पर्यावरण दिवस
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अनेक दिवसों की तरह पर्यावरण दिवस भी आकर चला गया।
अनेक सामाजिक संस्थाओं ने जगह जगह पौधा रोपण किया।
कुछ संस्थाओं के द्वारा पर्यावरण बचाओ पर डिबेट की गई।
सरकारी -गैर सरकारी स्तर पर कार्यक्रम हुए।
लेकिन आज से फिर वही रोजाना का कार्य शुरू। कल जिसने
जो पौधे लगाये थे उनकी देखभाल कौन करेगा पता नहीं ?
पानी बचाओ का नारा भी कल तक का था। पॉलीथीन पर पाबंदी
की बात जिसने कही थी आज वही पॉलीथिन में सामान लिए आता
दिखाई दिया। पेड़ ना काटे जाये कहने वाले नेताजी का टिंबर का
तगड़ा व्यापार है ,जहाँ रोज सैंकड़ो पेड़ के तने उनकी आरा मशीन
में काटे जाते हैं।
नदियों में गंदगी -मल -पॉलीथिन मत डालो यह नारा सरकार का है।
लेकिन पिछले ६५ सालों में गंगा जैसी नदी को ही जनता और सरकार
ने इतना प्रदूषित कर दिया है की अब गंगा को स्वच्छ करना ही कठिन
हो गया है। गंगा में जनता द्वारा कूड़ा -कचरा -पॉलीथिन डाल डाल कर
गंदगी से भर दिया है। वही दूसरी ओर कारखाने -फक्ट्रियों द्वारा गंगा
में इतना प्रदूषित पानी -कैमिकल -गंदगी बहाई जा रही है। सबसे बड़ी
समस्या सीवरेज का मल भी सीधे गंगा में बहाया जा रहा है।
दशकों से गंगा की सफाई के नाम पर करोड़ो रूपये खर्च किये जा रहे
हैं। लेकिन कार्य कुछ होता दिखाई नहीं दे रहा। अब मोदीजी सरकार
में गंगा सफाई अभियान प्राथमिकता पर है। लेकिन तीन साल बीत
जाने के बाद भी अभी तक कुछ सुधार होता दिखाई नहीं दे रहा है।
दरअसल यह सिर्फ गंगा की बात नहीं बल्कि देश की अधिकांश
नदियों का यही हाल है।
जब तक नदियों के किनारे लगे कारखाने -फैक्ट्री और शहरों के
सीवरेज के पानी को बहाने की अलग व्यवस्था नहीं होगी तब तक
कुछ भी सुधार होने वाला नहीं है।
अहम बात यह भी है की पर्यावरण को बचाने का कार्य सिर्फ सरकार
का नहीं है। हम सबको भी इस कार्य में थोड़ा -थोड़ा योगदान जरूर
देना चाहिये। तभी पर्यावरण बचाया जा सकेगा।
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