हिन्दी पर हंगामा क्यों
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आज अमर उजाला में सुधीर पचौरी जी का सुन्दर लेख पढ़ा।
उन्होंने किसी रामचंद्र गुहा के कालम में हिंदी को अंध राष्ट्रवाद
बताया है पर अपने विचार रखे।
दरअसल बात यह है की हिंदुस्तान में आज भी हिंदी सर्व मान्य
नहीं है। लेकिन यह भी सत्य है की आज हिंदुस्तान में हिंदी के
बिना गुजारा भी नहीं है।
गैर हिंदी भाषी क्षेत्रों में अधिकांश लोग हिंदी जानते -समझते हैं।
पता नहीं क्यों हिंदी से विरोध भी अपनाये रहते हैं ?जबकि आज
हिंदी के बिना गुजारा नहीं है। देश में नाम चमकाना है तो हिंदी
से ही चमकेगा। नेता हो या अभिनेता सबका हिंदी के बिना गुजारा
नहीं।गैर हिंदी भाषी भले ही हिंदी की उपेक्षा करते हो लेकिन वे
जानते हैं की उन्हें आगे बढ़ना है तो हिंदी का सहारा लेना ही पड़ेगा।
हिंदी का विरोध करने वाले रामचंद्र गुहा को भी अपनी बात चर्चा में
लाने को हिंदी में ही छपवानी पड़ी। हिंदी को अंध राष्ट्रवाद बताना
गलत है। बल्कि ऐसे ही लोग अंध राष्ट्रवादी कहलाते हैं। यह तो वही
बात हुई की जिस थाली में खायें उसी में छेद करें।
हिंदुस्तान में हिंदी मात्र भाषा नहीं बल्कि मातृ भाषा है। यह अन्य
सभी भाषाओं की बड़ी बहन जैसी है। सभी भाषाएँ एक परिवार के
जैसी हैं। हम सभी भारतीयों को सभी भाषाओं का सम्मान करना
चाहिए।
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