सही है यार -सही नहीं है यार
---------------------------------
सरकारी विज्ञापनों में म्यूचलफण्ड का विज्ञापन
अक्सर दिखाया जा रहा है जिसमे म्यूचलफंड
में निवेश को *सही है यार* सही बताया गया है।
एक गरीब आदमी को ६००० का बोनस मिला
उसने अपने दोस्त से पूछा की कहाँ निवेश करूँ ?
तब उसका दोस्त उसे बताता है की म्यूचलफंड
में आँख मीचकर निवेश कर दे। सही है यार।
यह विज्ञापन कहाँ तक उचित है। क्या उसके
दोस्त की बात ठीक है या विज्ञापन की बात ठीक
है ?यह बहुत चिंतन का विषय है। हालांकि विज्ञापन
के आखिर में म्यूचलफंड के जोखिम की बात ना
पढ़े जाने वाले शब्दों में लिखी दिखाई जाती है।
सही है यार वाली बात बिलकुल सही नहीं है।
यदि उस गरीब को कुछ ही महीने में रुपयों की
जरूरत पड़ गई तो म्यूचलफंड वाले बिना बताये
उसकी धनराशि में से १%रकम काटकर दे देंगे।
बाजार का जोखिम ऐसा है की उस गरीब के ६०००
में बढ़ोतरी हो या ना हो लेकिन जरा सा शेयर बाजार
टूटते ही उसकी धनराशि में कितनी कमी आ जाए
कुछ नहीं पता। जैसे कल तक शेयर बाजार बुलंद
था लेकिन आज निफ़्टी के १५० प्वाइंट से ज्यादा टूट
गए। जिसका खामियाजा कल को ही उपभोक्ता को
भुगतना पड़ेगा।
म्यूचलफंड के जोखिम कौन पढ़ता है कौन ठीक से
बताता है। अधिकांश ब्रोकर अपने कमीशन में लगे
रहते हैं और पूरी बात नहीं बताते। खासकर गरीब
इंसान जिसे निवेश का स्वरूप ही पता नहीं होता वह
किसी की भी बातों में फस सकता है। गरीब आदमी
के लिए तो बैंक की एफडी ही सबसे सुरक्षित निवेश
है। म्यूचलफंड का जोखिम झेलना उसके बस की
बात नहीं है।
इसलिये *सही है यार *वाला विज्ञापन सही नहीं है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें