रविवार, 29 अक्तूबर 2017



कांग्रेस का हाथ -अलगाववादियों के साथ ?
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यदा -कदा नहीं बल्कि अक्सर ही कांग्रेस के बयान

देश विरोधी होते दिखाई दे रहे हैं।

राहुल गाँधी JNU में भारत के टुकड़े करने वालो के

समर्थन में खड़े दिखाई देते हैं तो मणिशंकर अय्यर

पाकिस्तान में हिंदुस्तान विरोधी भाषा बोलते दिखाई

देते हैं। आज चिदंबरम जी ने कश्मीर को आज़ाद

करने की वकालत कर दी है।

ऐसे बहुत से कथन हैं जो कांग्रेस की भारत विरोधी 

छवि की पुष्टि करते हैं। कश्मीर में आतंकी गतिविधियों

में सदैव अलगाववादियों का समर्थन रहा है। कांग्रेस

का सदैव अलगाववादियों को समर्थन रहा है। इसके

क्या मायने निकाले जायें ?

यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण सोच है। इसी गलत सोच के कारण

कांग्रेस भारत मुक्त होती जा रही है। इसमें बीजेपी या

मोदीजी का कोई हाथ नहीं है। सिर्फ कांग्रेस का अपना

हाथ ही जनता को दिखाई दे रहा है। 

शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2017



संजय राऊत - राहुल गांधी
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महाराष्ट्र के शेर बालाजी ठाकरे और उनकी शिवसेना

आज अपने दमखम और असूलों से भटक गई है।

सत्ता की चाहत लेकिन जनता में शिवसेना की गिरावट

उद्धव ठाकरे को परेशान कर रही है। इस परेशानी को

दूर करने की कोशिश नाकाम होने पर हताशा में अपनी

सहयोगी बीजेपी को ही यदा कदा उल्टा सीधा बोलकर

अपनी भड़ास निकाल लेते हैं उद्धव ठाकरे और उनके

प्रवक्ता आदि।

जिसप्रकार आज कांग्रेस अपने ही कारणों से देश मुक्त

होती जा रही है ,उसी प्रकार आज शिव सेना का वजूद

कम होता जा रहा है और बीजेपी का वज़ूद बढ़ता जा रहा

है। उद्धव ठाकरे इससे सीख लेने की बजाय उलटे अपने

सहयोगी दल बीजेपी को ही कोसते रहते हैं। जबकि यदि

उन्हें बीजेपी का साथ पसंद नहीं तो क्यों बीजेपी के सहयोग

से सत्ता पर आसीन हैं।

शिवसेना के संजय राऊत का यह बयान की राहुल गांधी

अब देश को चलाने के काबिल हो गये हैं बहुत हास्यापद

लगता है। महाराष्ट्र में कांग्रेस ने हमेशा ही शिवसेना को

साम्पदायिक और न जाने क्या क्या कहा है। बालाजी ठाकरे

ने भी कभी कांग्रेस का सम्मान नहीं किया। अब अपने घटते

जनाधार से चिंचित उद्धव ठाकरे लगता है कांग्रेस की शरण

में जाने की सोच रहे हैं। शायद इसीलिए अब उन्हें राहुल गाँधी

योग्य दिखाई देने लग गए हैं।

अपने इस बयान की प्रतिकिर्या को ट्वीटर पर पढ़ लेना चाहिए

उद्धव ठाकरे को। पता चल जाएगा उन्हें अपने बयान की कीमत

और राहुल गाँधी की योग्यता के बारे में। पता नहीं क्यों उद्धव

ठाकरे को घोटालों से पूर्ण कांग्रेस मन को भा रही है ,जबकि

मोदीजी की बीजेपी सरकार बिना किसी आरोप और घोटालों

के विकास की गति पर आगे बढ़ रही है।


शुक्रवार, 20 अक्तूबर 2017



दीपावली पर पटाखें बैन ?
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देश में कई जगह दीपावली पर पटाखों की बिक्री पर

बैन लगा दिया गया लेकिन पटाखें फोड़ने पर बैन नहीं

लगाया गया। वो शायद इसलिए की जब पटाखें बिकेंगे

नहीं तो फोड़ेंगे ही कैसे ?

लेकिन मेरा भारत महान है। भारतवासी भी महान हैं।

कोर्ट एवं सरकार की तरह ही किसी भी बात का तोड़

या जुगाड़ निकालने में माहिर है जनता। जिस राज्य में

बिक्री बंद थी उसके पड़ोसी राज्य से पटाखें ले आये

और फोड़ डाले।

दरअसल इस कहानी का पहलू ही गलत है। पटाखें

कोई अच्छी चीज तो है नहीं। फिर क्यों नहीं  पटाखें

बनाने पर ही बैन लगा देते। जिस प्रकार शराब बुरी

चीज है। देश के कुछ राज्यों में शराब पर बैन भी है।

उन राज्यों में शराब पीना मना है लेकिन यह भी हो

सकता है की उस राज्य में शराब की कोई बड़ी यूनिट

लगी हो। क्योंकि सरकार द्वारा शराब बनाने पर कोई

पाबंदी नहीं है।

सरकार ने आबकारी विभाग भी बनाया है और सरकार

ने मद्यनिषेध विभाग भी बना रखा है।समझ में नहीं आता

की यह कैसा नियम -क़ानून है ?

पटाखों से हानि ही हानि है लाभ कुछ नहीं फिर क्यों नहीं

पटाखें बनाने पर ही पूर्ण रूप से पाबंदी लगा दी जाये।

ऐसे दोहरे रवैये जनता के बीच आलोचना का कारण ही

बनते हैं सफल नहीं होते।


गुरुवार, 19 अक्तूबर 2017



शुभ दीपावली पर सुन्दर हाइकु
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माटी दीपक
स्वदेशी दीपावली
मनायें सब
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जला दीपक
शहीदों को नमन
करते हम
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अबकी बार
दीपक जलायेंगे
गरीब घर
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दिवाली पर
दीप जले गाँव में
आ ,गाँव चले
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बुधवार, 18 अक्तूबर 2017



अयोध्या में दीपावली -राम मन्दिर हेतु
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आज उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने अयोध्या में

लाखों दीपक जलाकर दीपावली मनाई।

इस पर मिडिया में चर्चा शुरू हो गई की कहीं यह

राम मन्दिर की शुरुवात तो नहीं।

राम मंदिर बनने के पक्ष -विपक्ष की बहस मिडिया

में शुरू हो गई। सबके अपने -अपने तर्क। कुछ का

कहना की वहाँ मंदिर बनाया ही नहीं जा सकता।

कुछ का कहना की आपसी सहमति से मंदिर बनें।

कुछ का कहना की कोर्ट के निर्णय का सम्मान हो।

कब क्या होगा यह  भविष्य के गर्त में ही छिपा है ?


लेकिन भारतीय जनमानस के मन में राम मंदिर के

प्रति गहन आस्था है। क्योंकि यह राम जन्म भूमि है

अतः राम मंदिर यहीं बनना ही चाहिये ऐसा लोगो का

कहना भी है।

मुस्लिम समुदाय में इस संबन्ध में अलग -अलग राय

हैं। कुछ चाहते हैं की यहां मंदिर बने ,कुछ चाहते हैं

की यहां मंदिर बनना ही नहीं चाहिये।

भारत देश यानि राम के देश की यह कैसी विडंबना है

की राम जन्म भूमि पर राम मंदिर बनने में भी अड़चने

आ रही हैं। इतिहास गवाह है की मुगलों ने भारत में

आक्रमण कर हज़ारो हिन्दू एवं जैन मंदिरो को तोड़ा है।

अनेक मंदिरो को तोड़कर मस्जिदें बना दी गई हैं। अनेक

जगह आज भी ऐसे शिलालेख मौजूद हैं। दिल्ली में ही

बनी कुतुबमीनार के बाहर शिलालेख पर अंकित है की

२७ हिन्दू और जैन मंदिरो के अवशेषों से मीनार बनाई

गई।

इतिहास गवाह है की इतने मंदिरो के तोड़ने के बाद भी

आज का हिन्दू समाज मुस्लिम समुदाय से भेदभाव नहीं

करता बल्कि उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलता

है। ऐसे में यदि मुस्लिम समुदाय बहुसंख्यक हिन्दुओं की

भावना का सम्मान करते हुए आपसी भाईचारे की मिसाल

कायम करते हुए आपसी सहमति से राम जन्म भूमि पर

राम मंदिर बनने में सहयोग करे तो देश और प्रदेश में

ऐसा सदभाव का माहौल बन जाये जिसको सभी कभी ना

भूल पाएंगे और आपसी संबंधो में भी मधुरता भर जायेगी।


मंगलवार, 17 अक्तूबर 2017



आधार -गरीबी -मौत
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मिडिया में एक समाचार छाया हुआ है

झारखण्ड में आधार से लिंक न होने के

कारण लड़की  मौत ?

यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन इस हादसे

और समाचार से मिडिया क्या कहना चाहता

है?इसमें आधार कार्ड दोषी है या गरीब लड़की

दोषी है या सिस्टम दोषी है।

देश में आधार कार्ड से राशन कार्ड जोड़ने पर

लगभग तीन करोड़ से भी ज्यादा राशन कार्ड

फर्जी पाये गए। गरीबों को मिलने वाला राशन

डिपो मालिक और बचौलियो के पेट में जा रहा

था। अब यदि सरकार इस मामले की गम्भीरता

को देखते हुए राशन कार्ड को आधार से जोड़ने

के लिए अनिवार्य कर दे तो इसमें कोई हर्ज की

बात नहीं है। लेकिन इसमें सिस्टम की सक्रियता

बहुत जरूरी है। अक्सर गरीब लोगो से किसी

किसी राशन डिपो वाले का व्यवहार ठीक नहीं

होता। वह उन्हें गिरावट की नज़र से देखता है।

जबकि गरीब की मदद सरकार कर रही है ना

की वह डिपो वाला।

ऐसा ही उस लड़की के साथ हुआ होगा। लड़की

का राशन कार्ड बनने -बनवाने में कुछ खामी या

लापरवाही रही होगी। कुछ भी हो यह बहुत गलत

हुआ। ऐसा नहीं होना चाहिए था। अब हम इसमें

किसे दोषी मानें ?

सवाल यह भी है की क्या हर बात में सरकार ही

दोषी होती है। हम नागरिकों का कुछ कर्तव्य नहीं

है। हर शहर में इतने मानवतावादी संगठन होते

हैं। क्या उस लड़की को कोई भी भोजन देने वाला

नहीं मिला ?ऐसे बहुत से सवाल उठते हैं।

ऐसा नहीं है ,हर शहर में मंदिर -गुरूद्वारे हैं जहाँ

भंडारा -लंगर आदि लगते हैं। शहर के गरीबों और

भिखारियों को भी ऐसी जगह का पता रहता है और

वे भोजन के समय वहाँ पहुंच जाते हैं। ऐसा भी नहीं

है की कोई भूख से मर रहा हो और किसी को दिखाई

भी न दे। आज इन्सान चाहे जैसा भी है लेकिन इतना

भी बेदर्द नहीं है की किसी को भूख से मरता देखे और

उसको खाना खिलाने का प्रयत्न भी न करें।

मिडिया को ऐसी खबरें नकारात्मक सोच के साथ नहीं

दिखानी चाहिये। कभी कभी किसी घटना या हादसे

के पीछे कुछ व्यक्तिगत कारण हो सकते हैं। यह

तो ऐसा ही बात है की कोई मर रहा है और मिडिया

उससे माईक लगाकर पूछ रहा है की आपको कैसा

लग रहा है ?

अस्पताल के ईलाज में गरीब मर गया और उसे एम्बुलेंस

नहीं मिली तो मिडिया उस बात को मुख्य खबर बना

देता है। अब कोई मिडिया से यह पूछें की अमीर का

कोई अस्पताल में मर जाता है तो क्या उसे एम्बुलेंस

मिल जाती है ,कभी नहीं मिलती ?उसे अस्पताल के

बाहर खड़े एम्बुलेंस को ज्यादा किराया देकर बुलाना

पड़ता है। कुछ एम्बुलेंस वाले भी इतने राक्षस होते हैं

की मृतक के परिवार से सहानुभूति की बजाय ज्यादा

धन बसुलते हैं।

कुल मिलाकर यह बात है की हम जिस भारत में रहते हैं

वहाँ अभी ऐसी सुविधायें उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में हम

नागरिकों को ऐसे पीड़ितों की मदद करनी चाहिये। 

रविवार, 15 अक्तूबर 2017



धन जनता का -अधिकार नेता का
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बहुत विडंबना की बात यह है की जनता के धन को

नेता लोग अपनी जागीर समझते हैं। जो धन जनता

के काम आना चाहिये उसे अपने फ़ायदे के लिये

इस्तेमाल करते हैं।

चुनावों से पहले सभी दल जनता को लुभाने के लिए

मुफ़्त में रेवड़ियाँ बाँटना शुरू कर देते हैं और चुनाव

जीतने के बाद मुफ़्त में या बहुत कम दामों पर किसी

भी वस्तु को देने की घोषणा कर देते हैं। इस कार्य में

कोई भी दल पीछे नहीं रहता। लगभग सभी दलों का

यही हाल है।

चुनाव आयोग को इस पर कठोर कानून बनाना चाहिये।

सरकार को भी मुफ़्त में कुछ भी बांटने के एलानों पर

बंदिश लगाने के कानून पारित करवाने चाहिये। जनता

का धन जनता के काम आये लेकिन अपनी जीत के लिए

वर्ग विशेष व सबके लिए मुफ़्त बांटने की बात उचित नहीं

है। जीतने के बाद भले ही सरकार गरीब जनता के हित

के लिए सब्सिडी दे या अन्य जनहित के कार्य करे। 


शनिवार, 14 अक्तूबर 2017



सब्सिडी या फर्जीवाड़ा
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आज़ादी के ७० साल भी आज भी देश की लगभग

आधी आबादी गरीब ही है। पिछली सरकारों ने भी

गरीब को सब्सिडी दे देकर गरीब ही बने रहने दिया।

यदि सब्सिडी में दिया धन गरीबों के कल्याणकारी

योजनाओं में लगाया होता तो शायद आज देश में

इतने गरीब नहीं होते।

इस बात का दूसरा पहलू यह भी है की गरीबों को दी

जाने वाली सब्सिडी पूर्ण रूप से गरीबों को न देकर

भ्र्ष्टाचार की भेंट भी चढ़ाई गई। अब मोदीजी सरकार

में गरीबों के उत्थान के लिए सब्सिडी पर निर्भरता खत्म

कर नये नये विकास के रास्ते खोजें जा रहे हैं। सब्सिडी

का फर्जीवाड़ा भी खत्म किया जा रहा है। राशन कार्ड

को आधार कार्ड से जोड़ने से पता चला की लगभग

तीन करोड़ से अधिक राशन कार्ड फर्जी बनाये गए थे।

ऐसे ही गैस के लाखों कनेक्शन फर्जी पाये गए। देश

में चल रहे लाखों NGO फर्जी पाए गये।

अब अगर आज़ादी के बाद से इन सब फर्जीवाड़ों की

धनराशि जोड़कर देखी जाये तो आप -हम अन्दाजा भी

नहीं लगा सकते की यह कितना धन हो सकता है। यही

विडंबना देश की प्रगति में बाधक रही। पिछले ७० सालों

में देश में विकास तो हुआ लेकिन वोट बैंक और फर्जीवाडे

की राजनीति ने देश को आगे नहीं बढ़ने दिया।

अब मोदी सरकार में भ्र्ष्टाचार मुक्त भारत बनाने की पूर्ण

कोशिश हो रही है साथ ही सबको रोजगार मिले इसका

प्रयास भी किया जा रहा है। दरअसल पिछले ७० साल के

गड्ढे भरने और फिर उनपर इमारत बनाने में समय तो लगेगा

ही। लेकिन देश अब आगे ही बढ़ेगा ऐसा दिखाई दे रहा है। 

गुरुवार, 12 अक्तूबर 2017



आरुषि हत्याकाण्ड -राष्ट्रीय त्रासदी ?
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लगभग ९ सालों से चल रहे आरुषि हत्याकाण्ड

को मिडिया ने ऐसे दिखाया है जैसे यह कोई

राष्ट्रीय त्रासदी हो गई हो।

भारतवर्ष में रोज ही अनेकों हत्यायें -बलात्कार

होते हैं जिनका जिक्र भी नहीं होता। मिडिया के

पास जब कोई खबर नहीं होती तब अक्सर किसी

ऐसी घटना को बढ़ा चढ़ाकर दिखा देती है जैसे

वह कोई राष्ट्रीय त्रासदी जैसी घटना हो।

अब ९ साल बाद इस हादसे की सीबीआई रिपोर्ट

को हाईकोर्ट ने झुठलाते हुए आरुषि के माता पिता

राजेश तलवार -नूपुर तलवार को सन्देह का लाभ

देते हुए बरी कर दिया।

यहीं विडंबना है हमारे देश की। पुलिस की जाँच ,

कोर्ट का न्याय के बीच पीस जाता है कथित आरोपी।

अब अगर आरुषि के माता पिता दोषी नहीं तो उनके

यातनापूर्ण बीते पिछले ९ सालों को कौन लौटायेगा ?

यदि सीबीआई की जाँच प्रभावित की गई है तबतो

बहुत ही गम्भीर बात होगी। 

मंगलवार, 10 अक्तूबर 2017



न्याय प्रणाली -न्याय में देरी -एक पक्षीय न्याय
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हमारे देश की न्याय प्रणाली पर जनता का पूर्ण विश्वास है।

न्याय की सटीकता छोटे -बड़े का अंतर नहीं देखती। चाहे

आम आदमी हो या बड़ा आदमी हो या कोई बहुत बड़ा नेता

ही क्यों न हो ,जैसा अपराध -वैसा दण्ड उसको मिलता ही है।

इसी कारण बाहुबली -माफ़िया भी मुक़दमा दर्ज होने से बचते

हैं। क्योंकि उन्हें पता है की एक बार उनके अपराध पर यदि

मुकदमा दर्ज हो गया तो देर से ही सही लेकिन उसका अंजाम

उसे भुगतना ही पड़ेगा।

अब बात आती है न्याय में देरी की,यह भी बहुत बड़ी विडंबना

ही है की कई बार न्याय में देरी पीड़ित पक्ष के लिए अन्याय ही

बन जाती है। घरेलू मुकदमों का फैसला जब तक आता है तब

तक पीड़ित पक्ष आर्थिक रूप से और शारीरिक रूप से निपट

ही जाता है। बाहुबली और माफ़िया के मुकदमों की जल्दी से

सुनवाई नहीं होती। तारीख़े लम्बी -लम्बी लगवा दी जाती हैं।

बहुत देरी कर कभी -कभी फाइलें ही गुम हो जाती हैं या फिर

गुम करवा दी जाती हैं। यही हाल बड़े नेताओं के आपराधिक

मुकदमों का होता है। ऐसे में आम आदमी या पीड़ित पक्ष का

विश्वास न्याय प्रणाली से उठ जाता है। वह सोचने लगता है की

धनपतियों का कुछ नहीं बिगड़ता ,जबकि आम आदमी की

गलती पर पुलिस उसे एक दम उठा भी ले जाती है और जेल

में भी डाल देती है और उसकी सुनवाई भी नहीं होती।

२१ साल बाद आतंकी टुंडा को दोषी पाया गया। उसे सज़ा

सुनाई गई। अब सोचो जरा की पिछले २१ सालों में सरकार

का कितना खर्च टुंडा पर हुआ होगा ?शायद उसकी किसी

बीमारी का लम्बा ईलाज भी चला। यह सब खर्च बच जाता

यदि जल्दी उसका फ़ैसला आ जाता। इसी प्रकार सन २००२

में गुजरात के गोधरा काण्ड का फैसला अब सुनाया गया।

२७ फरवरी २००२ को साबरमती एक्सप्रेस के एस ६ कोच

में अयोध्या से कार सेवा कर लौट रहे ५९ कर सेवकों को

जलाकर मार दिया गया था। १५ साल से ज्यादा चले मुकदमें

के फैसले में ६३ को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया



२० मुज़रिमों को उम्र कैद की सज़ा मिली एवं जिन ११ दोषियों

को फाँसी की सज़ा मिली थी उसे सश्रम उम्र कैद में बदल

दिया गया। न्यायाधीश महोदय ने जो भी फैसला सुनाया वह

ठीक है लेकिन जिन परिवारों के लोग मरे उन्हें इतनी देरी

से हुआ यह फ़ैसला कितना भाया होगा इसका अंदाजा हम

सभी लगा सकते हैं। हालांकि मृतकों के परिवारों को भी

दस -दस लाख के मुआवज़े का एलान किया गया।


अब आती है बात एक पक्षीय न्याय की। सोशल मिडिया

पर इसकी बहुत चर्चा रहती है। जिसमें अक्सर त्योहारों

पर कोर्ट के फरमानों का जिक्र रहता है। देश में जातिवाद

की इन्तहा  कारण ऐसे फ़रमान दूसरे पक्ष को न्याय प्रणाली

पर हमला करने का अवसर दे देते हैं। क्योंकि अक्सर कोर्ट

के फ़रमान हिंदू त्योहारों से जुड़े होते हैं इसीलिए फ़रमान से

पीड़ित पक्ष सोशल मिडिया पर अपनी भड़ास निकालता है।

होली पर कैसा रंग हो ,दही हांड़ी कितनी ऊंचाई पर हो ,

दीवाली पर पटाखों पर पाबंदी हो आदि कुछ फ़रमान हिन्दू

जनता के मन को पीड़ित करते हैं और फिर वे न्याय प्रणाली

पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए कहते हैं की अन्य धर्म की

गलत बातों पर कोर्ट क्यों नहीं बोलता ?

दरअसल भारत देश की १२५ करोड़ जनता के लाखों मुक़दमें

दर्ज हैं और प्रतिदिन दर्ज हो रहे हैं। जबकि कचहरियों और

न्यायधीशों की संख्या मुक़ाबलेतन बहुत कम है। जिसका फायदा

अक्सर दोषी पक्ष ही उठता दिखाई देता है लम्बी -लम्बी तारीखें

मुकदमों की सच्चाई ही बदल देती हैं। ऐसे में कचहरियों की

संख्या में बढ़ोतरी होनी चाहिए। न्यायधीशों के खाली पदों की

रिक्तता भरनी चाहिये।

अब एक अहम बात भारत के जनमानस की जल्दी पूरी होनी

चाहिए की राम मन्दिर विवाद पर कोर्ट का फैसला जल्दी आना

चाहिये।                                                ---    सुनील जैन राना 

मंगलवार, 3 अक्तूबर 2017



पुराने नोटों से बनें कलाकृतियाँ
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देश में पुराने १००० और ५०० के नोट बन्द हुए

लगभग ११ महीनें हो गये। सब जगह से नोटों की

गिनती का कार्य पूर्ण होकर रिजर्व बैंक में जमा भी

हो गये होंगे। अब इन नोटों का क्या होगा ?

इस बात पर सोशल मिडिया पर कभी कभी अटकलें

लगाई जाती रहीं हैं। इस संबन्ध में मेरी यह सोच है की

इन पुराने नोटों से कलाकृतियाँ बनाई जानी चाहयें।

सरकार को इन नोटों से विभिन्न प्रकार की कलाकृतियाँ

बनानी चाहियें जैसे अशोक की लॉट ,गांधीजी ,पटेल ,

भगतसिंह आदि की मूर्ति एवं ऐतिहासिक स्थल जैसे

लालकिला आदि अनेक स्थल ऐसे हैं जो जनमानस के

मन को भाते हैं।

ऐसा करने से सरकार को दो फायदे होंगे। पहला तो

यह की ऐसी कलाकृतियाँ खूब बिकेंगी ,सरकार को

राजस्व प्राप्त होगा। क्योंकि जनता के नोट थे इसीलिए

जनता को भी उन नोटों से लगाव तो रहेगा ही। ऐसे में

इन नोटों से बनी कलाकृतियाँ जनता के मन को खूब

भायेंगी। जनता के पुराने धन का सबसे सही सदुपयोग

यही लगता है।

यदि आप भी इस बात से सहमत हों तो सरकार को

इसके लिए अपने अपने स्तर से प्रेरित करें।

                                 निवेदक ---- सुनील जैन राना   


रविवार, 1 अक्तूबर 2017



गाँधी जी की खादी -बदल गया स्वरूप
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खादी और गाँधी 


2 अक्टूबर -गाँधी जयंती -शास्त्री जयन्ती
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इस पुनीत अवसर पर मेरे कुछ हाइकु

सत्य अहिंसा
गाँधी ने अपनाया
सफल हुए
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गाँधी की खादी
गाँधीजी का चरखा
मोदी का हुआ
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देश के लाल
शास्त्री जी को नमन
हम सबका
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जय जवान
है नारा शास्त्री जी का
जय किसान
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पुरानी यादें

एक जमाना था... खुद ही स्कूल जाना पड़ता था क्योंकि साइकिल बस आदि से भेजने की रीत नहीं थी, स्कूल भेजने के बाद कुछ अच्छा बुरा होगा ऐसा हमारे म...