नाम सहारा -खुद हैं बे सहारा
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भारत देश के उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ
की जानी मानी हस्ती सहारा सुप्रीमों सुब्रतराय सहारा
के बारे में आज के मुख्य समाचार पत्रों में सहारा इंडिया
की ४०वीं जयंती पर पुरे -पुरे पेज के विज्ञापन प्रकाशित
किये गये। जिसमें वर्ष २०१७-१८ को सहारा संकल्प वर्ष
के रूप में मनाने की घोषणा की गई।
विज्ञापन में सहारा इंडिया परिवार से जुड़े लोगो के विचार
लिखे गए। जिसमे श्री सुब्रतराय सहारा का गुणगान किया
गया। उन्हें सबका मार्ग दर्शक -पिता समान -परम् पूज्य
आदि अनेक उपाधियों से नवाज़ कर उनके प्रति अपनी
कृतग्यता प्रगट की गई।
श्री सुब्रतराय सहारा ने सन १९७८ में २००० रूपये से कार्य
की शुरुवात कर सहारा इंडिया की स्थापना की जिसकी
आज की तारीख में चल -अचल सम्पत्ति लगभग १७३ लाख
करोड़ रूपये बताई जा रही है। साथ ही बताया गया की
लगभग ६२००० करोड़ की देनदारी भी बताई गई। साथ ही
यह उल्लेख भी किया गया की देनदारी से तीन गुना सम्पत्ति
है सहारा इंडिया के पास।
क्या विडंबना की बात है की इतना सबकुछ वैभव पाने वाले
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जेल क्यों गए और अब बेल पर क्यों हैं ?
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लाखों करोड़ो के विज्ञापन देने वाले क्यों नहीं लाखों गरीबों के
जमा करे रूपये -पैसे वापस कर रहे हैं ?
सहारा इंडिया परिवार क्यों सहारा सुप्रीमो की आरती उतार
रहा है ?
लाखों गरीबों की मेहनत की कमाई जो उन्होंने सहारा इंडिया
में लगाई अब उन्हें क्यों वापस नहीं दी जा रही है ?
सिर्फ ९००० हज़ार करोड़ रूपये लेकर विजय माल्या फरार है
और ६२००० हज़ार करोड़ देनदारी वालों की आरती उतारी जा
रही है। जबकि विजय माल्या पर बैंको का बकाया है और सहारा
सुप्रीमों पर गरीब आदमियों का बकाया है।
यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। देनदारी से तीन गुना सम्पति होने के
बावजूद गरीब जनता का धन वापिस ना करना और फिर भी
अपना गुणगान कराना मानवता का गला घोंटना जैसा ही है।
अपने आप को सहारा श्री कहलवाने वाले खुद में बे सहारा
ही लगते हैं।
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