रविवार, 12 जनवरी 2025

काम के घण्टे

काम के घण्टे बड़ी- बड़ी कम्पनियों के CEO चेयरमैन ऑफिस में काम के घण्टो पर अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं। इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति कहते है की सप्ताह में 70 घण्टे कार्य होना चाहिए। एल एंड टी के चेयरमैन सुब्रह्मण्यम सप्ताह में 90 घण्टे काम की वकालत कर रहे हैं। आनंद महिंद्रा का सुझाव है की काम को घण्टो से नहीं बल्कि गुणवत्ता से नापना चाहिए। ये तो बड़े-बड़े लोगो की बड़ी-बड़ी बातें हैं। भारत देश मे अधिकांश छोटा और मध्यम व्यापारी जो 11 घण्टे दुकान खोलकर बैठता है। रात को घर पर जाकर हिसाब मिलाता है। छुट्टी के दिन खरीदारी के लिये किसी बड़े दिल्ली जैसे नगर में जाता है। उसके बारे में कोई नहीं सोचता। दुकान पर बैठे हुए भी दिमाग मे विभागीय कानूनों की पूर्ति में परेशान रहता है जो अक्सर कुछ ले देकर ही पूरी होती है। कोई छुट्टी नहीं, कोई परिवार के साथ घूमना फिरना नहीं। सीनियर सिटीजन हो जाने के बाद भी दुकान के अलावा आय का कोई साधन नहीं। उसके बारे में सरकार भी नहीं सोचती। सरकार तो बस सरकारी नॉकरी वाले कर्मियों की सोचती है। उनकी बेहताशा सेलरी के बाद भी सेलरी बढ़ाने की बात, उनको महंगाई भत्ता देने की बात, वे रूठ न जाये इसलिये उनको मनाने की बात यानी सरकारी नॉकरी करने वाला हर हाल में मज़े में है। नॉकरी के बाद पेंशन के मज़े। यदि वह जीवित न रहे तो उसकी पत्नीजी को भी परेशानी नहीं। परेशान तो सिर्फ मध्यम वर्ग आदमी या व्यापारी ही रहता है। जिसके लिये कोई सरकारी सहायता नहीं। यहाँ तक की गैस का सिलेंडर भी सस्ता नहीं मिल पाता। जबकि सरकार जहां चुनाव होते हैं वहां सस्ता सिलेंडर दे देती है। बहुत भेदभाव की बात है ऐसा होना। सुनील जैन राना

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