सोमवार, 19 दिसंबर 2022
जैन तीर्थ गिरनार जी
सोमवार १९ दिसंबर २०२२
सम्पर्क : ७८६९९-१७०७०
निर्मलकुमार पाटोदी, इंदौर
सम्पर्कः ७८६९९-१७०७०
——— गिरनार तीर्थ हाथ से गया नहीं है…
तीर्थ पर अधिकार की लड़ाई जारी है।——समाज भ्रमित नहीं हो———सही जानकारी यह है…….
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जैन धर्म के २२ वें तीर्थंकर अरिष्ट नेमिनाथ जी की गिरनार पर्वत की पांचवीं टोंक पर निर्वाण स्थली है। इस पर प्राचीन काल से पाषाण से निर्मित पवित्र चरण-चिह्न स्थापित किए हुए हैं। उर्जंयत गिरि गिरनार पर्वत की हमारी आस्था की परम वंदनीय प्रभु नेमिनाथ जी की यह सिद्ध भूमि है।
अपना जीवन धन्य करने के लिए हज़ारों वर्षों से हम जैन श्रद्धालु अपने इस तीर्थक्षेत्र की वंदना करने आते रहे हैं।
पिछले २०-२२ वर्षों से अधार्मिक, अपराधी प्रवृत्ति के कुछ असामाजिक लोग हमारी धार्मिक पाँचवीं टोंक के अंदर नेमिनाथ भगवान के चरण-चिह्न के पास न केवल बैठने लगे थे, अपितु चरणों को फूलों से ढक कर मालिक की तरह हमारे यात्रियों से निर्लज्ज व्यवहार करने लगे। उनके साथ मारपीट, हाथापाई, धक्कामुक्की और धमकी भरे शब्दों का इस्तेमाल करने लगे हैं। यही नहीं हमारे द्वारा लिए गए अहमदाबाद उच्च न्यायालय के स्थगन आदेश का गुजरात प्रशासन द्वारा समुचित पालन व्यवस्था नहीं किए जाने और उन्हें सरकारी प्रश्रय मिलने के कारण हमारी परंपरागत पाँचवीं टोंक में
न केवल छेडछाड़ करना प्रारम्भ कर दिया बल्कि पहले दत्तात्रय की छोटी मूर्ति रख दी, इसके बाद बड़ी मूर्ति रख दी गई। चरण-चिह्न के पीछे के भाग में नीचे की ओर पाषाण में उत्कीर्ण भगवान नेमिनाथ जी मूर्ति को सीमेंट से ढक दिया गया। सुनने में आया है कि अब तो इस मूर्ति को छतिग्रस्त कर दिया गया है। यह अपराधिक कार्य है।
गुजरात राज्य सरकार को ज्ञात है कि पाँचवीं पुरातत्व संरक्षित है। इसके बावजूद भी इस टोंक के अंदर और बाहर किसी भी प्रकार से पुरातत्ववीय नियमों का न स्वयं पालन किया गया और न पालन करने की व्यवस्था की गयी। सरकार की इसी लापरवाही के फलस्वरूप हमारी पाँचवीं टोंक के अंदर अकल्पनीय परिवर्तन कर दिया गया है। जिसका फ़ोटू हमारे समाज में व्यापक रूप से प्रसारित हुआ है वह यह है। इसे देख कर लगता है यह हमारे जैन धर्म का वंदनीय तीर्थ है ही नहीं।
अधार्मिक लोगों द्वारा पाँचवीं टोंक के अंदर किए गए परिवर्तनों के संबंध में गुजरात राज्य की अहमदाबाद खण्डपीठ में कम से कम पाँच प्रकरण विचाराधीन है। हमारे नेमिनाथ भगवान की इस सिद्ध स्थली के धार्मिक स्वरूप को अपरिमित नुक़सान पहुँचाने का प्रयास संविधान में प्रदत्त धार्मिक अधिकारों के बावजूद हुआ है। हमारे जैन धर्म मिली अल्पसंख्यक मान्यता के रहते हुआ है। सर्व ज्ञात है कि पांचवी टोंक की वंदना करके वापस लौटते समय हमारे मुनिराज श्री प्रबलसागर जी पर चाकू से तीन-चार बार प्राणघातक हमला किया जा चुका है। पहाड़ पर परिवर्तन किया गया है। पूरे पहाड़ को जैन धर्म की पहचान मिटाने की योजना अनुसार सब कुछ दत्तात्रय का है, यह चेष्टा कर दी गई है।
हमारे जैन धर्म और इतिहास से संबंधित दूसरी टोंक, तीसरी टोंक, चौथी टोंक पर भी हर संभव छेड़खानी की गई है। विचारणीय यह है कि सब कुछ परिवर्तन भारत के जैन समाज के के रहते हुए और समाज की राष्ट्रीय संस्थाओं के रहते हुए हुआ है।
संतोष की बात यह है कि भगवान नेमिनाथ जी की इस तप, कल्याण और मोक्ष स्थली गिरनार पर्वत पर जैन धर्म के समाज को पुनःअधिकार मिलें, इसके लिए राजस्थान और मध्यप्रदेश के दो व्यक्तियों ने संकल्प के साथ पूरे साक्ष्य जुटाकर जूनागढ़ ज़िले के न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर दिया है आर्थिक सहयोग के अभाव में भी ये दोनों श्रद्धालु कमजोरी दिखाना नहीं चाहते हैं।
धनाढ्य दिगंबर जैन समाज
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सिद्ध तीर्थराज गिरनार पर अधिकार
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के लिए सहयोग करने को तत्पर हो।
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पूरे सम्मेद शिखर जी तीर्थराज पर्वत को पर्यटन, मौज-मस्ती, पर्वतारोहण से बचाने के लिए उसे शाकाहार, अहिंसक पवित्र जैन तीर्थ घोषित कराने के लिये
समाज में जागरूकता आ गई है। यह ऐतिहासिक चेतना ही वांछित सफलता दिलायेगी
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अंतरिक्ष पार्शवनाथ जी सिद्ध और तीर्थ क्षेत्र का प्रकरण सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हैं।
जैनियों के साथ यह तो अन्याय हो रहा है।
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