गुरुवार, 28 नवंबर 2019


बम फोड़कर मार डालो ?
November 28, 2019 • सुनील जैन राना
कभी -कभी कोई समस्या इतनी दुष्वार हो जाती है जिससे निपटने में सरकारी और गैरसरकारी सभी अमले फेल हो जाते हैं। ऐसी ही एक समस्या प्रदूषण की गहरा रही है। दिल्ली एनसीआर समेत अनेक राज्यों में प्रदूषण का विकराल रूप जनता के स्वास्थ से खिलवाड़ कर रहा है और सब मूक दर्शक बने से देख रहे हैं कर कुछ भी नहीं पा रहे हैं।
इसी प्रदूषण के विकराल रूप से चिंतित माननीय सुप्रीम कोर्ट भी आहत है। कई बार राज्य सरकारों और केंद्र सरकारों को इससे निपटने की चेतावनी देने के बाद भी सुधार न होने पर आहत होकर ऐसा कह बैठे की लोगो को गैस चैंबर में मारने की बजाय एक बार में ही बम फोड़कर मार डालो ?प्रदूषण पर जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिक दीपक गुप्ता की पीठ प्रदूषण मामले की जांच कर रही है।
न्यायालयों में बैठे जज भी कभी -कभी देशहित में इतना चिंतित हो जाते हैं की उनके अंदर से निकले वचन सभी को जागरूक करने में सहायक हो जाते हैं। हालांकि सच बात यह भी है की इस प्रदूषण के निस्तारण का उपाय माननीय जज महोदय के पास भी नहीं होगा। यदि होता तो कहने की बजाय सरकार को निर्देश दिया जाता की फौरन ऐसा किया जाए। किसानों पर डंडा चला नहीं सकते जो प्रदूषण का मुख्य कारण दिखाई दे रहा है। ऐसे में क्या किया जाए ?
दरअसल प्रदूषण की समस्या जहां एक ओर किसानों द्वारा पुराल जलाने से उतपन्न हो रही है वहीं दूसरी ओर ईंट भट्टे से लेकर अनेक धुआं छोड़ने वाली फैक्ट्रियां भी जिम्मेदार हैं। छोटे स्तर पर प्रातः सड़को पर सफाईकर्मी कबाड़ा एकत्र कर उसमे आग लगाते भी देखने को मिल जायेंगे जिससे धुआँ फ़ैल जाता है। प्राकृतिक धुआं /स्मोग का तो कोई हिसाब ही नहीं है की कब कितना हो जाए। इन सबमें पुराल से उतपन्न धुआं सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है। इस धुंए को रोका जा सकता है। इसमें किसान और सरकार का सहयोग और रचनात्मकता जरूरी है। मैंने एक लेख *पराली नहीं होगी पराई * लिखा था उसमें पराली के रचनात्मक उपयोगों के बारे में इंगित किया था। केंद्र सरकार समेत सभी राज्य सरकारों को पराली के उपयोग को लघु कुटीर उद्योग बना देना चाहिए। पराली से अनेक वस्तुएँ बनाई जा सकती हैं। 
प्रदूषण से निपटना ही होगा। इसमें सिर्फ सरकार का नहीं हम सभी का सहयोग आवश्यक है। खासकर किसानों का सहयोग बहुत जरूरी है। सरकारें किसानों के लिए इतना कुछ करती हैं तो किसानों का भी फर्ज बनता है की जनहित में प्रदूषण रोकने में सहयोग करें। कम से कम पराली तो मत जलायें।  * सुनील जैन राना *

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