बुधवार, 15 नवंबर 2017
आलू की फैक्ट्री -उगले सोना मोती
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इतिहास में लिखी जायेंगी कांग्रेस के आका राहुल गांधी
की नई -नई खोज।
कुछ समय पहले राहुल गांधी ने कहा था की किसान
आलू की फैक्ट्री क्यों नहीं लगाते ?
अब राहुल गांधी कह रहे हैं की मै ऐसी मशीन बनाउँगा
जिसमें एक तरफ से आलू डालेंगे तो दूसरी तरफ से सोना
निकलेगा। लोगो के पास इतना धन आ जायेगा की सोचेंगे
की इतने धन का अब क्या करें ?
राहुल गांधी के मुँह में घी -शक़्कर। भगवान उनकी मुराद
पूरी करे। वे जल्दी ही ऐसी मशीन इज़ाद करे जो आलू को
सोने में बदल दे।
वैसे राहुल गांधी के इस बयान पर आ रही प्रति किर्याएँ रोचक
हैं। उनको अनेक उपाधियों से नवाज़ा जा रहा है। कांग्रेस का
सम्पूर्ण वरिष्ठ दिग्गज वर्ग इस पर चुप है। शायद उनको समझ
नहीं आ रहा है की राहुल गांधी के ऐसे -ऐसे बयानों पर क्या
जबाब दे ?
शनिवार, 11 नवंबर 2017
क्यों है बरपा -कोहरा -कोहासा -धुआँ
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सर्दी का मौसम आते ही कोहरा -कोहासा -धुँआ
छा जाता है आसमान पर।
वैसे तो यह कोई नई बात नहीं है लेकिन कुछ बातें
जरूर नई सी हैं।
प्रकृति से छेड़छाड़ के कारण पर्यावरण असन्तुलन
भी बहुत बड़ा कारण है।
दूसरा सबसे बड़ा कारण है प्रतिवर्ष लगभग एक करोड़
से ज्यादा नये वाहन सड़कों पर आ रहे हैं।
बड़े शहर ही नहीं बल्कि छोटे शहर -कस्बे -गावँ -देहात
जहाँ पहले इक्का -दुक्का कार दिखाई देती थी आज सभी
जगह वाहनों की कतार दिखाई देती है।
यही सब वाहन जब सड़कों पर चलते हैं तब होता है प्रदूषण।
कुछ नहीं है इसका कोई उपाय ?
बस सरकारी -गैर सरकारी स्तर पर की जाती रहेंगी बहस।
गुरुवार, 9 नवंबर 2017
नाम सहारा -खुद हैं बे सहारा
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भारत देश के उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ
की जानी मानी हस्ती सहारा सुप्रीमों सुब्रतराय सहारा
के बारे में आज के मुख्य समाचार पत्रों में सहारा इंडिया
की ४०वीं जयंती पर पुरे -पुरे पेज के विज्ञापन प्रकाशित
किये गये। जिसमें वर्ष २०१७-१८ को सहारा संकल्प वर्ष
के रूप में मनाने की घोषणा की गई।
विज्ञापन में सहारा इंडिया परिवार से जुड़े लोगो के विचार
लिखे गए। जिसमे श्री सुब्रतराय सहारा का गुणगान किया
गया। उन्हें सबका मार्ग दर्शक -पिता समान -परम् पूज्य
आदि अनेक उपाधियों से नवाज़ कर उनके प्रति अपनी
कृतग्यता प्रगट की गई।
श्री सुब्रतराय सहारा ने सन १९७८ में २००० रूपये से कार्य
की शुरुवात कर सहारा इंडिया की स्थापना की जिसकी
आज की तारीख में चल -अचल सम्पत्ति लगभग १७३ लाख
करोड़ रूपये बताई जा रही है। साथ ही बताया गया की
लगभग ६२००० करोड़ की देनदारी भी बताई गई। साथ ही
यह उल्लेख भी किया गया की देनदारी से तीन गुना सम्पत्ति
है सहारा इंडिया के पास।
क्या विडंबना की बात है की इतना सबकुछ वैभव पाने वाले
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जेल क्यों गए और अब बेल पर क्यों हैं ?
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लाखों करोड़ो के विज्ञापन देने वाले क्यों नहीं लाखों गरीबों के
जमा करे रूपये -पैसे वापस कर रहे हैं ?
सहारा इंडिया परिवार क्यों सहारा सुप्रीमो की आरती उतार
रहा है ?
लाखों गरीबों की मेहनत की कमाई जो उन्होंने सहारा इंडिया
में लगाई अब उन्हें क्यों वापस नहीं दी जा रही है ?
सिर्फ ९००० हज़ार करोड़ रूपये लेकर विजय माल्या फरार है
और ६२००० हज़ार करोड़ देनदारी वालों की आरती उतारी जा
रही है। जबकि विजय माल्या पर बैंको का बकाया है और सहारा
सुप्रीमों पर गरीब आदमियों का बकाया है।
यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। देनदारी से तीन गुना सम्पति होने के
बावजूद गरीब जनता का धन वापिस ना करना और फिर भी
अपना गुणगान कराना मानवता का गला घोंटना जैसा ही है।
अपने आप को सहारा श्री कहलवाने वाले खुद में बे सहारा
ही लगते हैं।
मंगलवार, 7 नवंबर 2017
म से मनमोहन सिंह - म से मोदीजी
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नोटबंदी के एक साल पुरे होने पर पूर्व पीएम
मनमोहन सिंह और वर्तमान पीएम मोदीजी
के बयानों -कार्यों पर जंग छिड़ी है।
मनमोहन सिंह ने नोटबंदी को बहुत बड़ी भूल
या गलती बताया बल्कि इसे लूट तक करार दे
दिया। उनकी बातों का जबाब देते हुए वित्तमंत्री
अरुण जेटली ने नोटबंदी के फायदे गिनाये।
देश के कई राज्यों में चुनावी माहौल है अतः कोई
भी नेता अपने -अपने तरीके से अपनी बात कहने
से नहीं चूक रहे। सत्ता पक्ष नोटबंदी को देशहित
में अच्छा निर्णय बताता है तो विपक्ष नोटबंदी को
बहुत बड़ा घपला -बहुत गलत कदम बता रहा है।
सबकी अपनी -अपनी बात है। मोदीजी ने देशहित में
काला धन बाहर लाने को इतना बड़ा कदम उठाया
लेकिन हर कार्य में भ्र्ष्टाचार की आदत पाले भारतीय
इस कार्य में भी पीछे नहीं रहे। सबने अपना पुराना धन
यानि बंद हो जाने वाले नोट बदलवा लिए। इस कार्य
में अधिकांश बैंक वाले भी सहयोगी रहे। उन्होंने उनका
काला धन भी बदलवा दिया जिसे मोदीजी रोकना चाहते
थे।
कुछ भी हो लेकिन एक बात तो सभी को माननी पड़ेगी
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की नोटबंदी से अलगाववादियों -आतंकियों की फंडिंग
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में बहुत कमी आयी है। हवाला कारोबार में बहुत कमी
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आयी है। बेहताशा खर्च में बहुत कमी आयी है। चुनावों
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में नेताओं के खर्च में बहुत कमी आयी है। अभी भी कुछ
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लोग कहते हैं की हमें नोट बदलने के समय फुरसत नहीं
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मिली थी अतः हमें नोट बदलने का एक मौका और दिया
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जाये तो इसपर आम जनता के जबाब ही पढ़ लेने चाहिये।
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लगता है की शायद कुछ नेताओं -माफियाओं के नोटों से
भरे गोदाम बिना बदले रह गये हैं। उनकी चिंता सरकार
को नहीं करनी चाहिए क्योंकि वह धन जनता से लूटा गया
धन ही था ?
शुक्रवार, 3 नवंबर 2017
बुरा समय क्या -क्या करवा देता है ?
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समय बलवान होता है। इंसान के जीवन में उसके
ग्रहो अनुसार समय की अनुकूलता और प्रतिकूलता
निश्चित रहती है।
कांग्रेस के एकमात्र वर्तमान और भावी आका राहुल
गाँधी बहुत समय से समय की प्रतिकूलता झेल रहे
हैं। जब से राहुल गाँधी ने कमान संभाली है तब से
उन्हें सभी जगह लगातार हार का सामना करना पड़
रहा है।
वर्तमान में कांग्रेस के बड़े बड़े दिग्गज घर बैठे हैं और
राहुल गाँधी भरपूर जोर आजमाइश में लगे हैं। लेकिन
इसे विडंबना ही कहा जायेगा की जिन राहुल गांधी से
बड़े -बड़ो को भी मिलने का समय नहीं मिलता आज
राहुल गांधी पर हार्दिक -जिग्नेश आदि कल के छोकरे
राहुल गांधी पर भारी पद रहे हैं। अपनी शर्तो पर बात
कर रहे हैं।
सत्ता की चाहत भी न जाने क्या -क्या करवा देती है।
बुधवार, 1 नवंबर 2017
भ्र्ष्टाचारी - बैंक अधिकारी
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किसी भी देश के विकास में बैंको का योगदान सर्वोपरि होता है।
भारत देश के आर्थिक विकास में भी बैंको की भागेदारी सर्वोपरि
ही है। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है की हमारे देश में कुछ बैंको
की कार्य प्रणाली विकास की राह में रोड़ा बनी हुई है।
भारत देश पहले ही आतंकवाद -अलगाववाद -माफ़िया आदि के
कारनामों से जूझ रहा है। ऊपर से जले पर नमक छिड़कते रहते
हैं कुछ बैंक अधिकारी। यह बात अजीब सी लग सकती है की
उपरोक्त नामों के साथ बैंक अधिकारियों को जोड़ना न्यायसंगत
नहीं है। लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जो आतंकवाद से भी खतरनाक
हो रही हैं।
मोदीजी ने काला धन बाहर निकालने को नोटबंदी का ऐलान किया।
लेकिन यह सफल होता अभियान बैंको के द्वारा ही विफल सा हो
गया। सभी के नोट बदले गए। सभी का काला धन बदला गया। इसमें
बैंको भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता। आम आदमी के सभी
पुराने नोट कुछ ले देकर बदले ही गए। यह बहुत बड़ी देश द्रोह जैसी
बात है।
अधिकांश बैंको द्वारा लोन के रूप में दिया जाने वाला धन बिना किसी
सुरक्षा के कुछ लेकर दे देना ही देश के साथ धोखा है। अधिकांश
सरकारी बैंक अधिकारी ऐसा धोखा कर रहे हैं। अपनी सुविधा शुल्क
प्राप्ति के बदले कुछ बैंक अधिकारी जनता का धन फर्जी कार्यो के
लिए दे देते हैं। मोदी सरकार ने ऐसी ही लाखों फर्जी कम्पनियाँ बंद
करने के आदेश दे दिए हैं जिन्होंने बैंक अधिकारियों की मिलीभगत
से लाखों करोड़ रूपये डकार लिए हैं। अब इस धनराशि को बैंक
एनपीए करार देकर बट्टे खाते में डाल देते हैं। कुछ प्राइवेट बैंक भी
इस कार्य से अछूते नहीं हैं। जबकि कुछ सरकारी बैंको ने तो हद ही
कर रखी है। जनता की भलाई के धन को ऐसे लुटाना आतंकी घटनाओं
से भी अधिक हानिकारक है।
प्रॉपर्टी के खेल में भी बैंक अधिकारियों ने बाज़ी मार रखी है। एक आम
आदमी को छोटा सा लोन लेने में ही पसीने आ जाते हैं लेकिन बड़े घरानों
माफियाओं को करोड़ो के लोन बिना पर्याप्त सुरक्षा के घर बैठे ही मिल
जाता है। एक प्रॉपर्टी पर मिलीभगत से कई कई लोन भी दे दिये जाते हैं।
ऐसी बहुत सी अनेक बातें कही सुनी जा सकती हैं। बैंको के ऐसे खेल
देश के विकास की गति में तो बाधक हैं ही साथ ही जनकल्याणकारी
योजनाओं में भी बाधक बन जाती हैं। बैंको की ऐसी करतूतें आतंकी
घटनाओं से भी ज्यादा देश के लिए घातक बन जाती हैं। सरकार की
योजनायें विफल हो जाती हैं। ऐसा होना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बात है।
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