शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022

सड़को पर आवारा पशु किसके

सड़को पर आवारा पशु किसके? सड़को पर आवारा पशु के नाम पर गोवंश का नाम सामने आ जाता है। बहुत विडम्बना की बात है की भारत देश मे जहां एक तरफ गोमाता औऱ नन्दी को पूजा जाता है वहीं दूसरी ओर सड़को पर गोवंश भोजन की तलाश में आवारा घूमता है और कचरे कबाड़े में से कुछ खाकर पेट भरता है। सवाल यह है की यह आवारा गोवंश किसका होता है। बहराल कहीं न कहीं से तो यह सड़को पर आता ही है। इसका जबाब यही ठीक लगता है की जो लोग गाये पालते हैं उनकी गाय यदि बछड़ा दे दे तो वे समझते हैं कि यह किसी काम का नही और थोड़ा सा बड़ा होने पर कुछ अच्छे लोग सड़कों पर छोड़ देते है और कुछ लोग कसाई को बेच देते हैं। यही बात बांझ गाय पर लागू होती है। ऐसा होना बहुत शर्मनाक है।हिन्दू लोग एक तरफ गाय को गोमाता कहते हैं और दूसरी तरफ कुछ हिन्दू लोग उसे आवारा सड़क पर छोड़ देते है। गाय को अधिकांशतः हिन्दू ही पालते हैं। राज्य सरकारों द्वारा आवारा गोधन के लिये गौशाला भी बनवाई जाती है। साथ प्रत्येक गोधन के लिये अनुमानित चारा खर्च भी दिया जाता है। लेकिन भ्र्ष्टाचार के चलते अनेको गौशाला की स्तिथी चिंताजनक है। भूख के कारण गाय मर जाती हैं। बरसात में गोधन की बहुत दुर्दशा रहती है। पता नही इनके संचालक किस मट्टी के बने होते है जिनकी गोशाला में गोधन भूख प्यास से मर जाते हैं। हमारे ऋषि विद्वान आदि की भी गोशाला होती है। उनकी गोशाला में दूध देने वाली गाये होती हैं। यदि कोई बांझ गाय को वहां भेजना चाहे तो वे नही लेते। यह बहुत शर्मनाक है। अनेक विद्वान अपने प्रवचन में गायो की महत्ता तो बताते हैं लेकिन अपने भक्तों को गाय पालने को प्रेरित नही करते। यदि ऐसे विद्वान खुद भी दूध न देने वाला गोधन पालें और अपने भक्तों को भी प्रेरित करें तो आवारा गोधन की समस्या से मुक्ति मिल सकती है। सिर्फ सरकारी स्तर पर आवारा गोधन की समस्या से निजात नहीं मिल सकती है। हम सभी मे जिस प्रकार गाय के प्रति आस्था है ठीक उसी प्रकार असहाय गोवंश के प्रति भी सहानुभूति होनी चाहिए। सुनील जैन राना

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