शनिवार, 30 नवंबर 2019



बलात्कारी का अंग भंग करना ही चाहिए
November 30, 2019 • सुनील जैन राना • जनहित
हैदराबाद में एक युवती से सामूहिक दुष्कर्म के बाद हत्या और फिर शव को जला देने की घटना ने एक बार फिर से देश की जनता को आक्रोशित कर दिया है। हैदराबाद समेत देश के अनेक राज्यों -नगरों -शहरों में इस घटना को लेकर आंदोलन किये जा रहे हैं। एक डॉक्टर युवती जिसकी स्कूटी पैंचर हो जाने पर स्थानीय लोगो से सहायता  मांगने पर सहायता के बदले सामूहिक दुष्कर्म -हत्या जैसा घिनौना अपराध देखने को मिला है। सिर्फ यही नहीं बल्कि बाद में शव को जला देना जैसी घटना तो दिल को झंझोड़ देने वाली है। 
बलात्कारी हत्यारे पकड़े गए हैं। अब कार्यवाही होगी ,मुकदमा चलेगा हो सकता है अधिकतम फांसी की सज़ा हो जाए। लेकिन क्या फिर से बलात्कार रुक जायेंगे। इस घटना में पकड़े गए चार आरोपी दो मज़हब के हैं। इससे देश में एक मज़हब के प्रति होने वाला बबाल जो भयानक हिंसा का रूप ले सकता था  वह नहीं होना चाहिए। 
बात कुछ अटपटी सी है। मैंने बलात्कार पर पिछले सालो में अनेको बार लिखा है। देश में प्रतिदिन कहीं न कहीं रोजाना लगभग ८० -९० बलात्कार हो रहे हैं, यह सरकारी आंकड़े हैं। हो सकता है की यह संख्या और भी ज्यादा हो क्योकि अनेको पीड़ितों के तो मुकदमें दर्ज ही नहीं हो पाते हैं। कुछ पीड़ितों के घर वाले ही मुकदमा दर्ज नहीं करवाते क्योंकि मुकदमें के बाद न्याय प्रकिर्या में होने वाली पूछताछ जो कभी -कभी बेशर्मी की हदें पार कर देती है उससे बचने के लिए इस जघन्य अपराध पर भी खून का घूंठ पीकर चुप रहते हैं। 
दरअसल बलात्कार सदैव दूषित मानसिकता से ग्रस्त कामविकारी पुरुष द्वारा किया जाता है। ऐसे लोग हमारे समाज के अंग होते हैं। ऐसे लोग किसी भी मज़हब के हो सकते हैं। हो सकता है की ऐसे घिनौने पुरुष किसी धार्मिक स्थल के ही कर्ता धर्ता हों जिन्हे हम आदरणीय मानते हैं। 
आज के आधुनिक युग में हमारा सामजिक परिवेश काफी बदल गया गया। अश्लील फिल्मे ,मोबाईल ,और आधुनिक पहनावा आदि सभी बातें मन में काम विकार उतपन्न करती हैं। अक्सर लड़कियों के पहनावे पर पक्ष -विपक्ष में बातें हो जाती हैं। लेकिन इस बात को कोई इंकार नहीं कर सकता की सलवाल कुर्ते जैसे सादगी से भरे पहनावेँ की अपेक्षा आधुनक छोटे कपड़े ,टाईट कपड़े ,नये महंगे फ़टे कपड़े पहनने वाली लड़कियों पर सभी की नज़र जाती है। अश्लील जुमलों का शिकार भी ऐसी ही लड़कियां ज्यादा होती हैं। लेकिन सत्य यह भी है की बलात्कारी मानसिकता वाले कपड़ो से दूर बस  मौके की तलाश में रहते हैं.जैसा की इस घटना में भी हुआ। 
बलात्कारी के संबंध में हमारा यह कहना है की भले ही बलात्कार की सज़ा पहले से ज्यादा कठोर बना दी गई है फिर भी बलात्कारी का सर्व प्रथम अंग भंग कर देना चाहिए। मुकदमा तो चलता रहेगा लेकिन बाकि सज़ा मिलने तक उसे पीड़िता की भांति घिनौना एहसास जिंदगी भर तो रहेगा। खुद की दृष्टि में और समाज की दृस्टि में अंग भंग का दंश उसे झेलना तो पड़ेगा। देखने में आता है की बलात्कारी जेल में मौज मस्ती से रहता है सालों तक मुकदमा चलता है। आप खुद ही अंदाजा लगा ले की देश में जहां लगभग तीस हज़ार बलात्कार प्रति वर्ष हो रहे हो उनमें से कितनो को फांसी हुई। शर्मनाक है ऐसा होना। * सुनील जैन राना *

शुक्रवार, 29 नवंबर 2019



एनपीए और सब्सिडी देश के लिए घातक
November 29, 2019 • सुनील जैन राना • जनहित
बैंक अधिकारियों ,कॉरपोरेट्स एवं नेताओ की मिलीभगत से बांटा गया लोन एनपीए हो ही जाता है। पिछले दशक में यूपीए 2 में इस प्रकार के लोन बहुतायत में दिए गए। लाखों करोड़ की धनराशि के लोन आपसी मिलीभगत से बिना सुरक्षा गारंटी के दे दिए गए। मोदी सरकार में ऐसे लोन लेने वाली लगभग दो लाख फर्जी कंपनियों को बंद कर दिया। लेकिन मोदी सरकार के पिछले पांच सालों के कार्यकाल में भी बैंको का एनपीए कम होने के बजाय बढ़ा ही है। हालांकि बताया जाता है की लगभग ९ लाख करोड़ के एनपीए में से लगभग एक लाख करोड़ का एनपीए बसूला गया लेकिन अभी भी अधिकांश बैंको के एनपीए में कमी आती दिखाई नहीं दे रही है।
मोदी सरकार द्वारा जनता की सुविधा को दी जा रही सब्सिडी और लघु उद्योगों के लिए बैंको से सस्ती दरों पर दिलवाया जाने वाला लोन अब अर्थव्यवस्था पर भरी पड़ रहा है। मुद्रा योजना के तहत दिए जाने वाले लोन में लगभग ३.२१ लाख करोड़ का एनपीए हो गया है। जिस पर रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एस के जैन ने चिंता जताई है और बैंको को बैड लोन के बारे में आगाह करते हुए चेतावनी भी दी है। मुद्रा योजना में दिया जाने वाले लोन में बाद लोन की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है ,पिछले साल के मुकाबले बाद लोड की धनराशि दुगनी हो गई बताई जा रही है। लोन लेने वाले खातों में लगभग साढ़े तीन लाख खाते डिफ़ॉल्ट हो चुके हैं। ऐसे में जनहित में जारी की गई योजनाएं अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ती दिखाई दे रही हैं।
देश के सरकारी उपक्रम बेचे जा रहे हैं और गरीब जनता के हितार्थ सब्सिडियां बाटी जा रही हैं। हालांकि घाटे में चल रहे उपक्रम जो लगातार देश को फायदा पहुंचाने की बजाय नुक्सान पहुंचा रहे हैं उन्हें बेच देना या बंद कर देने में ही भलाई है। हाल ही में एयर इंडिया इसका ताज़ा उदाहरण है। देश के विकास को धन चाहिए होता है लेकिन एनपीए और सब्सिडी के कारण धन की कमी हो रही है। ऐसे में आम जनता की जरूरत बिजली -पानी -सड़क -शिक्षा और रोजगार सभी प्रभावित होंगे। किसानों का लोन माफ़ करने की परम्परा तो कांग्रेस के समय से ही हो गई थी। अब ऐसी मांग अन्य ग्रामीण जनता भी करने लगी है। लोन माफ़ करने -करवाने की प्रवृति देश के लिए घातक सिद्ध हो रही है। छोटे किसानों को लोन आसानी से मिलता नहीं बड़े किसान जो जमींदार जैसे होते हैं उनकी पैठ होती है। ऐसे बड़े किसान सरकार की सब्सिडी वाली योजनाओ का लाभ उठाते हैं और लोन भी माफ़ करवा लेते हैं। सरकार को इन सब बातों पर विचार करना चाहिए। कोई भी योजना आर्थिक रूप से गरीब और छोटे किसानो के हित को ध्यान में रखकर हो बनानी चाहिए।  * सुनील जैन राना *

गुरुवार, 28 नवंबर 2019


बम फोड़कर मार डालो ?
November 28, 2019 • सुनील जैन राना
कभी -कभी कोई समस्या इतनी दुष्वार हो जाती है जिससे निपटने में सरकारी और गैरसरकारी सभी अमले फेल हो जाते हैं। ऐसी ही एक समस्या प्रदूषण की गहरा रही है। दिल्ली एनसीआर समेत अनेक राज्यों में प्रदूषण का विकराल रूप जनता के स्वास्थ से खिलवाड़ कर रहा है और सब मूक दर्शक बने से देख रहे हैं कर कुछ भी नहीं पा रहे हैं।
इसी प्रदूषण के विकराल रूप से चिंतित माननीय सुप्रीम कोर्ट भी आहत है। कई बार राज्य सरकारों और केंद्र सरकारों को इससे निपटने की चेतावनी देने के बाद भी सुधार न होने पर आहत होकर ऐसा कह बैठे की लोगो को गैस चैंबर में मारने की बजाय एक बार में ही बम फोड़कर मार डालो ?प्रदूषण पर जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिक दीपक गुप्ता की पीठ प्रदूषण मामले की जांच कर रही है।
न्यायालयों में बैठे जज भी कभी -कभी देशहित में इतना चिंतित हो जाते हैं की उनके अंदर से निकले वचन सभी को जागरूक करने में सहायक हो जाते हैं। हालांकि सच बात यह भी है की इस प्रदूषण के निस्तारण का उपाय माननीय जज महोदय के पास भी नहीं होगा। यदि होता तो कहने की बजाय सरकार को निर्देश दिया जाता की फौरन ऐसा किया जाए। किसानों पर डंडा चला नहीं सकते जो प्रदूषण का मुख्य कारण दिखाई दे रहा है। ऐसे में क्या किया जाए ?
दरअसल प्रदूषण की समस्या जहां एक ओर किसानों द्वारा पुराल जलाने से उतपन्न हो रही है वहीं दूसरी ओर ईंट भट्टे से लेकर अनेक धुआं छोड़ने वाली फैक्ट्रियां भी जिम्मेदार हैं। छोटे स्तर पर प्रातः सड़को पर सफाईकर्मी कबाड़ा एकत्र कर उसमे आग लगाते भी देखने को मिल जायेंगे जिससे धुआँ फ़ैल जाता है। प्राकृतिक धुआं /स्मोग का तो कोई हिसाब ही नहीं है की कब कितना हो जाए। इन सबमें पुराल से उतपन्न धुआं सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है। इस धुंए को रोका जा सकता है। इसमें किसान और सरकार का सहयोग और रचनात्मकता जरूरी है। मैंने एक लेख *पराली नहीं होगी पराई * लिखा था उसमें पराली के रचनात्मक उपयोगों के बारे में इंगित किया था। केंद्र सरकार समेत सभी राज्य सरकारों को पराली के उपयोग को लघु कुटीर उद्योग बना देना चाहिए। पराली से अनेक वस्तुएँ बनाई जा सकती हैं। 
प्रदूषण से निपटना ही होगा। इसमें सिर्फ सरकार का नहीं हम सभी का सहयोग आवश्यक है। खासकर किसानों का सहयोग बहुत जरूरी है। सरकारें किसानों के लिए इतना कुछ करती हैं तो किसानों का भी फर्ज बनता है की जनहित में प्रदूषण रोकने में सहयोग करें। कम से कम पराली तो मत जलायें।  * सुनील जैन राना *

बुधवार, 27 नवंबर 2019


सड़ गया प्याज
November 27, 2019 • सुनील जैन राना • जन समस्या

जनता प्याज के आँसू रो रही है और सरकारी गोदामों में हज़ारों टन प्याज सड़ने की कगार पर है। समाचारों से पता चल रहा है की सरकारी गोदामों में लगभग २८ हज़ार मीट्रिक टन प्याज का आवंटन न होने के कारण सड़ने की कगार पर है।
हमारे दश की यही विडंबना है। दशकों से यही सुनने में आता था की FCI के गोदामों में अनाज की बेकदरी हो रही है ,खुले में रखा अनाज भीग जाने के कारण सड़ गया है। लेकिन इतने बड़े पैमाने पर प्याज की किल्ल्त के चलते प्याज ही सड़ जाए तो इसे लापरवाही -अनहोनी या तालमेल में कमी ही कहा जाएगा।
दरअसल प्याज की बढ़ती कीमतों के चलते सरकारी स्तर पर प्याज का बफ़र स्टॉक जमा किया गया था जिसे बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने हेतु खुले बाजार में बेचा जा सके। लेकिन राज्य सरकारों से तालमेल की कमी के चलते प्याज गोदामों में ही सड़ गया  है। ऐसा होना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। एक तरफ आम जनता प्याज की बढ़ती कीमतों के कारण परेशान है तो दूसरी तरफ सरकारी व्यवस्था में कमी के कारण हज़ारो मीट्रिक टन प्याज सड़ गया है। 

मंगलवार, 26 नवंबर 2019


सहारनपुर की जीव दया के क्षेत्र में दूर दूर तक प्रसिद्ध संस्था श्री दया सिंधु जीव रक्षा केंद्र के विषय में दैनिक जागरण में प्रकाशित समाचार पढ़कर बहुत आनंद की अनुभूति हुई। लेकिन यह भी सत्य है की मैं सुनील जैन राना (संयोजक ) बिना किसी स्वार्थ के संस्था के सभी जीव दया कार्यो में सदैव समर्पित भाव से सेवा करता हूँ। दैनिक जागरण  से आये श्री अजय सक्सेना जी जो नगर और आस पास के क्षेत्रों में निःस्वार्थ सेवा में लगे लोगो की छानबीन कर उनके बारे में आलेख बनाकर दैनिक जागरण में प्रकाशित कराते हैं मैं उनका बहुत आभारी हूँ।


शनिवार, 23 नवंबर 2019



टोल बनेगा फास्टैग लेकिन ?
November 23, 2019 • सुनील जैन राना
गडकरी जी के नेत्तृत्व में देश भर में सड़कों का जाल बिछ रहा है। चौड़ी सड़कें -शानदार सड़कें बन रही हैं। साथ ही भारी भरकम टोल भी बसूला जाने लगा है। कुछ जगहों पर टोल की राशि ठीक लगती है तो कुछ जगहों पर टोल टैक्स की धनराशि ज्यादा है। सहारनपुर से मुजफ्फरनगर मार्ग के बीच में टोल टैक्स बहुत ज्यादा है। एक तरफ के १३० रूपये ले रहे हैं तो दोनों तरफ के १९० रूपये लिये जा रहे हैं। मेरठ वाले टोल पर दोनों तरफ का टोल देते नहीं है ऐसा क्यों है ?
अब टोल का नया सिस्टम फास्टैग लागू होने वाला है। जिसमें नगद लेनदेन से मुक्ति मिल जायेगी और वाहन पर लगी चिप से टोल आपके फास्टैग कहते से कट जायेगा। इसके लिये सभी टोल पर फास्टैग दिये जा रहे हैं। अभी तो फास्टैग मुफ्त मिल रहे हैं केवल इनमें कराया रिचार्ज मूल्य देना पड़ रहा है लेकिन एक दिसंबर के बाद वाहन स्वामी से इसका मूल्य और १५० रूपये सिक्योरटी चार्ज की जायेगी अन्यथा टोल लाईन में प्रवेश करने पर दुगना टोल बसूला जायेगा ऐसी जानकारी प्राप्त हुई है।
टोलटैक्स का भुगतान कार्ड से होना तो अच्छा ही है लेकिन भारत के छोटे शहर के वाहन स्वामी जो बहुत कम अपने वाहन से कहीं दूर जाते हैं उनके लिए यह प्रणाली कठिन प्रतीत हो रही है। ऊपर से फास्टैग ना लेने पर दुगना टोलटैक्स लगना भी जायज नहीं लग रहा है। अनेक वाहन स्वामियों का कहना है की फास्टैग की अनिवार्यता नहीं होनी चाहिए। जो लेना चाहे ले और उसके लिए अलग लाइने चिंह्नित हो जिनसे फास्टैग वाला सीधे जल्दी से निकल जाए। अनेको जगह पहले ही टोलटैक्स बहुत ज्यादा है। वाहन स्वामी वाहन लेते समय ही रोड़टैक्स देता है फिर ऊपर से टोलटैक्स लिया जाना ही ज्यादती है। इसमें भी अब नया कानून फास्टैग को अनिवार्य बनाना बेमानी है। * सुनील जैन राना * 

गुरुवार, 21 नवंबर 2019


क्यों बताते हो फार्मूला ?
November 21, 2019 • सुनील जैन राना • विचार
देश भर में मिलावटी खाद्य पदार्थ बनाने -बेचने पर खाद्य विभाग द्वारा अनेको पाबंदिया लगाने के बाद भी मिलावटी खाद्य पदार्थ धड़ल्ले से बन रहे हैं और बिक रहे हैं। खाद्य विभाग रजिस्टर्ड कंपनियों के खाद्य पदार्थो की जांच करती है जबकि सभी बाज़ारो में खुले घी -तेल -मसाले धड़ल्ले से बिकते दिखाई देते हैं।
मिलावटी खाद्य पदार्थो की बिक्री और बनाने पर मिडिया भी बहुत जागरूक रहता है। अक्सर तैयोहारों के समय मिडिया जनहित में जनता को सचेत करता है की मिलावटी खाद्य पदार्थो से बचें। खासकर त्योहारों के समय ही खाद्य विभाग मिलावटी खाद्य पदार्थो की धरपकड़ अभियान चलाकर जनता को मिलावटी वस्तुओं से राहत दिलवाते हैं।
इस सब कार्य में मिडिया की अहम भूमिका रहती है लेकिन इसमें विचारनीय बात यह है की खाद्य विभाग द्वारा पुलिस की सहायता से किसी भी मिलावटी खाद्य पदार्थ बनाने वाले कारखाने में बन रहा मिलावटी सामान तो दिखाते ही हैं साथ ही वहां कार्य कर रहे लोगो से मिलावट करने की विधि पूछकर बनाते हुए दिखा देते हैं। यह बहुत ही घातक कदम होता है। 
हाल ही में टीवी के एक चैनल पर राजस्थान के अलवर में मिलावटी देशी घी बनाने का कारखाना पकड़ा गया। जहां पर मिलावटी देशी घी बनाकर विभिन्न कंपनियों के डब्बों में भरकर बाजार भेजा जा रहा था। ऐसी मिलावट करने वाले पर कठोर कार्यवाही होनी ही चाहिये। लेकिन उस स्थान पर पकड़े गए लोगो से मिलावटी देशी घी कैसे बनाया जाता है पुनः बनवाकर दिखाया गया जो बहुत ही घातक बात है। 
देश में बेरोजगारों की कमी नहीं है। रोजगार न मिलने से अनेको लोग गलत कार्य करने से भी नहीं चूकते। ऐसे में कम लागत में ज्यादा मुनाफ़े वाले मिलावटी खाद्य पदार्थ के बनाने का फार्मूला मिलते ही कुछ बेरोजगार इसी कार्य को रोजगार बना लेते हैं। देश में सिंथेटिक दूध जो पहले कम ही बनता था मिडिया में बनाने के तरीके दिखाने के बाद ज्यादा बनने -बिकने लगा है। ऐसे ही अन्य   मिलावटी खाद्य पदार्थ अब ज्यादा मांग के समय ज्यादा मात्रा में बनाये जाने लगे हैं। मिलावटी खाद्य पदार्थ ही नहीं बल्कि कभी -कभी देशी बम -असले की कोई फैक्ट्री पकड़ी जाती है तो बम कैसे बनाते थे यह भी दिखा दिया जाता है? 
जनहित में जिम्मेदार मिडिया को किसी भी गलत कार्य के करने -बनाने के तरीके को नहीं बताना -दिखाना चाहिये। ऐसा करने से असामाजिक तत्वों को घर बैठे गैर क़ानूनी रोजगार उपलभ्ध हो जाता है। * सुनील जैन राना *

रविवार, 17 नवंबर 2019



कैसे बचेगा गोधन ?
November 17, 2019 • सुनील जैन राना
भारत देश ऋषि -मुनियों का देश है। यहां की विभिन्न संस्कृति- धर्म -भाषाएँ सभी का मन मोह लेती हैं। हिन्दू धर्म की बहुतायत के चलते देश में गोमाता की बहुत मान्यता है। यहां गोमाता को पूजा जाता है। देश में हिन्दू और जैन धर्म अनुयायियों ने अनेको गोशालाएं बनवा रखी हैं। अनेक हिन्दू पर्वो पर गाय की पूजा की जाती है।
देश में सरकारी और गैरसरकारी स्तर पर गोशालाओं का निर्माण किया गया है। देश के कई प्रदेशों में आवारा घुमन्तु गोधन के लिए विशेष रूप से गोशालाएं बनवाई जा रही हैं। लेकिन विडंबना की बात यह है की देश में बहुत कम ऐसी गोशालाएं हैं जहां पर रहने वाले गोधन के लिए उचित व्यवस्था है। भोजन -पानी एवं गर्मी -सर्दी से बचाव को शेड बने हैं। अन्यथा तो गोशाला में भी गोधन की हालत ठीक नहीं रहती। कहीं व्यवस्था की कमी है तो  कहीं धन की कमी के कारण आश्रित गोधन को भरपेट भोजन यानि घास आदि भी नहीं मिल पा रहा है बरसात के दिनों में अनेको गोशालाओं में पानी भर जाने के कारण अनेको गोधन मृत्यु को प्राप्त हो गए। ऐसा होना बहुत दुःखद है।
कटु सत्य यह है की हिन्दू अनुयायी जिस गोधन की पूजा करते हैं उसके बचाव के लिए प्रयास नहीं करते। कुछ गोशालाओं के बाहर बिक्री के चारे का प्रबंध रहता है। जिसका फायदा वे लोग उठाते हैं जिन्हे उनके पंडित जी ने किसी समस्या के उपाय में गाय को घास खिलाना बताया होता है। बाकी बहुत कम लोग अपने पास से गोधन के लिए भोजन आदि देने वाले होते हैं। कुछ गोशालाएं साधू महाराजो  की होती हैं। जिनके यहां सिर्फ दुधारू गोधन ही देखने को मिलता है। बाँझ -असहाय गोधन से उन्हें परहेज़ होता है। अनेक गोकथा कहने वाले विद्द्वान गोकथा बाँचने के लाखों रूपये लेते हैं और गोभक्तो से दुधारू गोधन एवं जमीन आदि गोशाला हेतु लेकर पुण्य कमाते दिखाई दे जाते हैं। बाँझ -आवारा -असहाय -बछड़ा -बैल आदि से उन्हें नफरत होती है। कहने का तातपर्य यह है की कथित गोभक्त और गोरक्षक ऋषि मुनि भी सिर्फ दुधारू गोधन को चाहते हैं। उसकी पूजा करते हैं। अन्य गोधन का क्या होगा इससे उन्हें कोई मतलब नहीं होता। बछड़ी को पाल लेते हैं बछड़े को बेच देते हैं। यह भी नहीं देखते की उसका खरीददार कौन है यानि की कसाई ही होता है ?
ऐसा धर्म कर्म किस काम का जिसमें सिर्फ अपने उपयोगी गोधन की पूजा हो बाकि कटे तो कटे। गोधन को मानने वालो को चाहिए की सम्पूर्ण गोधन की रक्षा हो। सिर्फ गोशालाएं बनवा देने से कोई फायदा नहीं है। सरकारी स्तर पर भी कुछ ही सहयोग मिल सकता है। तन -मन -धन से देखभाल तो गो प्रेमियों को ही करनी पड़ेगी। तभी गोधन बच सकेगा। अनेको गोशालाओं में वहां के मैनेजर आदि ही भ्र्ष्ट होते हैं। वे गोधन के हिस्से का खुद खा जाते हैं। इतना बड़ा महापाप है यह। हम सभी को गोधन के प्रति आस्था है तो थोड़ा -थोड़ा योगदान करना ही होगा तभी बचेगा गोधन। *सुनील जैन राना *

शुक्रवार, 15 नवंबर 2019



राजनीति में सब कुछ चलता है
November 15, 2019 • सुनील जैन राना
जी हाँ , राजनीति में सब कुछ चलता है। कम से कम भारतीय राजनीति में तो चल ही रहा है। सबकुछ से तातपर्य सत्ता पाने को अपने सिद्धांतो को गिरवी रख देना या भूल जाना। यूँ तो सरकार गिरने - गिराने का खेल कांग्रेस दशकों से खेलती आयी है। अब कांग्रेस सिमट गई है और बीजेपी सत्ता में है तो कई राज्यों में बीजेपी ने भी यह खेल खेला। कश्मीर और हरियाणा में बीजेपी ने अपनी विरोधी पार्टियों से गठबंधन कर सरकार बनाई।
अभी हाल ही में महाराष्ट्र की राजनीति में भी कुछ ऐसा ही तूफ़ान आया हुआ है। वहां भी सत्ता प्राप्ति को संग्राम चल रहा है। इस संग्राम में बीजेपी -शिवसेना का चुनाव पूर्व का गठबंधन सीएम की कुर्सी के लिए टूट गया। जिसपर सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी ने अपना बहुमत पूर्ण न देखकर सरकार बनाने का दावा छोड़ दिया। सत्ता पाने को और पुत्र मोह में डूबी शिवसेना ने अपने धुरंधर विरोधियों के साथ सरकार बनाने की कवायद तेज़ कर दी है। उध्दव ठाकरे अपनी विरोधी पार्टियों के प्रमुखों को लुभाने में लग गए हैं। जिसमें कांग्रेस और एनसीपी प्रमुख हैं।
इसी को कहते हैं की सत्ता पाने को राजनीति में सबकुछ चलता है। शिवसेना के प्रमुख बालाजी ठाकरे जिन्होनें कांग्रेस के विरुध्द चुनाव लड़े और कहा की कांग्रेस के आगे तो हिजड़े झुकते हैं आज उन्ही के पुत्र , पुत्रमोह में झुके जा रहे हैं। बालाजी ठाकरे की शिवसेना जो हिंदुत्व के मुद्दे पर कायम रही आज उससे विमुख हो रही है। वहीं दूसरी ओर अभी कांग्रेस का रुख़ साफ़ नहीं हो रहा है क्योंकि कांग्रेस का कुछ मुस्लिम वोट बैंक शिवसेना के साथ जाने को तैयार नहीं हो रहा है।
बालाजी ठाकरे की शिवसेना की शिवसेना जिसने बाबरी मस्जिद तोड़ने पर ख़ुशी जताई थी आज मंदिर बनाने वालो का साथ छोड़कर राम विरोधियों के साथ सरकार बनाने जा रही है। इसे कहते हैं सत्ता की भूख। उध्दव ठाकरे महाराष्ट्र जैसे विशाल राज्य को राजनीति  से अनजान -नासमझ पुत्र के हाथों में देकर कठपुतली की तरह चलना चाह रहे हैं जिसमे राजनीति के धुरंधर कांग्रेस और एनसीपी भी बराबर के हकदार होंगे। पता नहीं अब यह बेमेल गठबंधन बनेगा भी या नहीं ,बनेगा तो चलेगा भी या नहीं। सबसे बड़ी बात तो जनता की है जो गर्व से कहती है अपने को की हम किसके पक्ष में हैं या किसके विरोधी हैं वे सब अपने को असहाय सा महसूस कर रहे हैं। लोकतंत्र को कहते हैं डेमोक्रेसी -डेमोक्रेसी में हो रही जनता की ऐसी की तैसी।

गुरुवार, 14 नवंबर 2019



JNU में सब कुछ ठीक नहीं है
November 14, 2019 • सुनील जैन राना
देश की जानी मानी जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी JNU क्यों अक्सर विवादों का केंद्र बनी रहती है ? क्या JNU में एक अलग विचारधारा पनप रही है जिसे वामपंथी विचारधारा या अलगाववादी विचारधारा भी कह सकते हैं ?
ऐसा लगता है की वास्तवमे JNU एक अच्छा शिक्षण संस्थान होने के साथ साथ कुछ देश विरोधी विचारधारा का अड्डा भी बन गया है। JNU में पढ़ने वाले कुछ छात्र और शिक्षक शिक्षा की ओर ध्यान न देकर देश विरोधी गतिविधियों में लगे रहते हैं। जो कुछ अच्छे अवसरों पर देशहित की बात न कर देश विरोधी बात करते हैं जैसे भारत तेरे टुकड़े होंगे आदि वक्तव्य।
दरअसल देश की शुरुवाती नेतागिरी स्कूल -कॉलेजों से ही प्रारम्भ होती है। छात्र नेता बनकर छात्रों के हित की बात न कर देश की राजनीति में उलझे रहना छात्र नेताओं का मुख्य कार्य हो गया है। इसपर भी सोने में सुहागा जब हो जाता है जब इन छात्र नेताओ को देश की राजनीतिक पार्टियों का समर्थन मिलना शुरू हो जाता है। बस यहीं से देश को जोड़ने या तोड़ने की राजनीति शुरू हो जाती है। यही हो रहा है JNU में।
ऐसे में ऐसे किसी भी शिक्षक संस्थान के प्रभारी एवं उसे मदद देने वाली सरकार का कर्तव्य हो जाता है की उनके संस्थान में शिक्षा सर्वोपरि हो। शिक्षा के अतिरिक्त नेतागिरी -दादागिरी करने वाले छात्रों पर पूर्ण निगरानी रहते हुए उन्हें सचेत करते रहना भी चाहिये। सबसे ज्यादा जरूरी कार्य जो अब तक नहीं हुआ अब करना ही होगा। JNU में सब्सिडी से पढ़ रहे वो छात्र जो बार -बार फेल हो जाते हैं या जानबूझ कर हो रहे हैं उन्हें निकाल बाहर करना ही होगा। ऐसे ही छात्र संस्थान में राजनीतिक दलों के सम्पर्क में आकर गैर क़ानूनी कार्य करने लगते हैं। 
जनता के धन से सब्सिडी से पढ़ रहे जो छात्र इतना भी नहीं पढ़ते की पास हो जाये तो यह साफ़ जाहिर है की उनका उदेश्य पढ़ना नहीं बल्कि नेतागिरी करना होता है। ऐसे छात्रों को निकाल बाहर करने में ही अच्छाई है। अभी JNU में ऐसे ही छात्रों के कारण देश विरोधी गतिविधियां हो रही हैं। ऐसे कुछ छात्र एवं शिक्षकों के कारण सम्पूर्ण JNU बदनाम हो रहा है।        * सुनील जैन राना * 


आज बाल दिवस है


शुक्रवार, 8 नवंबर 2019



प्याज की बढ़ती कीमतें -फायदा किसे ?
November 8, 2019 • सुनील जैन राना
देश के कई राज्यों में प्याज की बढ़ती कीमतों से आम जनता परेशान है। सरकार भी प्याज की कीमतों में कमी कराने को जागरूक है और अनेको उपायों में लगी है। सरकार द्वारा जहां एक ओर प्याज के निर्यात पर पाबंदी लगा दी है वहीं दूसरी ओर प्याज का आयात करने को उचित कदम उठाये जा रहे हैं।
प्याज के मामले में चिंताजनक बात यह  की ऐसा क्या हो जाता है कुछ ही महीनों में की जिस प्याज का कोई खरीदार नहीं होता अचानक उसके बेहताशा भाव क्यों बढ़ जाते हैं ? इन बढ़े भावो का फायदा किसे मिलता है ?क्यों किसान हर बार अपने को ठगा सा महसूस करता है ?
इन सब बातो का एक ही उत्तर नज़र में आता है वह है बिचौलिया। हर बार बिचौलिए ही सस्ते में वस्तु खरीदकर थोड़े दिन बाद उसकी किल्ल्त पैदाकर मनमाने दामों पर बेचते हैं। आज तक देश के सभी राज्यों में विभिन्न सरकारे इन बिचौलियों पर अंकुश लगाने में कामयाब नहीं हो पाई हैं। किसान को तो सदैव अपनी फसल का न्यूनतम दाम ही मिलता रहा है। हालांकि अब कुछ किसान भी धनवान हो गए हैं और बाजार की स्थिति के अनुसार वस्तु को सस्ते दामों पर न बेचकर दाम बढ़ने पर ही बेचते हैं। लेकिन ऐसे किसानो की संख्या बहुत कम है। पिछले सालों में दालों के दामों में भी ऐसे ही बेहताशा बढ़ोतरी हुई थी जिस पर सरकार को खासी मस्सकत करनी पड़ी थी।
देश के किसानो को खुशहाल बनाने के लिये बिचौलियों पर अंकुश लगाना बहुत जरूरी है। इसके लिए सरकार और किसानों को साझा कार्यक्रम बनाना होगा तभी खाद्य पदार्थो की कीमतें एकरूप रह सकेंगी।  *सुनील जैन राना *

बुधवार, 6 नवंबर 2019




पराली नहीं होगी पराई http://suniljainrana.blogspot.com/
November 6, 2019 • सुनील जैन राना
किसान के खेतो में जलाई जा रही पराली जी का जंजाल बन गई है। हरियाणा -पंजाब के खेतो में जलाई जा रही पराली से देश की राजधानी सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही है। दिल्ली और आसपास के इलाको में प्रदूषण का स्तर अधिकतम सीमा को भी पार कर गया है। सड़को पर सर्दी में पड़ने वाली धुंध से भी ज्यादा धुँआ -कोहरा सा छाया है। आम आदमी भी इस प्रदूषण से बहुत चिंतित है। बच्चे -जवान -बूढ़े सभी इस धुँए की चपेट में बीमार हो रहे हैं।
दरअसल वैसे तो पराली बिक जाती है लेकिन आधुनिकता की दौड़ में अब फसलों की कटाई मशीनों से होने लगी है। हाथ से कटाई में तो फसल पूरी जड़ से काटी जाती थी लेकिन मशीन से फसल की कटाई थोड़े ऊपर से होती है। हार्वेस्टर मशीन से कटाई करने पर फसल का कुछ भाग ऊपर रह जाता है। ऐसे में किसान उसे हाथ से न हटाकर अपने खेतो में आग लगा देते हैं जिसके कारण दूर दूर तक धुँआ फैल रहा है। किसान यह भी नहीं सोच रहे की खेत में पराली जलाने से धरती में लाभकारी कीट -केंचुए आदि भी जल कर मर रहे हैं। जिससे धरती में उपजाऊ पन कम हो रहा है और पाप के भागीदार भी बन रहे हैं।
हालांकि आज भी अधिकांश पराली काम में आ रही है या बिक रही है फिर भी यदि किसान और सरकार मिलकर तकनीकी आधार से कार्य करें तो दोनों को प्रालि से मुनाफा भी हो सकता है और प्रदूषण से मुक्ति भी मिल सकती है। पराली के टाईट बंडल बनाने के उपक्रम लगे जैसे रुई के बंडल बनते हैं। ऐसा होने से पराली कम जगह घेरेगी और बड़े प्लांटों में जलाने के काम आयेगी। कुछ जगह पराली से डिस्पोजल बर्तन बनने शुरू हो गए हैं जो प्लास्टिक का विकल्प बन सकते हैं। पिछले दिनों जमशेदपुर में पुराल की डंडी और कोयले से ईको फ्रेंडली टूथ ब्रश बनाने की बात भी मिडिया में आयी थी।
कहने का तातपर्य यह है की यदि किसान और सरकार मिलकर प्रालि के विभिन्न आयामों पर शोध करें तो अच्छे परिणाम सामने आ सकते हैं। हो सकता है की आज दुःख देने वाली पराली कल खुशियां लेकर आये। * सुनील जैन राना *

शुक्रवार, 1 नवंबर 2019



बिजली का बिल माननीयों को माफ़ ?
November 1, 2019 • सुनील जैन राना
मोदी सरकार में एक अहम कार्य यह हुआ है की अब पिछली सरकारों की तरह बिजली की कटौती में भरी कमी आयी है। देश भर में सबको बिजली मिले इस कार्य को बहुत संजीदगी से पूरा किया गया है।
उत्तर प्रदेश में जहां पहली सरकारों में बिजली की किल्ल्त रहती थी वहीं अब भरपूर बिजली मिल रही है। जहां एक और सरकार का उद्देश्य यह है की सबका घर रोशन हो वहीं दूसरी ओर बिजली चोरी पर भी बड़े पैमाने पर धरपकड़ की जा रही है। राज्य के सभी छोटे -बड़े शहरों ,गाँवों में बिजली चोरी के प्रति लोगो को जागरूक कर मुफ्त में बिजली कनेक्शन देने तक की योजनाएं  कारगर रही हैं।
लेकिन जहां एक ओर आम बिजली उपभोक्ता को बिजली चोरी पर जुर्माना और कारागार की सज़ा तक सुनाई गई हैं वहीं दूसरी ओर नेता गण ,अधिकारी गण ,सरकारी महकमें ,अनेक माननीयों पर आज भी बिजली बिल के हज़ारो करोड़ बकाया होने के बाद भी उनका न तो बिजली कनेक्शन काटा गया न ही उनपर कोई जुर्माना लगाया गया। हाल ही में उत्तरप्रदेश बिजली विभाग ने बताया की लगभग १३ हज़ार करोड़ रूपये उपरोक्त उपभोक्ताओं पर बकाया हैं। अब सरकार ऐसे उपभोक्ताओं के लिये प्रीपेड मीटर लगाने की तयारी कर रही है। इसके लिए एक लाख मीटरों का ऑर्डर भी कर दिया गया है।
लेकन एक बात आम उपभोक्ता को समझ नहीं आ रही है की पहले घरों में १०० -१०० वाट के बल्ब लगे होते थे ,फिर cfl लगाये गए ,अब और ज्यादा बिजली बचत को LED बल्ब लगा दिए गए हैं लेकिन बिजली का बिल पहले से कम होने के बजाय ज्यादा क्यों आ रहा है। जितना बिल आ जाये बस उसका भुगतान करना पड़ रहा है। बिल ज्यादा आने के कारण कोई बताने वाला नहीं है। यह आम आदमी की समस्या है जिसका निराकरण बिजली विभाग को करना ही चाहिए।
सरकार ने बिजली की बचत को सड़कों पर हेलोजन की बजाय LED हेलोजन लगाने शुरू कर दिए हैं जिनसे बेहताशा बिजली की बचत हो रही है। लेकिन आज भी अनेको जगह पीली लाईट के हेलोजन भी लगाए जा रहे हैं जो गलत है। अनेको जगह भोर होते ही हेलोजन बंद नहीं हो पाते एवं शाम से पहले ही हेलोजन जला दिये जाते हैं। ऐसा होने से व्यर्थ में बिजली व्यय हो रहा है।
आम आदमी के मीटर की चैकिंग को आ रहे मीटर रीडर के हाथ में आज भी बहुत कुछ होता है। वे भले ही बिल मशीन से निकल कर देते हों लेकिन मशीन में डाटा तो वे ही भरते हैं। इस पर भी सरकार को सोचना चाहिए। यदि मीटर खराब हो जाए तो उसे बदलना सरकार का फर्ज है लेकिन सब खर्च उपभोक्ता से लिए जाते हैं यह भी ठीक नहीं है। *सुनील जैन राना *

वरिष्ठ नागरिक

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