बुधवार, 9 अक्टूबर 2019



साम -दाम -दण्ड -भेद की राजनीति
October 6, 2019 • सुनील जैन राना
राजनीति के कितने रंग हो सकते हैं इसका अंदाजा तो शायद ऊपरवाले को भी पता नहीं होगा। आज की राजनीति और स्वार्थ एक दूसरे के पूरक बन गए हैं। कोई बिरला ही होगा जो राजनीति में रहते हुए अपने लिए और अपनों के लिए कुछ धन -धान्य का उपार्जन ना करे। मोदीजी ही एकमात्र ऐसे भारतीय दिखाई दे रहे हैं जिन्होंने देश की तरक्की के लिए अपना सबकुछ छोड़ दिया हो। शायद यही कारण है की आज मोदीजी देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोकप्रियता के शिखर पर हैं।
 देश के कुछ राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में उठापटक होना ,दल बदलना आम बात हो गई है। सभी राजनीतिक दल इससे अछूते नहीं हैं। लेकिन जनता को तब बहुत अजीब सा लगता है जब गठबंधन वाले दल ही अपनी -अपनी चलाने लगें। जिनकी कुछ औकात नहीं वे भी बढ़चढ़कर अनर्गल बयानबाज़ी में लग जाते हैं। जो थोड़े मजबूत दल हैं वे मुख्यमंत्री की कुर्सी से कम बात नहीं करना चाहते। ऐसा ही महाराष्ट्र में हो रहा है। बीजेपी की सहयोगी शिवसेना ने सत्ता की कुर्सी पाने को अनर्गल बयानबाज़ी शुरू कर दी है। ठाकरे परिवार से पहली बार कोई ठाकरे बहुत सुरक्षित सीट से चुनाव में उतारा जा रहा है। उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। हालांकि अभी उनकी समझ कमजोर है लेकिन बड़बोलापन कर वे अपने को शूरवीर दिखाना चाह रहे हैं। किसी योजना के तहत कुछ पेड़ काटने को ही उन्होंने बीजेपी विरोध का मुद्दा बना लिया है। वे यह भी भूल गए की बिना बीजेपी के शिवसेना कभी भी सत्ता प्राप्त नहीं कर सकती। हालांकि पेड़ काटना अपने आप में कभी भी ठीक नहीं कहा जा सकता फिर भी कभी -कभी ऐसा जरूरी हो सकता है। ऐसे में कहीं ऐसा न हो जाये की आदित्य ठाकरे भी राहुल गांधी या तेजस्वी यादव के जैसे छाप छोड़ने लगने लगे। कुल मिलाकर ऐसा ही लगता है की आज की राजनीति सिर्फ साम -दाम -दण्ड -भेद से राज करने की नीति लग रही है।

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