मंगलवार, 9 मई 2017



खाद्य पदार्थों के नियम -कानून
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टीवी के जी बिज़नेस चैनल पर खाद्य पदार्थों के नियम -कानून

और अच्छाई -बुराई पर कार्यक्रम चल रहा है। बहुत उपयोगी

बातें बताई जा रही हैं।

लेकिन विडंबना यह है की हमारे भारत देश में नियम -कानून

का पालन करना आसान नहीं है। यहाँ की जनता -व्यापारी -

उत्पादक आदि सभी गुजारे लायक तरीका अपना लेते हैं।

आज के युग में फ़ास्ट फ़ूड का प्रचलन बहुतायत में चल रहा

है। बच्चे -बड़े सभी चाउमीन -पिज्जा -बरगर आदि बड़े शौक से

खा रहे हैं। बड़े नगरों में बड़ी कम्पनियाँ अच्छे क़्वालिटी का

सामान बनाती हैं लेकिन हमारे देश में अधिकांश जनता मध्यम

वर्ग से है। जो इस प्रकार के उत्पाद मोहल्लों में जगह -जगह

खड़े होने वाले ठेलों से खरीदकर खा लेती है।

देश में बेरोज़गारी के कारण बहुत से युवा खाने के सामान की

ठेली लगा लेते हैं। उनके सामान भी बड़ी कम्पनियों के मुकाबले

सस्ते होते हैं। इसकारण उन्हें रोजगार मिल जाता है और जनता

को उनकी पसंद का सामान सस्ते में मिल जाता है। यह बात

जरूर है की ऐसे ठेलों पर बिकने वाले सामान कितने सही हैं या

कितने गलत हैं इसका कोई पैमाना नहीं होता।

अब बात आती है खाद्य गुणवत्ता कानून की। पिछले कुछ सालो

में देश में इस ओर जागरूकता आयी है। सरकार ने भी जनता को

अच्छा खाद्य पदार्थ मिले इसलिए कई नए कानून बनाये हैं। यह

सब आज के बीमारियों के दौर में जरूरी भी था। आज अधिकांश

बीमारियां जंक फ़ूड जैसे खाद्य पदार्थों के कारण भी हो रही हैं।

अब समस्या यह ही की खाद्य विभाग ने कानून तो विदेशों के तर्ज

पर बना दिए हैं और लागु कर दिये है भारत देश में। जबकि अभी

हमारे देश में बने -बनाये अनेको कानूनों का किर्यान्वण हो पाना

ही सम्भव नहीं हो पा रहा है। देश की बड़ी कम्पनियॉ या विदेशी

कम्पनियाँ तो फिर भी ऐसे कानून की कुछ हद तक पूर्ति कर लेती

हैं लेकिन देश की छोटी कम्पनियाँ इन सब कानूनों की पूर्ति नहीं

कर पाती।

खाद्य पदार्थों के किर्यान्वण की मुख्य कम्पनी fassi ने अनेकों कानून

बना दिए हैं। जो सही ही हैं लेकिन उनका खामियाजा भी व्यापारियों

को भुगतना पद रहा है। किसी भी खाद्य उत्पादन पर 5 चीजें होना

बहुत जरूरी हैं। बैच नंबर ,डेट ऑफ़ पैकिंग ,डेट ऑफ़ एक्सपायरी

या बेस्ट बीफोर ,रेट एवं ISI या एगमार्क। अब जो कम्पनियाँ किसी

उचित जगह साफ़ साफ़ दिखने वाले शब्दों में यह सब लिख रही हैं

वह ठीक है लेकिन जो सब कुछ नहीं लिख रही या ऐसी जगह लिख

रही जिसे पढ़ना कठिन है उन पर कार्यवाही होनी चाहिए।

खाने के अनेक उत्पाद और दवाइयां जो मांसाहारी हैं उनपर लाल

निशान होना चाहिए और जो शाकाहारी उत्पाद है उनपर हरा निशान

होना चाहिए। लेकिन ऐसा भी पूर्णतया नहीं हो रहा है। अनेक पिज्जा

जैसे उत्पादनों में नॉनवेज प्रयोग होता है ,जिनपर कुछ कम्पनियाँ

कोड वर्ड जैसे E 176 आदि ही लिखती हैं जो शाकाहारियों के साथ

अन्याय है। अनेक ताकत की दवाइयां जिनमें नॉनवेज प्रयोग होता है

उनपर लाल निशान नहीं होता। ऐसे ही अनेक बातें हैं जिनकी पूर्ति

बड़ी -बड़ी कम्पनियाँ भी नहीं करती और उनका कुछ भी नहीं बिगड़

रहा है। दूसरी तरफ छोटी कम्पनी के खाद्य पदार्थ का सेम्पल सिर्फ

इसलिए फेल हो गया की उसने best before कैपिटल में नहीं लिखा

था जबकि बाकि सब कुछ यानि लिखने और क़्वालिटी में सब सही था।

ऐसे में छोटा उत्पादक परेशान होकर कभी -कभी कार्य ही बंद कर

देता है।

हमारे देश में सबसे बड़ी विडंबना यह भी है की जो उत्पादक अपने

नाम [पते से अपना उत्पादन बेच रहा है उसी पर सारे कानून नियत हैं।

जबकि अपना नाम पता होने के कारण वह गलत नहीं करता। दूसरी

ओर बिना नाम पते के खुले -घटिया क्वालिटी के खुले उत्पादनों पर कोई

कानून नहीं है। छोटे शहरों -गावों में अधिकांश यही उत्पाद बिक रहे हैं।

स्थानीय प्रशाशन को यह सब पता होता है लेकिन सुविधा शुल्क के चलते

सब जगह घटिया सामान बिक रहा है ?

आज ही टीवी पर खाद्य मंत्री श्री पासवान जी ने बताया की अब मंत्रालय

खाद्य पाउच के 40 %हिस्से पर उपरोक्त 5 -6 नियम लिखने जरूरी करने

जा रहा है। इससे क्या होगा ?जरूरी यह है की जो साफ़ साफ़ न लिखे

उस पर कार्यवाही हो। छोटी कम्पनियाँ जिन पर काफी मात्रा में ऐसे

पाउच बने हैं उनका क्या होगा ?उनको बेकार करना छोटी कम्पनी के

हित में नहीं होगा।

तम्बाकू -सिगरेट आदि के अधिकांश हिस्से पर वैधानिक चेतावनी लिखी

रहती है तो भी क्या हो रहा है। जिसे पीनी है पीता है। यदि सरकार को

 जनता की इतनी ही चिंता है तो तम्बाकू -सिगरेट -शराब सब पूर्णतया

बंद कर देनी चाहिये ?क़ानून ऐसे बने जो कारगर हो और सुलभ हों।

ज्यादा और कठोर कानूनों के कारण देश में उद्योग पनप नहीं रहे हैं।

हमारे देश अभी इस अवस्था में नहीं हैं की यहां विदेशो की तर्ज पर

क़ानून लागू किये जा सकें।

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