शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2019



आयकरदाता को सहूलियतें मिलें,व्यापार के कानून सरल हों
October 18, 2019 • सुनील जैन राना
बजट की रुपरेखा बनने से पहले आयकर में कटौती की चर्चा बहुत होती है। अज़्ज़ादी के ७० सालो बाद आज भी १३० करोड़ जनता में से सिर्फ लगभग सवा पांच करोड़ लोग ही आयकर देते हैं जो कुल जनता का लगभग ३% ही होता है। मोदी सरकार में जहां एक और लगातार आयकर में कटौती हो रही है वहीं दूसरी और आयकर दाताओं की संख्या बढ़ाने पर भी प्रयास हो रहा है। देश में जहां एक ओर सरकारी -गैरसरकारी नौकरी पेशा अच्छा वेतन प्राप्त कर रहा है वहीं दूसरी और अधिकांश आम जनता जिसे मध्यम वर्ग भी कहा जाता है वह मात्र सात से दस हज़ार का वेतन प्राप्त कर रहा है। यह देश में पनप रही असमानता को दर्शाता है।
सरकारी स्कूलों में अध्यापक को बेहताशा वेतन जबकि प्राइवेट स्कूलों में बहुत कम वेतन। सरकारी नौकरी में बेहताशा वेतन जबकि प्राइवेट नौकरी (कॉर्पोरेट नौकरी को छोड़कर )जो आम व्यापार में मिलती है उसमे वेतन बहुत कम मिलता है। अब बात करते हैं छोटे व्यापारी की तो वह खुद भी कमा रहा है और दूसरे को रोजगार भी दे रहा है। इनमे से कुछ कम कमाते हैं तो कुछ बेहताशा कमाते हैं। जो बेहताशा कमा रहे हैं उनमें से सभी पूर्ण कमाई पर आयकर नहीं देते होंगे। इसका एक कारण सरकारी विभागों  बेहताशा कानून भी हैं जिनकी पूर्ति बिना सुविधा शुल्क के नहीं होती। जितना टैक्स देना होता है उतना या उससे कम ज्यादा सुविधाशुल्क में देना पड़ जाता है। शायद इसी वजह से आम व्यापारी वर्ग में बहुत कम आयकर देते हैं।
ऐसा ही व्यापार के अनेको क्षेत्रों में हो रहा है। डॉक्टरी पेशे में तो कमाई का कोई ठिकाना ही नहीं है। फिर भी इनकी जांच नहीं होती। एक डॉक्टर रोज जगभग १०० नए मरीज देखता है। फ़ीस लगभग ५०० रूपये होती है। पर्चे पर न कोई सीरियल ,न ही कोई फ़ीस का बिल देते हैं। नाम लिखवाने को ही अनेको कानून।मरीज का इलाज कम उत्पीड़न ज्यादा। ऐसे अनेक छेत्रो के उदाहरण दिए जा सकते हैं।
सरकार को कुछ नए सिरे से यह सब बातें सोचनी होंगी। बातें सरल हैं लेकिन कठिन हैं। एक तरफ एक लाख रूपये साल की आमदनी वाले दूसरी तरफ पांच लाख और उससे भी ज्यादा आमदनी वाले। कम आमदनी वालों के लिए सरकारी योजनाएं भी सबको तो नहीं मिल पाती हैं। भ्र्ष्टाचार भले ही ऊपरी स्तर पर कम हो गया हो लेकिन निचले स्तर पर किसी भी विभाग में आसानी से तो कोई कार्य होता नहीं। इस पर अंकुश कैसे लगेगा यह बहुत बड़ी समस्या है।
सरकार को आयकर देने वालो को कुछ सुहलियते देनी चाहिये। उनके जीवन में दिए जाने वाले टैक्स के अनुरूप उन्हें सरकारी कार्यालयों के कार्यो में रियायत मिलनी चाहिए। आयकर दाताओ की संख्या बढ़ाने के लिए भ्र्ष्टाचार पर अंकुश लगाना बहुत जरूरी है। अनेक लोग खासकर व्यापारी इसलिये टैक्स नहीं देते की यदि वे ईमानदारी से भी कार्य करें तो भी बिना सुविधाशुल्क के उनकी फाईल पूरी नहीं होती। टैक्स का धन जेब में जा रहा है। यह कटु सत्य है। इसके लिए सरकार को व्यापारी नियम -कानूनों में सरलता लानी चाहिये।     *सुनील जैन राना *

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