बुधवार, 17 जुलाई 2024
जैन धर्म मे ह्रास
जैन और वैदांत दर्शन
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जैन समाज के लिए काला दिवस
13/07/2024
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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास।
जैन धर्म अनुसार जब भोग भूमि (कल्पवृक्ष)समाप्त होना प्रारम्भ होने लगे तब क्रमशः 14कुलकरो का जन्म हुआ जिनकी आयु असंख्यात करोड़ों बर्ष कि थी। जो निम्न हैं
1.प्रतिश्रुति 2.सन्मति 3.क्षेमंकर 4.क्षेमंधर 5.सीमंकर 6.सीमन्धर 7.विमलवाहन 8.चक्षुमान 9.यशस्वान् 10.अभिचन्द्र 11.चन्द्राभ 12.मरुद्धव
नोट :-चन्द्राभ तक एक पुत्र ही जन्म लेता था। लेकिन मरुद्धव और माता सत्या से इन्हें दो पुत्र रत्न हुए जो क्रमशः 13वें और 14वें कुलकर हुए
(१३) प्रसेनजित
(१४) नाभिराय जैन धर्म के अंतिम कुलकर हुए जिन्हें (मनु)के नाम से भी जाना जाता है।
नाभिराय और माता मरुदेवी
के यहां अयोध्या नगरी में जन्मे पुत्र विश्व के प्रथम राजा भगवान श्री ऋषभदेव जी(आदि नाथ) तीर्थंकर इनकी आयु 84लाखपूर्व कि थी उनके प्रथम पुत्र जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के एक आर्य खंड के पांच म्लेच्छ 6खंडों के चक्रवर्ती सम्राट महाराजा भरत के नाम से भारत देश को जाना जाता है।
जैन धर्म प्राचीनतम् धर्म है। जिस जैनधर्म प्रथम राजा ऋषभदेव ने कल्पवृक्षों जब समाप्त होने लगें भोगभूमी के अंत में प्रजा को पालन पोषण के लिए षट्(6-छै) शिक्षाओ का ज्ञान दिया वह यह है 1.असि2.मसि
3.कृषि4.बाणिज्य
5.शिल्प6.कला के साथ साथ
भारतवर्ष के प्रथम राजा ऋषभदेव ने अपनी पुत्रीयों को दो विद्याएं एक साथ सिखलाईं
जो दाएं हाथ पर बैठीं राजकुमारी ब्राह्मी देवी को अक्षर विद्या कि शिक्षा सिखलाईं।
दूसरी राजकुमारी सुन्दरी जो वाएं हाथ पर बैठीं थीं को अंक विद्या सिखलाई इसीलिए उल्टी तरफ से गणित का हिसाब किताब किया जाता है।
विश्व में सर्वप्रथम जैन धर्म में
जिनमंदिर, अर्हंत मूर्ति, प्रतिमा का निर्माण कार्य भी सर्वप्रथम भारतवर्ष से हि प्रारंभ हुआ
जैनधर्म में लेखन कार्य ब्राम्ही लिपि, देवनागरी,अर्धमागधीं, प्राकृत भाषा में सर्वप्रथम ग्रंथों कि रचना हुई यहां तक कि अंक विद्या में भी ग्रन्थ कि रचनाएं देखने को जैन धर्म में मिलती हैं।
विश्व में जैन धर्म में
जिनमंदिर, अर्हंत मूर्ति, प्रतिमा का निर्माण कार्य भी सर्वप्रथम भारतवर्ष से हि प्रारंभ हुआ था।
जैन धर्म में 24तीर्थंकर हुए जो सभी क्षत्रिय वर्ण के हुए।
अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी के प्रमुख गणधर इंद्रभूति ब्राह्मण हुए हैं।
24तीर्थंकरों कि पांच निर्वाण (जहां मोक्ष गए) भूमियां है।
1.प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव कि कैलाश पर्वत,
2.12वें तीर्थंकर श्री बांसपूज्य कि
चम्पापुर के पास मंदारगिर पर्वत।
3.22वें तीर्थंकर श्री नेमीनाथ कि
जूनागढ़ के पास गिरनार पर्वत।
4.24वें तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी कि
पावापुर जी।
5.20 तीर्थंकरों कि
श्री सम्मेद शिखरजी
आज समय काल का परिवर्तन देखिए जिस सनातन यानी प्राचीन धर्म से निकलीं दो प्राचीन साखाएं जिसमें जैनदर्शन और वैदिक दर्शन एक हि सिक्के के दो पहलू हैं।कतिपय लोगों ने आज स्वतंत्रता के पश्चात्
क्षत्रिय वर्ण के यदुवंश शिरोमणि , यदु कुल गौरव (यादव) में जन्म लेने वाले द्वारकाधीश श्री कृष्ण नारायण के चचेरे भाई जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर कि मोक्ष स्थली (निर्वाण भूमि) पर आषाढ़ शुक्ला सप्तमी तिथि को मोक्ष प्राप्त किया था।
वह तिथि दि.13/07/2024को थी।
उस पवित्र भूमि पर अभिषेक पूजन अर्चना निर्वाण लाडू चढ़ाने नहीं दिया गया।
जो जैन समाज के श्रद्धालुओं के साथ जिस प्रकार आतंकवादी जैसी चैकिंग को अंजाम दिया गया।हम जैन लोगों कि चावल बदाम श्री फल नारियल आदि बाहर रखवा दिए या छुड़ा कर फेंक दिए गए जहां चरण चिन्ह एवं प्रतिमा (मूर्ति) विराजमान हैं वहां नहीं लेजाने दिए गए अभिषेक पूजन पाठ निर्वाण लाडू नहीं चढ़ाने दिया गया है। पुलिस प्रशासन के द्वारा उक्त कृत करवाना क्या उचित है।
जबकि भारत मे केन्द्र और राज्य में भाजपा सरकार है जो धर्म कि रक्षा के जानीं पहचानीं जाती है। सबका साथ सबका विकास जिसका नारा है।संविधान में एवं कानून के तहत कोर्ट से भी जैन समाज को अधिकार प्राप्त होते हुए भी निर्वाण दिवस पर पूजन लाडू ना चाढ़ाने देना यह भारत देश का दुर्भाग्य है। और जैन समाज के साथ पहली वार ऐसा हुआ है।
इसलिए काला दिवस भी है।
जैन धर्म के तीर्थंकरों कि मोक्षस्थलिओं पर बद्रीनाथ जी,मंदारगिरजी,अब गिरनार जी पर जहां पर जैन प्रतिमा चरण चिन्ह आदि मौजूद है वहां पर जैन समाज को दर्शन, पूजन,निर्वाण लाडू से वंचित कर दिया जाना कहां तक उचित है।
अपितु अनेकों प्राचीन भारतवर्ष में जो मंदिर है वह ज्यादा तर जैन मंदिर है। जिसमें जैन तीर्थंकरों कि अर्हंत मूर्ति कि भेष बदल कर पूजा अर्चना कि जा रही है। बहुत से ऐसे मंदिर है मैं नाम नहीं लिखना चाहता हूं।
जिन विद्वानों ने भागवत पुराण, ऋग्वेद, यजुर्वेद आदि का सम्पूर्ण अध्ययन किया है वह जैन धर्म से भलीभांति परिचित हैं।
जानकार सभी जानते हैं कि सत्यता क्या है।
सबसे बड़ा दुःख और खेद का कारण तो यह है कि जो तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के प्रमुख गणधर इंद्रभूति, वायुभूति, अग्निभूति ब्राह्मण हुए जिन्होंने महावीर कि दिव्यधुनी रुपी वाणी का प्रचार प्रसार किया आज उसी परम्परा के हमारे अपने ब्राह्मण भाईयों को अहम् भूमिका है इसमें अभिषेक दर्शन पूजन निर्वाण लाडू ना चाढ़ाने देने में।
मैं भारत देश के सभी श्रीं श्रीं 1008 शंकराचार्यों से एवं भारत देश के प्रमुख कर्णधार विद्वान कथा वाचक, शास्त्रीयों, एवं जो इतिहास के जानकार विद्वतापूर्ण ज्ञाता हैं वह जैन दर्शन और वैदिक दर्शन का गूढ़ रहस्य जानने वाले ब्राह्मण हैं उन सभी से निवेदन अनुरोध विनय करता हूं कि समय परिवर्तन सील है। वह अपनी ओजस्वी वाणी से जैन और वेदिक पराम्परा के भाईयों एक जुट करने में सक्षम है और एक जुट संगठित करें। भारतबर्ष में जितने भी जैन मंदिरो पर कब्जा है उन सभी मंदिरों में जैन समाज के लोगों को एक समय निश्चित करवा कर अभिषेक, दर्शन, पूजन, निर्वाण लाडू जैसे कार्यों को करने अनुमति प्रदान करवा कर पुण्य संचय के साथ मोक्षदायिनी का अपना मार्ग प्रशस्त करें।
जैन समाज वहां हो रही ब्राह्मण भाईयों कि आमदनी में हिस्सा नहीं चाहता वह तो उल्टा वहां दान पुण्य करेगा आप की आमदनी आप की हि रहेंगी।
मेरे प्रिये भाईयों जरा विचार करें जिनके मंदिर मूर्ति प्रतिमा विराजमान हैं और उन्हें हि आप अभिषेक पूजन अर्चना से वंचित कर पुण्य संचय कि जगह पाप का संचय कर रहे हैं। हां यह जरूर कि आप धन संपत्ति संचय कर रहे हैं।
पर एक बात है वह दूसरे भव में काम नहीं आएगी
इसलिए जैन समाज को अभिषेक पूजन अर्चना का अधिकार दे कर परलोक के लिए पुण्य का संचय करतें हुए अपने लिए मोक्ष मार्ग (वैकुंठ धाम)का रास्ता अपनायें।
धर्म कि जय हो।
अधर्म का नाश हो।।
प्राणियों में सद्भावना हों।
देश में समृद्धि सुख शांति हो।।
भारतवर्ष में शास्वत सनातन धर्म दोनों परंपरा कि संस्कृति सभ्यता रक्षा होती रहें। एवं अक्षुण्ण बनी रहे।
जिस प्रकार संस्कृत भाषा का लोप किया जा रहा है उसे प्रथम संस्कृत मातृभाषा, द्वितीय हिंदी भाषा ,तृतीय अंग्रेजी भाषा मिलकर दर्जा दिलाना अतिआवश्यक है।
इस समय विद्यालयों स्कूलों से जिस प्रकार संस्कृत भाषा का खत्म करने का कार्य भारत में केन्द्र एवं राज्य सरकार के शिक्षा विभाग कर रहें हैं। वह दिन दूर नहीं है भाषा खत्म होते ही धर्म संस्कृति सभ्यता खत्म होने में समय नहीं लगेगा।
मेरे शब्दो से अगर कि को अच्छा ना लगें तो वह मुझे क्षमा करें।🙏🙏🙏
पढ़ कर भूल जाएं।
अगर सत्यता हों तो आगे पहुंचाएं।
प्रतिष्ठाचार्य पं.अजित(जैन
बन्धु) शास्त्रि ऐरौरा टीकमगढ़ म.प्र.
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