मंगलवार, 17 अक्टूबर 2017



आधार -गरीबी -मौत
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मिडिया में एक समाचार छाया हुआ है

झारखण्ड में आधार से लिंक न होने के

कारण लड़की  मौत ?

यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन इस हादसे

और समाचार से मिडिया क्या कहना चाहता

है?इसमें आधार कार्ड दोषी है या गरीब लड़की

दोषी है या सिस्टम दोषी है।

देश में आधार कार्ड से राशन कार्ड जोड़ने पर

लगभग तीन करोड़ से भी ज्यादा राशन कार्ड

फर्जी पाये गए। गरीबों को मिलने वाला राशन

डिपो मालिक और बचौलियो के पेट में जा रहा

था। अब यदि सरकार इस मामले की गम्भीरता

को देखते हुए राशन कार्ड को आधार से जोड़ने

के लिए अनिवार्य कर दे तो इसमें कोई हर्ज की

बात नहीं है। लेकिन इसमें सिस्टम की सक्रियता

बहुत जरूरी है। अक्सर गरीब लोगो से किसी

किसी राशन डिपो वाले का व्यवहार ठीक नहीं

होता। वह उन्हें गिरावट की नज़र से देखता है।

जबकि गरीब की मदद सरकार कर रही है ना

की वह डिपो वाला।

ऐसा ही उस लड़की के साथ हुआ होगा। लड़की

का राशन कार्ड बनने -बनवाने में कुछ खामी या

लापरवाही रही होगी। कुछ भी हो यह बहुत गलत

हुआ। ऐसा नहीं होना चाहिए था। अब हम इसमें

किसे दोषी मानें ?

सवाल यह भी है की क्या हर बात में सरकार ही

दोषी होती है। हम नागरिकों का कुछ कर्तव्य नहीं

है। हर शहर में इतने मानवतावादी संगठन होते

हैं। क्या उस लड़की को कोई भी भोजन देने वाला

नहीं मिला ?ऐसे बहुत से सवाल उठते हैं।

ऐसा नहीं है ,हर शहर में मंदिर -गुरूद्वारे हैं जहाँ

भंडारा -लंगर आदि लगते हैं। शहर के गरीबों और

भिखारियों को भी ऐसी जगह का पता रहता है और

वे भोजन के समय वहाँ पहुंच जाते हैं। ऐसा भी नहीं

है की कोई भूख से मर रहा हो और किसी को दिखाई

भी न दे। आज इन्सान चाहे जैसा भी है लेकिन इतना

भी बेदर्द नहीं है की किसी को भूख से मरता देखे और

उसको खाना खिलाने का प्रयत्न भी न करें।

मिडिया को ऐसी खबरें नकारात्मक सोच के साथ नहीं

दिखानी चाहिये। कभी कभी किसी घटना या हादसे

के पीछे कुछ व्यक्तिगत कारण हो सकते हैं। यह

तो ऐसा ही बात है की कोई मर रहा है और मिडिया

उससे माईक लगाकर पूछ रहा है की आपको कैसा

लग रहा है ?

अस्पताल के ईलाज में गरीब मर गया और उसे एम्बुलेंस

नहीं मिली तो मिडिया उस बात को मुख्य खबर बना

देता है। अब कोई मिडिया से यह पूछें की अमीर का

कोई अस्पताल में मर जाता है तो क्या उसे एम्बुलेंस

मिल जाती है ,कभी नहीं मिलती ?उसे अस्पताल के

बाहर खड़े एम्बुलेंस को ज्यादा किराया देकर बुलाना

पड़ता है। कुछ एम्बुलेंस वाले भी इतने राक्षस होते हैं

की मृतक के परिवार से सहानुभूति की बजाय ज्यादा

धन बसुलते हैं।

कुल मिलाकर यह बात है की हम जिस भारत में रहते हैं

वहाँ अभी ऐसी सुविधायें उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में हम

नागरिकों को ऐसे पीड़ितों की मदद करनी चाहिये। 

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