जातिवाद -खत्म हो रहा भाईचारा
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आधुनिक भौतिक युग में जातिवाद खत्म होना चाहिए था लेकिन खत्म होने की बजाय बढ़ता जा रहा है। सत्ता की
भूख इसे बढ़ा रही है। जब -जब चुनाव निकट आते हैं तब -तब जातिवादी हिंसा बढ़ जाती है। अधिकांश
राजनैतिक दल इसमें भागीदार होते हैं।
विभिन्न दलों के नेतागण यह नहीं सोचते की इसका अंजाम क्या होगा ? जातिवाद का ज़हर घोल सत्ता प्राप्त करने
वाले नेतागण अपनी उसी जाति के विकास के लिए कार्य नहीं करते जिसके बल पर उन्होंने सत्ता प्राप्त की।
इसलिए कुछ जातियाँ दशकों से गरीबी का दंश झेल रही हैं। इन पिछड़ी जातियों में सिर्फ लोग मदद या आरक्षण
से आगे बढ़ जाते हैं बाकि कौम जहां की तहँ ही रह जाती है। आरक्षण का लाभ आर्थिक आधार पर न होकर
मिलीभगत तक सीमित रह जाता है।
आजकल सोशल मिडिया पर जातिवाद संबंधित अनेक संदेश आ रहे हैं। उनके जबाब में दूसरे पक्ष के संदेश
प्रसारित हो रहे हैं। समझ में नहीं आता की ऐसा कब तक चलेगा ?ऐसे तो समाज में से भाई चारा खत्म होकर
मनमुटाव ही फ़ैल रहा है।
जनता जनार्दन भी बिना सोचे समझे इन बरगलाने वाले नेताओं का साथ देने सड़को पर आ जाती है। जबकि
ऐसे नेताओ द्वारा किसी का भला न हुआ है ना ही होगा। क्योकि इन नेताओ को अपनी कौम की चिंता नहीं है
इन्हे तो सिर्फ अपनी नेतागिरी चमकानी होती है।
सरकारें बदलती रहती हैं। कोई भी सरकार सभी के लिए बहुत कुछ नहीं कर सकती। जनता को मूलभूत
सुविधाएँ ही मिल जाए यही बहुत बड़ी बात होती है। सभी के विकास के लिए तो सभी को सार्थक प्रयास
करने होंगे। सिर्फ सरकारी मदद के भरोसे तो कुछ होने वाला नहीं है। आज़ादी के ७० सालों बाद भी गरीब
गरीब ही क्यों है ,यह भी बहुत चिंतनीय बात है।
देश की जनता एक दूसरे की पूरक है। सभी के कार्य आपसी सहयोग से होते हैं। एक दूजे के बिना किसी
का गुजारा नहीं। फिर क्यों हम सत्ता के भूखे नेताओ की बातों में आकर आपस में लड़ रहे हैं। मिडिया पर
जातिवाद के कटु संदेश आपस का भाईचारा खत्म कर रहे हैं। इस आधुनिक युग में जातिवाद खत्म हो जाना
चाहिए। प्रत्येक धर्म वालों को आपसी सदभाव बनाने के प्रयास करने चाहिए। वरना इस पर मेरा चिंतनशील
हाइकु ******* ले ही डूबेगा
जात पात का भेद
हम सभी को
*सुनील जैन राना *