बुधवार, 30 अक्तूबर 2019




नोट बंदी के बाद अब सोना बंदी ?
October 30, 2019 • सुनील जैन राना
नोटबंदी के बाद अब मोदी सरकार सोना बंदी करने जा रही है। सूत्रों से पता चल रहा की की काले धन से सोना खरीदने वालो पर लगाम लगाने के लिए मोदी सरकार बहुत बड़ा कदम उठाने जा रही है। जानकार बताते हैं की सरकार *गोल्ड एमनेस्टी स्कीम * लाने की तैयारी चल रही है। जिसमे अब जनता को अपने पास रखे सोने की जानकारी सरकार को देनी होगी। इस स्कीम में आम आदमी द्वारा घोषित किये गए सोने की कीमत वैल्यूशन सैंटर से लगवाकर रसीद लेनी होगी। तय मात्रा से अधिक सोने पर टैक्स देना होगा। तय मात्रा से ज्यादा सोने मिलने पर जुर्माना देना होगा। मंदिर और ट्रस्ट आदि के पास रखे सोने के लिए भी कोई नियम पारित किया जा सकता है। इस स्कीम के द्वारा सरकार देश भर में जनता के पास एवं लॉकरों में रखे अकूत सोने को अर्थ व्यवस्था में शामिल कर सरकारी योजनाओं को गति देकर जनहित में कार्य करना चाहती है।
यह सब तो ठीक है लेकिन क्या जनता इसे स्वीकार करेगी ?नोटबंदी की मार से अनेको उद्योग अभी तक भी उबरे नहीं हैं ऐसे में सोना बंदी करना सरकार के लिए हानिकारक हो सकता है। सवाल यह भी है की सरकार किस प्रकार की जनता के सोने की जांच करेगी ?आम जनता ,गरीब जनता ,मध्यम वर्ग वाली जनता ,अमीर जनता या सिर्फ टैक्स देने वाली जनता। लगता है सिर्फ टैक्स देने वाली जनता  यह कानून लागू होने वाला है। लेकिन ऐसा होना भी आसान नहीं है। किसके पास कितना सोना ,कितना पुराना सोना ,कितना नया सोना ,सोना किस प्रकार का ,डली -बिस्कुट या जेवर अड्डी अनेक पहलू इसमें बाधा बनेंगे।
मोदीजी देश में से काला धन खत्म करना या जब्त करना चाह रहे हैं। लेकिन भारत देश में क्या यह सम्भव है ?जहां आम आदमी -व्यापारी को जुगाड़ और सुविधाशुल्क से कार्य करने कराने की आदत पड़ी हो वहां सच्चाई से कैसे कार्य होगा ?कोई ठीक से कार्य करना भी चाहे तो इतने कड़े नियम -कानून हैं जिसकी पूर्ति बिना लिए -दिए होती नहीं। भ्र्ष्टाचार सभी का मूलभूत अधिकार सा बन गया है। नोटबंदी में सभी के नोट बदले गये, इसमें क्या भ्र्ष्टाचार नहीं हुआ ?जनहित में जनता से सोने के बारे में पूछने से ज्यादा कारगर अवैध प्रॉपर्टी कानून पर सख्ती से कार्यवाही होती। सोना तो आम मध्यम आदमी के जिंदगी की कमाई का हो सकता है जिसे वह सुख -दुःख में काम में लाता है। प्रॉपर्टी तो सिर्फ बड़े आदमियों पर ही होती है वैध भी अवैध भी। सोना तो छुपाकर रहा जा सकता है लेकिन प्रॉपर्टी तो  दिखाई देती है। दिल्ली -गुरुग्राम में ही एक -एक प्रॉपर्टी करोड़ो -अरबों की होती है। ऐसे में पहले सरकार इन पर कार्यवाही कर राजस्व वसूले या प्रॉपर्टी जब्त करे। सोना तो जिनके पास है उनका पकड़ा नहीं जायेगा और आम टैक्स देने वाला परेशान हो जायेगा। इसलिए सरकार को सोनाबन्दी नहीं प्रॉपर्टी बंदी करनी चाहिए।   *सुनील जैन राना *

मंगलवार, 29 अक्तूबर 2019



सऊदी अरब में मोदीजी का सम्बोधन
October 29, 2019 • सुनील जैन राना
आज मोदीजी सऊदी अरब में भारत में निवेश के लिए सम्बोधित कर रहे हैं। भारत दुनिया का तीसरा स्टार्टअप इको सिस्टम है। भारत में पिछले पांच सालो में अनेको क्षेत्रों में विकास के नए नए आयामों को स्थापित किया है। दश की गरीब और मध्यम जनता के लिए अनेको जरूरी योजनाओं को पूरा किया गया है। अगले पांच सालो में भारत ऊर्जा और तेल के क्षेत्र में भी देशहित में बड़ी बड़ी योजनाएं बनाई जा रही हैं।
मोदीजी के कार्यो की सराहना तो पूरी दुनिया कर रही है। देश को चलाने और आगे ले जाने का विजन जैसा मोदीजी के पास है ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया। मोदीजी लगातार देशहित के मुद्दों और जरूरतों पर देश -विदेशों में वार्तालाप कर देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं।
मोदी सरकार में देश में सड़को का जाल एवं विधुत आपूर्ति में साहसिक कार्य हुए हैं। बिजली और सड़क का सीधा संबंध तेल से है और तेल का सीधा संबंद विदेशी मुद्रा से होता है। देश में बिजली की आपूर्ति मांग के अनुसार होने से ज़ेरेटरो के इस्तेमाल में कमी आती है जिससे तेल तो बचता ही है साथ ही प्रदूषण में भी कमी आती है। अच्छी सड़को का सीधा संबंध भी तेल से ही होता है। वाहनों को सीधा छोटा रास्ता ठीक मिलने से टूटी सड़को के कारण लम्बे रास्तों से राहत मिलती है। जिससे से तेल की भी बचत होती है और समय भी बचता है।
तातपर्य यह की देश की जरूरत के सभी मोर्चो पर मोदी सरकार पूर्णतया जागरूक होकर देश के विकास में लगी है। देश की जनता और राजनैतिक दलों को भी अच्छे कार्यो में सहयोग करना चाहिए।  * सुनील जैन राना *

रविवार, 27 अक्तूबर 2019



धार्मिक मानसिकता बदलनी चाहिये
October 27, 2019 • सुनील जैन राना
भारत देश विभिन्न संस्कृतियों का देश है। यहां के रीति रिवाज और धार्मिक मान्यतायें अपने आप में अनूठी हैं। सभी धर्मो के अनेको पर्व सभी के मन को लुभाते हैं। सभी धर्मो के अनेको पर्व पर बेहताशा धन का व्यय भी होता है। भगवान के नाम पर हम सभी दिल खोलकर अपनी हैसियत के अनुसार धन -धान्य आदि अर्पण करते हैं। लेकिन हमने कभी नहीं सोचा की हम जो भी अर्पण भगवान के नाम पर मंदिरो में कर रहे हैं क्या वह भगवान तक पहुंच रहा है ?
यह बहुत ही संजीदा प्रश्न है। जिसका उत्तर हम सभी अपने -अपने तरीके से दे सकते हैं। यह कटु सत्य है की जब एक आम आदमी बड़ा आदमी बन जाता है यानी पैसे वाला बन जाता है तो फिर उसके झुकाव धर्म की तरफ नहीं बल्कि किसी भगवान की तरफ हो जाता है। इसके भी दो कारण होते हैं ,प्रथम तो यह की उसे प्राप्त धन में से वह कुछ हिस्सा भगवान के नाम पर मंदिर में देकर अपना फर्ज अदा करना चाह रहा होता है ,द्वितीय यह की अब उसे समाज में बड़े आदमी की तरह बड़े नाम की शोहरत चाहिए होती है जिसे वह मंदिर में कुछ बड़ा अर्पण कर या बड़ी बोली लेकर पूर्ण करना चाहता है।
अनादिकाल से ऐसा ही होता चला आ रहा है। लेकिन आज के भौतिक युग में ,बढ़ती जनसंख्या में अपनी कुछ धार्मिक मानसिकता बदलनी चाहिये। मंदिर के भगवान के अलावा परोपकार भी तो धर्म का ही हिस्सा है। तब क्यों नहीं धनवान लोग मंदिर में दान की अपेक्षा परोपकार को महत्ता देते हैं। कॉरपोरेट्स जगत में ऐसे कई नाम हैं जो अपने लाभ का एक हिस्सा परोपकार में लगा देते हैं। लेकिन आज भी अधिकांश आम आदमी मंदिर में चढ़ावे को ही अच्छा मानता है परोपकार के कार्यो से दूर रहता है।
हमें यह सोचना चाहिए की हमारे द्वारा मंदिर में दिये गये दान का क्या होता है ?भगवान के नाम पर हम जो भोग लगा रहे हैं उसे कौन खा रहा है ?मंदिर में दान स्वरूप आये करोड़ो रुपयों का क्या हो रहा है ? मंदिर में चढाये सोने -चांदी , हीरे -जवाहरात के जेवर का क्या हो रहा है ?क्या यह सब भगवान के पास पहुंचा है ?
सच बात तो यह है की भगवान कुछ देते ही हैं कभी कुछ लेते नहीं हैं। ऐसे में हमने जो कुछ भी भगवान को चढ़ाया है उसे भगवान नहीं बल्कि मंदिर के पुजारी -कमेटी आदि ग्रहण कर लेती है। साउथ के एक अमीर मंदिर के पुजारी की बेटी की शादी की फोटो सोशल मिडिया पर देखी। जिसमे पुजारी की लड़की ने गले से लेकर नाभि तक सोने के हार पहन रखे थे जो पुजारी ने उसको दहेज में दिये होंगे। ऐसे में हमें सोचना चाहिये की हमारा दान कहां जा रहा है।
इसलिये हमें परोपकार में अपना तन -मन धन लगाना चाहिये। वही सच्चा धर्म है। *सुनील जैन राना *


पॉलीथीन मुक्त भारत


गुरुवार, 24 अक्तूबर 2019




अशर्फियाँ लुट रही ,कोयलो पर मोहर लग रही ?
October 24, 2019 • सुनील जैन राना
आज महाराष्ट्र और हरियाणा में हुए चुनावों के नतीजे आ गए। बीजेपी के अनुमान के मुताबिक नतीजे नहीं आये। फिर भी लगता है दोनों जगह बीजेपी की सरकार बन जानी चाहिये। लेकिन बीजेपी को अब चिंतन करना चाहिए की अनुमानों के मुताबिक नतीजे क्यों नहीं आये ?
आज देश एक अजीब से दौर से गुजर रहा है। एक तरफ मोदी सरकार देश की जरूरत के अनेक क्षेत्रों में बेहतरीन कार्य कर रही है। दूसरी तरफ देश में एक अजीब सी बेचैनी दिखाई दे रही है। देश में एक ओर देश विरोधी ताकतों पर शिकंजा कसा गया है जिसके कारण आम आदमी राहत महसूस कर रहा है लेकिन दूसरी ओर वही आम आदमी व्यापार -रोजगार के क्षेत्र में अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है।
कांग्रेस के दूसरे कार्यकाल में हुए घोटालों के फलस्वरूप लाखों फर्जी कंपनियों पर ताला तो लगाया गया लेकिन उनसे वसूली नहीं हो सकी जिसके कारण आज अर्थव्यवस्था अनमने से दौर में गुजर रही है। बैंको -कॉर्पोरेट्स -नेताओ की मिलीभगत से सरकारी धन लूट बरामद होने के बजाय बढ़ती दिखाई दे रही है। इसी सरकारी धन की बरामदगी को उठाये कदम आज जनता पर भारी  पड़ रहे हैं। ऐसा लग रहा है जैसे अशर्फियाँ तो लुट गई अब कोयलों पर मोहर लगाई जा रही है।
देश में तीन तरह के नागरिक हैं। एक तो वह हैं जिन्हे सिर्फ अपने पेट और अपनी तिजोरी भरने से ही मतलब है बाकि सब जाये भाड़ में। दूसरे नागरिक ऐसे हैं जो देश को बनता नहीं बल्कि बिगड़ता देख खुश होते हैं। ऐसे नागरिकों के संबंध देश विरोधी ताकतों से बहुत अच्छे हैं। तीसरे तरह के नागरिक ऐसे हैं जो अपने लिए भी कार्य करते हैं और देश के लिए भी कार्य करते हैं। लेकिन इनमे भी कुछ ऐसे हैं जो अपनी कमाई में कटौती होने पर देश की अच्छाई में भी कटौती करने से पीछे नहीं हटते। ऐसे में देश को चलाना आसान नहीं होता है। यही अब मोदी सरकार में होने जा रहा है। मोदीजी की नीतियां भले ही देशहित में हों लेकिन जनता अपना अहित होते देख पाला बदलने में देर नहीं करती। ऐसा ही कुछ रुझान इन चुनावों में देखने को मिल रहा है। हरियाणा में कांग्रेस को ३१ सीटे मिलना एवं महाराष्ट्र में कांग्रेस को ४६ और एनसीपी को ५४ सीटे मिलना इसी बात को सार्थक करता है।
देश की जनता को मुफ्त में चाहे जितना भी दे दो उसका अहसान कम होता है ,उनके ऊपर कुछ पाबंदियां लगा दो तो उसके विरोध में अहसान खत्म हो जाता है। ऐसा ही आज की राजनीति में देखने को मिल रहा है। कश्मीर से धारा ३७० हटाना ,पाकिस्तान को बिना मारे -पीटे उसके हाथ में कटोरा थमाकर उसे गिड़गिड़ाने को मजबूर कर देना मोदीजी की ही ताकत की बात है। लेकिन देश की कुछ जनता को सिर्फ अपनी फ़िक्र है देश की नहीं। ऐसे में अब मोदी सरकार को इन सब पहलुओं पर विचार मंथन करना ही होगा।    *सुनील जैन राना *

बुधवार, 23 अक्तूबर 2019



देश में बुलेट -तेजस जरूरी या साधारण रेल
October 23, 2019 • सुनील जैन राना
भारत देश आगे बढ़ रहा है। देश में सभी मोर्चो पर सुधार के कार्य चल रहे हैं।  रेलवे में भी अनेक कार्य सुधार समेत तकनीकी कार्य हो रहे हैं। हाल ही में दिल्ली -लखनऊ के लिए तेजस ट्रेन चलाई गई। बहुत सुंदर -फ़ास्ट और सुविधाजनक सीटों वाली इस रेल को सभी ने पसंद किया। अब भारत में भी विदेशो की तर्ज पर रेल बन रही हैं जो प्रत्येक दृस्टि से सही हैं। इससे पहले मोदीजी ने देश में बुलेट ट्रेन चलने की बात कही थी जिसे विरोधियों ने जुमला करार दिया था। लेकिन रेल में विकास की रफ्तार देखते हुए बुलेट ट्रेन भी सम्भव है। लेकिन इस पर होने वाला भारी भरकम खर्च अभी देशहित में नहीं है। क्योकि बुलेट ट्रेन चलाने के लिए नई रेल लाइन की जरूरत होगी ,साथ ही मजबूती और रास्ते की रुकावटों को ध्यान में रखना होगा जो अभी सम्भव नहीं लगता।
भारत की बढ़ती आबादी को देखते हुए अभी बुलेट व तेजस से ज्यादा जरूरी हैं ट्रेनों की संख्या बढ़ाना ,ट्रेनों में सुधार होना ,रेल के डब्बो की संख्या बढ़ाना ,बिना फाटक के क्रॉसिंग पर फाटक बनाना ,रेल में खाने की क्वालिटी में सुधार करना ,एसी डब्बो में से चुहिया -कॉकरोच का निराकरण करना ,ट्रेनों की लेटलतीफ़ी को नियमित करना आदि अनेको सुधार की अभी भी और जरूरत है। बुलेट ट्रेन या तेजस ट्रेन भी भारत की शान बने यह अच्छी बात है लेकिन अभी भारत में ऐसी ट्रेन में बैठने वाले और इतना खर्च करनेवालो की बहुत कमी है। तेजस ट्रेन का दिल्ली -लखनऊ किराया लगभग ४३०० रूपये बताया जा रहा है। जो इतनी दुरी के हवाईजहाज के किराये से भी अधिक है। ऐसे में सिर्फ कुछ ही लोगो के लिए इतना भरी भरकम खर्च करना शायद देशहित में नहीं है। अभी देश की बढ़ती आबादी को ध्यान में रखते हुए साधारण लेकिन सुंदर -उपयोगी एक्सप्रेस ट्रेनों की जरूरत ज्यादा है।
 *सुनील जैन राना *

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2019



आयकरदाता को सहूलियतें मिलें,व्यापार के कानून सरल हों
October 18, 2019 • सुनील जैन राना
बजट की रुपरेखा बनने से पहले आयकर में कटौती की चर्चा बहुत होती है। अज़्ज़ादी के ७० सालो बाद आज भी १३० करोड़ जनता में से सिर्फ लगभग सवा पांच करोड़ लोग ही आयकर देते हैं जो कुल जनता का लगभग ३% ही होता है। मोदी सरकार में जहां एक और लगातार आयकर में कटौती हो रही है वहीं दूसरी और आयकर दाताओं की संख्या बढ़ाने पर भी प्रयास हो रहा है। देश में जहां एक ओर सरकारी -गैरसरकारी नौकरी पेशा अच्छा वेतन प्राप्त कर रहा है वहीं दूसरी और अधिकांश आम जनता जिसे मध्यम वर्ग भी कहा जाता है वह मात्र सात से दस हज़ार का वेतन प्राप्त कर रहा है। यह देश में पनप रही असमानता को दर्शाता है।
सरकारी स्कूलों में अध्यापक को बेहताशा वेतन जबकि प्राइवेट स्कूलों में बहुत कम वेतन। सरकारी नौकरी में बेहताशा वेतन जबकि प्राइवेट नौकरी (कॉर्पोरेट नौकरी को छोड़कर )जो आम व्यापार में मिलती है उसमे वेतन बहुत कम मिलता है। अब बात करते हैं छोटे व्यापारी की तो वह खुद भी कमा रहा है और दूसरे को रोजगार भी दे रहा है। इनमे से कुछ कम कमाते हैं तो कुछ बेहताशा कमाते हैं। जो बेहताशा कमा रहे हैं उनमें से सभी पूर्ण कमाई पर आयकर नहीं देते होंगे। इसका एक कारण सरकारी विभागों  बेहताशा कानून भी हैं जिनकी पूर्ति बिना सुविधा शुल्क के नहीं होती। जितना टैक्स देना होता है उतना या उससे कम ज्यादा सुविधाशुल्क में देना पड़ जाता है। शायद इसी वजह से आम व्यापारी वर्ग में बहुत कम आयकर देते हैं।
ऐसा ही व्यापार के अनेको क्षेत्रों में हो रहा है। डॉक्टरी पेशे में तो कमाई का कोई ठिकाना ही नहीं है। फिर भी इनकी जांच नहीं होती। एक डॉक्टर रोज जगभग १०० नए मरीज देखता है। फ़ीस लगभग ५०० रूपये होती है। पर्चे पर न कोई सीरियल ,न ही कोई फ़ीस का बिल देते हैं। नाम लिखवाने को ही अनेको कानून।मरीज का इलाज कम उत्पीड़न ज्यादा। ऐसे अनेक छेत्रो के उदाहरण दिए जा सकते हैं।
सरकार को कुछ नए सिरे से यह सब बातें सोचनी होंगी। बातें सरल हैं लेकिन कठिन हैं। एक तरफ एक लाख रूपये साल की आमदनी वाले दूसरी तरफ पांच लाख और उससे भी ज्यादा आमदनी वाले। कम आमदनी वालों के लिए सरकारी योजनाएं भी सबको तो नहीं मिल पाती हैं। भ्र्ष्टाचार भले ही ऊपरी स्तर पर कम हो गया हो लेकिन निचले स्तर पर किसी भी विभाग में आसानी से तो कोई कार्य होता नहीं। इस पर अंकुश कैसे लगेगा यह बहुत बड़ी समस्या है।
सरकार को आयकर देने वालो को कुछ सुहलियते देनी चाहिये। उनके जीवन में दिए जाने वाले टैक्स के अनुरूप उन्हें सरकारी कार्यालयों के कार्यो में रियायत मिलनी चाहिए। आयकर दाताओ की संख्या बढ़ाने के लिए भ्र्ष्टाचार पर अंकुश लगाना बहुत जरूरी है। अनेक लोग खासकर व्यापारी इसलिये टैक्स नहीं देते की यदि वे ईमानदारी से भी कार्य करें तो भी बिना सुविधाशुल्क के उनकी फाईल पूरी नहीं होती। टैक्स का धन जेब में जा रहा है। यह कटु सत्य है। इसके लिए सरकार को व्यापारी नियम -कानूनों में सरलता लानी चाहिये।     *सुनील जैन राना *

खानपान में रखें सावधानी 

बुधवार, 16 अक्तूबर 2019


भारत में शिक्षा के स्वरूप में परिवर्तन होना चाहिये
October 13, 2019 • सुनील जैन राना
मोदीजी की सरकार में बहुत से कार्यो में परिवर्तन हो रहा है। शिक्षा के प्रति भी मोदी जी बहुत जागरूक हैं। कुछ परिवर्तन शिक्षा के क्षेत्र में भी होना चाहिये। भारत में सरकारी स्कूलों की स्थिति ठीक नहीं कही जा सकती है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता से लेकर स्कूलों के भवन और यहां तक की अध्यापक तक का स्तर ठीक नहीं है। अनेको सरकारी स्कूलों में ऐसे -ऐसे अध्यापक हैं जिन्हे खुद से ही पढ़ना लिखना नहीं आता। आरक्षण के आधार पर उनकी नियुक्ति हो गई है। ऐसे में यह बहुत गंभीर बात है की ऐसे स्कूलों के बच्चों का भविष्य कैसा होगा जबकि इन अध्यापकों को बहुत अच्छा वेतन मिल रहा होता है। सरकारी स्कूलों के मुकाबले प्राइवेट स्कूलों में बेहतर पढ़ाई होती है जबकि इन छोटे स्कूलों में लगभग पांच हज़ार से भी कम वेतन दिया जाता है अध्यापकों को।
शिक्षा में परिवर्तन की बात यह है की सभी स्कूलों में बच्चो को भारी भरकम बस्ते से मुक्ति मिलनी चाहिए। पढ़ाई के साथ ही परिवार -समाज -देश के प्रति कर्तव्य और जीवन की उपयोगी बातें भी बच्चों को पढानी -समझानी चाहिये। नैतिक संस्कार एवं खान पान के बारे में भी सप्ताह में एक घंटा इन सब बातों को बताने हेतु होना ही चाहिये। बड़ी कक्षाओं में पढ़ाई के साथ साथ भविष्य में रोजगार के साधन और तरीके बताने चाहिये। हालांकि ये सब बातें सरकार की प्राथमिकताओं में भी हैं लेकिन अभी जमीनी हकिकत से दूर हैं। सबसे जरूरी बात यह है की शिक्षक की गुणवत्ता होना बहुत जरूरी है। कई जगह राज्य सरकारों द्वारा बड़े पैमाने पर शिक्षक  मित्र बना दिए गये जिनमे अनेको ऐसे नामधारी शिक्षक हैं जिन्हे खुद से ही पढ़ना -लिखना नहीं आता। ऐसे में छोटे बच्चों के भविष्य के बारे में सोचकर ही डर लगता है।   *सुनील जैन राना *

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रविवार, 13 अक्तूबर 2019



भारत में शिक्षा के स्वरूप में परिवर्तन होना चाहिये
October 13, 2019 • सुनील जैन राना
मोदीजी की सरकार में बहुत से कार्यो में परिवर्तन हो रहा है। शिक्षा के प्रति भी मोदी जी बहुत जागरूक हैं। कुछ परिवर्तन शिक्षा के क्षेत्र में भी होना चाहिये। भारत में सरकारी स्कूलों की स्थिति ठीक नहीं कही जा सकती है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता से लेकर स्कूलों के भवन और यहां तक की अध्यापक तक का स्तर ठीक नहीं है। अनेको सरकारी स्कूलों में ऐसे -ऐसे अध्यापक हैं जिन्हे खुद से ही पढ़ना लिखना नहीं आता। आरक्षण के आधार पर उनकी नियुक्ति हो गई है। ऐसे में यह बहुत गंभीर बात है की ऐसे स्कूलों के बच्चों का भविष्य कैसा होगा जबकि इन अध्यापकों को बहुत अच्छा वेतन मिल रहा होता है। सरकारी स्कूलों के मुकाबले प्राइवेट स्कूलों में बेहतर पढ़ाई होती है जबकि इन छोटे स्कूलों में लगभग पांच हज़ार से भी कम वेतन दिया जाता है अध्यापकों को।
शिक्षा में परिवर्तन की बात यह है की सभी स्कूलों में बच्चो को भारी भरकम बस्ते से मुक्ति मिलनी चाहिए। पढ़ाई के साथ ही परिवार -समाज -देश के प्रति कर्तव्य और जीवन की उपयोगी बातें भी बच्चों को पढानी -समझानी चाहिये। नैतिक संस्कार एवं खान पान के बारे में भी सप्ताह में एक घंटा इन सब बातों को बताने हेतु होना ही चाहिये। बड़ी कक्षाओं में पढ़ाई के साथ साथ भविष्य में रोजगार के साधन और तरीके बताने चाहिये। हालांकि ये सब बातें सरकार की प्राथमिकताओं में भी हैं लेकिन अभी जमीनी हकिकत से दूर हैं। सबसे जरूरी बात यह है की शिक्षक की गुणवत्ता होना बहुत जरूरी है। कई जगह राज्य सरकारों द्वारा बड़े पैमाने पर शिक्षक  मित्र बना दिए गये जिनमे अनेको ऐसे नामधारी शिक्षक हैं जिन्हे खुद से ही पढ़ना -लिखना नहीं आता। ऐसे में छोटे बच्चों के भविष्य के बारे में सोचकर ही डर लगता है।   *सुनील जैन राना *

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2019



सौ रूपये में पॉल्यूशन मुक्त हो जाता है वाहन ?
October 9, 2019 • सुनील जैन राना
यह मेरा भारत महान है जिसमें अनोखे -अनोखे होते हैं काम। माननीय गडकरी जी ने विदेशो की तर्ज पर भारत में भी सड़को पर चलने वाले वाहनों के नियम सख्त कर दिए हैं। नियमो की पूर्ति न होने पर जुर्माने की राशि में भी बेहताशा बढ़ोतरी कर दी है। यह सब तो ठीक है लेकिन सरकारी खामियों को दूर करने या जनता को दी जाने वाली सुहलियतो की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया। यहां तक की पुलिस वालो की ज्यादती -मारपीट पर भी कोई संज्ञान नहीं लिया जा रहा।
सड़को की हालत ठीक नहीं है ,RTO विभाग में भ्र्ष्टाचार व्याप्त है ,आम आदमी का कार्य मुश्किल से ही हो पाता है। ऐसे में एक नै बात जो अब तक चार पहियाँ वाहनों के लिए ही होती थी अब दो पहियाँ वाहन पर भी लागू कर दी गई है वो है पॉल्यूशन सर्टिफिकेट का अनिवार्य होना। इसमें भी झंझट यह की यदि उत्तर प्रदेश में पॉलुशन सर्टिफिकेट छ माह के लिए बना है तो वह दिल्ली में सिर्फ तीन माह के लिए ही मान्य होगा। क्या नादिरशाही फरमान है यह ?इसे बदलना ही चाहिए ,देश के सभी राज्यों में समान रूप से समान समय की मान्यता होनी चाहिए।
अब इसमें भी यह बात समझ में नहीं आती की जब नए वाहनों के लिए पॉलुशन के नए नियम बना दिए गए हैं तो फिर नए सर्टिफिकेट की क्या जरूरत है ?जब BS -4 -5 -6 के नियम के हिसाब से इंजन बन रहे हैं तो पॉलुशन सर्टिफिकेट की क्या जरूरत रह जाती है ?पुराने वाहनों के लिए यह सर्टिफिकेट जरूरी किया जाना तो समझ में आता है लेकिन क्या उपभोक्ता को पेट्रोल -डीजल सही मिल रहा है ?देश में मिलावटी तेल के खेल से सभी परिचित हैं। मिलावटी तेल की धर पकड़ को कोई कार्यवाही नहीं हो रही। बस कभी -कभी किसी पेट्रोल पंप पर जांच कर इतिश्री कर लिया जाता है।
इससे भी ज्यादा चिंताजनक बात यह है की मात्र सौ रूपये में जनता का कैसा भी वाहन हो उसे पॉलुशन फ्री सर्टिफिकेट मिल जाता है। सड़को पर धुआँ छोड़ते ,पॉलुशन फ्री सर्टिफिकेट प्राप्त वाहन चलते मिल जाएंगे। फिर इस नियम का क्या औचित्य ?          *सुनील जैन राना *

गुरुवार, 10 अक्तूबर 2019



प्याज ,टमाटर के बाद अब आलू रुलायेगा ?किसान ?
October 10, 2019 • सुनील जैन राना
देश के कुछ राज्यों में प्याज के दामों में बढ़ोतरी होने से जनता से ज्यादा मिडिया ने हंगामा मचाया। अब टमाटर और आलू के बढ़ते दामों पर मिडिया परेशान है। लिखा जा रहा है की अब प्याज और टमाटर के बाद आलू रुलायेगा।
अब इसमें समझने की बात यह है की किसी भी सब्जी या वस्तु के दाम बढ़ जाने या बहुत कम हो जाने पर किसानों को सुखी या दुखी होना चाहिए। कई बार ऐसा होने पर किसान सुखी या दुखी होते भी हैं। लेकिन उनसे ज्यादा मिडिया परेशान क्यों हो जाता है?यदि किसी वस्तु के दाम बढ़ रहे हैं तो किसान को फायदा होना दिखाना चाहिए जैसे जब किसी वस्तु के दाम कम होने पर किसान को दुखी दिखाते हैं। देश की अर्थव्यवस्था की जान होता है किसान। किसान को उसकी फसल का उचित मूल्य मिले इसके लिए तो सरकार भी सदैव कार्यशील रहती है। ऐसे में मिडिया क्यों नहीं किसी फसल के दाम बढ़ने पर किसान की ख़ुशी दिखाता ?
यदि किसी फसल के दामों की बेहताशा बढ़ोतरी पर भी किसान को फायदा नहीं मिल रहा तब मिडिया को इसकी जांच पड़ताल कर कारण की हकीकत बयान करनी चाहिए और उसके निराकरण के संबंध में डिबेट आदि करानी चाहिए। महंगाई से किसान को ख़ुशी नहीं होती ,किसान को तो अपनी फसल का उचित मूल्य मिलने से ख़ुशी होती है। फिर ऐसे में किसी वस्तु के बेहताशा दाम बढ़ने से किसे ख़ुशी या आमदनी हो रही है उस पर शिकंजा कसा जाना चाहिये।      *सुनील जैन राना * 

बुधवार, 9 अक्तूबर 2019



साम -दाम -दण्ड -भेद की राजनीति
October 6, 2019 • सुनील जैन राना
राजनीति के कितने रंग हो सकते हैं इसका अंदाजा तो शायद ऊपरवाले को भी पता नहीं होगा। आज की राजनीति और स्वार्थ एक दूसरे के पूरक बन गए हैं। कोई बिरला ही होगा जो राजनीति में रहते हुए अपने लिए और अपनों के लिए कुछ धन -धान्य का उपार्जन ना करे। मोदीजी ही एकमात्र ऐसे भारतीय दिखाई दे रहे हैं जिन्होंने देश की तरक्की के लिए अपना सबकुछ छोड़ दिया हो। शायद यही कारण है की आज मोदीजी देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोकप्रियता के शिखर पर हैं।
 देश के कुछ राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में उठापटक होना ,दल बदलना आम बात हो गई है। सभी राजनीतिक दल इससे अछूते नहीं हैं। लेकिन जनता को तब बहुत अजीब सा लगता है जब गठबंधन वाले दल ही अपनी -अपनी चलाने लगें। जिनकी कुछ औकात नहीं वे भी बढ़चढ़कर अनर्गल बयानबाज़ी में लग जाते हैं। जो थोड़े मजबूत दल हैं वे मुख्यमंत्री की कुर्सी से कम बात नहीं करना चाहते। ऐसा ही महाराष्ट्र में हो रहा है। बीजेपी की सहयोगी शिवसेना ने सत्ता की कुर्सी पाने को अनर्गल बयानबाज़ी शुरू कर दी है। ठाकरे परिवार से पहली बार कोई ठाकरे बहुत सुरक्षित सीट से चुनाव में उतारा जा रहा है। उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। हालांकि अभी उनकी समझ कमजोर है लेकिन बड़बोलापन कर वे अपने को शूरवीर दिखाना चाह रहे हैं। किसी योजना के तहत कुछ पेड़ काटने को ही उन्होंने बीजेपी विरोध का मुद्दा बना लिया है। वे यह भी भूल गए की बिना बीजेपी के शिवसेना कभी भी सत्ता प्राप्त नहीं कर सकती। हालांकि पेड़ काटना अपने आप में कभी भी ठीक नहीं कहा जा सकता फिर भी कभी -कभी ऐसा जरूरी हो सकता है। ऐसे में कहीं ऐसा न हो जाये की आदित्य ठाकरे भी राहुल गांधी या तेजस्वी यादव के जैसे छाप छोड़ने लगने लगे। कुल मिलाकर ऐसा ही लगता है की आज की राजनीति सिर्फ साम -दाम -दण्ड -भेद से राज करने की नीति लग रही है।


कांग्रेस बन गई डूबता जहाज
October 4, 2019 • सुनील जैन राना
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस पार्टी आज डूबता जहाज बन गई है। राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद से तो जैसे देश कांग्रेस मुक्त ही हो रहा है। पिछले लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी के अनर्गल बयान और उनके कुछ पुराने नेताओं के पाकिस्तान प्रेम संबंधी बयानों ने कांग्रेस को करारी हार दिलाई। राहुल गांधी का चुनावो की हर सभा में मोदीजी को चोर बताना जनता को नहीं भाया। लेकिन फिर भी राहुल गांधी इसे विचारधारा की लड़ाई बताकर लड़ते रहे।
अभी भी महाराष्ट्र और हरियाणा में कांग्रेस के बड़े नेता कांग्रेस विरोधी बयान दे रहे हैं। पिछले चुनाव के कांग्रेसी हीरो बने नवजोत सिंह सिद्दू की हीरोगिरी का तो यह आलम है की इस बार कोई बी कांग्रेसी उन्हें अपने यहां चुनाव प्रचार को बुलाना भी नहीं छह रहा है। ऐसे में कांग्रेस का भविष्य अंधकार मय ही दिखाई दे रहा है। 

बुधवार, 2 अक्तूबर 2019


आज गांधी जयंती और शास्त्री जयंती है 

इन पर सुंदर हाइकु 

देश के लाल 
शास्त्री जी को नमन 
हम सबका 
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सत्य अहिंसा 
गांधी ने अपनाई 
आज़ादी पाई 
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सुनील जैन राना 


खादी और गांधी 

मंगलवार, 1 अक्तूबर 2019



उद्योगों के पानी की चैकिंग ,सरकारी पानी की नहीं ?
October 1, 2019 • सुनील जैन राना
देश भर में नये -नये कानूनों की भरमार हो रही है। मोदी सरकार के बाद से भ्र्ष्टाचार आदि पर नकेल कसी जा रही है लेकिन साथ में पर्यावरण -स्वास्थ संबंधी कानूनों में भी सख्ती की जा रही है। लेकिन जनता को यह सब अच्छा नहीं लग रहा है। जनता कहती है की कोई भी कानून बनाने से पहले सरकार उससे संबंधित सरकारी खामियां दूर करे। पर्यावरण ठीक रखने को पोलेथिन और  प्लास्टिक आदि पर बैन लगाने से पहले इसके विकल्प उपलब्ध करने चाहिए। सरकार खुद क्यों विदेशों से प्लास्टिक कचरा आयात करती है यह बताये ?
इसी तरह व्यवसायिक पानी के इस्तेमाल को पानी की गुणवत्ता की चैकिंग जरूरी है जबकि देश भर में आम आदमी को मिल रहा सरकारी पानी मानको के अनुरूप नहीं होता। देश भर में नगर -शहर -कस्बे -गाँव आदि में बनी पानी भंडारण की टंकियां क्या कभी किसी ने साफ़ होती देखी हैं ?शायद ही किसी ने अपने शहर में बनी अनेको पानी की टंकियों की सफाई होते देखी होगी। मैंने देखी थी एक बार बचपन में। लगभग ४५ साल पहले हमारे नगर की एक दो पानी भंडारण की टंकियों की सफाई की गई थी उसमे से अनेको मरे -गले -सड़े कबूतर -बंदर आदि के मृत शरीर भी निकले थे। उसके बाद आज तक कब ये टंकिया साफ़ हुई होंगी पता नहीं ?
कहने का तातपर्य यह है की आम जनता को तो प्रत्येक विभाग के कानूनों की पूर्ति करने को कहा जाता है लेकिन उन विभागों के अपने कार्य -कर्तव्य की पूर्ति विभाग करे ऐसा कभी सरकार कहते नहीं दिखती। जबकि यह दोनों बातें परस्पर पूरक हैं। सरकार को अपने विभागों को भी जनता की समस्या पूर्ति के लिए जागरूक करना चाहिए।                *सुनील जैन राना *

वरिष्ठ नागरिक

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