शनिवार, 1 जुलाई 2017


देश में GST लागू हो गया
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30 जून की रात 12 बजे देश में Gst लागू हो गया।

इस ऐतिहासिक पल के गवाह बने संसद में बैठे

सैकड़ो सांसद -राजनेता -उद्योगपति एवं गणमान्य

लोग। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी एवं प्रधानमंत्री मोदीजी

ने रात्रि के 12 बजे घंटी बजाकर देश में Gst लागू किया।

कांग्रेस और ममता बैनर्जी ने विरोध स्वरूप भाग नहीं

लिया।

अब आगे क्या होगा ?अभी Gst पर ना सरकार की पूर्ण

तैयारी है और ना किसी अधिकारी -CA को सही बात पता

है। यहां तक की बिलबुक का परफोर्मा कैसा होगा यह भी

ठीक तरह से नहीं पता। इसीलिए आज एक जुलाई को देश

भर के अधिकांश व्यापारियों द्वारा कार्य नहीं हुआ। बिलबुक

बने तभी बिल कटेगा और माल बिकेगा और भेजा जाएगा।

जबकि सरकार और वित्तमंत्री पूर्ण तैयारी का दावा करते

दिखाई दे रहे हैं।

खैर कोई बात नहीं नई व्यवस्था है थोड़ा समय लगेगा और

फिर सब ठीक हो जाएगा। जब कभी वैट लगा था तब भी ऐसे

ही हंगामा मचा था लेकिन बाद में सब ठीक हो गया था।

अब मुख्य बात यह है की क्या Gst से सब बिल से मिलने

लगेगा ?क्या कच्चा -पक्का खत्म होकर सिर्फ पक्के में कार्य

होने लगेगा ?क्या Gst से राजस्व बढ़ेगा ?यह सब सवालों का

जबाब 3 से 6 महीने में मिलेगा।

सब व्यापारी अपना सब कारोबार Gst से करेंगे इसमें संदेह

लगता है। दरअसल व्यापारी और अधिकारी के बीच ऐसा

संबन्ध बन गया है जिससे दोनों खुश रहते हैं। अनेक कानूनों

का पालन व्यापारी कर नहीं पाता। जिसकी पूर्ती कुछ देकर

कर लेता है। इससे व्यापारी की जान बची और अधिकारी की

जेब भरी। कोई शिकायत नहीं कोई शिकवा नहीं।

मोदीजी और जेटली जी जो चाह रहे हैं उतना तो शायद ही

सम्भव हो। क्योंकि दोनों तरफा असहजता होगी। आज बिना

दिए छूटकारा नहीं। ऐसी व्यवस्था सी बन गई है। सब करोबारी

अपने को रजिस्टर्ड करायेंगे यह भी सम्भव नहीं लगता। क्योकि

जो दर्ज हो जाता है उसको ही दर्द मिलता है। ऐसा देखने में आता

है। कच्चे में कार्य करने वाले कहते हैं की बिल से नहीं दिल से

कार्य करो।

Gst की तर्ज पर खाद्य गुणवत्ता कानून है यानि fassi

इस विभाग के पास इतनी ताकत है की उसके एवज में इनके मजे

आ रहे हैं। खाद्य पैकेट पर इतने कानून बना दिए की छोटी कम्पनी

तो दूर बड़ी कम्पनी भी उनको पूरा नहीं कर पाती। इसकी पूर्ति

कुछ देकर हो जाती है। हर साल लइसेंस रिनिवल के नाम पर उगाही

सैंपल के नाम पर उगाही ,जो दे रहा उसका भरा नहीं जा रहा ,जो

नहीं दे रहा उसका उत्पीड़न और सेम्पल भरा जाता है। इसी कारण

अनेक लघु उद्योगों ने बिना नाम पते के कार्य करना शुरू कर दिया।

महीना बाँध दिया और झंझट खत्म किया।

यदि एक शहर में अपने नाम से पैकिंग कर खाद्य पदार्थ बेचने वाले

50 हैं तो बिना नाम से बेचने वाले 500 होंगे। इनपर कोई कानून नहीं।

इनको हर बात में सुविधा ,सरकारी खर्च भी नहीं ,कोई लइसेंस नहीं ,

कोई टैक्स नहीं ,कोई हिसाब किताब नहीं।

बस यही बात है जिसके कारण कच्चा -पक्का होता है। इसीपर

सरकार को दोनों पहलू देख नियम -कानून बनाने चाहिए। अन्यथा

पढ़े मेरा लेख *जो दर्ज है उसे दर्द है *

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