अशर्फियाँ लुट रही -कोयलों पर मोहर लग रही
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देश में एक तरफ विकास का वातावरण बना हुआ है।
मोदीजी की नीतियाँ देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी
सराही जा रही हैं। लेकिन दूसरी तरफ देश में विकास
की गति तेज़ होने की बजाय कम होती दिखाई दे रही
है। आँकड़े बता रहे हैं की उद्योगों की ग्रोथ रफ्तार में
कमी आयी है। पहले नोटबंदी और अब Gst के कारण
कामधंधे मंदे हो रहे हैं।
अब बात करें जनता की तो जनता को महंगाई से राहत
तो जरूर है लेकिन गैस और तेल जैसी जरूरत की चीजों
ने राहत में सेंध लगा दी है। सरकारी तौर पर देंखे तो ऐसा
लगता है जैसे सरकार अशर्फियाँ लुटाने में परहेज़ नहीं
कर रही और कोयलों पर मोहर लगाने से भी नहीं चूक
रही।
बड़े घरानों पर लाखों करोड़ का एनपीए है यानि बैंको का
धन /लोन है। उनसे सरकार बसूल नहीं रही या बसूल नहीं
पा रही। जबकि जनता की राहत के कुछ हज़ार करोड़
पर पाबंदी लगा रही। आम जनता के घर घर में काम आने
वाली गैस पर से कुछ हज़ार करोड़ बचाने को जनता को
परेशानी में डाल रही।
ऐसी अनेक बातें हैं जो लिखी जा सकती हैं। सरकार की
एयर इंडिया जो सदैव घाटे में ही रहती है शायद भ्र्ष्टाचार
के कारण उसे उबारने के लिए हज़ारो करोड़ दे देगी लेकिन
भ्र्ष्टाचार पर लगाम फिरभी नहीं लगी ?जबकि अन्य निजी
विमानन कम्पनियाँ हमेशा लाभ में ही रहती हैं। ऐसे ही
सरकारी बैंक जो कॉर्पोरेट्स से मिलीभगत कर बसूला ना
जाने वाला लोन बाँट देते हैं। सरकार इनपर कार्यवाही नहीं
करती जबकि एक आम आदमी का छोटा लोन ना चूका पाने
पर बैंक उसके साथ ज्यादती कर बैठता है।
कहने का तातपर्य यह है की देश में ऐसा माहौल हो रहा है
जिससे लगता है की अशर्फियाँ लुट रही और कोयलों पर
मोहर लग रही।
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