बुधवार, 16 अक्तूबर 2019


भारत में शिक्षा के स्वरूप में परिवर्तन होना चाहिये
October 13, 2019 • सुनील जैन राना
मोदीजी की सरकार में बहुत से कार्यो में परिवर्तन हो रहा है। शिक्षा के प्रति भी मोदी जी बहुत जागरूक हैं। कुछ परिवर्तन शिक्षा के क्षेत्र में भी होना चाहिये। भारत में सरकारी स्कूलों की स्थिति ठीक नहीं कही जा सकती है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता से लेकर स्कूलों के भवन और यहां तक की अध्यापक तक का स्तर ठीक नहीं है। अनेको सरकारी स्कूलों में ऐसे -ऐसे अध्यापक हैं जिन्हे खुद से ही पढ़ना लिखना नहीं आता। आरक्षण के आधार पर उनकी नियुक्ति हो गई है। ऐसे में यह बहुत गंभीर बात है की ऐसे स्कूलों के बच्चों का भविष्य कैसा होगा जबकि इन अध्यापकों को बहुत अच्छा वेतन मिल रहा होता है। सरकारी स्कूलों के मुकाबले प्राइवेट स्कूलों में बेहतर पढ़ाई होती है जबकि इन छोटे स्कूलों में लगभग पांच हज़ार से भी कम वेतन दिया जाता है अध्यापकों को।
शिक्षा में परिवर्तन की बात यह है की सभी स्कूलों में बच्चो को भारी भरकम बस्ते से मुक्ति मिलनी चाहिए। पढ़ाई के साथ ही परिवार -समाज -देश के प्रति कर्तव्य और जीवन की उपयोगी बातें भी बच्चों को पढानी -समझानी चाहिये। नैतिक संस्कार एवं खान पान के बारे में भी सप्ताह में एक घंटा इन सब बातों को बताने हेतु होना ही चाहिये। बड़ी कक्षाओं में पढ़ाई के साथ साथ भविष्य में रोजगार के साधन और तरीके बताने चाहिये। हालांकि ये सब बातें सरकार की प्राथमिकताओं में भी हैं लेकिन अभी जमीनी हकिकत से दूर हैं। सबसे जरूरी बात यह है की शिक्षक की गुणवत्ता होना बहुत जरूरी है। कई जगह राज्य सरकारों द्वारा बड़े पैमाने पर शिक्षक  मित्र बना दिए गये जिनमे अनेको ऐसे नामधारी शिक्षक हैं जिन्हे खुद से ही पढ़ना -लिखना नहीं आता। ऐसे में छोटे बच्चों के भविष्य के बारे में सोचकर ही डर लगता है।   *सुनील जैन राना *

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