गिरावट की इन्तेहाँ
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भारतीय राजनीति में गिरावट की इन्तेहाँ हो रही है।
राजनीतिक दलों को देश की चिन्ता नही है बल्कि
मोदीजी को कैसे हरायें इस बात की चिन्ता है ?
ये दल यह नही सोच रहे की जनता के हित में जो
कार्य करेगा जनता उसी को वोट देगी। यदि जनता
मोदीजी को वोट दे रही है तो सिर्फ उनके जुमलों
पर वोट नही दे रही बल्कि मोदीजी की कार्य प्रणाली
को देखकर बीजेपी को वोट दे रही है।
सम्पूर्ण विपक्ष जिस तरह एकत्र होकर मोदीजी को
घेरने में लगा है यह उनकी हताशा -निराशा को ही
दर्शाता है। जनता भी इन सबको देख रही है और
सोच रही है की जो पिछले दिनों आपस में एक दूसरे
को फूटी आँख नही सुहाते थे आज कैसे आपस में
भाईचारे की बातें कर रहे हैं।
यूपी में कांग्रेस और सपा ने बेमेल साथ का अन्जाम
देख ही लिया है। सपा अगर अकेले चुनाव लड़ती तो
ज्यादा सीटे ले जाती ,लेकिन 27 साल जंगलराज कहने
वालो से दोस्ती उन्हें महँगी पड़ी।
अब तो राजनीति में जो जनहित के कार्य करेगा वही
जीतेगा। जनता अब सिर्फ वोट बैंक बनकर नही रहना
चाहती। यदि बीजेपी भी जनहित में कार्य नही करेगी
तो जनता उन्हें भी नकार देगी।
हारजीत तो चलती रहती है लेकिन इतनी कटुता ठीक
नही है। सिर्फ मोदी विरोध को इकट्ठे होना जनता की
नजरों में गलत सन्देश ही देगा। वैसे भी इस प्रकार से
बना गठबंधन सिर्फ दिखावा ही होता है आपस में दिलों
को नही जोड़ता।
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