बुधवार, 15 फ़रवरी 2023
21वी सदी का धर्म
_*२१ वी शताब्दी का धर्म होगा : जैन धर्म !*_
_*लेखक : श्री मुजफ्फर हुसैन, मुंबई !*_
_*हम यहां कर्मकांड के रूप में नहीं, बल्कि दर्शन के आधार पर यह कहना चाहेंगे कि २१ वीं शताब्दी का धर्म जैन धर्म होगा ! इसकी कल्पना किसी सामान्य आदमी ने नहीं की है बल्कि ज्योर्ज़ बर्नार्ड शा ने कहा है कि यदि मेरा दूसरा जन्म हो तो मैं जैन धर्म में पैदा होना चाहता हूॅं ।*_
_*रेवरेंड तो यहाॅं तक कहता हैं कि दुनिया का पहला मजहब जैन था । और अंतिम मजहब भी जैन होगा । बार्ल्ट यू एस एस के दार्शनिक मोराइस का तो यहां तक कहना है कि यदि जैन धर्म को दुनिया ने अपनाया होता तो यह दुनिया और भी बड़ी खूबसूरत होती ।*_
_*जैन धर्म.... धर्म नहीं जीने का दर्शन है । सरल भाषा में मैं कहूॅं तो यह खुला विश्वविद्यालय है । आपको जीवन का जो पहलू चाहिए वह यहाॅं मिल जाएगा । दर्शन ही नहीं बल्कि संस्कृति, कला, संगीत एवं भाषा का यह अद्भूत संगम है। जैन तीर्थंकरोंने संस्कृत को अपनाकर पाली और प्राकृत, अर्ध-मागधी, को अपनाया क्योंकि वे जैन दर्शन को विद्वानों तक सीमित नहीं रखना चाहते थे, बल्कि सामान्य आदमी तक पहुॅंचे और उसके जीवन का कल्याण करें ।*_
_*दुनिया के सभी धर्मों ने अपने चिन्ह तय किए है । इसमें कुछ हथियारों के रूप में है तो कुछ आकाश में चमकने वाले चाॅंद - सूरज के रूप में है ! २४ तीर्थंकरों में से एक भी तीर्थंकर ऐसा नहीं दिखलाई पड़ता जिनके पास धनुष हो, बाण हो, गदा हो अथवा त्रिशूल हो । हथियारों से लैस, दुनिया का राजा अपनी शानो शौकत से अपना दबदबा बनाए रखने में अपनी महानता समझते थे, लेकिन यहाॅं तो ईश्वर के बनाए हुए पशु पक्षी अथवा जलचर प्राणी उनके साथ है ।*_
_*इंसान ने सुविधा के लिए घोड़े, हाथी, गरूड , मोर और न जाने किन-किन को अपनी 'सवारी' बनाया लेकिन जैन तीर्थंकर तो किसी को कष्ट नहीं देना चाहते हैं । वे अपने पाॅंव के बल पर सारी दुनिया को लांघते हैं और प्रकृति के भेद को जानने की कोशिश करते है। रहने को घर नहीं, खाने को कोई स्थाई व्यवस्था नहीं लेकिन फिर भी दुनिया के कष्टों का निवारण करने के लिए अपनी साधना में कोई कमी नहीं आने देते है'।*_
_*हर वाद ने व्यक्ति को छोटा कर दिया है ! लेकिन हम देखते है कि जैन धर्म में जैन विचार ने मनुष्य को सबसे महान बना दिया है ।*_
_*दुनिया के अन्य धर्म मनुष्य को सामाजिक प्राणी बनाकर उसे जीवन यापन करने के लिए लाचार बना देते हैं लेकिन यहाॅं तो जैन धर्म में मनुष्य की अपनी स्वतंत्रता सर्वोपरि है।*_
_*जैन दर्शन में हिंसा पराजित करने में तीन 'अ' का महत्व है। ये है अहिंसा, अनेकांतवाद और अपरिग्रह । तीनों एक दूसरे से जुड़े हैं । वे अलग नहीं हो सकते ।*_
_*भारत में न जीत सकने वाला सिकंदर जब एथेंस लौट रहा था तो उससे एक जैन साधु ने कहा था कि दुनिया को जीतने वाले काश तुम अपने आप को जीत सकते ! जैन साधु सिकंदर के साथ एथेंस गए थे ।*_
_*दिगम्बर जैन साधु कल्याण मुनि सिकंदर के बाद ही एथेंस में वर्षों तक लोगों को अहिंसा का संदेश देते रहे । एथेंस में सब कुछ बदल गया, लेकिन आज भी वहाॅं उन जैन साधु की प्रतिमा लगी हुई है ।*_
_*प्लेटो और एरिस्टोटल का एथेंस इतना प्रभावित हुआ कि पाइथागोरस जैसा महान गणितज्ञ यह कहने लगा कि मैं जैन धर्म का फैन हो गया हूॅं ।*_
_*२१ वी शताब्दी पानी के संकट की शताब्दी बनने वाली है । जैन मुनि तो कम पानी पीकर अपना काम चला लेते है, लेकिन हम जैसे लोग क्या करेंगे ? उसका मूल मंत्र है शाकाहार !*_
_*२१ वी शताब्दी में नारी स्वतंत्रता की बात की जाती है ! जैन धर्म में झांक कर देखो तो जैन साध्वियों को कितना बड़ा सम्मान मिलता है । वे पूजनीय है । धर्म को पढ़ाती है, सिखलाती है ।*_
_*दासी और भोगिनी को साध्वी बना देने का चमत्कार केवल जैन धर्म ने किया है समानता और स्वतंत्रता के साथ उनका स्वाभिमान स्थापित किया है।*_
_*जैन धर्म का भेदविज्ञान को साध्वी बना देने का चमत्कार केवल जैन धर्म ने किया है। समानता और स्वतंत्रता के साथ उनका स्वाभिमान स्थापित किया है ।*_
_*जैन धर्म का भेदविज्ञान आत्मा और शरीर को अलग कर देने वाला बहुत पुराना विज्ञान है । आत्मा ही तो एटम है । और समस्त दुनिया में शक्ति का संचार करती है ।*_
_*यदि आप अध्यात्म के आधार पर इसका विचार करते हैं तो फिर आपको जैन दर्शन की ओर लौटना पड़ेगा। नागरिकता और राष्ट्रीयता इन दिनों हर देश के मानव का आधार है। लेकिन जब तक समानता और स्वतंत्रता नहीं मिलती यह शब्द खोखले मालूम पड़ते हैं । मनुष्य के कष्टों का निवारण अंतर्राष्ट्रीय आधार पर उसका उद्धार केवल अनेकांतमयी जैन दर्शन के माध्यम से ही संभव है।*_
_*साभार : वीतराग वाणी*_
_*लेखक : मुजफ्फर हुसैन, मुंबई*_
_*संपर्क :*_
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_*० ९ ८ १ ९ १ ८ ६ ८ ६ ६*_
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_*श्री. मुजफ्फर हुसैन जी पूर्णतः शाकाहारी, जैन धर्म के प्रख़र समर्थक और अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार है।*_ ♏
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