मंगलवार, 7 जनवरी 2020


निर्भया के बलात्कारियों को फाँसी -लेकिन क्या ?
January 7, 2020 • सुनील जैन राना • जनहित

सुप्रीमकोर्ट द्वारा दिया गया ऐतिहासिक फैसला ,लेकिन क्या यह अंतिम फैसला है ?
लगभग ८५ महीने के अंतराल के बाद निर्भया के दरिंदे -बलात्कारियों के पक्ष में फांसी का फैसला सुनाया गया है। जानकार बताते हैं की अभी भी इस फैसले के खिलाफ क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल किया जा सकता है। यही नहीं उसके बाद भी राष्ट्रपति जी से दया की भीख मांगी जा सकती है।
 जनता की समझ में  ऐसे जघन्य मामलों में न्याय मिलने में इतनी देरी होना न्यायसंगत नहीं है। कहते हैं की अक्सर देर से मिला न्याय भी अन्याय समान हो जाता है क्योंकि इतनी लम्बी लड़ाई लड़ने में पीड़ित के परिवारों का ही पतन हो जाता है। निर्भया के मामले में निर्भया की माता आशा देवी और उसके पिता बद्री सिंह की हिम्मत ही है जो सात सालों तक न्याय की गुहार लगाते भटकते रहे। निर्भया के चारों बलात्कारी पवन ,मुकेश ,विनय और अक्षय को २२ जनवरी को प्रातः ७ बजे फांसी दी जायेगी ?
निचली अदालत ,हाई कोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट में इतने लम्बे समय तक मुकदमा चलना पीड़ित परिवार के उत्पीड़न जैसा ही है। ऐसे में यदि पीड़ित परिवार बहुत गरीब हो तो वह वैसे ही इतनी लम्बी लड़ाई नहीं लड़ सकता। समझ में नहीं आता की ऐसे जघन्य अपराध करने वालों को गरीब होने पर भी वकील आदि कैसे उपलभ्ध हो जाते हैं ?फांसी की सज़ा के बाद भी यदि अपराधी गरीब हैं तो सरकार उन्हें वकील उपलभ्ध कराएगी ऐसा प्रावधान है जबकि पीड़ित परिवार को कोई ऐसी सुविधा  नहीं दी जाती। यह कैसा कानून है ?
बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के मुकदमें एक माह में निपट ही जाने चाहियें। दोषी का पहले अंग भंग हो फिर फांसी पर लटकाया जाए तभी बलात्कार के मामलों में कमी आएगी। * सुनील जैन राना *

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