शुक्रवार, 9 दिसंबर 2022
कैसा कानून ?
कैसा कानून? हत्यारा है तो सज़ा दो
पहले कसाब अब आफताब। सारी दुनिया ने क़साब को टीवी पर आतंक मचाते देखा, हत्या करते देखा फिर भी उस पर लम्बा मुकदमा चला। जेल में रखकर उसे मनपसन्द बियानियाँ खिलाई गई। लाखों रुपये उसके खाने पर खर्च किये गये। तब जाकर उसे कोर्ट से सज़ा का एलान हुआ। अब उसी की तर्ज पर आफताब पुलिस की हिरासत में है।
लड़की की हत्या का दोषी। जघन्य अपराध किया। लड़की से प्रेम के बहाने उस पर दबाब बनाकर ब्लैकमेल किया और फिर उसकी हत्या कर उसके शरीर के 35 टुकड़े कर फ्रिज़ में रखे। कितना दर्दनाक है यह सुनना और होना। पकड़े जाने पर उसने जुल्म भी कबूल लिया लेकिन कानूनी प्रकिर्या पूरी करने को उसे लेकर उन स्थानों पर ले जाया गया जहां उसने शरीर के टुकड़े डाले थे एवं हत्या करने का सामान चाकू आदि फेंके होंगे।
एक छोटे मुजरिम को पकड़ कर पुलिस उसकी ऐसी सिकाई कर देती है की वह चलने लायक नहीं रहता। लेकिन हत्यारा तो मुहँ ढककर पुलिस के साथ बड़ी शान से आ- जा रहा है जैसे उसे किसी का ख़ौफ़ ही नहीं है। पता नहीं ऐसे हत्यारों को पुलिस मुहँ ढकने ही क्यों देती है। ऐसे हत्यारे का चेहरा तो जनता को दिखाना चाहिये।
सब कुछ जान लेने, पता कर लेने के बाद भी हत्यारे का पॉलीग्राफ टेस्ट, नार्को टेस्ट आदि करने की कानूनी प्रकिर्या जनता की समझ से बाहर है। जनता में इस बात को लेकर आक्रोश है की सब कुछ जान लेने जुल्म कबूल लेने के बाद भी इतनी लंबी प्रकिर्या का क्या मतलब?
बलात्कार से लेकर ऐसे जघन्य अपराध करने वाला अपराधी चाहे कोई भी हो उसके मुक़दमे को जल्दी से जल्दी निपटा कर सज़ा का एलान कोर्ट को करना ही चाहिये। देश में बलात्कार की घटनाएं बहुत हो रही हैं। सिर्फ सज़ा से बलात्कारियों में ख़ौफ़ नहीं है। सर्वप्रथम बलात्कारी का अंग भंग करना चाहिये ताकि उसे भी जीवन भर एक एहसास रहे जैसा पीड़िता को रहता है। ततपश्चात कठोर सज़ा दी जानी चाहिये।
सुनील जैन राना
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