ख़ुदकुशी कौन कर रहा है और क्यों ?
January 20, 2020 • सुनील जैन राना • भ्र्ष्टाचार
भारत के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा वर्ष २०१८ के सर्वे में जानकारी दी है की देश में प्रतिदिन औसतन ३५ बेरोजगार, ३६ स्वयंरोजगार एवं २८ किसानों ने आत्महत्या की जो क्रमशः लगभग १३१४९ ,१२९३६ ,१०३४९ की संख्या रही। गौरतलब बात यह भी है की पिछले साल २०१७ की तुलना में ३.६ प्रतिशत ज्यादा हैं। इसके अतिरिक्त घरेलू महिलाओं में भी आत्महत्या करने की प्रवृति बढ़ती जा रही है। २०१८ में ४२३९१ महिलाओं ने आत्महत्या की। देश के चार राज्यों में सबसे ज्यादा आत्महत्या के मामले दर्ज किये गए हैं जिनमे प्रथम -महाराष्ट्र ,द्वितीय -तमिलनाडु ,तृतीय -प.बंगाल ,चतुर्थ -मध्यप्रदेश है।
यह सब बहुत विडंबना की बात है। ऐसा लगता है की उपरोक्त तीन प्रकार के लोगो की समस्या समान हो सकती है जिसका उत्तर है कर्ज। गरीब इंसान कर्ज के जाल में ऐसा फंस जाता है की परेशान होकर ख़ुदकुशी ही करने की सोच लेता है। भारत देश में गरीब आदमी को किसी कार्य हेतु कर्ज मिल जाये यही बड़ी बात है। फिर उस कर्ज को कैसे चुकाए यह उससे भी बड़ी बात है। बस यही बड़ी बात गरीब आदमी को मौत के मुँह तक ले जाती है।
सरकार गरीबों के लिए अनेको योजनाएं तो चलाती है लेकिन उसका लाभ जरूरतमंद लाभार्थी तक पहुंचे यह सुनिश्चित नहीं कर पाती है। भ्र्ष्टाचार सबकी नसों में ऐसा समाया हुआ है की बिना सुविधाशुल्क के कार्य पूर्ण नहीं होता है। सरकारी -गैरसरकारी बैंको के लोन देने और उसे बसूलने की प्रकिर्या गरीब आदमी और अमीर आदमी से अलग -अलग है। गरीब आदमी से बैंक वाले बहुत बेदर्दी से पेश आते हैं। कहीं -कहीं उत्पीड़न के मामले भी उजागर हुए हैं। ऐसे में बैंको के अतिरिक्त प्राइवेट फाइनेंसर तो गरीबों को बहुत महंगे ब्याज पर लोन देते हैं। उसमे से भी ब्याज अग्रिम काटकर बाकि धनराशि देते हैं। ब्याज की किश्तों का भूटान मासिक आधार पर तय करते हैं। ऐसे में जो समय पर ब्याज न दे पाए उससे बहुत बेदर्दी से पेश आते हैं उसका सामान उठा ले जाते हैं। उसका इतना उत्पीड़न करते हैं की जिसकी पूर्ति कभी -कभी आत्महत्या से ही होती है।
अब रही बात महिलाओं की तो महिलाओं की परेशानियों का तो कोई अंत ही नहीं है। ऐसे में कमजोर दिल महिलाएं आत्महत्या जैसा कदम उठा लेती होंगी। इसके लिए हम सभी जिम्मेदार हो सकते हैं। गरीब किसान -बेरोजगार -छोटे रोजगार वालो के लिए सरकार तो बहुत कुछ करना चाहती है और कर भी रही है लेकिन सरकारी योजनाओं का लाभ उनतक पहुंचे इसके लिए हम सभी को जागरूक होकर उनकी सहायता करनी चाहिए। * सुनील जैन राना *
यह सब बहुत विडंबना की बात है। ऐसा लगता है की उपरोक्त तीन प्रकार के लोगो की समस्या समान हो सकती है जिसका उत्तर है कर्ज। गरीब इंसान कर्ज के जाल में ऐसा फंस जाता है की परेशान होकर ख़ुदकुशी ही करने की सोच लेता है। भारत देश में गरीब आदमी को किसी कार्य हेतु कर्ज मिल जाये यही बड़ी बात है। फिर उस कर्ज को कैसे चुकाए यह उससे भी बड़ी बात है। बस यही बड़ी बात गरीब आदमी को मौत के मुँह तक ले जाती है।
सरकार गरीबों के लिए अनेको योजनाएं तो चलाती है लेकिन उसका लाभ जरूरतमंद लाभार्थी तक पहुंचे यह सुनिश्चित नहीं कर पाती है। भ्र्ष्टाचार सबकी नसों में ऐसा समाया हुआ है की बिना सुविधाशुल्क के कार्य पूर्ण नहीं होता है। सरकारी -गैरसरकारी बैंको के लोन देने और उसे बसूलने की प्रकिर्या गरीब आदमी और अमीर आदमी से अलग -अलग है। गरीब आदमी से बैंक वाले बहुत बेदर्दी से पेश आते हैं। कहीं -कहीं उत्पीड़न के मामले भी उजागर हुए हैं। ऐसे में बैंको के अतिरिक्त प्राइवेट फाइनेंसर तो गरीबों को बहुत महंगे ब्याज पर लोन देते हैं। उसमे से भी ब्याज अग्रिम काटकर बाकि धनराशि देते हैं। ब्याज की किश्तों का भूटान मासिक आधार पर तय करते हैं। ऐसे में जो समय पर ब्याज न दे पाए उससे बहुत बेदर्दी से पेश आते हैं उसका सामान उठा ले जाते हैं। उसका इतना उत्पीड़न करते हैं की जिसकी पूर्ति कभी -कभी आत्महत्या से ही होती है।
अब रही बात महिलाओं की तो महिलाओं की परेशानियों का तो कोई अंत ही नहीं है। ऐसे में कमजोर दिल महिलाएं आत्महत्या जैसा कदम उठा लेती होंगी। इसके लिए हम सभी जिम्मेदार हो सकते हैं। गरीब किसान -बेरोजगार -छोटे रोजगार वालो के लिए सरकार तो बहुत कुछ करना चाहती है और कर भी रही है लेकिन सरकारी योजनाओं का लाभ उनतक पहुंचे इसके लिए हम सभी को जागरूक होकर उनकी सहायता करनी चाहिए। * सुनील जैन राना *
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