कैसे बचेगा गोधन ?
November 17, 2019 • सुनील जैन राना
भारत देश ऋषि -मुनियों का देश है। यहां की विभिन्न संस्कृति- धर्म -भाषाएँ सभी का मन मोह लेती हैं। हिन्दू धर्म की बहुतायत के चलते देश में गोमाता की बहुत मान्यता है। यहां गोमाता को पूजा जाता है। देश में हिन्दू और जैन धर्म अनुयायियों ने अनेको गोशालाएं बनवा रखी हैं। अनेक हिन्दू पर्वो पर गाय की पूजा की जाती है।
देश में सरकारी और गैरसरकारी स्तर पर गोशालाओं का निर्माण किया गया है। देश के कई प्रदेशों में आवारा घुमन्तु गोधन के लिए विशेष रूप से गोशालाएं बनवाई जा रही हैं। लेकिन विडंबना की बात यह है की देश में बहुत कम ऐसी गोशालाएं हैं जहां पर रहने वाले गोधन के लिए उचित व्यवस्था है। भोजन -पानी एवं गर्मी -सर्दी से बचाव को शेड बने हैं। अन्यथा तो गोशाला में भी गोधन की हालत ठीक नहीं रहती। कहीं व्यवस्था की कमी है तो कहीं धन की कमी के कारण आश्रित गोधन को भरपेट भोजन यानि घास आदि भी नहीं मिल पा रहा है बरसात के दिनों में अनेको गोशालाओं में पानी भर जाने के कारण अनेको गोधन मृत्यु को प्राप्त हो गए। ऐसा होना बहुत दुःखद है।
कटु सत्य यह है की हिन्दू अनुयायी जिस गोधन की पूजा करते हैं उसके बचाव के लिए प्रयास नहीं करते। कुछ गोशालाओं के बाहर बिक्री के चारे का प्रबंध रहता है। जिसका फायदा वे लोग उठाते हैं जिन्हे उनके पंडित जी ने किसी समस्या के उपाय में गाय को घास खिलाना बताया होता है। बाकी बहुत कम लोग अपने पास से गोधन के लिए भोजन आदि देने वाले होते हैं। कुछ गोशालाएं साधू महाराजो की होती हैं। जिनके यहां सिर्फ दुधारू गोधन ही देखने को मिलता है। बाँझ -असहाय गोधन से उन्हें परहेज़ होता है। अनेक गोकथा कहने वाले विद्द्वान गोकथा बाँचने के लाखों रूपये लेते हैं और गोभक्तो से दुधारू गोधन एवं जमीन आदि गोशाला हेतु लेकर पुण्य कमाते दिखाई दे जाते हैं। बाँझ -आवारा -असहाय -बछड़ा -बैल आदि से उन्हें नफरत होती है। कहने का तातपर्य यह है की कथित गोभक्त और गोरक्षक ऋषि मुनि भी सिर्फ दुधारू गोधन को चाहते हैं। उसकी पूजा करते हैं। अन्य गोधन का क्या होगा इससे उन्हें कोई मतलब नहीं होता। बछड़ी को पाल लेते हैं बछड़े को बेच देते हैं। यह भी नहीं देखते की उसका खरीददार कौन है यानि की कसाई ही होता है ?
ऐसा धर्म कर्म किस काम का जिसमें सिर्फ अपने उपयोगी गोधन की पूजा हो बाकि कटे तो कटे। गोधन को मानने वालो को चाहिए की सम्पूर्ण गोधन की रक्षा हो। सिर्फ गोशालाएं बनवा देने से कोई फायदा नहीं है। सरकारी स्तर पर भी कुछ ही सहयोग मिल सकता है। तन -मन -धन से देखभाल तो गो प्रेमियों को ही करनी पड़ेगी। तभी गोधन बच सकेगा। अनेको गोशालाओं में वहां के मैनेजर आदि ही भ्र्ष्ट होते हैं। वे गोधन के हिस्से का खुद खा जाते हैं। इतना बड़ा महापाप है यह। हम सभी को गोधन के प्रति आस्था है तो थोड़ा -थोड़ा योगदान करना ही होगा तभी बचेगा गोधन। *सुनील जैन राना *
देश में सरकारी और गैरसरकारी स्तर पर गोशालाओं का निर्माण किया गया है। देश के कई प्रदेशों में आवारा घुमन्तु गोधन के लिए विशेष रूप से गोशालाएं बनवाई जा रही हैं। लेकिन विडंबना की बात यह है की देश में बहुत कम ऐसी गोशालाएं हैं जहां पर रहने वाले गोधन के लिए उचित व्यवस्था है। भोजन -पानी एवं गर्मी -सर्दी से बचाव को शेड बने हैं। अन्यथा तो गोशाला में भी गोधन की हालत ठीक नहीं रहती। कहीं व्यवस्था की कमी है तो कहीं धन की कमी के कारण आश्रित गोधन को भरपेट भोजन यानि घास आदि भी नहीं मिल पा रहा है बरसात के दिनों में अनेको गोशालाओं में पानी भर जाने के कारण अनेको गोधन मृत्यु को प्राप्त हो गए। ऐसा होना बहुत दुःखद है।
कटु सत्य यह है की हिन्दू अनुयायी जिस गोधन की पूजा करते हैं उसके बचाव के लिए प्रयास नहीं करते। कुछ गोशालाओं के बाहर बिक्री के चारे का प्रबंध रहता है। जिसका फायदा वे लोग उठाते हैं जिन्हे उनके पंडित जी ने किसी समस्या के उपाय में गाय को घास खिलाना बताया होता है। बाकी बहुत कम लोग अपने पास से गोधन के लिए भोजन आदि देने वाले होते हैं। कुछ गोशालाएं साधू महाराजो की होती हैं। जिनके यहां सिर्फ दुधारू गोधन ही देखने को मिलता है। बाँझ -असहाय गोधन से उन्हें परहेज़ होता है। अनेक गोकथा कहने वाले विद्द्वान गोकथा बाँचने के लाखों रूपये लेते हैं और गोभक्तो से दुधारू गोधन एवं जमीन आदि गोशाला हेतु लेकर पुण्य कमाते दिखाई दे जाते हैं। बाँझ -आवारा -असहाय -बछड़ा -बैल आदि से उन्हें नफरत होती है। कहने का तातपर्य यह है की कथित गोभक्त और गोरक्षक ऋषि मुनि भी सिर्फ दुधारू गोधन को चाहते हैं। उसकी पूजा करते हैं। अन्य गोधन का क्या होगा इससे उन्हें कोई मतलब नहीं होता। बछड़ी को पाल लेते हैं बछड़े को बेच देते हैं। यह भी नहीं देखते की उसका खरीददार कौन है यानि की कसाई ही होता है ?
ऐसा धर्म कर्म किस काम का जिसमें सिर्फ अपने उपयोगी गोधन की पूजा हो बाकि कटे तो कटे। गोधन को मानने वालो को चाहिए की सम्पूर्ण गोधन की रक्षा हो। सिर्फ गोशालाएं बनवा देने से कोई फायदा नहीं है। सरकारी स्तर पर भी कुछ ही सहयोग मिल सकता है। तन -मन -धन से देखभाल तो गो प्रेमियों को ही करनी पड़ेगी। तभी गोधन बच सकेगा। अनेको गोशालाओं में वहां के मैनेजर आदि ही भ्र्ष्ट होते हैं। वे गोधन के हिस्से का खुद खा जाते हैं। इतना बड़ा महापाप है यह। हम सभी को गोधन के प्रति आस्था है तो थोड़ा -थोड़ा योगदान करना ही होगा तभी बचेगा गोधन। *सुनील जैन राना *
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