JNU में सब कुछ ठीक नहीं है
November 14, 2019 • सुनील जैन राना
देश की जानी मानी जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी JNU क्यों अक्सर विवादों का केंद्र बनी रहती है ? क्या JNU में एक अलग विचारधारा पनप रही है जिसे वामपंथी विचारधारा या अलगाववादी विचारधारा भी कह सकते हैं ?
ऐसा लगता है की वास्तवमे JNU एक अच्छा शिक्षण संस्थान होने के साथ साथ कुछ देश विरोधी विचारधारा का अड्डा भी बन गया है। JNU में पढ़ने वाले कुछ छात्र और शिक्षक शिक्षा की ओर ध्यान न देकर देश विरोधी गतिविधियों में लगे रहते हैं। जो कुछ अच्छे अवसरों पर देशहित की बात न कर देश विरोधी बात करते हैं जैसे भारत तेरे टुकड़े होंगे आदि वक्तव्य।
दरअसल देश की शुरुवाती नेतागिरी स्कूल -कॉलेजों से ही प्रारम्भ होती है। छात्र नेता बनकर छात्रों के हित की बात न कर देश की राजनीति में उलझे रहना छात्र नेताओं का मुख्य कार्य हो गया है। इसपर भी सोने में सुहागा जब हो जाता है जब इन छात्र नेताओ को देश की राजनीतिक पार्टियों का समर्थन मिलना शुरू हो जाता है। बस यहीं से देश को जोड़ने या तोड़ने की राजनीति शुरू हो जाती है। यही हो रहा है JNU में।
ऐसे में ऐसे किसी भी शिक्षक संस्थान के प्रभारी एवं उसे मदद देने वाली सरकार का कर्तव्य हो जाता है की उनके संस्थान में शिक्षा सर्वोपरि हो। शिक्षा के अतिरिक्त नेतागिरी -दादागिरी करने वाले छात्रों पर पूर्ण निगरानी रहते हुए उन्हें सचेत करते रहना भी चाहिये। सबसे ज्यादा जरूरी कार्य जो अब तक नहीं हुआ अब करना ही होगा। JNU में सब्सिडी से पढ़ रहे वो छात्र जो बार -बार फेल हो जाते हैं या जानबूझ कर हो रहे हैं उन्हें निकाल बाहर करना ही होगा। ऐसे ही छात्र संस्थान में राजनीतिक दलों के सम्पर्क में आकर गैर क़ानूनी कार्य करने लगते हैं।
जनता के धन से सब्सिडी से पढ़ रहे जो छात्र इतना भी नहीं पढ़ते की पास हो जाये तो यह साफ़ जाहिर है की उनका उदेश्य पढ़ना नहीं बल्कि नेतागिरी करना होता है। ऐसे छात्रों को निकाल बाहर करने में ही अच्छाई है। अभी JNU में ऐसे ही छात्रों के कारण देश विरोधी गतिविधियां हो रही हैं। ऐसे कुछ छात्र एवं शिक्षकों के कारण सम्पूर्ण JNU बदनाम हो रहा है। * सुनील जैन राना *
ऐसा लगता है की वास्तवमे JNU एक अच्छा शिक्षण संस्थान होने के साथ साथ कुछ देश विरोधी विचारधारा का अड्डा भी बन गया है। JNU में पढ़ने वाले कुछ छात्र और शिक्षक शिक्षा की ओर ध्यान न देकर देश विरोधी गतिविधियों में लगे रहते हैं। जो कुछ अच्छे अवसरों पर देशहित की बात न कर देश विरोधी बात करते हैं जैसे भारत तेरे टुकड़े होंगे आदि वक्तव्य।
दरअसल देश की शुरुवाती नेतागिरी स्कूल -कॉलेजों से ही प्रारम्भ होती है। छात्र नेता बनकर छात्रों के हित की बात न कर देश की राजनीति में उलझे रहना छात्र नेताओं का मुख्य कार्य हो गया है। इसपर भी सोने में सुहागा जब हो जाता है जब इन छात्र नेताओ को देश की राजनीतिक पार्टियों का समर्थन मिलना शुरू हो जाता है। बस यहीं से देश को जोड़ने या तोड़ने की राजनीति शुरू हो जाती है। यही हो रहा है JNU में।
ऐसे में ऐसे किसी भी शिक्षक संस्थान के प्रभारी एवं उसे मदद देने वाली सरकार का कर्तव्य हो जाता है की उनके संस्थान में शिक्षा सर्वोपरि हो। शिक्षा के अतिरिक्त नेतागिरी -दादागिरी करने वाले छात्रों पर पूर्ण निगरानी रहते हुए उन्हें सचेत करते रहना भी चाहिये। सबसे ज्यादा जरूरी कार्य जो अब तक नहीं हुआ अब करना ही होगा। JNU में सब्सिडी से पढ़ रहे वो छात्र जो बार -बार फेल हो जाते हैं या जानबूझ कर हो रहे हैं उन्हें निकाल बाहर करना ही होगा। ऐसे ही छात्र संस्थान में राजनीतिक दलों के सम्पर्क में आकर गैर क़ानूनी कार्य करने लगते हैं।
जनता के धन से सब्सिडी से पढ़ रहे जो छात्र इतना भी नहीं पढ़ते की पास हो जाये तो यह साफ़ जाहिर है की उनका उदेश्य पढ़ना नहीं बल्कि नेतागिरी करना होता है। ऐसे छात्रों को निकाल बाहर करने में ही अच्छाई है। अभी JNU में ऐसे ही छात्रों के कारण देश विरोधी गतिविधियां हो रही हैं। ऐसे कुछ छात्र एवं शिक्षकों के कारण सम्पूर्ण JNU बदनाम हो रहा है। * सुनील जैन राना *
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