रविवार, 27 अक्तूबर 2019



धार्मिक मानसिकता बदलनी चाहिये
October 27, 2019 • सुनील जैन राना
भारत देश विभिन्न संस्कृतियों का देश है। यहां के रीति रिवाज और धार्मिक मान्यतायें अपने आप में अनूठी हैं। सभी धर्मो के अनेको पर्व सभी के मन को लुभाते हैं। सभी धर्मो के अनेको पर्व पर बेहताशा धन का व्यय भी होता है। भगवान के नाम पर हम सभी दिल खोलकर अपनी हैसियत के अनुसार धन -धान्य आदि अर्पण करते हैं। लेकिन हमने कभी नहीं सोचा की हम जो भी अर्पण भगवान के नाम पर मंदिरो में कर रहे हैं क्या वह भगवान तक पहुंच रहा है ?
यह बहुत ही संजीदा प्रश्न है। जिसका उत्तर हम सभी अपने -अपने तरीके से दे सकते हैं। यह कटु सत्य है की जब एक आम आदमी बड़ा आदमी बन जाता है यानी पैसे वाला बन जाता है तो फिर उसके झुकाव धर्म की तरफ नहीं बल्कि किसी भगवान की तरफ हो जाता है। इसके भी दो कारण होते हैं ,प्रथम तो यह की उसे प्राप्त धन में से वह कुछ हिस्सा भगवान के नाम पर मंदिर में देकर अपना फर्ज अदा करना चाह रहा होता है ,द्वितीय यह की अब उसे समाज में बड़े आदमी की तरह बड़े नाम की शोहरत चाहिए होती है जिसे वह मंदिर में कुछ बड़ा अर्पण कर या बड़ी बोली लेकर पूर्ण करना चाहता है।
अनादिकाल से ऐसा ही होता चला आ रहा है। लेकिन आज के भौतिक युग में ,बढ़ती जनसंख्या में अपनी कुछ धार्मिक मानसिकता बदलनी चाहिये। मंदिर के भगवान के अलावा परोपकार भी तो धर्म का ही हिस्सा है। तब क्यों नहीं धनवान लोग मंदिर में दान की अपेक्षा परोपकार को महत्ता देते हैं। कॉरपोरेट्स जगत में ऐसे कई नाम हैं जो अपने लाभ का एक हिस्सा परोपकार में लगा देते हैं। लेकिन आज भी अधिकांश आम आदमी मंदिर में चढ़ावे को ही अच्छा मानता है परोपकार के कार्यो से दूर रहता है।
हमें यह सोचना चाहिए की हमारे द्वारा मंदिर में दिये गये दान का क्या होता है ?भगवान के नाम पर हम जो भोग लगा रहे हैं उसे कौन खा रहा है ?मंदिर में दान स्वरूप आये करोड़ो रुपयों का क्या हो रहा है ? मंदिर में चढाये सोने -चांदी , हीरे -जवाहरात के जेवर का क्या हो रहा है ?क्या यह सब भगवान के पास पहुंचा है ?
सच बात तो यह है की भगवान कुछ देते ही हैं कभी कुछ लेते नहीं हैं। ऐसे में हमने जो कुछ भी भगवान को चढ़ाया है उसे भगवान नहीं बल्कि मंदिर के पुजारी -कमेटी आदि ग्रहण कर लेती है। साउथ के एक अमीर मंदिर के पुजारी की बेटी की शादी की फोटो सोशल मिडिया पर देखी। जिसमे पुजारी की लड़की ने गले से लेकर नाभि तक सोने के हार पहन रखे थे जो पुजारी ने उसको दहेज में दिये होंगे। ऐसे में हमें सोचना चाहिये की हमारा दान कहां जा रहा है।
इसलिये हमें परोपकार में अपना तन -मन धन लगाना चाहिये। वही सच्चा धर्म है। *सुनील जैन राना *

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