मंगलवार, 7 सितंबर 2021

राजनीति से प्रेरित किसान आंदोलन

किसानों के हित के कानूनों को काले कानून बताकर कुछ किसान सरकार के विरोध में लगे है। किसानों के मसीहा बने राकेश टिकैत ने मुज़फरनगर में किसानों की भीड़ जुटाई जिसमें किसानों के हित के मुद्दे कम बल्कि मोदीजी -योगीजी की सरकार को उखाड़ फेंकने पर ज्यादा बयान दिए गये। समझ में नहीं आ रहा है की उत्तर प्रदेश के किसान योगीजी की सरकार को उखाड़ने की बात करें तो भी ठीक है लेकिन जो किसान पंजाब आदि अन्य राज्यों से आये उन्हें योगीजी की सरकार से क्या फर्क पड़ेगा शायद उन्हें भी नहीं पता था। पिछले ९ महीनो से दिल्ली की कई सड़को पर कब्जा कर बैठे कथित किसान सिर्फ आने -जाने वाली जनता को परेशान कर रहे हैं इसके अलावा उनका कोई साफ़ मक़सद नज़र नहीं आ रहा। पक्के टैण्टो में ऐसी लगाकर बैठे इन लोगो को देखकर लगता है जैसे इनकी कोई खेती बाड़ी नहीं है। ये तो बस सरकार का विरोध करने अखाडा जमाकर बैठे हैं। टैण्टो के बाहर महंगी गाड़ियां खड़ी रहती हैं ऐसा लगता ही नहीं जैसे यहां कोई किसान बैठे हों।२६ जनवरी पर राकेश टिकैत की अगुवाई में लाल किले पर जो कुछ हुआ उसे बहुत दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जायेगा। किसानों के बीच खालिस्तानियों का होना संदेह जताता है। मुज़फरनगर के किसान आंदोलन में जिस तरह किसानो के हित के मुद्दे छोड़कर मोदीजी -योगीजी की सरकार को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया गया यह राजनीति से प्रेरित ही कहा जायेगा। ऐसा लगता है जैसे सभी विपक्षी दल इस आंदोलन में अपनी जगह ढूंढ रहे हों। लाख -पचास हज़ार की भीड़ ने सिर्फ नगर में अव्यवस्था को जन्म दिया इससे ज्यादा इस आंदोलन की कोई सार्थकता दिखाई नहीं दी। राकेश टिकैत शायद देश की राजनीतिक पार्टियों को नहीं समझ रहे। अब यह आंदोलन किसानो का न होकर दलगत होता दिखाई दे रहा है। देश का अधिकांश किसान गरीब है जिसके लिए सरकार द्वारा सुविधाएं एवं योजनाएं चलाई जा रही हैं। किसानों को पारम्परिक खेती के अलावा नई नई खेती के बारे में बताया जा रहा है जिससे किसानो की आमदनी में इज़ाफ़ा हो। पिछले ७० सालों में यदि ऐसे उपाय किये होते तो आज किसान गरीब न रहता.विडंबना की बात यह भी है की सरकार द्वारा चलाई योजनाओं का लाभ बड़ा किसान तो तुरंत उठा लेता है लेकिन छोटे किसान को इन सभी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पता है। सरकार को अब ऐसा करना चाहिए की छोटे और बड़े किसानों का वर्गीकरण करे जो खेती की जमीन के हिसाब से हो सकता है। बड़े किसानो को किसी सरकारी मदद की जरूरत नहीं होती,उसके पास धन की कमी नहीं होती जबकि छोटा किसान सदैव धन की तंगी से परेशान रहता है। सरकारी योजनाओं का लाभ छोटे किसानो को होना चाहिए। मुज़फरनगर किसान आंदोलन में टिकैत द्वारा अल्ला हू अकबर के नारे लगवाना उनकी विघटनकारी मंशा को दर्शाता है। क्या ही अच्छा होता की वे साथ में जय श्रीराम और हर हर महादेव के नारे भी लगवाते। ऐसी जहरीली सोच वाले नेतागण ही समाज का वातावरण दूषित कर रहे हैं। हिन्दू मुस्लिम समाज मिलकर रहता है लेकिन ऐसे लोग आपसी संबंधो में जहर घोलने का काम कर रहे हैं। राकेश टिकैत जो कोई चुनाव नहीं जीता बल्कि जमानत जब्त कराई आज किसानो का मसीहा बनने चला है। लेकिन अब यह आंदोलन किसानों के नाम पर ज्यादा दिन नहीं चल पायेगा अब यह राजनीति से प्रेरित होकर रह जाएगा। * सुनील जैन राना *

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