शनिवार, 24 अगस्त 2024
भारतीय रेल
भारतीय रेल, ऐसी ज्यादा-जनरल कम
भारतीय रेल प्रगति के पथ पर है। गत दस वर्षों में नई-नई रेल बनी हैं। रेलों की संख्या में इजाफा हुआ है। देश में रेल लाइनों में लगातार इजाफा हो रहा है। वन्देमातरम जैसी रेल देश की शान जैसी हैँ। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है की असामाजिक तत्व इस पर पत्थर बाज़ी कर देते हैं। हाल ही में रेल दुर्घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। जिसमें किसी साज़िस से इनकार नहीं किया जा सकता है। रेल पटरी पर बड़े-बड़े पत्थर और लकड़ी के स्लीपर रखे मिले हैं। जो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और दुघर्टना का कारण बन रहे हैं।
भारतीय रेल में जहां कुछ खूबियां हैं वहीं कुछ खामियां भी हैं। रेल के डब्बो में टॉयलेट आदि साफ नही रहते। ऐसी 2 में भी टॉयलेट की हालत ठीक नहीं थी। इस बारे में गत वर्ष हम श्री सम्मेद शिखर जी गए थे तब शिकायत भी करी थी। कम्बल आदि देने वाले लड़को का व्यवहार ठीक नही रहता। पुरानी चादर दोबारा दे देते हैं। शिकायत करने पर कहते हैं कि जिससे शिकायत करनी हो कर लो। ऐसा व्यवहार रहता है अक्सर।
यह सब खामियां तो ठीक होनी ही चाहिए , लेकिन देश के जनरल डिब्बो में सफर करने वालो के लिये अभी बहुत सुधार की जरूरत है। बढ़ती जनसंख्या के कारण रेल यात्रियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। उस अनुपात में जनरल डिब्बे भी बढ़ने चाहिये। जबकि अधिकांश रेलों में ऐसी डिब्बे ज्यादा होते हैं और जनरल डिब्बे कम होते हैं। जनरल डिब्बों की संख्या बढ़नी चाहियें।
एक बड़ी समस्या यह है कि स्लीपर या जनरल डिब्बों में सीट के अनुपात से ज्यादा टिकट दे दिये जाते हैं जो ठीक नहीं हैं। जनरल डिब्बों में 70 कई जगह 200 यात्रियों को टिकट बाटना जनहित में नहीं है। रेल मंत्रालय को जनरल डिब्बों की संख्या बढ़ाने पर विचार करना चाहिए। साथ ही ऐसी डिब्बों में हो रही खामियों को दूर करना चाहिए। रेल में मिलने वाले नाश्ते, भोजन की क्वालिटी में भी सुधार होना चाहिए। डिब्बो में चाय पकोड़े बेचने वालों की क्वालिटी को चैक करना भी बहुत जरूरी है।
सुनील जैन राना
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