NGO =सेवा भावना या लूट के खाना
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देश में NGO की भरमार थी। मोदीजी के आने के बाद
कुछ कम हो गई। मोदीजी ने लगभग ३३ हज़ार NGO
में से लगभग २० हज़ार NGO पर पाबंदी लगा दी।
NGO से तातपर्य सेवा भावना से जनहित के कार्य करना
होता है लेकिन पिछले ६५ सालों में अधिकांश NGO द्वारा
सेवा कार्य हेतु प्राप्त धन स्वहित में लगाया जाने लगा। कोई
कहने सुनने वाला नहीं था। खुद भी खाओ और दुसरो को
भी खिलाओ। जिस कार्य के लिए धन मिला था उसे न करो।
देश में विदेशों से NGO के लिए बहुत मोटा धन आता था।
जो सेवा कार्य में खर्च ना होकर NGO के कर्ता धर्ताओ की
जेब में जाता था।
मोदी सरकार ने NGO की जाँच में दोषी पाए गए लगभग
२० हज़ार NGO बन्द करा दिए। बाकि के NGO भी जाँच
के घेरे में हैं। सही बात है गरीबों की भलाई के लिए मिला
धन गरीब के ही काम आना चाहिए।
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