कभी -कभी देशहित में इतना चिंतित हो जाते हैं की उनके अंदर से निकले वचन सभी को जागरूक करने में सहायक हो जाते हैं। हालांकि सच बात यह भी है की इस प्रदूषण के निस्तारण का उपाय माननीय जज महोदय के पास भी नहीं होगा। यदि होता तो कहने की बजाय सरकार को निर्देश दिया जाता की फौरन ऐसा किया जाए। किसानों पर डंडा चला नहीं सकते जो प्रदूषण का मुख्य कारण दिखाई दे रहा है। ऐसे में क्या किया जाए ?
दरअसल प्रदूषण की समस्या जहां एक ओर किसानों द्वारा पुराल जलाने से उतपन्न हो रही है वहीं दूसरी ओर ईंट भट्टे से लेकर अनेक धुआं छोड़ने वाली फैक्ट्रियां भी जिम्मेदार हैं। छोटे स्तर पर प्रातः सड़को पर सफाईकर्मी कबाड़ा एकत्र कर उसमे आग लगाते भी देखने को मिल जायेंगे जिससे धुआँ फ़ैल जाता है। प्राकृतिक धुआं /स्मोग का तो कोई हिसाब ही नहीं है की कब कितना हो जाए। इन सबमें पुराल से उतपन्न धुआं सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है। इस धुंए को रोका जा सकता है। इसमें किसान और सरकार का सहयोग और रचनात्मकता जरूरी है। मैंने एक लेख *पराली नहीं होगी पराई * लिखा था उसमें पराली के रचनात्मक उपयोगों के बारे में इंगित किया था। केंद्र सरकार समेत सभी राज्य सरकारों को पराली के उपयोग को लघु कुटीर उद्योग बना देना चाहिए। पराली से अनेक वस्तुएँ बनाई जा सकती हैं।
प्रदूषण से निपटना ही होगा। इसमें सिर्फ सरकार का नहीं हम सभी का सहयोग आवश्यक है। खासकर किसानों का सहयोग बहुत जरूरी है। सरकारें किसानों के लिए इतना कुछ करती हैं तो किसानों का भी फर्ज बनता है की जनहित में प्रदूषण रोकने में सहयोग करें। कम से कम पराली तो मत जलायें। * सुनील जैन राना *
इसी प्रदूषण के विकराल रूप से चिंतित माननीय सुप्रीम कोर्ट भी आहत है। कई बार राज्य सरकारों और केंद्र सरकारों को इससे निपटने की चेतावनी देने के बाद भी सुधार न होने पर आहत होकर ऐसा कह बैठे की लोगो को गैस चैंबर में मारने की बजाय एक बार में ही बम फोड़कर मार डालो ?प्रदूषण पर जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिक दीपक गुप्ता की पीठ प्रदूषण मामले की जांच कर रही है।
न्यायालयों में बैठे जज भी कभी -कभी देशहित में इतना चिंतित हो जाते हैं की उनके अंदर से निकले वचन सभी को जागरूक करने में सहायक हो जाते हैं। हालांकि सच बात यह भी है की इस प्रदूषण के निस्तारण का उपाय माननीय जज महोदय के पास भी नहीं होगा। यदि होता तो कहने की बजाय सरकार को निर्देश दिया जाता की फौरन ऐसा किया जाए। किसानों पर डंडा चला नहीं सकते जो प्रदूषण का मुख्य कारण दिखाई दे रहा है। ऐसे में क्या किया जाए ?
दरअसल प्रदूषण की समस्या जहां एक ओर किसानों द्वारा पुराल जलाने से उतपन्न हो रही है वहीं दूसरी ओर ईंट भट्टे से लेकर अनेक धुआं छोड़ने वाली फैक्ट्रियां भी जिम्मेदार हैं। छोटे स्तर पर प्रातः सड़को पर सफाईकर्मी कबाड़ा एकत्र कर उसमे आग लगाते भी देखने को मिल जायेंगे जिससे धुआँ फ़ैल जाता है। प्राकृतिक धुआं /स्मोग का तो कोई हिसाब ही नहीं है की कब कितना हो जाए। इन सबमें पुराल से उतपन्न धुआं सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है। इस धुंए को रोका जा सकता है। इसमें किसान और सरकार का सहयोग और रचनात्मकता जरूरी है। मैंने एक लेख *पराली नहीं होगी पराई * लिखा था उसमें पराली के रचनात्मक उपयोगों के बारे में इंगित किया था। केंद्र सरकार समेत सभी राज्य सरकारों को पराली के उपयोग को लघु कुटीर उद्योग बना देना चाहिए। पराली से अनेक वस्तुएँ बनाई जा सकती हैं।
प्रदूषण से निपटना ही होगा। इसमें सिर्फ सरकार का नहीं हम सभी का सहयोग आवश्यक है। खासकर किसानों का सहयोग बहुत जरूरी है। सरकारें किसानों के लिए इतना कुछ करती हैं तो किसानों का भी फर्ज बनता है की जनहित में प्रदूषण रोकने में सहयोग करें। कम से कम पराली तो मत जलायें। * सुनील जैन राना *
बुधवार, 27 नवंबर 2019
सड़ गया प्याज
November 27, 2019 • सुनील जैन राना • जन समस्या
जनता प्याज के आँसू रो रही है और सरकारी गोदामों में हज़ारों टन प्याज सड़ने की कगार पर है। समाचारों से पता चल रहा है की सरकारी गोदामों में लगभग २८ हज़ार मीट्रिक टन प्याज का आवंटन न होने के कारण सड़ने की कगार पर है।
हमारे दश की यही विडंबना है। दशकों से यही सुनने में आता था की FCI के गोदामों में अनाज की बेकदरी हो रही है ,खुले में रखा अनाज भीग जाने के कारण सड़ गया है। लेकिन इतने बड़े पैमाने पर प्याज की किल्ल्त के चलते प्याज ही सड़ जाए तो इसे लापरवाही -अनहोनी या तालमेल में कमी ही कहा जाएगा।
दरअसल प्याज की बढ़ती कीमतों के चलते सरकारी स्तर पर प्याज का बफ़र स्टॉक जमा किया गया था जिसे बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने हेतु खुले बाजार में बेचा जा सके। लेकिन राज्य सरकारों से तालमेल की कमी के चलते प्याज गोदामों में ही सड़ गया है। ऐसा होना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। एक तरफ आम जनता प्याज की बढ़ती कीमतों के कारण परेशान है तो दूसरी तरफ सरकारी व्यवस्था में कमी के कारण हज़ारो मीट्रिक टन प्याज सड़ गया है।
मंगलवार, 26 नवंबर 2019
सहारनपुर की जीव दया के क्षेत्र में दूर दूर तक प्रसिद्ध संस्था श्री दया सिंधु जीव रक्षा केंद्र के विषय में दैनिक जागरण में प्रकाशित समाचार पढ़कर बहुत आनंद की अनुभूति हुई। लेकिन यह भी सत्य है की मैं सुनील जैन राना (संयोजक ) बिना किसी स्वार्थ के संस्था के सभी जीव दया कार्यो में सदैव समर्पित भाव से सेवा करता हूँ। दैनिक जागरण से आये श्री अजय सक्सेना जी जो नगर और आस पास के क्षेत्रों में निःस्वार्थ सेवा में लगे लोगो की छानबीन कर उनके बारे में आलेख बनाकर दैनिक जागरण में प्रकाशित कराते हैं मैं उनका बहुत आभारी हूँ।
सोमवार, 25 नवंबर 2019
शनिवार, 23 नवंबर 2019
टोल बनेगा फास्टैग लेकिन ?
November 23, 2019 • सुनील जैन राना
गडकरी जी के नेत्तृत्व में देश भर में सड़कों का जाल बिछ रहा है। चौड़ी सड़कें -शानदार सड़कें बन रही हैं। साथ ही भारी भरकम टोल भी बसूला जाने लगा है। कुछ जगहों पर टोल की राशि ठीक लगती है तो कुछ जगहों पर टोल टैक्स की धनराशि ज्यादा है। सहारनपुर से मुजफ्फरनगर मार्ग के बीच में टोल टैक्स बहुत ज्यादा है। एक तरफ के १३० रूपये ले रहे हैं तो दोनों तरफ के १९० रूपये लिये जा रहे हैं। मेरठ वाले टोल पर दोनों तरफ का टोल देते नहीं है ऐसा क्यों है ?
अब टोल का नया सिस्टम फास्टैग लागू होने वाला है। जिसमें नगद लेनदेन से मुक्ति मिल जायेगी और वाहन पर लगी चिप से टोल आपके फास्टैग कहते से कट जायेगा। इसके लिये सभी टोल पर फास्टैग दिये जा रहे हैं। अभी तो फास्टैग मुफ्त मिल रहे हैं केवल इनमें कराया रिचार्ज मूल्य देना पड़ रहा है लेकिन एक दिसंबर के बाद वाहन स्वामी से इसका मूल्य और १५० रूपये सिक्योरटी चार्ज की जायेगी अन्यथा टोल लाईन में प्रवेश करने पर दुगना टोल बसूला जायेगा ऐसी जानकारी प्राप्त हुई है।
टोलटैक्स का भुगतान कार्ड से होना तो अच्छा ही है लेकिन भारत के छोटे शहर के वाहन स्वामी जो बहुत कम अपने वाहन से कहीं दूर जाते हैं उनके लिए यह प्रणाली कठिन प्रतीत हो रही है। ऊपर से फास्टैग ना लेने पर दुगना टोलटैक्स लगना भी जायज नहीं लग रहा है। अनेक वाहन स्वामियों का कहना है की फास्टैग की अनिवार्यता नहीं होनी चाहिए। जो लेना चाहे ले और उसके लिए अलग लाइने चिंह्नित हो जिनसे फास्टैग वाला सीधे जल्दी से निकल जाए। अनेको जगह पहले ही टोलटैक्स बहुत ज्यादा है। वाहन स्वामी वाहन लेते समय ही रोड़टैक्स देता है फिर ऊपर से टोलटैक्स लिया जाना ही ज्यादती है। इसमें भी अब नया कानून फास्टैग को अनिवार्य बनाना बेमानी है। * सुनील जैन राना *
अब टोल का नया सिस्टम फास्टैग लागू होने वाला है। जिसमें नगद लेनदेन से मुक्ति मिल जायेगी और वाहन पर लगी चिप से टोल आपके फास्टैग कहते से कट जायेगा। इसके लिये सभी टोल पर फास्टैग दिये जा रहे हैं। अभी तो फास्टैग मुफ्त मिल रहे हैं केवल इनमें कराया रिचार्ज मूल्य देना पड़ रहा है लेकिन एक दिसंबर के बाद वाहन स्वामी से इसका मूल्य और १५० रूपये सिक्योरटी चार्ज की जायेगी अन्यथा टोल लाईन में प्रवेश करने पर दुगना टोल बसूला जायेगा ऐसी जानकारी प्राप्त हुई है।
टोलटैक्स का भुगतान कार्ड से होना तो अच्छा ही है लेकिन भारत के छोटे शहर के वाहन स्वामी जो बहुत कम अपने वाहन से कहीं दूर जाते हैं उनके लिए यह प्रणाली कठिन प्रतीत हो रही है। ऊपर से फास्टैग ना लेने पर दुगना टोलटैक्स लगना भी जायज नहीं लग रहा है। अनेक वाहन स्वामियों का कहना है की फास्टैग की अनिवार्यता नहीं होनी चाहिए। जो लेना चाहे ले और उसके लिए अलग लाइने चिंह्नित हो जिनसे फास्टैग वाला सीधे जल्दी से निकल जाए। अनेको जगह पहले ही टोलटैक्स बहुत ज्यादा है। वाहन स्वामी वाहन लेते समय ही रोड़टैक्स देता है फिर ऊपर से टोलटैक्स लिया जाना ही ज्यादती है। इसमें भी अब नया कानून फास्टैग को अनिवार्य बनाना बेमानी है। * सुनील जैन राना *
गुरुवार, 21 नवंबर 2019
क्यों बताते हो फार्मूला ?
November 21, 2019 • सुनील जैन राना • विचार
देश भर में मिलावटी खाद्य पदार्थ बनाने -बेचने पर खाद्य विभाग द्वारा अनेको पाबंदिया लगाने के बाद भी मिलावटी खाद्य पदार्थ धड़ल्ले से बन रहे हैं और बिक रहे हैं। खाद्य विभाग रजिस्टर्ड कंपनियों के खाद्य पदार्थो की जांच करती है जबकि सभी बाज़ारो में खुले घी -तेल -मसाले धड़ल्ले से बिकते दिखाई देते हैं।
मिलावटी खाद्य पदार्थो की बिक्री और बनाने पर मिडिया भी बहुत जागरूक रहता है। अक्सर तैयोहारों के समय मिडिया जनहित में जनता को सचेत करता है की मिलावटी खाद्य पदार्थो से बचें। खासकर त्योहारों के समय ही खाद्य विभाग मिलावटी खाद्य पदार्थो की धरपकड़ अभियान चलाकर जनता को मिलावटी वस्तुओं से राहत दिलवाते हैं।
इस सब कार्य में मिडिया की अहम भूमिका रहती है लेकिन इसमें विचारनीय बात यह है की खाद्य विभाग द्वारा पुलिस की सहायता से किसी भी मिलावटी खाद्य पदार्थ बनाने वाले कारखाने में बन रहा मिलावटी सामान तो दिखाते ही हैं साथ ही वहां कार्य कर रहे लोगो से मिलावट करने की विधि पूछकर बनाते हुए दिखा देते हैं। यह बहुत ही घातक कदम होता है।
हाल ही में टीवी के एक चैनल पर राजस्थान के अलवर में मिलावटी देशी घी बनाने का कारखाना पकड़ा गया। जहां पर मिलावटी देशी घी बनाकर विभिन्न कंपनियों के डब्बों में भरकर बाजार भेजा जा रहा था। ऐसी मिलावट करने वाले पर कठोर कार्यवाही होनी ही चाहिये। लेकिन उस स्थान पर पकड़े गए लोगो से मिलावटी देशी घी कैसे बनाया जाता है पुनः बनवाकर दिखाया गया जो बहुत ही घातक बात है।
देश में बेरोजगारों की कमी नहीं है। रोजगार न मिलने से अनेको लोग गलत कार्य करने से भी नहीं चूकते। ऐसे में कम लागत में ज्यादा मुनाफ़े वाले मिलावटी खाद्य पदार्थ के बनाने का फार्मूला मिलते ही कुछ बेरोजगार इसी कार्य को रोजगार बना लेते हैं। देश में सिंथेटिक दूध जो पहले कम ही बनता था मिडिया में बनाने के तरीके दिखाने के बाद ज्यादा बनने -बिकने लगा है। ऐसे ही अन्य मिलावटी खाद्य पदार्थ अब ज्यादा मांग के समय ज्यादा मात्रा में बनाये जाने लगे हैं। मिलावटी खाद्य पदार्थ ही नहीं बल्कि कभी -कभी देशी बम -असले की कोई फैक्ट्री पकड़ी जाती है तो बम कैसे बनाते थे यह भी दिखा दिया जाता है?
जनहित में जिम्मेदार मिडिया को किसी भी गलत कार्य के करने -बनाने के तरीके को नहीं बताना -दिखाना चाहिये। ऐसा करने से असामाजिक तत्वों को घर बैठे गैर क़ानूनी रोजगार उपलभ्ध हो जाता है। * सुनील जैन राना *
मिलावटी खाद्य पदार्थो की बिक्री और बनाने पर मिडिया भी बहुत जागरूक रहता है। अक्सर तैयोहारों के समय मिडिया जनहित में जनता को सचेत करता है की मिलावटी खाद्य पदार्थो से बचें। खासकर त्योहारों के समय ही खाद्य विभाग मिलावटी खाद्य पदार्थो की धरपकड़ अभियान चलाकर जनता को मिलावटी वस्तुओं से राहत दिलवाते हैं।
इस सब कार्य में मिडिया की अहम भूमिका रहती है लेकिन इसमें विचारनीय बात यह है की खाद्य विभाग द्वारा पुलिस की सहायता से किसी भी मिलावटी खाद्य पदार्थ बनाने वाले कारखाने में बन रहा मिलावटी सामान तो दिखाते ही हैं साथ ही वहां कार्य कर रहे लोगो से मिलावट करने की विधि पूछकर बनाते हुए दिखा देते हैं। यह बहुत ही घातक कदम होता है।
हाल ही में टीवी के एक चैनल पर राजस्थान के अलवर में मिलावटी देशी घी बनाने का कारखाना पकड़ा गया। जहां पर मिलावटी देशी घी बनाकर विभिन्न कंपनियों के डब्बों में भरकर बाजार भेजा जा रहा था। ऐसी मिलावट करने वाले पर कठोर कार्यवाही होनी ही चाहिये। लेकिन उस स्थान पर पकड़े गए लोगो से मिलावटी देशी घी कैसे बनाया जाता है पुनः बनवाकर दिखाया गया जो बहुत ही घातक बात है।
देश में बेरोजगारों की कमी नहीं है। रोजगार न मिलने से अनेको लोग गलत कार्य करने से भी नहीं चूकते। ऐसे में कम लागत में ज्यादा मुनाफ़े वाले मिलावटी खाद्य पदार्थ के बनाने का फार्मूला मिलते ही कुछ बेरोजगार इसी कार्य को रोजगार बना लेते हैं। देश में सिंथेटिक दूध जो पहले कम ही बनता था मिडिया में बनाने के तरीके दिखाने के बाद ज्यादा बनने -बिकने लगा है। ऐसे ही अन्य मिलावटी खाद्य पदार्थ अब ज्यादा मांग के समय ज्यादा मात्रा में बनाये जाने लगे हैं। मिलावटी खाद्य पदार्थ ही नहीं बल्कि कभी -कभी देशी बम -असले की कोई फैक्ट्री पकड़ी जाती है तो बम कैसे बनाते थे यह भी दिखा दिया जाता है?
जनहित में जिम्मेदार मिडिया को किसी भी गलत कार्य के करने -बनाने के तरीके को नहीं बताना -दिखाना चाहिये। ऐसा करने से असामाजिक तत्वों को घर बैठे गैर क़ानूनी रोजगार उपलभ्ध हो जाता है। * सुनील जैन राना *
सोमवार, 18 नवंबर 2019
रविवार, 17 नवंबर 2019
कैसे बचेगा गोधन ?
November 17, 2019 • सुनील जैन राना
भारत देश ऋषि -मुनियों का देश है। यहां की विभिन्न संस्कृति- धर्म -भाषाएँ सभी का मन मोह लेती हैं। हिन्दू धर्म की बहुतायत के चलते देश में गोमाता की बहुत मान्यता है। यहां गोमाता को पूजा जाता है। देश में हिन्दू और जैन धर्म अनुयायियों ने अनेको गोशालाएं बनवा रखी हैं। अनेक हिन्दू पर्वो पर गाय की पूजा की जाती है।
देश में सरकारी और गैरसरकारी स्तर पर गोशालाओं का निर्माण किया गया है। देश के कई प्रदेशों में आवारा घुमन्तु गोधन के लिए विशेष रूप से गोशालाएं बनवाई जा रही हैं। लेकिन विडंबना की बात यह है की देश में बहुत कम ऐसी गोशालाएं हैं जहां पर रहने वाले गोधन के लिए उचित व्यवस्था है। भोजन -पानी एवं गर्मी -सर्दी से बचाव को शेड बने हैं। अन्यथा तो गोशाला में भी गोधन की हालत ठीक नहीं रहती। कहीं व्यवस्था की कमी है तो कहीं धन की कमी के कारण आश्रित गोधन को भरपेट भोजन यानि घास आदि भी नहीं मिल पा रहा है बरसात के दिनों में अनेको गोशालाओं में पानी भर जाने के कारण अनेको गोधन मृत्यु को प्राप्त हो गए। ऐसा होना बहुत दुःखद है।
कटु सत्य यह है की हिन्दू अनुयायी जिस गोधन की पूजा करते हैं उसके बचाव के लिए प्रयास नहीं करते। कुछ गोशालाओं के बाहर बिक्री के चारे का प्रबंध रहता है। जिसका फायदा वे लोग उठाते हैं जिन्हे उनके पंडित जी ने किसी समस्या के उपाय में गाय को घास खिलाना बताया होता है। बाकी बहुत कम लोग अपने पास से गोधन के लिए भोजन आदि देने वाले होते हैं। कुछ गोशालाएं साधू महाराजो की होती हैं। जिनके यहां सिर्फ दुधारू गोधन ही देखने को मिलता है। बाँझ -असहाय गोधन से उन्हें परहेज़ होता है। अनेक गोकथा कहने वाले विद्द्वान गोकथा बाँचने के लाखों रूपये लेते हैं और गोभक्तो से दुधारू गोधन एवं जमीन आदि गोशाला हेतु लेकर पुण्य कमाते दिखाई दे जाते हैं। बाँझ -आवारा -असहाय -बछड़ा -बैल आदि से उन्हें नफरत होती है। कहने का तातपर्य यह है की कथित गोभक्त और गोरक्षक ऋषि मुनि भी सिर्फ दुधारू गोधन को चाहते हैं। उसकी पूजा करते हैं। अन्य गोधन का क्या होगा इससे उन्हें कोई मतलब नहीं होता। बछड़ी को पाल लेते हैं बछड़े को बेच देते हैं। यह भी नहीं देखते की उसका खरीददार कौन है यानि की कसाई ही होता है ?
ऐसा धर्म कर्म किस काम का जिसमें सिर्फ अपने उपयोगी गोधन की पूजा हो बाकि कटे तो कटे। गोधन को मानने वालो को चाहिए की सम्पूर्ण गोधन की रक्षा हो। सिर्फ गोशालाएं बनवा देने से कोई फायदा नहीं है। सरकारी स्तर पर भी कुछ ही सहयोग मिल सकता है। तन -मन -धन से देखभाल तो गो प्रेमियों को ही करनी पड़ेगी। तभी गोधन बच सकेगा। अनेको गोशालाओं में वहां के मैनेजर आदि ही भ्र्ष्ट होते हैं। वे गोधन के हिस्से का खुद खा जाते हैं। इतना बड़ा महापाप है यह। हम सभी को गोधन के प्रति आस्था है तो थोड़ा -थोड़ा योगदान करना ही होगा तभी बचेगा गोधन। *सुनील जैन राना *
देश में सरकारी और गैरसरकारी स्तर पर गोशालाओं का निर्माण किया गया है। देश के कई प्रदेशों में आवारा घुमन्तु गोधन के लिए विशेष रूप से गोशालाएं बनवाई जा रही हैं। लेकिन विडंबना की बात यह है की देश में बहुत कम ऐसी गोशालाएं हैं जहां पर रहने वाले गोधन के लिए उचित व्यवस्था है। भोजन -पानी एवं गर्मी -सर्दी से बचाव को शेड बने हैं। अन्यथा तो गोशाला में भी गोधन की हालत ठीक नहीं रहती। कहीं व्यवस्था की कमी है तो कहीं धन की कमी के कारण आश्रित गोधन को भरपेट भोजन यानि घास आदि भी नहीं मिल पा रहा है बरसात के दिनों में अनेको गोशालाओं में पानी भर जाने के कारण अनेको गोधन मृत्यु को प्राप्त हो गए। ऐसा होना बहुत दुःखद है।
कटु सत्य यह है की हिन्दू अनुयायी जिस गोधन की पूजा करते हैं उसके बचाव के लिए प्रयास नहीं करते। कुछ गोशालाओं के बाहर बिक्री के चारे का प्रबंध रहता है। जिसका फायदा वे लोग उठाते हैं जिन्हे उनके पंडित जी ने किसी समस्या के उपाय में गाय को घास खिलाना बताया होता है। बाकी बहुत कम लोग अपने पास से गोधन के लिए भोजन आदि देने वाले होते हैं। कुछ गोशालाएं साधू महाराजो की होती हैं। जिनके यहां सिर्फ दुधारू गोधन ही देखने को मिलता है। बाँझ -असहाय गोधन से उन्हें परहेज़ होता है। अनेक गोकथा कहने वाले विद्द्वान गोकथा बाँचने के लाखों रूपये लेते हैं और गोभक्तो से दुधारू गोधन एवं जमीन आदि गोशाला हेतु लेकर पुण्य कमाते दिखाई दे जाते हैं। बाँझ -आवारा -असहाय -बछड़ा -बैल आदि से उन्हें नफरत होती है। कहने का तातपर्य यह है की कथित गोभक्त और गोरक्षक ऋषि मुनि भी सिर्फ दुधारू गोधन को चाहते हैं। उसकी पूजा करते हैं। अन्य गोधन का क्या होगा इससे उन्हें कोई मतलब नहीं होता। बछड़ी को पाल लेते हैं बछड़े को बेच देते हैं। यह भी नहीं देखते की उसका खरीददार कौन है यानि की कसाई ही होता है ?
ऐसा धर्म कर्म किस काम का जिसमें सिर्फ अपने उपयोगी गोधन की पूजा हो बाकि कटे तो कटे। गोधन को मानने वालो को चाहिए की सम्पूर्ण गोधन की रक्षा हो। सिर्फ गोशालाएं बनवा देने से कोई फायदा नहीं है। सरकारी स्तर पर भी कुछ ही सहयोग मिल सकता है। तन -मन -धन से देखभाल तो गो प्रेमियों को ही करनी पड़ेगी। तभी गोधन बच सकेगा। अनेको गोशालाओं में वहां के मैनेजर आदि ही भ्र्ष्ट होते हैं। वे गोधन के हिस्से का खुद खा जाते हैं। इतना बड़ा महापाप है यह। हम सभी को गोधन के प्रति आस्था है तो थोड़ा -थोड़ा योगदान करना ही होगा तभी बचेगा गोधन। *सुनील जैन राना *
शुक्रवार, 15 नवंबर 2019
राजनीति में सब कुछ चलता है
November 15, 2019 • सुनील जैन राना
जी हाँ , राजनीति में सब कुछ चलता है। कम से कम भारतीय राजनीति में तो चल ही रहा है। सबकुछ से तातपर्य सत्ता पाने को अपने सिद्धांतो को गिरवी रख देना या भूल जाना। यूँ तो सरकार गिरने - गिराने का खेल कांग्रेस दशकों से खेलती आयी है। अब कांग्रेस सिमट गई है और बीजेपी सत्ता में है तो कई राज्यों में बीजेपी ने भी यह खेल खेला। कश्मीर और हरियाणा में बीजेपी ने अपनी विरोधी पार्टियों से गठबंधन कर सरकार बनाई।
अभी हाल ही में महाराष्ट्र की राजनीति में भी कुछ ऐसा ही तूफ़ान आया हुआ है। वहां भी सत्ता प्राप्ति को संग्राम चल रहा है। इस संग्राम में बीजेपी -शिवसेना का चुनाव पूर्व का गठबंधन सीएम की कुर्सी के लिए टूट गया। जिसपर सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी ने अपना बहुमत पूर्ण न देखकर सरकार बनाने का दावा छोड़ दिया। सत्ता पाने को और पुत्र मोह में डूबी शिवसेना ने अपने धुरंधर विरोधियों के साथ सरकार बनाने की कवायद तेज़ कर दी है। उध्दव ठाकरे अपनी विरोधी पार्टियों के प्रमुखों को लुभाने में लग गए हैं। जिसमें कांग्रेस और एनसीपी प्रमुख हैं।
इसी को कहते हैं की सत्ता पाने को राजनीति में सबकुछ चलता है। शिवसेना के प्रमुख बालाजी ठाकरे जिन्होनें कांग्रेस के विरुध्द चुनाव लड़े और कहा की कांग्रेस के आगे तो हिजड़े झुकते हैं आज उन्ही के पुत्र , पुत्रमोह में झुके जा रहे हैं। बालाजी ठाकरे की शिवसेना जो हिंदुत्व के मुद्दे पर कायम रही आज उससे विमुख हो रही है। वहीं दूसरी ओर अभी कांग्रेस का रुख़ साफ़ नहीं हो रहा है क्योंकि कांग्रेस का कुछ मुस्लिम वोट बैंक शिवसेना के साथ जाने को तैयार नहीं हो रहा है।
बालाजी ठाकरे की शिवसेना की शिवसेना जिसने बाबरी मस्जिद तोड़ने पर ख़ुशी जताई थी आज मंदिर बनाने वालो का साथ छोड़कर राम विरोधियों के साथ सरकार बनाने जा रही है। इसे कहते हैं सत्ता की भूख। उध्दव ठाकरे महाराष्ट्र जैसे विशाल राज्य को राजनीति से अनजान -नासमझ पुत्र के हाथों में देकर कठपुतली की तरह चलना चाह रहे हैं जिसमे राजनीति के धुरंधर कांग्रेस और एनसीपी भी बराबर के हकदार होंगे। पता नहीं अब यह बेमेल गठबंधन बनेगा भी या नहीं ,बनेगा तो चलेगा भी या नहीं। सबसे बड़ी बात तो जनता की है जो गर्व से कहती है अपने को की हम किसके पक्ष में हैं या किसके विरोधी हैं वे सब अपने को असहाय सा महसूस कर रहे हैं। लोकतंत्र को कहते हैं डेमोक्रेसी -डेमोक्रेसी में हो रही जनता की ऐसी की तैसी।
अभी हाल ही में महाराष्ट्र की राजनीति में भी कुछ ऐसा ही तूफ़ान आया हुआ है। वहां भी सत्ता प्राप्ति को संग्राम चल रहा है। इस संग्राम में बीजेपी -शिवसेना का चुनाव पूर्व का गठबंधन सीएम की कुर्सी के लिए टूट गया। जिसपर सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी ने अपना बहुमत पूर्ण न देखकर सरकार बनाने का दावा छोड़ दिया। सत्ता पाने को और पुत्र मोह में डूबी शिवसेना ने अपने धुरंधर विरोधियों के साथ सरकार बनाने की कवायद तेज़ कर दी है। उध्दव ठाकरे अपनी विरोधी पार्टियों के प्रमुखों को लुभाने में लग गए हैं। जिसमें कांग्रेस और एनसीपी प्रमुख हैं।
इसी को कहते हैं की सत्ता पाने को राजनीति में सबकुछ चलता है। शिवसेना के प्रमुख बालाजी ठाकरे जिन्होनें कांग्रेस के विरुध्द चुनाव लड़े और कहा की कांग्रेस के आगे तो हिजड़े झुकते हैं आज उन्ही के पुत्र , पुत्रमोह में झुके जा रहे हैं। बालाजी ठाकरे की शिवसेना जो हिंदुत्व के मुद्दे पर कायम रही आज उससे विमुख हो रही है। वहीं दूसरी ओर अभी कांग्रेस का रुख़ साफ़ नहीं हो रहा है क्योंकि कांग्रेस का कुछ मुस्लिम वोट बैंक शिवसेना के साथ जाने को तैयार नहीं हो रहा है।
बालाजी ठाकरे की शिवसेना की शिवसेना जिसने बाबरी मस्जिद तोड़ने पर ख़ुशी जताई थी आज मंदिर बनाने वालो का साथ छोड़कर राम विरोधियों के साथ सरकार बनाने जा रही है। इसे कहते हैं सत्ता की भूख। उध्दव ठाकरे महाराष्ट्र जैसे विशाल राज्य को राजनीति से अनजान -नासमझ पुत्र के हाथों में देकर कठपुतली की तरह चलना चाह रहे हैं जिसमे राजनीति के धुरंधर कांग्रेस और एनसीपी भी बराबर के हकदार होंगे। पता नहीं अब यह बेमेल गठबंधन बनेगा भी या नहीं ,बनेगा तो चलेगा भी या नहीं। सबसे बड़ी बात तो जनता की है जो गर्व से कहती है अपने को की हम किसके पक्ष में हैं या किसके विरोधी हैं वे सब अपने को असहाय सा महसूस कर रहे हैं। लोकतंत्र को कहते हैं डेमोक्रेसी -डेमोक्रेसी में हो रही जनता की ऐसी की तैसी।
गुरुवार, 14 नवंबर 2019
JNU में सब कुछ ठीक नहीं है
November 14, 2019 • सुनील जैन राना
देश की जानी मानी जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी JNU क्यों अक्सर विवादों का केंद्र बनी रहती है ? क्या JNU में एक अलग विचारधारा पनप रही है जिसे वामपंथी विचारधारा या अलगाववादी विचारधारा भी कह सकते हैं ?
ऐसा लगता है की वास्तवमे JNU एक अच्छा शिक्षण संस्थान होने के साथ साथ कुछ देश विरोधी विचारधारा का अड्डा भी बन गया है। JNU में पढ़ने वाले कुछ छात्र और शिक्षक शिक्षा की ओर ध्यान न देकर देश विरोधी गतिविधियों में लगे रहते हैं। जो कुछ अच्छे अवसरों पर देशहित की बात न कर देश विरोधी बात करते हैं जैसे भारत तेरे टुकड़े होंगे आदि वक्तव्य।
दरअसल देश की शुरुवाती नेतागिरी स्कूल -कॉलेजों से ही प्रारम्भ होती है। छात्र नेता बनकर छात्रों के हित की बात न कर देश की राजनीति में उलझे रहना छात्र नेताओं का मुख्य कार्य हो गया है। इसपर भी सोने में सुहागा जब हो जाता है जब इन छात्र नेताओ को देश की राजनीतिक पार्टियों का समर्थन मिलना शुरू हो जाता है। बस यहीं से देश को जोड़ने या तोड़ने की राजनीति शुरू हो जाती है। यही हो रहा है JNU में।
ऐसे में ऐसे किसी भी शिक्षक संस्थान के प्रभारी एवं उसे मदद देने वाली सरकार का कर्तव्य हो जाता है की उनके संस्थान में शिक्षा सर्वोपरि हो। शिक्षा के अतिरिक्त नेतागिरी -दादागिरी करने वाले छात्रों पर पूर्ण निगरानी रहते हुए उन्हें सचेत करते रहना भी चाहिये। सबसे ज्यादा जरूरी कार्य जो अब तक नहीं हुआ अब करना ही होगा। JNU में सब्सिडी से पढ़ रहे वो छात्र जो बार -बार फेल हो जाते हैं या जानबूझ कर हो रहे हैं उन्हें निकाल बाहर करना ही होगा। ऐसे ही छात्र संस्थान में राजनीतिक दलों के सम्पर्क में आकर गैर क़ानूनी कार्य करने लगते हैं।
जनता के धन से सब्सिडी से पढ़ रहे जो छात्र इतना भी नहीं पढ़ते की पास हो जाये तो यह साफ़ जाहिर है की उनका उदेश्य पढ़ना नहीं बल्कि नेतागिरी करना होता है। ऐसे छात्रों को निकाल बाहर करने में ही अच्छाई है। अभी JNU में ऐसे ही छात्रों के कारण देश विरोधी गतिविधियां हो रही हैं। ऐसे कुछ छात्र एवं शिक्षकों के कारण सम्पूर्ण JNU बदनाम हो रहा है। * सुनील जैन राना *
ऐसा लगता है की वास्तवमे JNU एक अच्छा शिक्षण संस्थान होने के साथ साथ कुछ देश विरोधी विचारधारा का अड्डा भी बन गया है। JNU में पढ़ने वाले कुछ छात्र और शिक्षक शिक्षा की ओर ध्यान न देकर देश विरोधी गतिविधियों में लगे रहते हैं। जो कुछ अच्छे अवसरों पर देशहित की बात न कर देश विरोधी बात करते हैं जैसे भारत तेरे टुकड़े होंगे आदि वक्तव्य।
दरअसल देश की शुरुवाती नेतागिरी स्कूल -कॉलेजों से ही प्रारम्भ होती है। छात्र नेता बनकर छात्रों के हित की बात न कर देश की राजनीति में उलझे रहना छात्र नेताओं का मुख्य कार्य हो गया है। इसपर भी सोने में सुहागा जब हो जाता है जब इन छात्र नेताओ को देश की राजनीतिक पार्टियों का समर्थन मिलना शुरू हो जाता है। बस यहीं से देश को जोड़ने या तोड़ने की राजनीति शुरू हो जाती है। यही हो रहा है JNU में।
ऐसे में ऐसे किसी भी शिक्षक संस्थान के प्रभारी एवं उसे मदद देने वाली सरकार का कर्तव्य हो जाता है की उनके संस्थान में शिक्षा सर्वोपरि हो। शिक्षा के अतिरिक्त नेतागिरी -दादागिरी करने वाले छात्रों पर पूर्ण निगरानी रहते हुए उन्हें सचेत करते रहना भी चाहिये। सबसे ज्यादा जरूरी कार्य जो अब तक नहीं हुआ अब करना ही होगा। JNU में सब्सिडी से पढ़ रहे वो छात्र जो बार -बार फेल हो जाते हैं या जानबूझ कर हो रहे हैं उन्हें निकाल बाहर करना ही होगा। ऐसे ही छात्र संस्थान में राजनीतिक दलों के सम्पर्क में आकर गैर क़ानूनी कार्य करने लगते हैं।
जनता के धन से सब्सिडी से पढ़ रहे जो छात्र इतना भी नहीं पढ़ते की पास हो जाये तो यह साफ़ जाहिर है की उनका उदेश्य पढ़ना नहीं बल्कि नेतागिरी करना होता है। ऐसे छात्रों को निकाल बाहर करने में ही अच्छाई है। अभी JNU में ऐसे ही छात्रों के कारण देश विरोधी गतिविधियां हो रही हैं। ऐसे कुछ छात्र एवं शिक्षकों के कारण सम्पूर्ण JNU बदनाम हो रहा है। * सुनील जैन राना *
सोमवार, 11 नवंबर 2019
रविवार, 10 नवंबर 2019
शुक्रवार, 8 नवंबर 2019
प्याज की बढ़ती कीमतें -फायदा किसे ?
November 8, 2019 • सुनील जैन राना
देश के कई राज्यों में प्याज की बढ़ती कीमतों से आम जनता परेशान है। सरकार भी प्याज की कीमतों में कमी कराने को जागरूक है और अनेको उपायों में लगी है। सरकार द्वारा जहां एक ओर प्याज के निर्यात पर पाबंदी लगा दी है वहीं दूसरी ओर प्याज का आयात करने को उचित कदम उठाये जा रहे हैं।
प्याज के मामले में चिंताजनक बात यह की ऐसा क्या हो जाता है कुछ ही महीनों में की जिस प्याज का कोई खरीदार नहीं होता अचानक उसके बेहताशा भाव क्यों बढ़ जाते हैं ? इन बढ़े भावो का फायदा किसे मिलता है ?क्यों किसान हर बार अपने को ठगा सा महसूस करता है ?
इन सब बातो का एक ही उत्तर नज़र में आता है वह है बिचौलिया। हर बार बिचौलिए ही सस्ते में वस्तु खरीदकर थोड़े दिन बाद उसकी किल्ल्त पैदाकर मनमाने दामों पर बेचते हैं। आज तक देश के सभी राज्यों में विभिन्न सरकारे इन बिचौलियों पर अंकुश लगाने में कामयाब नहीं हो पाई हैं। किसान को तो सदैव अपनी फसल का न्यूनतम दाम ही मिलता रहा है। हालांकि अब कुछ किसान भी धनवान हो गए हैं और बाजार की स्थिति के अनुसार वस्तु को सस्ते दामों पर न बेचकर दाम बढ़ने पर ही बेचते हैं। लेकिन ऐसे किसानो की संख्या बहुत कम है। पिछले सालों में दालों के दामों में भी ऐसे ही बेहताशा बढ़ोतरी हुई थी जिस पर सरकार को खासी मस्सकत करनी पड़ी थी।
देश के किसानो को खुशहाल बनाने के लिये बिचौलियों पर अंकुश लगाना बहुत जरूरी है। इसके लिए सरकार और किसानों को साझा कार्यक्रम बनाना होगा तभी खाद्य पदार्थो की कीमतें एकरूप रह सकेंगी। *सुनील जैन राना *
प्याज के मामले में चिंताजनक बात यह की ऐसा क्या हो जाता है कुछ ही महीनों में की जिस प्याज का कोई खरीदार नहीं होता अचानक उसके बेहताशा भाव क्यों बढ़ जाते हैं ? इन बढ़े भावो का फायदा किसे मिलता है ?क्यों किसान हर बार अपने को ठगा सा महसूस करता है ?
इन सब बातो का एक ही उत्तर नज़र में आता है वह है बिचौलिया। हर बार बिचौलिए ही सस्ते में वस्तु खरीदकर थोड़े दिन बाद उसकी किल्ल्त पैदाकर मनमाने दामों पर बेचते हैं। आज तक देश के सभी राज्यों में विभिन्न सरकारे इन बिचौलियों पर अंकुश लगाने में कामयाब नहीं हो पाई हैं। किसान को तो सदैव अपनी फसल का न्यूनतम दाम ही मिलता रहा है। हालांकि अब कुछ किसान भी धनवान हो गए हैं और बाजार की स्थिति के अनुसार वस्तु को सस्ते दामों पर न बेचकर दाम बढ़ने पर ही बेचते हैं। लेकिन ऐसे किसानो की संख्या बहुत कम है। पिछले सालों में दालों के दामों में भी ऐसे ही बेहताशा बढ़ोतरी हुई थी जिस पर सरकार को खासी मस्सकत करनी पड़ी थी।
देश के किसानो को खुशहाल बनाने के लिये बिचौलियों पर अंकुश लगाना बहुत जरूरी है। इसके लिए सरकार और किसानों को साझा कार्यक्रम बनाना होगा तभी खाद्य पदार्थो की कीमतें एकरूप रह सकेंगी। *सुनील जैन राना *
बुधवार, 6 नवंबर 2019
पराली नहीं होगी पराई http://suniljainrana.blogspot.com/
November 6, 2019 • सुनील जैन राना
किसान के खेतो में जलाई जा रही पराली जी का जंजाल बन गई है। हरियाणा -पंजाब के खेतो में जलाई जा रही पराली से देश की राजधानी सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही है। दिल्ली और आसपास के इलाको में प्रदूषण का स्तर अधिकतम सीमा को भी पार कर गया है। सड़को पर सर्दी में पड़ने वाली धुंध से भी ज्यादा धुँआ -कोहरा सा छाया है। आम आदमी भी इस प्रदूषण से बहुत चिंतित है। बच्चे -जवान -बूढ़े सभी इस धुँए की चपेट में बीमार हो रहे हैं।
दरअसल वैसे तो पराली बिक जाती है लेकिन आधुनिकता की दौड़ में अब फसलों की कटाई मशीनों से होने लगी है। हाथ से कटाई में तो फसल पूरी जड़ से काटी जाती थी लेकिन मशीन से फसल की कटाई थोड़े ऊपर से होती है। हार्वेस्टर मशीन से कटाई करने पर फसल का कुछ भाग ऊपर रह जाता है। ऐसे में किसान उसे हाथ से न हटाकर अपने खेतो में आग लगा देते हैं जिसके कारण दूर दूर तक धुँआ फैल रहा है। किसान यह भी नहीं सोच रहे की खेत में पराली जलाने से धरती में लाभकारी कीट -केंचुए आदि भी जल कर मर रहे हैं। जिससे धरती में उपजाऊ पन कम हो रहा है और पाप के भागीदार भी बन रहे हैं।
हालांकि आज भी अधिकांश पराली काम में आ रही है या बिक रही है फिर भी यदि किसान और सरकार मिलकर तकनीकी आधार से कार्य करें तो दोनों को प्रालि से मुनाफा भी हो सकता है और प्रदूषण से मुक्ति भी मिल सकती है। पराली के टाईट बंडल बनाने के उपक्रम लगे जैसे रुई के बंडल बनते हैं। ऐसा होने से पराली कम जगह घेरेगी और बड़े प्लांटों में जलाने के काम आयेगी। कुछ जगह पराली से डिस्पोजल बर्तन बनने शुरू हो गए हैं जो प्लास्टिक का विकल्प बन सकते हैं। पिछले दिनों जमशेदपुर में पुराल की डंडी और कोयले से ईको फ्रेंडली टूथ ब्रश बनाने की बात भी मिडिया में आयी थी।
कहने का तातपर्य यह है की यदि किसान और सरकार मिलकर प्रालि के विभिन्न आयामों पर शोध करें तो अच्छे परिणाम सामने आ सकते हैं। हो सकता है की आज दुःख देने वाली पराली कल खुशियां लेकर आये। * सुनील जैन राना *
दरअसल वैसे तो पराली बिक जाती है लेकिन आधुनिकता की दौड़ में अब फसलों की कटाई मशीनों से होने लगी है। हाथ से कटाई में तो फसल पूरी जड़ से काटी जाती थी लेकिन मशीन से फसल की कटाई थोड़े ऊपर से होती है। हार्वेस्टर मशीन से कटाई करने पर फसल का कुछ भाग ऊपर रह जाता है। ऐसे में किसान उसे हाथ से न हटाकर अपने खेतो में आग लगा देते हैं जिसके कारण दूर दूर तक धुँआ फैल रहा है। किसान यह भी नहीं सोच रहे की खेत में पराली जलाने से धरती में लाभकारी कीट -केंचुए आदि भी जल कर मर रहे हैं। जिससे धरती में उपजाऊ पन कम हो रहा है और पाप के भागीदार भी बन रहे हैं।
हालांकि आज भी अधिकांश पराली काम में आ रही है या बिक रही है फिर भी यदि किसान और सरकार मिलकर तकनीकी आधार से कार्य करें तो दोनों को प्रालि से मुनाफा भी हो सकता है और प्रदूषण से मुक्ति भी मिल सकती है। पराली के टाईट बंडल बनाने के उपक्रम लगे जैसे रुई के बंडल बनते हैं। ऐसा होने से पराली कम जगह घेरेगी और बड़े प्लांटों में जलाने के काम आयेगी। कुछ जगह पराली से डिस्पोजल बर्तन बनने शुरू हो गए हैं जो प्लास्टिक का विकल्प बन सकते हैं। पिछले दिनों जमशेदपुर में पुराल की डंडी और कोयले से ईको फ्रेंडली टूथ ब्रश बनाने की बात भी मिडिया में आयी थी।
कहने का तातपर्य यह है की यदि किसान और सरकार मिलकर प्रालि के विभिन्न आयामों पर शोध करें तो अच्छे परिणाम सामने आ सकते हैं। हो सकता है की आज दुःख देने वाली पराली कल खुशियां लेकर आये। * सुनील जैन राना *
सोमवार, 4 नवंबर 2019
शुक्रवार, 1 नवंबर 2019
बिजली का बिल माननीयों को माफ़ ?
November 1, 2019 • सुनील जैन राना
मोदी सरकार में एक अहम कार्य यह हुआ है की अब पिछली सरकारों की तरह बिजली की कटौती में भरी कमी आयी है। देश भर में सबको बिजली मिले इस कार्य को बहुत संजीदगी से पूरा किया गया है।
उत्तर प्रदेश में जहां पहली सरकारों में बिजली की किल्ल्त रहती थी वहीं अब भरपूर बिजली मिल रही है। जहां एक और सरकार का उद्देश्य यह है की सबका घर रोशन हो वहीं दूसरी ओर बिजली चोरी पर भी बड़े पैमाने पर धरपकड़ की जा रही है। राज्य के सभी छोटे -बड़े शहरों ,गाँवों में बिजली चोरी के प्रति लोगो को जागरूक कर मुफ्त में बिजली कनेक्शन देने तक की योजनाएं कारगर रही हैं।
लेकिन जहां एक ओर आम बिजली उपभोक्ता को बिजली चोरी पर जुर्माना और कारागार की सज़ा तक सुनाई गई हैं वहीं दूसरी ओर नेता गण ,अधिकारी गण ,सरकारी महकमें ,अनेक माननीयों पर आज भी बिजली बिल के हज़ारो करोड़ बकाया होने के बाद भी उनका न तो बिजली कनेक्शन काटा गया न ही उनपर कोई जुर्माना लगाया गया। हाल ही में उत्तरप्रदेश बिजली विभाग ने बताया की लगभग १३ हज़ार करोड़ रूपये उपरोक्त उपभोक्ताओं पर बकाया हैं। अब सरकार ऐसे उपभोक्ताओं के लिये प्रीपेड मीटर लगाने की तयारी कर रही है। इसके लिए एक लाख मीटरों का ऑर्डर भी कर दिया गया है।
लेकन एक बात आम उपभोक्ता को समझ नहीं आ रही है की पहले घरों में १०० -१०० वाट के बल्ब लगे होते थे ,फिर cfl लगाये गए ,अब और ज्यादा बिजली बचत को LED बल्ब लगा दिए गए हैं लेकिन बिजली का बिल पहले से कम होने के बजाय ज्यादा क्यों आ रहा है। जितना बिल आ जाये बस उसका भुगतान करना पड़ रहा है। बिल ज्यादा आने के कारण कोई बताने वाला नहीं है। यह आम आदमी की समस्या है जिसका निराकरण बिजली विभाग को करना ही चाहिए।
सरकार ने बिजली की बचत को सड़कों पर हेलोजन की बजाय LED हेलोजन लगाने शुरू कर दिए हैं जिनसे बेहताशा बिजली की बचत हो रही है। लेकिन आज भी अनेको जगह पीली लाईट के हेलोजन भी लगाए जा रहे हैं जो गलत है। अनेको जगह भोर होते ही हेलोजन बंद नहीं हो पाते एवं शाम से पहले ही हेलोजन जला दिये जाते हैं। ऐसा होने से व्यर्थ में बिजली व्यय हो रहा है।
आम आदमी के मीटर की चैकिंग को आ रहे मीटर रीडर के हाथ में आज भी बहुत कुछ होता है। वे भले ही बिल मशीन से निकल कर देते हों लेकिन मशीन में डाटा तो वे ही भरते हैं। इस पर भी सरकार को सोचना चाहिए। यदि मीटर खराब हो जाए तो उसे बदलना सरकार का फर्ज है लेकिन सब खर्च उपभोक्ता से लिए जाते हैं यह भी ठीक नहीं है। *सुनील जैन राना *
उत्तर प्रदेश में जहां पहली सरकारों में बिजली की किल्ल्त रहती थी वहीं अब भरपूर बिजली मिल रही है। जहां एक और सरकार का उद्देश्य यह है की सबका घर रोशन हो वहीं दूसरी ओर बिजली चोरी पर भी बड़े पैमाने पर धरपकड़ की जा रही है। राज्य के सभी छोटे -बड़े शहरों ,गाँवों में बिजली चोरी के प्रति लोगो को जागरूक कर मुफ्त में बिजली कनेक्शन देने तक की योजनाएं कारगर रही हैं।
लेकिन जहां एक ओर आम बिजली उपभोक्ता को बिजली चोरी पर जुर्माना और कारागार की सज़ा तक सुनाई गई हैं वहीं दूसरी ओर नेता गण ,अधिकारी गण ,सरकारी महकमें ,अनेक माननीयों पर आज भी बिजली बिल के हज़ारो करोड़ बकाया होने के बाद भी उनका न तो बिजली कनेक्शन काटा गया न ही उनपर कोई जुर्माना लगाया गया। हाल ही में उत्तरप्रदेश बिजली विभाग ने बताया की लगभग १३ हज़ार करोड़ रूपये उपरोक्त उपभोक्ताओं पर बकाया हैं। अब सरकार ऐसे उपभोक्ताओं के लिये प्रीपेड मीटर लगाने की तयारी कर रही है। इसके लिए एक लाख मीटरों का ऑर्डर भी कर दिया गया है।
लेकन एक बात आम उपभोक्ता को समझ नहीं आ रही है की पहले घरों में १०० -१०० वाट के बल्ब लगे होते थे ,फिर cfl लगाये गए ,अब और ज्यादा बिजली बचत को LED बल्ब लगा दिए गए हैं लेकिन बिजली का बिल पहले से कम होने के बजाय ज्यादा क्यों आ रहा है। जितना बिल आ जाये बस उसका भुगतान करना पड़ रहा है। बिल ज्यादा आने के कारण कोई बताने वाला नहीं है। यह आम आदमी की समस्या है जिसका निराकरण बिजली विभाग को करना ही चाहिए।
सरकार ने बिजली की बचत को सड़कों पर हेलोजन की बजाय LED हेलोजन लगाने शुरू कर दिए हैं जिनसे बेहताशा बिजली की बचत हो रही है। लेकिन आज भी अनेको जगह पीली लाईट के हेलोजन भी लगाए जा रहे हैं जो गलत है। अनेको जगह भोर होते ही हेलोजन बंद नहीं हो पाते एवं शाम से पहले ही हेलोजन जला दिये जाते हैं। ऐसा होने से व्यर्थ में बिजली व्यय हो रहा है।
आम आदमी के मीटर की चैकिंग को आ रहे मीटर रीडर के हाथ में आज भी बहुत कुछ होता है। वे भले ही बिल मशीन से निकल कर देते हों लेकिन मशीन में डाटा तो वे ही भरते हैं। इस पर भी सरकार को सोचना चाहिए। यदि मीटर खराब हो जाए तो उसे बदलना सरकार का फर्ज है लेकिन सब खर्च उपभोक्ता से लिए जाते हैं यह भी ठीक नहीं है। *सुनील जैन राना *
बुधवार, 30 अक्तूबर 2019
नोट बंदी के बाद अब सोना बंदी ?
October 30, 2019 • सुनील जैन राना
नोटबंदी के बाद अब मोदी सरकार सोना बंदी करने जा रही है। सूत्रों से पता चल रहा की की काले धन से सोना खरीदने वालो पर लगाम लगाने के लिए मोदी सरकार बहुत बड़ा कदम उठाने जा रही है। जानकार बताते हैं की सरकार *गोल्ड एमनेस्टी स्कीम * लाने की तैयारी चल रही है। जिसमे अब जनता को अपने पास रखे सोने की जानकारी सरकार को देनी होगी। इस स्कीम में आम आदमी द्वारा घोषित किये गए सोने की कीमत वैल्यूशन सैंटर से लगवाकर रसीद लेनी होगी। तय मात्रा से अधिक सोने पर टैक्स देना होगा। तय मात्रा से ज्यादा सोने मिलने पर जुर्माना देना होगा। मंदिर और ट्रस्ट आदि के पास रखे सोने के लिए भी कोई नियम पारित किया जा सकता है। इस स्कीम के द्वारा सरकार देश भर में जनता के पास एवं लॉकरों में रखे अकूत सोने को अर्थ व्यवस्था में शामिल कर सरकारी योजनाओं को गति देकर जनहित में कार्य करना चाहती है।
यह सब तो ठीक है लेकिन क्या जनता इसे स्वीकार करेगी ?नोटबंदी की मार से अनेको उद्योग अभी तक भी उबरे नहीं हैं ऐसे में सोना बंदी करना सरकार के लिए हानिकारक हो सकता है। सवाल यह भी है की सरकार किस प्रकार की जनता के सोने की जांच करेगी ?आम जनता ,गरीब जनता ,मध्यम वर्ग वाली जनता ,अमीर जनता या सिर्फ टैक्स देने वाली जनता। लगता है सिर्फ टैक्स देने वाली जनता यह कानून लागू होने वाला है। लेकिन ऐसा होना भी आसान नहीं है। किसके पास कितना सोना ,कितना पुराना सोना ,कितना नया सोना ,सोना किस प्रकार का ,डली -बिस्कुट या जेवर अड्डी अनेक पहलू इसमें बाधा बनेंगे।
मोदीजी देश में से काला धन खत्म करना या जब्त करना चाह रहे हैं। लेकिन भारत देश में क्या यह सम्भव है ?जहां आम आदमी -व्यापारी को जुगाड़ और सुविधाशुल्क से कार्य करने कराने की आदत पड़ी हो वहां सच्चाई से कैसे कार्य होगा ?कोई ठीक से कार्य करना भी चाहे तो इतने कड़े नियम -कानून हैं जिसकी पूर्ति बिना लिए -दिए होती नहीं। भ्र्ष्टाचार सभी का मूलभूत अधिकार सा बन गया है। नोटबंदी में सभी के नोट बदले गये, इसमें क्या भ्र्ष्टाचार नहीं हुआ ?जनहित में जनता से सोने के बारे में पूछने से ज्यादा कारगर अवैध प्रॉपर्टी कानून पर सख्ती से कार्यवाही होती। सोना तो आम मध्यम आदमी के जिंदगी की कमाई का हो सकता है जिसे वह सुख -दुःख में काम में लाता है। प्रॉपर्टी तो सिर्फ बड़े आदमियों पर ही होती है वैध भी अवैध भी। सोना तो छुपाकर रहा जा सकता है लेकिन प्रॉपर्टी तो दिखाई देती है। दिल्ली -गुरुग्राम में ही एक -एक प्रॉपर्टी करोड़ो -अरबों की होती है। ऐसे में पहले सरकार इन पर कार्यवाही कर राजस्व वसूले या प्रॉपर्टी जब्त करे। सोना तो जिनके पास है उनका पकड़ा नहीं जायेगा और आम टैक्स देने वाला परेशान हो जायेगा। इसलिए सरकार को सोनाबन्दी नहीं प्रॉपर्टी बंदी करनी चाहिए। *सुनील जैन राना *
यह सब तो ठीक है लेकिन क्या जनता इसे स्वीकार करेगी ?नोटबंदी की मार से अनेको उद्योग अभी तक भी उबरे नहीं हैं ऐसे में सोना बंदी करना सरकार के लिए हानिकारक हो सकता है। सवाल यह भी है की सरकार किस प्रकार की जनता के सोने की जांच करेगी ?आम जनता ,गरीब जनता ,मध्यम वर्ग वाली जनता ,अमीर जनता या सिर्फ टैक्स देने वाली जनता। लगता है सिर्फ टैक्स देने वाली जनता यह कानून लागू होने वाला है। लेकिन ऐसा होना भी आसान नहीं है। किसके पास कितना सोना ,कितना पुराना सोना ,कितना नया सोना ,सोना किस प्रकार का ,डली -बिस्कुट या जेवर अड्डी अनेक पहलू इसमें बाधा बनेंगे।
मोदीजी देश में से काला धन खत्म करना या जब्त करना चाह रहे हैं। लेकिन भारत देश में क्या यह सम्भव है ?जहां आम आदमी -व्यापारी को जुगाड़ और सुविधाशुल्क से कार्य करने कराने की आदत पड़ी हो वहां सच्चाई से कैसे कार्य होगा ?कोई ठीक से कार्य करना भी चाहे तो इतने कड़े नियम -कानून हैं जिसकी पूर्ति बिना लिए -दिए होती नहीं। भ्र्ष्टाचार सभी का मूलभूत अधिकार सा बन गया है। नोटबंदी में सभी के नोट बदले गये, इसमें क्या भ्र्ष्टाचार नहीं हुआ ?जनहित में जनता से सोने के बारे में पूछने से ज्यादा कारगर अवैध प्रॉपर्टी कानून पर सख्ती से कार्यवाही होती। सोना तो आम मध्यम आदमी के जिंदगी की कमाई का हो सकता है जिसे वह सुख -दुःख में काम में लाता है। प्रॉपर्टी तो सिर्फ बड़े आदमियों पर ही होती है वैध भी अवैध भी। सोना तो छुपाकर रहा जा सकता है लेकिन प्रॉपर्टी तो दिखाई देती है। दिल्ली -गुरुग्राम में ही एक -एक प्रॉपर्टी करोड़ो -अरबों की होती है। ऐसे में पहले सरकार इन पर कार्यवाही कर राजस्व वसूले या प्रॉपर्टी जब्त करे। सोना तो जिनके पास है उनका पकड़ा नहीं जायेगा और आम टैक्स देने वाला परेशान हो जायेगा। इसलिए सरकार को सोनाबन्दी नहीं प्रॉपर्टी बंदी करनी चाहिए। *सुनील जैन राना *
मंगलवार, 29 अक्तूबर 2019
सऊदी अरब में मोदीजी का सम्बोधन
October 29, 2019 • सुनील जैन राना
आज मोदीजी सऊदी अरब में भारत में निवेश के लिए सम्बोधित कर रहे हैं। भारत दुनिया का तीसरा स्टार्टअप इको सिस्टम है। भारत में पिछले पांच सालो में अनेको क्षेत्रों में विकास के नए नए आयामों को स्थापित किया है। दश की गरीब और मध्यम जनता के लिए अनेको जरूरी योजनाओं को पूरा किया गया है। अगले पांच सालो में भारत ऊर्जा और तेल के क्षेत्र में भी देशहित में बड़ी बड़ी योजनाएं बनाई जा रही हैं।
मोदीजी के कार्यो की सराहना तो पूरी दुनिया कर रही है। देश को चलाने और आगे ले जाने का विजन जैसा मोदीजी के पास है ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया। मोदीजी लगातार देशहित के मुद्दों और जरूरतों पर देश -विदेशों में वार्तालाप कर देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं।
मोदी सरकार में देश में सड़को का जाल एवं विधुत आपूर्ति में साहसिक कार्य हुए हैं। बिजली और सड़क का सीधा संबंध तेल से है और तेल का सीधा संबंद विदेशी मुद्रा से होता है। देश में बिजली की आपूर्ति मांग के अनुसार होने से ज़ेरेटरो के इस्तेमाल में कमी आती है जिससे तेल तो बचता ही है साथ ही प्रदूषण में भी कमी आती है। अच्छी सड़को का सीधा संबंध भी तेल से ही होता है। वाहनों को सीधा छोटा रास्ता ठीक मिलने से टूटी सड़को के कारण लम्बे रास्तों से राहत मिलती है। जिससे से तेल की भी बचत होती है और समय भी बचता है।
तातपर्य यह की देश की जरूरत के सभी मोर्चो पर मोदी सरकार पूर्णतया जागरूक होकर देश के विकास में लगी है। देश की जनता और राजनैतिक दलों को भी अच्छे कार्यो में सहयोग करना चाहिए। * सुनील जैन राना *
मोदीजी के कार्यो की सराहना तो पूरी दुनिया कर रही है। देश को चलाने और आगे ले जाने का विजन जैसा मोदीजी के पास है ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया। मोदीजी लगातार देशहित के मुद्दों और जरूरतों पर देश -विदेशों में वार्तालाप कर देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं।
मोदी सरकार में देश में सड़को का जाल एवं विधुत आपूर्ति में साहसिक कार्य हुए हैं। बिजली और सड़क का सीधा संबंध तेल से है और तेल का सीधा संबंद विदेशी मुद्रा से होता है। देश में बिजली की आपूर्ति मांग के अनुसार होने से ज़ेरेटरो के इस्तेमाल में कमी आती है जिससे तेल तो बचता ही है साथ ही प्रदूषण में भी कमी आती है। अच्छी सड़को का सीधा संबंध भी तेल से ही होता है। वाहनों को सीधा छोटा रास्ता ठीक मिलने से टूटी सड़को के कारण लम्बे रास्तों से राहत मिलती है। जिससे से तेल की भी बचत होती है और समय भी बचता है।
तातपर्य यह की देश की जरूरत के सभी मोर्चो पर मोदी सरकार पूर्णतया जागरूक होकर देश के विकास में लगी है। देश की जनता और राजनैतिक दलों को भी अच्छे कार्यो में सहयोग करना चाहिए। * सुनील जैन राना *
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