सोमवार, 20 जनवरी 2025
कपूर और नींबू
शरीर की सभी नसों को खोलने का आयुर्वेदिक समाधान....
कपूर और नींबु कितने उपयोगी है...दिन में सिर्फ़ एक बार यह साधारण सा उपाय करके देखिए, सिर के बाल से पैर की उंगली तक सारी नसें मुक्त होने का आपको स्पष्ट अनुभव होगा कि सिर से पैर तक एक तरह से करंट का अनुभव होगा, आपके शरीर की नसें मुक्त होने का स्पष्ट अनुभव होगा। हाथ–पैर में होने वाली झंझनाहट (खाली चढ़ना) तुरंत बंद हो जाती हैं,
◾पुराना घुटनों का दर्द और कमर, गर्दन या रीड की हड्डी (मणके) में कोई नस दबी या अकड़ गई है तो वह पूरी तरह से ठीक हो जाएगी, पुराना एड़ी का दर्द भी ठीक हो जाएगा।
◾इस उपाये से बहुत से लोगों के लाखों रुपए बच सकते हैं। पैर में फटी एड़ियां और डैड स्किन रिमूव हो जाती है और पैर कोमल हो जाते हैं और इसके पीछे जो विज्ञान और आयुर्वेद है.
◾यह उपाय करने के लिए हमें घर में ही उपलब्ध कपूर और नींबू, ये दो चीजें चाहियें। इस उपाय को करने के लिए डेढ़ से दो लीटर गुनगुना पानी लें, जिसका तापमान पैर को सहन होने जितना गरम हो, उसमे आधे नींबू का रस निचोड़े और फिर नींबू को भी उस पानी में डाल दें
◾फिर दूसरी चीज कपूर है–कोई भी कपूर हो। कपूर की तीन गोलिय् बारीक पीस कर उसका पाउडर बना लें, यह भी उस पानी में मिला लें, फिर पांच से दस मिनट तक पैरों को इस पानी में डाल कर रखें।
◾जैसे ही आप पैरों को पानी में डालेंगे, तो आपको इससे सिर से पैर तक एक तरह से करंट का अनुभव होगा। आपके सिर के बालों से पैर तक की सारी नसें मुक्त होने का स्पष्ट रूप से अनुभव होगा। इसका कारण यह है कि हमारे पैरों में 172 प्रकार के प्रेशर पॉइंट होते हैं, जो हमारे शरीर की सभी नसों के साथ जुडे होते हैं।
◾यह नींबू और कपूर वाला गुनगुना पानी इन 172 प्रकार के प्रेशर पॉइंट्स को मुक्त कर देता है और इससे शरीर की सारी नसें एकदम से रीएक्टिवेट हो जाती हैं और पूरी तरह से मुक्त हो जाती हैं, ऐसा अनुभव होता है।
◾इस उपाय में सिर्फ पांच से दस मिनट तक इस पानी में पैर डाल कर रखने है और यह दिन में कभी भी सुबह या शाम को कर सकते हैं।
◾इससे हाथ, पैर में होने वाली झनझनाहट (खाली चढ़ना) बंद हो जाती हैं और कोई नस दबी या अकड़ गई हो, तो वह खुल जाएगी और सिरदर्द भी इस उपाय से बंद हो जाता है।
◾जिन लोगों को माइग्रेन की तकलीफ हो वह भी, पानी में पैर रखने के साथ ही बन्द हो जायेगी। अगर स्नायु अकड़ गये हों या शरीर दर्द कर रहा हो तो यह उपाय करके देखिए।
◾इसका कोई साइड इफैक्ट नहीं है और यह उपाय सरल रूप से किया जा सकता है।
◾यह उपाय पांच दिन करना है। यह उपाय दिखने में तो सरल लगता है मगर इस का रिज़ल्ट बहुत ही अच्छा और असरदार होता है....आपको इससे नुकसान कुछ नहीं होगा फायदा ही होगा....🙏#viralreelsfb #facebookreels #ayurveda #yoga #rajivdixit #ayurvedalifestyle #health #viralreel #viralvideochallenge
शुक्रवार, 17 जनवरी 2025
चिलगोजा
#चिलगोजा: कीमत और पौष्टिकता दोनों में काजू से श्रेष्ठ यह ड्राई फूड वाकई में बेमिसाल है!
#आवाज_एक_पहल
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चिलगोजा एक ऐसा ड्राई फ्रूट है जिसके बारे में शायद ही आपने इससे पहले देखा और सुना होगा! हिमाचल प्रदेश का एक प्यारा सा शहर है किन्नौर! यही पाये जाते है चिलगोजा के पेड़!
खासकर टापरी से लेकर पूह तक केवल सतलुज नदि के किनारे ही पाया जाता है। किन्नौर के अलावा भारत में कश्मीर के छोटे से हिस्से में भी चिलगोजा पाया जाता है। उधर नेपाल, अफगानिस्तान और चीन में भी कुछ सीमित क्षेत्रों में चिलगोजा पाया जाता है।
किन्नौर में नेयोजा के नाम से मशहूर
चिलगोजा को किन्नौर में नेयोजा के नाम से जाना जाता है। पाइन नट्स नाम का यह पेड़ चीड़ के पेड़ से मिलता जुलता है। चिलगोजा के पेड़ का तना सफेद होता है जबकि चीड़ की तरह ही इसके कोन्स होते हैं जिसमें बीज लगते है। ऊंची चट्टानों, पहाड़ों और पत्थरों के बीच बड़े पेड़ों से इन कोन्स को निकालना आसान नहीं होता। काफी मेहनत के बाद निकले चिलगोजे को मार्किट में खरीदने के लिए व्यवसायी दूर--दूर से किन्नौर के मुख्यालय रिकांगपिओ पहुंचते हैं। चिलगोजा भारतीय बाजार में ही 2 हजार रूपये प्रति किलोग्राम से कीमत में बिकता है।
चिलागोजा वैज्ञानिक खेती नहीं हो पाई संभव
चिलगोजा की वैज्ञानिक खेती अभी तक संभव नहीं हो पाई है। वन विभाग और बागवानी विभाग इसकी अऩ्यत्र खेती के प्रयास में जुटा है लेकिन अब तक यह संभव नहीं हो पाया है। किन्नौर के इस क्षेत्र में भी हर साल हजारों नए पौधे रोपे जा रहे हैं, लेकिन उम्मीद के अनुरूप कम ही पौधे टिक पाते हैं। जानकारों का कहना है कि यदि इस पेड़ का वैज्ञानिक दोहन न हुआ और इसके संरक्षण पर विशेष ध्यान न दिया गया तो औषधीय तत्वों से भरपूर यह चिलगोजा विलुप्त हो सकता है।
चिलगोजा के फायदे में स्वास्थ्य संबंधित कई फायदे शामिल हैं, जो चिलगोजा खाने के फायदे के महत्व को दर्शाते हैं।
1. मधुमेह में
मधुमेह जैसी बीमारी में खान-पान का विशेष ध्यान देना पड़ता है, लेकिन यदि आप चिलगोजा का सेवन कर रहे हैं तो निश्चिन्त रहिये क्योंकि और इसमें मौजूद पोषक तत्वों से मधुमेह की समस्या में होने वाले खतरों को कई गुना तक कम किया जा सकता हैं।
एक वैज्ञानिक शोध के मुताबिक पाइन नट्स के प्रयोग से सीरम कोलेस्ट्रॉल के स्तर में कमी देखी गई। चिलगोजा में कैल्शियम, पोटैशियम और मैग्नेशियम जैसे मिनरल्स मौजूद होते हैं (2)। एक अन्य वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार यह पाया गया कि उपरोक्त तत्वों वाले नट का सेवन अगर किया जाए तो यह डायबिटीज के खतरे को कम कर सकते हैं (1)।
2. ह्रदय स्वास्थ्य में
चिलगोजा खाने का तरीका, हृदय स्वास्थ्य में भी लाभदायक हो सकता है। चिलगोजा एक नट है और एक वैज्ञानिक शौध के अनुसार नट पदार्थों का सेवन करने से हृदय संबंधित बीमारियों का खतरा कम हो सकता है (3)। एक अन्य अध्ययन की मानें तो पाइन नट्स के अंदर मौजूद पोषक तत्व हृदय संबंधी कई रोगों में कमी देखी गई (4)।
चिलगोजा में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने का गुण मौजूद होते हैं। एक वैज्ञानिक शोध के अनुसार चिलगोजा में मौजूद पॉली अनसैचुरेटेड फैट कोलेस्ट्रॉल को कम कर हृदय रोगों से सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं (5)।
3. कोलेस्ट्रॉल के लिए
चिलगोजा खाने का तरीका इस्तेमाल कर कोलेस्ट्रॉल को संतुलित किया जा सकता है, क्योंकि चिलगोजा में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बिल्कुल भी नहीं होती है और यही वजह है कि चिलगोजा का सेवन करने से कोलेस्ट्रॉल में बढोत्तरी होने का खतरा कम हो सकता है
4. वजन संतुलित करने में
वजन नियंत्रित रखने में भी चिलगोजा खाने के फायदे देखे जा सकते हैं। एक वैज्ञानिक शोध के मुताबिक चिलगोजा से बने हुए तेल का सेवन वजन घटाने में अहम भूमिका निभा सकता है। दरअसल, चिलगोजा में पिनोलेनिक एसिड मौजूद होता है और यह 14 से 19 प्रतिशत फैटी एसिड को प्रदर्शित करता है। यह एसिड भूख को नियंत्रित कर वजन को कम करने में मदद कर सकता है (6)। एक अन्य वैज्ञानिक शोध के मुताबिक भी यह कहा गया है कि रोजाना नट पदार्थों के सेवन से वजन घटाने में मदद मिल सकती है (3)।
5. कैंसर में
चिलगोजे के फायदे कैंसर जैसी गंभीर बिमारी में भी देखने को मिल सकते हैं। एक वैज्ञानिक शोध के अनुसार, कैंसर जैसी बीमारी से बचने के लिए नट पदार्थों का सेवन लाभदायक हो सकता है (7)। शोध के अनुसार, पाइन नट्स में रेस्वेराट्रोल नमक एंटीऑक्सीडेंट मौजूद होता है, जो कैंसर के जोखिम को कम करने में मदद कर सकता है। वहीं, पाइन नट्स में उपस्थित फोलिक एसिड डीएनए (DNA) की क्षति को कम कर सकता है (8)।
6. मस्तिष्क स्वास्थ्य में
मस्तिष्क स्वास्थ्य में चिलगोजा खाने के फायदे प्रभावकारी रूप में देखे जा सकते हैं। एक वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार चिलगोजा में ओमेगा-3 एसिड पाया जाता है, जो मस्तिष्क की कोशिकाओं को बेहतरीन रूप से चलाने के लिए उपयोगी माना जाता है। चिलगोजा खाने से ओमेगा- 3 फैटी एसिड्स मस्तिष्क के बेहतरीन संचालन, याददाश्त को मजबूत बनाने का काम कर सकता है (9)।
7. हड्डियों के लिए
चिलगोजा खाने के फायदे हड्डियों की मजबूती के लिए भी देखे जा सकते हैं, क्योंकि चिलगोजा में मौजूद फैटी एसिड हड्डियों के विकास और मजबूती में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। एक वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार चिलगोजा में पाया जाने वाला ओमेगा-6 फैटी एसिड्स हड्डियों को स्वस्थ रखने के साथ – साथ गठिया जैसे रोग में भी आराम पहुंचा सकता है (9)। इसके अलावा चिलगोजे के फायदे में कैल्शियम भी शामिल है जो हड्डियों की मजबूती और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
8. प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए
प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए भी चिलगोजा का प्रयोग किया जा सकता है। एक वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार चिलगोजे में जिंक मौजूद होता है, जो प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देने का काम करता है (9)।
9. आंखों की देखभाल के लिए
चिलगोजे के फायदे में आंखों की देखभाल भी शामिल हो सकते हैं। एक वैज्ञानिक शोध के मुताबिक आंखों की देखभाल के लिए अगर आप चिलगोजा का सेवन कर रहे हैं, तो इसमें मौजूद ओमेगा-3 आपकी आंखों की मदद कर सकता है। यह आपकी आंखों की नाईट विजन (दृष्टि) और कलर विजन की क्षमता का विकास कर सकता है (9)। इसके अलावा चिलगोजा में विटामिन- ए भी पाया जाता है, जो आंखों की रेटिना में रंजक (आंखों को विभिन्न रंगों को पहचानने की क्षमता) का विकास करता है (2), (11)। इसलिए आंखों की देखभाल के लिए चिलगोजा का प्रयोग किया जा सकता है।
10. एंटीऑक्सीडेंट के तौर पर
एंटीऑक्सिडेंट्स हमारी कोशिकाओं को नुकसान पहुंचने से बचाते हैं। अगर आप चिलगोजा का सेवन कर रहे हैं तो निश्चिंत हो जाइए, क्योंकि चिलगोजे में एंटीऑक्सीडेंट्स (विटामिन ए , विटामिन सी और विटामिन ई) भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं (2), (12) ।
11. भूख नियंत्रित रखने में
वजन को संतुलित रखने के लिए भी चिलगोजा खाने के फायदे देखे जा सकते हैं। जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं कि चिलगोजे में पिनोलेनिक नामक फैटी एसिड पाया जाता है, जो भूख को नियंत्रित करने का काम कर सकता है (13)।
इसके अलावा एक वैज्ञानिक शोध में देखा गया है, कि पाइन नट दो खास हार्मोन सीसीके और जीएलपी-1 को बढ़ाने का काम करता है, जो भूख को नियंत्रित करने का काम कर सकते हैं (14)।
12. त्वचा के लिए
त्वचा के लिए भी चिलगोजे के फायदे आपको लाभ पहुंचा सकते हैं। एक वैज्ञानिक अध्ययन के मुताबिक चिलगोजा का इस्तेमाल त्वचा के लिए फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि यह विटामिन-सी (एस्कॉर्बिक एसिड) का अच्छा स्रोत होता है। विटामिन सी एक एंटीऑक्सीडेंट्स है, जो सूर्य की हानिकारक किरणों से त्वचा की रक्षा करता है। साथ ही विटामिन सी त्वचा में कोलेजन को बढ़ाता है और एजिंग को कम करता है (2),15)।
इसके अलावा चिलगोजे में मौजूद मैंगनीज त्वचा को मुक्त कणों (Free Radicals) से दूर रखने का काम भी कर सकता है (9)।
13. बालों के स्वास्थ्य के लिए
बालों के स्वास्थ्य के लिए भी चिलगोजा खाने के फायदे देखे जा सकते हैं। चिलगोजे में पाया जाने वाला ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटी एसिड बालों के विकास के लिए उपयोगी हो सकता है (9)। एक वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार, ओमेगा-6 फैटी एसिड बालों को झड़ने से रोकने में मदद करता है और बालों को घना बनाने में भी सहयोग कर सकता है
साभार
बुधवार, 15 जनवरी 2025
कर्ज का जाल
कर्ज के जाल में जो उलझा वही अपने दिमागी सकून से गया और कुछ अपनी जान से गये।
अक्सर मध्यम और गरीब आदमी अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए फाइनेंस कम्पनियों से लोन ले लेते हैं। जिसे वे समय पर चुकाने में असमर्थ हो जाते है। ऐसे में कर्ज देने वाली फाइनेंस कंपनी के लोग उसके घर आकर उसके साथ अभद्र व्यवहार तो करते ही हैं कभी कभी मारपीट भी कर देते हैं। उसका सामान उठाकर ले जाते हैं। ऐसे में कभी कभी ज्यादा उत्पीड़न से पीड़ित होकर लोन लेने वाला खुकुशी तक कर लेता है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।
गाँव- देहात में तो आज भी साहूकार प्रथा जिंदा है जो गरीब लोगों का , गरीब किसानों का खून चूसने से पीछे नहीं हटती। ये साहूकार लोग बहुत ऊंचे ब्याज पर लोन देते हैं। इसमें भी दुःखद बात यह है की लोन दी जा रही रकम में से एडवांस ब्याज काटकर बाकी रकम देते हैं। बदले में गरीब के घर का कागजात, किसान के खेत के कागजात अपने पास रख कर न जाने किन किन पेपरों पर उसका अंगूठा लगवा लेते हैं। समय पर ब्याज न चुकाने पर ब्याज पर ब्याज जोड़ते चले जाते हैं। जो गरीब ब्याज ही न चुका पा रहा हो वह मूल कहाँ से चुका पायेगा। ऐसे में एक दिन साहूकार उसके घर या खेत को अपने नाम करा लेते हैं। बहुत विडंबना की बात है यह।
सरकार को गरीबो और छोटे किसानों के लिये कुछ अलग से सुविधा देनी चाहिए। बड़े किसान तो आज जमींदार बन गए हैं। उनके खेत की कीमतें आसमान छू रही हैं। सारी कमाई टैक्स फ्री। सरकार इनके लिये बहुत कुछ सुविधा देती रहती है, फिर भी ये आंदोलन करते रहते हैँ। जो अक्सर राजनीति से प्रेरित होता है।
सोमवार, 13 जनवरी 2025
बंग्लादेश की यारी
जिन बंगलादेशियो को पाकिस्तान की सेना मार-मार कर बंदर बना देती थी, बेहताशा उत्पीड़न करती थी आज उन्ही पाकिस्तान के फिर से गुलाम होने जा रहे हैं बंगलादेशी। पाकिस्तान के लिये वीज़ा फ्री करने जा रहा है बंग्लादेश।
क्या विडम्बना की बात है? जिस भारत ने बंग्लादेश को पाकिस्तान के उत्पीड़न से मुक्ति दिलाकर आज़ाद देश बनवाया आज उसी भारत को आंखे दिखा रहा है बंग्लादेश। वहां रह रहे हिंदुओ के साथ बर्बरता कर रहा है बंग्लादेश।इसका खामियाजा भी भुगतेगा बंग्लादेश।
रविवार, 12 जनवरी 2025
सरदार पटेल पर हमला
उपर दिखाई दे रहा यह विडिओ साब ने देखा होगा,
एक जानकारी जो शायद ही कम लोग जानते होंगे?
*क्या आप सरदार पटेल पर.. मुस्लिमों के जानलेवा हमले के बारे में जानते हैं..? बिल्कुल नहीं.. क्योंकि यह स्कूलों के शिक्षाक्रम से निकाल दिया गया है.. क्योंकि इससे भाईचारे वाले मजहब की सच्चाई सामने आती है..! आज भी कहीं दंगे होते हैं.. तो दंगा करने वाले समाज का नाम प्रकाशित करने पर पाबंदी है.. क्या इस तरह सच्चाई को.. छुपाया जा सकता है..?
यह तो लाउडस्पीकर पर चिख चिख कर बताया जाता है.. नाम.. गांव.. जात.. धर्म समेत किताबों में भी पढ़ाया जाता है.. कि महात्मा गांधी की हत्या.. नाथूराम गोडसे ने कि.. किंतु यह कभी नहीं पढ़ाया गया कि.. 14 मई 1939 को भावनगर में.. सरदार पटेल पर जानलेवा हमला.. और उनकी हत्या की कोशिश किसने किया.. और कितने अपराधियों को फांसी और आजीवन कारावास की सजा अदालत ने सुनाई गई..!
14 मई और 15 मई 1939 को.. भावनगर में भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता सरदार वल्लभभाई पटेल की अध्यक्षता में.. भावनगर राज्य प्रजा परिषद का पांचवा अधिवेशन होने वाला था.. सरदार वल्लभभाई पटेल भावनगर आए.. और रेलवे स्टेशन से खुली जीप में उनकी भव्य शोभा यात्रा निकली.. सरदार पटेल खुली जीप में बैठकर.. सड़क के दोनों तरफ खड़े लाखों महिला, पुरुष और बच्चों का अभिवादन स्वीकार कर रहे थे..!
अपार जन समूह के कारण.. बहुत धीमी गति से बढ़ते हुए.. जब यह यात्रा खार गेट चौक पहुंची.. तब वहां नगीना मस्जिद में छुपे हुए 57 शांतिप्रिय, भाईचारा समझाने वाले मजहब के लोगों ने.. तलवार, भाले लेकर जीप को चारों ओर से घेर लिया.. दो नौजवान बच्चू भाई पटेल और जाधव भाई मोदी की नजर उन पर पड़ी.. उन्होंने चारों ओर से सरदार पटेल को घेर कर.. ढाल की तरह पूरा जानलेवा हमला खुद पर झेल लिया.. वह सरदार पटेल का सुरक्षा कवच बन गए..!
हमलावरों ने वल्लभ भाई पटेल पर तलवार भाले से कई हमले किए.. जिसको इन साहसी नौजवान लड़कों ने आगे बढ़कर अपने ऊपर झेल लिया.. किंतु इस भयानक हमले में बच्चू भाई पटेल घटनास्थल पर ही वीरगति को प्राप्त हुए.. जबकि जाधव भाई मोदी अस्पताल में वीरगति को प्राप्त हुए.. जहां पर यह दोनों वीर नवयुवक वीरगति को प्राप्त हुए.. वहां पर उनकी मूर्ति भी लगी है.. इस घटना की अंग्रेज सरकार ने बहुत अच्छे तरीके से जांच कि.. और एक विशेष कोर्ट बनाई..!*
57 आरोपी पकड़े गए.. *इसमें सरदार वल्लभभाई पटेल की सुरक्षा में लगाए गए.. सिपाही आजाद अली, रुस्तम अली को सजा ए मौत यानी फांसी दिया गया..*
और कासम डोसा घांची, लतीफ मियां काजी, मोहम्मद करीम सिपाई, सय्यद हुसैन सिपाही, चांद गुलाब सिपाई, हाशम सुमरा संधि, लोहार मूसा अब्दुल्ला, अली मियां अहमद मियां सैयद, अली मामद सुलेमान, मोहम्मद सुलेमान कुंभार अबू बकर अब्दुल्ला लोहार अहमदिया मोहम्मद मियां काजी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई..!
इन्होंने अदालत में अपने बयान में कहा.. कि सरदार वल्लभभाई पटेल ने कोलकाता में.. मुस्लिम लीग के खिलाफ भाषण दिया था.. उसी कारण उनके हत्या की साजिश रची गई थी.. किंतु अफसोस और शर्म की बात यह है कि.. इतिहास की यह महत्वपूर्ण घटना नेहरू सरकार ने.. सरदार पटेल जी के मृत्यु के बाद किताबों से हटा लिया.. ताकि भविष्य में यह कोई जान न सके.. कि सरदार पटेल के ऊपर जानलेवा हमला और उनके हत्या की साजिश कभी शांतिप्रियों भाईचारा वाले मजहब के लोगों ने रची थी..!
क्या सरदार वल्लभ भाई पटेल के साथ.. भाईचारा शांतिप्रिय मजहब वाले लोगों द्वारा की गई.. इस सत्य घटना को.. वर्तमान पीढ़ी को बताना जरूरी नहीं है..? इसीलिए हम भारत सरकार से निवेदन करते हैं कि.. भारत के नकली इतिहास को बदलकर.. निष्पक्ष इतिहासकारों की उपस्थिति में.. खोजबीन कर भारत का सत्य इतिहास लिखा जाए..
सर्वोत्तम आहार- शाकाहार
मांस संवेदनहीन आहार है,
1) *ताकत के लिए* --
धरती का सबसे ताकतवर #जानवर *हाथी* #शाकाहारी होता है। वो ताकत के लिए कभी #मांस नहीं खाता!! किसानों के साथ मेहनत करने वाला *बैल* क्या कभी मांस खाता है? *हॉर्सपावर* का इस्तेमाल किसी भी मशीन की #शक्ति मापने के लिए किया जाता है। क्या -#घोड़ा कभी मांस खाता है? फिर ये कैसे कहा जा सकता है कि मांस खाने से ताकत मिलती है?
2) *जीभ के स्वाद के लिए??*
*मांस में कैसा स्वाद होता है।* सारा स्वाद उसमें पड़े बहुउपयोगी मसालों के कारण होता है। अगर वही #मसाले इस्तेमाल किए जाएं तो किसी भी सब्जी में वही स्वाद आएगा!
3) *विटामिन के लिए??*
हरी पत्तेदार #सब्जियों और सूखे मेवों में मांस से कहीं ज्यादा #प्रोटीन, विटामिन और पोषक तत्व होते हैं....है ना? तो फिर मांस क्यों खाएं?
असल में प्रकृति ने न तो हमारे दांतों को मांस चबाने के लिए बनाया है और न ही हमारी आंतों को मांस पचाने के लिए।
मानव शरीर मूलतः शाकाहार के लिए बनाया गया है।
यदि ऐसा न होता तो डॉक्टर छोटे बच्चे को चावल की खिचड़ी की जगह मांस के टुकड़े चबाने को कहता।
इसका मतलब यह हुआ कि मनुष्य स्वाभाविक मांसाहारी नहीं है! फिर हमें जीभ से खून क्यों चाटना पड़ता है?
*चिकित्सा* कहती है कि मांस खाने से पाचन क्रिया खराब होती है। मानसिक रोग होता है, जिससे अनेक रोग हो सकते हैं।
*अध्यात्म* कहता है कि मांस खाने से मनुष्य में काम, क्रोध, मद, ईर्ष्या आदि दुर्गुण प्रबल होते हैं। राक्षसी प्रवृत्तियाँ बढ़ती हैं।
कहा जाता है कि मनुष्य बंदरों से विकसित हुआ है। *बंदर* आज भी शाकाहारी हैं। विकास की यात्रा में.... बंदरों से मनुष्य तक.... कौन जानता है कि मनुष्य पशु कैसे बन गया?
लेकिन मनुष्य का पेट पशुओं का कब्रिस्तान नहीं है... मनुष्य को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए!!!
शुद्ध आहार *शाकाहार* प्रकृति की रचना है...
*जो पशु होठों से पानी पीता है, वह शाकाहारी होना चाहिए और जो पशु जीभ से चाट कर पानी पीता है, वह मांसाहारी होना चाहिए।
*शाकाहारी बनो!!!*
अपने शरीर, मन और विचारों की पवित्रता को बढ़ाओ।
काम के घण्टे
काम के घण्टे
बड़ी- बड़ी कम्पनियों के CEO चेयरमैन ऑफिस में काम के घण्टो पर अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं।
इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति कहते है की सप्ताह में 70 घण्टे कार्य होना चाहिए। एल एंड टी के चेयरमैन सुब्रह्मण्यम सप्ताह में 90 घण्टे काम की वकालत कर रहे हैं। आनंद महिंद्रा का सुझाव है की काम को घण्टो से नहीं बल्कि गुणवत्ता से नापना चाहिए।
ये तो बड़े-बड़े लोगो की बड़ी-बड़ी बातें हैं। भारत देश मे अधिकांश छोटा और मध्यम व्यापारी जो 11 घण्टे दुकान खोलकर बैठता है। रात को घर पर जाकर हिसाब मिलाता है। छुट्टी के दिन खरीदारी के लिये किसी बड़े दिल्ली जैसे नगर में जाता है। उसके बारे में कोई नहीं सोचता। दुकान पर बैठे हुए भी दिमाग मे विभागीय कानूनों की पूर्ति में परेशान रहता है जो अक्सर कुछ ले देकर ही पूरी होती है। कोई छुट्टी नहीं, कोई परिवार के साथ घूमना फिरना नहीं। सीनियर सिटीजन हो जाने के बाद भी दुकान के अलावा आय का कोई साधन नहीं। उसके बारे में सरकार भी नहीं सोचती।
सरकार तो बस सरकारी नॉकरी वाले कर्मियों की सोचती है। उनकी बेहताशा सेलरी के बाद भी सेलरी बढ़ाने की बात, उनको महंगाई भत्ता देने की बात, वे रूठ न जाये इसलिये उनको मनाने की बात यानी सरकारी नॉकरी करने वाला हर हाल में मज़े में है। नॉकरी के बाद पेंशन के मज़े। यदि वह जीवित न रहे तो उसकी पत्नीजी को भी परेशानी नहीं।
परेशान तो सिर्फ मध्यम वर्ग आदमी या व्यापारी ही रहता है। जिसके लिये कोई सरकारी सहायता नहीं। यहाँ तक की गैस का सिलेंडर भी सस्ता नहीं मिल पाता। जबकि सरकार जहां चुनाव होते हैं वहां सस्ता सिलेंडर दे देती है। बहुत भेदभाव की बात है ऐसा होना।
सुनील जैन राना
शुक्रवार, 10 जनवरी 2025
चायनीज़ मांझा
चायनीज़ मांझा खतरनाक है। इससे पक्षी घायल होते हैं वहीं इंसान की गर्दन पर इस मांझे के रगड़ खाने से गर्दन की खाल कट जाती है। इससे कई जाने भी जा चुकी हैं। फिर भी पतंग उड़ाने वाले इसी मांझे को पसंद करते है जो ठीक नहीं है।
हमारे जीव रक्षा केन्द्र में पंख कटे कबूतर तो आते ही हैं, चील तक के पंख कट जाते है इस मांझे से। ऐसे पक्षियों का उपचार तो होता है लेकिन वे बिल्कुल ठीक नहीं हो पाते हैं, उड़ नहीं पाते है।
प्रशासन कितनी भी चायनीज़ मांझे की पकड़ धकड़ कर ले लेकिन फिर भी जिसके पास देखो चायनीज़ मांझा ही होता है। पुलिस को चाहिए की वह चायनीज़ मांझे का खरीददार बनकर जाए तभी पता चलेगा की दुकानदार कहाँ से यह मांझा मंगा कर देता है। वैसे तो सरकारी स्तर पर चायनीज़ मांझे का आयात ही बन्द होना चाहियें।तभी इंसानों की और पक्षियों की जान बच सकेगी।
गुरुवार, 9 जनवरी 2025
अखबार में भगवान
समाचार पत्र पर भगवान
अक्सर समाचार पत्रों में लगभग सभी धर्मों के भगवान की फ़ोटो छपती रहती हैं। सिर्फ एक मुस्लिम समुदाय है जिसकी कोई धार्मिक फ़ोटो नहीं छपती।
अब ये अखबार अगले दिन पुराने होकर निम्न स्तर के कार्यो में इस्तेमाल होने लगते हैं। कबाड़ी इन्हें 15 रुपये किलों के हिसाब से ले जाता है। जहां से ये पुनः 20 रुपये किलों में बिक जाते हैं। चाट पकौड़ी वाले, जलेबी वाले इन्हें ले जाते हैं। जो इन्हें ले जाकर अपने हिसाब से कट करके रख लेते हैं। इन्ही अखबारों में धार्मिक फ़ोटो वाले पेज़ भी होते हैं। अब अगर किसी चाट वाले या जलेबी वाले को अपने ग्राहक को चाट या जलेबी देते समय किसी भगवान की फ़ोटो ऊपर आ गई हो तो जल्दी में वह यह नहीं देखता। बस अखबार के पत्ते लगाकर देता चला जाता है। खाने वाले ग्राहक भी चाट चाट कर चाट या जलेबी के मज़े लेते हैं। उन्हें भी अपनी झूठन के नीचे कोई भगवान दिखाई नहीं देते। उन्हें तो सिर्फ टेस्ट दिखाई देता है।
ऐसा होना हमारे भगवन्तों का बहुत अनादर है। इसी वजह से कुछ हिंदुओ में अपने धर्म के प्रति न सम्मान होता है और न ही आस्था होती है। उन्हें तो सिर्फ अपनी मौज मस्ती से मतलब है। ऐसे हिंदुओ को नॉनवेज जगह पर वेज़ खाने में भी कोई समस्या दिखाई नहीं देती। भले ही वहां वेज़ और नॉनवेज एक ही तेल में पकाया जा रहा हो।
समाचार पत्र पर धार्मिक फ़ोटो के बारे में लिखने का मुख्य आशय यह है की ऐसे में किसी चाट के ठेले पर कोई पुराने अखबार के दोने में चाट खा रहा हो और कोई धर्म प्रेमी संगठन के लोग यह देखकर हंगामा कर दे तो बबाल मच सकता है। जबकि ऐसा कोई पहली बार नहीं हो रहा है। हो सकता है की उज़ संगठन के लोगों ने भी ऐसे ही चाट या जलेबी खाई हो। लेकिन आज योगी राज में ऐसे संगठन जरा जरूरत से ज्यादा जागरूक दिखाई देते हैं।
बहराल कुछ भी हो, ऐसा होना ठीक नहीं है। पहली तो बात समाचार पत्रों में भगवंतों की फ़ोटो छपे ही नहीं। यदि छप रही हैं तो हम सभी का कर्तव्य है की समाचार पत्र पढ़कर फ़ोटो को कैंची से काटकर अलग रख ले। फिर उन्हें नदी में प्रवाहित कर दें।
गुरुवार, 2 जनवरी 2025
बंग्लादेश को अक्ल आई
बंग्लादेश को अब थोड़ा समझ आने लगा है की भारतीयों के उत्पीड़न का क्या नतीज़ा होने वाला है।
अब बंग्लादेश की सेना प्रमुख वाकर उज़ जमान ने अपने संदेश में कहा है की भारत के साथ हम कभी गलत नहीं करेंगे। भारत हमारा मित्र है। व्यापार क्षेत्र में कई मायनों में हम भारत पर निर्भर हैं।
उनके इस संदेश को हम क्या समझें। इस संदेश की सार्थकता तभी है जब बंग्लादेश से भारतीयों का उत्पीड़न बन्द हो जायेगा और जिनके घर, दुकानें जलाई गई हैं, जिन्हें लुटा गया है उसकी भरपाई करें वहां की सरकार।
ट्रेन डिरेल
सहारनपुर, यूपी
ट्रेन को पलटाने की साज़िश। सहारनपुर के पटरी स्टेशन के पास रेल ट्रैक पर लोहे का गेट डाल दिया गया। गेटमैन ने देखा की ट्रैक पर कुछ पड़ा है। वह तभी दौड़ कर पास गया तो देखा की ट्रैक पर एक लोहे का गेट पड़ा है। उसने तभी अधिकारियों को सूचित किया। उसकी सूझबूझ से बड़ा हादसा होने से टल गया। यह घटना रात एक बजे की है। ट्रेन 14089 आनंद विहार-कोटवाड़ा एक्सप्रेस।
अराजक तत्व कुछ बड़ा घृणित कार्य करेंगे कुछ ऐसा ही लगता है। इनकी पकड़-धकड़ जरूरी है।
मनमोहन सिंह, ईमानदार या
मनमोहन सिंह उर्फ मौनी बाबा को मोदी जी ने क्यों कहा था कि मनमोहन सिंह तो बाथरूम में भी रेनकोट पहन कर नहाने की कला जानते हैं।
इस घटनक्रम को जानेगे तो आपको भी यकीन हो जाएगा तथाकथित ईमानदार मनमोहन सिंह कितना बड़ा खिलाड़ी था।
आखिर अमर्त्यसेन अमेरिका में बैठे बैठे भारत सरकार की आर्थिक नीतियों की इतनी आलोचना या दूसरे शब्दों में कहें तो मोदी पर विष-वमन क्यों करते रहते हैं ?
अगर आप भी अपनी जिज्ञासा शांत करना चाहते हैं तो ध्यानपूर्वक पढ़िए और जानिये क्यों ....
वर्ष 2007 में जब नेहरू-गांधी परिवार के सबसे वफादार "डॉ मनमोहन सिंह" प्रधानमंत्री पद से अपनी शोभा बढ़ा रहे थे तब उन्होंने एक समय बिहार के विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की "महायोजना" पर काम शुरू किया (महायोजना क्यों कह रहा हूँ आगे स्पष्ट होगा)
डॉ मनमोहन सिंह ने नोबल पुरस्कार विजेता "डॉ अमर्त्यसेन" को असीमित अधिकारों के साथ नालंदा विश्वविद्यालय का प्रथम चांसलर नियुक्त किया। उन्हें इतनी स्वायत्तता दी गयी कि उन्हें विश्विद्यालय के नाम पर बिना किसी स्वीकृति और जवाबदेही के कितनी भी धनराशि अपने इच्छानुसार खर्च करने एवं नियुक्तियों आदि का अधिकार था । उनके द्वारा लिए गये निर्णयों एवं व्यय किये गये धन का कोई भी हिसाब-किताब सरकार को नहीं देना था ।
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि छुपे रुस्तम मनमोहन सिंह और अमर्त्यसेन ने मिलकर किस तरह से जनता की गाढ़ी कमाई और टैक्स के पैसों से भयंकर लूट मचाई ? वो भी तब जबकि अमर्त्यसेन अमेरिका में बैठे बैठे ही 5 लाख रुपये का मासिक वेतन ले रहे थे जितनी कि संवैधानिक रूप से भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, मुख्य चुनाव आयुक्त, रक्षा सेनाओं के अध्यक्षों, कैबिनेट सचिव या किसी भी नौकरशाह को भी दिए जाने का कोई प्रावधान ही नहीं है ।
इतना ही नहीं अमर्त्यसेन को अनेक भत्तों के साथ साथ असीमित विदेश यात्राओं और उस पर असीमित खर्च करने का भी अधिकार था ।
कहानी का अंत यहीं पर नहीं हुआ बल्कि उन्होंने मनमोहनी कृपा से 2007 से 2014 की सात वर्षों की अवधि में कुल 2730 करोड बतौर चांसलर नालंदा विश्वविद्यालय खर्च किये.... आपकी आंखें फटी रह गयी न ... विश्वास नहीं हो रहा न कि मनमोहन सिंह ईमानदारी के चोंगे में कितने बड़े छुपे रुस्तम थे ?
चूंकि यूपीए सरकार द्वारा संसद में पारित कानून के तहत अमर्त्यसेन के द्वारा किये गये खर्चों की न तो कोई जवाबदेही थी और न ही कोई ऑडिट होना था और न ही कोई हिसाब उन्हें देना था इसलिए देश को कभी शायद पता ही न चले कि दो हज़ार सात सौ तीस करोड़ रुपये आखिर गये कहाँ ?
राफेल राफेल चिल्लाने वाले राहुल और रंक से राजा बने दर्जाप्राप्त भूमाफिया रॉबर्ट वाड्रा की धर्मपत्नी प्रियंका वाड्रा की पारिवारिक विरासत ही है कानूनी जामा पहना कर संगठित लूट की ताकि कानून के हाथ कितने भी लंबे हो जायँ पर उनका कुछ न बिगड़े ।
ऐसी ही संस्कृति में पलने बढ़ने के कारण दोनों भाई-बहनों में कोई आत्मग्लानि का भाव है ही नहीं बल्कि आंखों में बेशर्मी की चमक हो जैसे...किस मुंह से ये गरीब, दलित, किसान और पिछड़ों के हक की लड़ाई लड़ने की बात करते हैं !! निपट ढोंग है ये ।
अभी कहानी खत्म नहीं हुई, पिक्चर अभी बाकी है -
अमर्त्यसेन सेन ने जो नियुक्तियां कीं उसपर भी कानूनन कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता । उन्होंने किन किन की नियुक्तियां कीं ... आइये ये भी जान लेते हैं -
प्रथम चार नियुक्तियां जो उन्होंने कीं वो थे -
1. डॉ उपिंदर सिंह
2. अंजना शर्मा
3. नवजोत लाहिरी
4. गोपा सब्बरवाल
..... कौन थे ये लोग
... ? ? जानेंगे तो मनमोहन सिंह के चेहरे से नकाब उतर जायेगा ।
डॉ उपिंदर सिंह मनमोहन सिंह की सबसे बड़ी पुत्री हैं और बाकी तीन उनकी करीबी दोस्त और सहयोगी ।
इन चार नियुक्तियों के तुरंत बाद अमर्त्यसेन ने जो अगली दो नियुक्तियां कीं वो गेस्ट फैकल्टी अर्थात अतिथि प्राध्यापक की थी और वो थे -
1. दामन सिंह
2. अमृत सिंह
.....गोया ये कौन थे ?
पहला नाम डॉ मनमोहन सिंह की मझली पुत्री और दूसरा नाम उनकी सबसे छोटी पुत्री का है ।
और सबसे अद्वितीय बात जो दामन सिंह और अमृत सिंह के बारे है वो ये कि ये दोनों "मेहमान प्राध्यापक" अपने सात वर्षों के कार्यकाल में कभी भी नालंदा विश्वविद्यालय नहीं आयी ... पर बतौर प्राध्यापक ये अमेरिका में बैठे बैठे ही लगातार सात सालों तक भारी-भरकम वेतन लेती रहीं ।
उस दौर में नालंदा विश्वविद्यालय की संक्षिप्त विशेषता ये थी कि -
विश्विद्यालय का एक ही भवन था, इसके कुल 7 फैकल्टी मेम्बर और कुछ गेस्ट फैकल्टी मेम्बर (जो कभी नालंदा आये ही नहीं ) ही नियुक्त किये गये जो अमर्त्यसेन और मनमोहन सिंह के करीबी और रिश्तेदार थे । विश्विद्यालय में बमुश्किल 100 छात्र भी नहीं थे और न ही कोई वहां कोई बड़ा वैज्ञानिक शोध कार्य ही होता था जिसमे भारी भरकम उपकरण या केमिकल आदि का प्रयोग होता हो ।
फिर वो 2730 करोड़ रुपये गये कहाँ आखिर ?
मोदी जब सत्ता में आये और उन्हें जब इस कानूनी लूट की जानकारी हुई तो अमर्त्यसेन के साथ साथ मनमोहनी पुत्रियों को भी तत्काल बाहर का रास्ता दिखा दिया ।
कहाँ गए वो राफेल राफेल चिल्लाने वाले... लौट आये बैंकॉक से ? कहाँ गयी गरीब किसान की पत्नी जिनके साथ अत्याचार हो रहा है ....
अभी गरीब गुरबा के साथ सेल्फी में ही जुटी हैं क्या ?
कहाँ गये वो 49 मॉब लिंचिंग के स्वयम्भू चिंतक जिनके पीठ पर लदा पुरस्कारों का अहसान अभी उतरा नहीं है तो आंखों में बेहयाई अभी बाकी है ?
👉 इस मौनी बाबा ने अपनी मनमोहनी खामोशी से जो खेल खेला उसमें अपने परिवार और अपने इटालियन मालिक को भरपूर लाभ लेने का मौका दिया वो इनकी साफ सुथरे चेहरे को बेनकाब करने के लिए काफ़ी है।
👉 आज वही अमर्त्य सेन मोदी जी का सबसे बड़ा विरोधी है और मौका मिलते ही हर बार मोदी जी के बारे में पूरी दुनिया को गुमराह करने का प्रयास करता रहता है।
समझिए कौन था ....??
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