शनिवार, 19 मार्च 2022
हर रोज, नई खोज
जहाँ एक ओर प्रिंट मीडिया का अपना महत्व है वहीँ दूसरी ओर टीवी मीडिया ने भी धूम मचा रखी है। समाचार पत्र का पाठक तो प्रतिदिन प्रातः ही समाचार का अवलोकन कर पत्र को लपेट कर रख देता है लेकिन टीवी के समाचार तो दिन भर चलते ही रहते हैं। कुछ विशेष समाचार हल्ला मचा मचाकर, आकर्षक शीर्षक बनाकर गाये सुनाये जाते हैं।
मीडिया - आगे दौड़,पीछे छोड़ से तातपर्य यह है की किसी घटना या दुर्घटना को एक - दो दिन बहुत तल्ख तरीके से समाचार पत्रों एवम टीवी चैनलों पर दिखाया बताया जाता है। फिर अचानक उसी घटना- दुर्घटना का समाचार ऐसे गायब हो जाता है जैसे अब उसकी कोई महत्ता न रह गई हो। जबकि उस घटना- दुर्घटना के बाद की अतिमहत्वपूर्ण जानकारी देनी चाहिये, उससे जनता महरूम रह जाती है।
अभी पिछले दिनों एक इत्र व्यापारी के यहां छापा पड़ा तो लगभग दो सौ करोड़ की नगदी के अतिरिक्त कई किलो सोना एवं कई प्रोपर्टी के कागजात मिले। दो तीन दिन तक मीडिया ने खूब हल्ला मचाया फिर अचानक सब शांत हो गया। अब जनता को यह नही पता की बाद में उस व्यापारी से पकड़ी नगदी,सोना आदि का क्या हुआ? ऐसे ही ड्रग आदि पकड़ी जाती है। दोषियों को जेल हो जाती है लेकिन ड्रग का क्या हुआ कोई पता नही करता। अवैध शराब की गाड़ियां पकड़ी जाती है। दोषी जेल में , शराब रेल में यानी उस सैंकड़ो बोतल शराब का क्या हुआ कुछ पता नहीं चलता। कुछ वर्ष पहले बिहार में ऐसे ही सैकड़ो बोतल शराब पुलिस कस्टडी में रखी थी। लेकिन बाद में पता चला की बोतलें खाली हैं तो बताया गया की शायद शराब को चूहें पी गए होंगे।
कहने का तातपर्य यह है की जब मीडिया प्रत्येक बात को जानने में सक्षम है तो मीडिया यदि किसी भ्र्ष्टाचार को उजागर करता है तो उसके बाद की खबर को भी जनता के संज्ञान में लाना चाहिए। यदि पुलिस,प्रशासन की कस्टडी में कुछ जब्त किया गया है तो बाद में उसका क्या हुआ इस बात को भी समाचार के माध्यम से बताना चाहिये। वरना हर रोज नई खोज। आगे दौड़, पीछे छोड़।
सुनील जैन राना
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