शुक्रवार, 10 जनवरी 2025
चायनीज़ मांझा
चायनीज़ मांझा खतरनाक है। इससे पक्षी घायल होते हैं वहीं इंसान की गर्दन पर इस मांझे के रगड़ खाने से गर्दन की खाल कट जाती है। इससे कई जाने भी जा चुकी हैं। फिर भी पतंग उड़ाने वाले इसी मांझे को पसंद करते है जो ठीक नहीं है।
हमारे जीव रक्षा केन्द्र में पंख कटे कबूतर तो आते ही हैं, चील तक के पंख कट जाते है इस मांझे से। ऐसे पक्षियों का उपचार तो होता है लेकिन वे बिल्कुल ठीक नहीं हो पाते हैं, उड़ नहीं पाते है।
प्रशासन कितनी भी चायनीज़ मांझे की पकड़ धकड़ कर ले लेकिन फिर भी जिसके पास देखो चायनीज़ मांझा ही होता है। पुलिस को चाहिए की वह चायनीज़ मांझे का खरीददार बनकर जाए तभी पता चलेगा की दुकानदार कहाँ से यह मांझा मंगा कर देता है। वैसे तो सरकारी स्तर पर चायनीज़ मांझे का आयात ही बन्द होना चाहियें।तभी इंसानों की और पक्षियों की जान बच सकेगी।
गुरुवार, 9 जनवरी 2025
अखबार में भगवान
समाचार पत्र पर भगवान
अक्सर समाचार पत्रों में लगभग सभी धर्मों के भगवान की फ़ोटो छपती रहती हैं। सिर्फ एक मुस्लिम समुदाय है जिसकी कोई धार्मिक फ़ोटो नहीं छपती।
अब ये अखबार अगले दिन पुराने होकर निम्न स्तर के कार्यो में इस्तेमाल होने लगते हैं। कबाड़ी इन्हें 15 रुपये किलों के हिसाब से ले जाता है। जहां से ये पुनः 20 रुपये किलों में बिक जाते हैं। चाट पकौड़ी वाले, जलेबी वाले इन्हें ले जाते हैं। जो इन्हें ले जाकर अपने हिसाब से कट करके रख लेते हैं। इन्ही अखबारों में धार्मिक फ़ोटो वाले पेज़ भी होते हैं। अब अगर किसी चाट वाले या जलेबी वाले को अपने ग्राहक को चाट या जलेबी देते समय किसी भगवान की फ़ोटो ऊपर आ गई हो तो जल्दी में वह यह नहीं देखता। बस अखबार के पत्ते लगाकर देता चला जाता है। खाने वाले ग्राहक भी चाट चाट कर चाट या जलेबी के मज़े लेते हैं। उन्हें भी अपनी झूठन के नीचे कोई भगवान दिखाई नहीं देते। उन्हें तो सिर्फ टेस्ट दिखाई देता है।
ऐसा होना हमारे भगवन्तों का बहुत अनादर है। इसी वजह से कुछ हिंदुओ में अपने धर्म के प्रति न सम्मान होता है और न ही आस्था होती है। उन्हें तो सिर्फ अपनी मौज मस्ती से मतलब है। ऐसे हिंदुओ को नॉनवेज जगह पर वेज़ खाने में भी कोई समस्या दिखाई नहीं देती। भले ही वहां वेज़ और नॉनवेज एक ही तेल में पकाया जा रहा हो।
समाचार पत्र पर धार्मिक फ़ोटो के बारे में लिखने का मुख्य आशय यह है की ऐसे में किसी चाट के ठेले पर कोई पुराने अखबार के दोने में चाट खा रहा हो और कोई धर्म प्रेमी संगठन के लोग यह देखकर हंगामा कर दे तो बबाल मच सकता है। जबकि ऐसा कोई पहली बार नहीं हो रहा है। हो सकता है की उज़ संगठन के लोगों ने भी ऐसे ही चाट या जलेबी खाई हो। लेकिन आज योगी राज में ऐसे संगठन जरा जरूरत से ज्यादा जागरूक दिखाई देते हैं।
बहराल कुछ भी हो, ऐसा होना ठीक नहीं है। पहली तो बात समाचार पत्रों में भगवंतों की फ़ोटो छपे ही नहीं। यदि छप रही हैं तो हम सभी का कर्तव्य है की समाचार पत्र पढ़कर फ़ोटो को कैंची से काटकर अलग रख ले। फिर उन्हें नदी में प्रवाहित कर दें।
गुरुवार, 2 जनवरी 2025
बंग्लादेश को अक्ल आई
बंग्लादेश को अब थोड़ा समझ आने लगा है की भारतीयों के उत्पीड़न का क्या नतीज़ा होने वाला है।
अब बंग्लादेश की सेना प्रमुख वाकर उज़ जमान ने अपने संदेश में कहा है की भारत के साथ हम कभी गलत नहीं करेंगे। भारत हमारा मित्र है। व्यापार क्षेत्र में कई मायनों में हम भारत पर निर्भर हैं।
उनके इस संदेश को हम क्या समझें। इस संदेश की सार्थकता तभी है जब बंग्लादेश से भारतीयों का उत्पीड़न बन्द हो जायेगा और जिनके घर, दुकानें जलाई गई हैं, जिन्हें लुटा गया है उसकी भरपाई करें वहां की सरकार।
ट्रेन डिरेल
सहारनपुर, यूपी
ट्रेन को पलटाने की साज़िश। सहारनपुर के पटरी स्टेशन के पास रेल ट्रैक पर लोहे का गेट डाल दिया गया। गेटमैन ने देखा की ट्रैक पर कुछ पड़ा है। वह तभी दौड़ कर पास गया तो देखा की ट्रैक पर एक लोहे का गेट पड़ा है। उसने तभी अधिकारियों को सूचित किया। उसकी सूझबूझ से बड़ा हादसा होने से टल गया। यह घटना रात एक बजे की है। ट्रेन 14089 आनंद विहार-कोटवाड़ा एक्सप्रेस।
अराजक तत्व कुछ बड़ा घृणित कार्य करेंगे कुछ ऐसा ही लगता है। इनकी पकड़-धकड़ जरूरी है।
मनमोहन सिंह, ईमानदार या
मनमोहन सिंह उर्फ मौनी बाबा को मोदी जी ने क्यों कहा था कि मनमोहन सिंह तो बाथरूम में भी रेनकोट पहन कर नहाने की कला जानते हैं।
इस घटनक्रम को जानेगे तो आपको भी यकीन हो जाएगा तथाकथित ईमानदार मनमोहन सिंह कितना बड़ा खिलाड़ी था।
आखिर अमर्त्यसेन अमेरिका में बैठे बैठे भारत सरकार की आर्थिक नीतियों की इतनी आलोचना या दूसरे शब्दों में कहें तो मोदी पर विष-वमन क्यों करते रहते हैं ?
अगर आप भी अपनी जिज्ञासा शांत करना चाहते हैं तो ध्यानपूर्वक पढ़िए और जानिये क्यों ....
वर्ष 2007 में जब नेहरू-गांधी परिवार के सबसे वफादार "डॉ मनमोहन सिंह" प्रधानमंत्री पद से अपनी शोभा बढ़ा रहे थे तब उन्होंने एक समय बिहार के विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की "महायोजना" पर काम शुरू किया (महायोजना क्यों कह रहा हूँ आगे स्पष्ट होगा)
डॉ मनमोहन सिंह ने नोबल पुरस्कार विजेता "डॉ अमर्त्यसेन" को असीमित अधिकारों के साथ नालंदा विश्वविद्यालय का प्रथम चांसलर नियुक्त किया। उन्हें इतनी स्वायत्तता दी गयी कि उन्हें विश्विद्यालय के नाम पर बिना किसी स्वीकृति और जवाबदेही के कितनी भी धनराशि अपने इच्छानुसार खर्च करने एवं नियुक्तियों आदि का अधिकार था । उनके द्वारा लिए गये निर्णयों एवं व्यय किये गये धन का कोई भी हिसाब-किताब सरकार को नहीं देना था ।
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि छुपे रुस्तम मनमोहन सिंह और अमर्त्यसेन ने मिलकर किस तरह से जनता की गाढ़ी कमाई और टैक्स के पैसों से भयंकर लूट मचाई ? वो भी तब जबकि अमर्त्यसेन अमेरिका में बैठे बैठे ही 5 लाख रुपये का मासिक वेतन ले रहे थे जितनी कि संवैधानिक रूप से भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, मुख्य चुनाव आयुक्त, रक्षा सेनाओं के अध्यक्षों, कैबिनेट सचिव या किसी भी नौकरशाह को भी दिए जाने का कोई प्रावधान ही नहीं है ।
इतना ही नहीं अमर्त्यसेन को अनेक भत्तों के साथ साथ असीमित विदेश यात्राओं और उस पर असीमित खर्च करने का भी अधिकार था ।
कहानी का अंत यहीं पर नहीं हुआ बल्कि उन्होंने मनमोहनी कृपा से 2007 से 2014 की सात वर्षों की अवधि में कुल 2730 करोड बतौर चांसलर नालंदा विश्वविद्यालय खर्च किये.... आपकी आंखें फटी रह गयी न ... विश्वास नहीं हो रहा न कि मनमोहन सिंह ईमानदारी के चोंगे में कितने बड़े छुपे रुस्तम थे ?
चूंकि यूपीए सरकार द्वारा संसद में पारित कानून के तहत अमर्त्यसेन के द्वारा किये गये खर्चों की न तो कोई जवाबदेही थी और न ही कोई ऑडिट होना था और न ही कोई हिसाब उन्हें देना था इसलिए देश को कभी शायद पता ही न चले कि दो हज़ार सात सौ तीस करोड़ रुपये आखिर गये कहाँ ?
राफेल राफेल चिल्लाने वाले राहुल और रंक से राजा बने दर्जाप्राप्त भूमाफिया रॉबर्ट वाड्रा की धर्मपत्नी प्रियंका वाड्रा की पारिवारिक विरासत ही है कानूनी जामा पहना कर संगठित लूट की ताकि कानून के हाथ कितने भी लंबे हो जायँ पर उनका कुछ न बिगड़े ।
ऐसी ही संस्कृति में पलने बढ़ने के कारण दोनों भाई-बहनों में कोई आत्मग्लानि का भाव है ही नहीं बल्कि आंखों में बेशर्मी की चमक हो जैसे...किस मुंह से ये गरीब, दलित, किसान और पिछड़ों के हक की लड़ाई लड़ने की बात करते हैं !! निपट ढोंग है ये ।
अभी कहानी खत्म नहीं हुई, पिक्चर अभी बाकी है -
अमर्त्यसेन सेन ने जो नियुक्तियां कीं उसपर भी कानूनन कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता । उन्होंने किन किन की नियुक्तियां कीं ... आइये ये भी जान लेते हैं -
प्रथम चार नियुक्तियां जो उन्होंने कीं वो थे -
1. डॉ उपिंदर सिंह
2. अंजना शर्मा
3. नवजोत लाहिरी
4. गोपा सब्बरवाल
..... कौन थे ये लोग
... ? ? जानेंगे तो मनमोहन सिंह के चेहरे से नकाब उतर जायेगा ।
डॉ उपिंदर सिंह मनमोहन सिंह की सबसे बड़ी पुत्री हैं और बाकी तीन उनकी करीबी दोस्त और सहयोगी ।
इन चार नियुक्तियों के तुरंत बाद अमर्त्यसेन ने जो अगली दो नियुक्तियां कीं वो गेस्ट फैकल्टी अर्थात अतिथि प्राध्यापक की थी और वो थे -
1. दामन सिंह
2. अमृत सिंह
.....गोया ये कौन थे ?
पहला नाम डॉ मनमोहन सिंह की मझली पुत्री और दूसरा नाम उनकी सबसे छोटी पुत्री का है ।
और सबसे अद्वितीय बात जो दामन सिंह और अमृत सिंह के बारे है वो ये कि ये दोनों "मेहमान प्राध्यापक" अपने सात वर्षों के कार्यकाल में कभी भी नालंदा विश्वविद्यालय नहीं आयी ... पर बतौर प्राध्यापक ये अमेरिका में बैठे बैठे ही लगातार सात सालों तक भारी-भरकम वेतन लेती रहीं ।
उस दौर में नालंदा विश्वविद्यालय की संक्षिप्त विशेषता ये थी कि -
विश्विद्यालय का एक ही भवन था, इसके कुल 7 फैकल्टी मेम्बर और कुछ गेस्ट फैकल्टी मेम्बर (जो कभी नालंदा आये ही नहीं ) ही नियुक्त किये गये जो अमर्त्यसेन और मनमोहन सिंह के करीबी और रिश्तेदार थे । विश्विद्यालय में बमुश्किल 100 छात्र भी नहीं थे और न ही कोई वहां कोई बड़ा वैज्ञानिक शोध कार्य ही होता था जिसमे भारी भरकम उपकरण या केमिकल आदि का प्रयोग होता हो ।
फिर वो 2730 करोड़ रुपये गये कहाँ आखिर ?
मोदी जब सत्ता में आये और उन्हें जब इस कानूनी लूट की जानकारी हुई तो अमर्त्यसेन के साथ साथ मनमोहनी पुत्रियों को भी तत्काल बाहर का रास्ता दिखा दिया ।
कहाँ गए वो राफेल राफेल चिल्लाने वाले... लौट आये बैंकॉक से ? कहाँ गयी गरीब किसान की पत्नी जिनके साथ अत्याचार हो रहा है ....
अभी गरीब गुरबा के साथ सेल्फी में ही जुटी हैं क्या ?
कहाँ गये वो 49 मॉब लिंचिंग के स्वयम्भू चिंतक जिनके पीठ पर लदा पुरस्कारों का अहसान अभी उतरा नहीं है तो आंखों में बेहयाई अभी बाकी है ?
👉 इस मौनी बाबा ने अपनी मनमोहनी खामोशी से जो खेल खेला उसमें अपने परिवार और अपने इटालियन मालिक को भरपूर लाभ लेने का मौका दिया वो इनकी साफ सुथरे चेहरे को बेनकाब करने के लिए काफ़ी है।
👉 आज वही अमर्त्य सेन मोदी जी का सबसे बड़ा विरोधी है और मौका मिलते ही हर बार मोदी जी के बारे में पूरी दुनिया को गुमराह करने का प्रयास करता रहता है।
समझिए कौन था ....??
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चायनीज़ मांझा
चायनीज़ मांझा खतरनाक है। इससे पक्षी घायल होते हैं वहीं इंसान की गर्दन पर इस मांझे के रगड़ खाने से गर्दन की खाल कट जाती है। इससे कई जाने भी जा ...